रविवार, 5 जून 2011

विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष...














https://youtu.be/pc4LKrM5qH4


पर्यावरण वन्दना
-अरुण मिश्र

वन्दना   करिये   धरा  की;
धरा    के    पर्यावरण  की।।

झर    रहे    निर्झर   सुरीले,
और नदियॉ बहें कल-कल।
ताल, पोखर,  झील, सागर,
हर तरफ  है,  नीर  निर्मल।।

चर-अचर जिसमें सुरक्षित,
स्नेहमय उस आवरण की।।

मन्द,  मन्थर  पवन शीतल;
ऑधियों  का  तीव्रतर  स्वर।
सर्वव्यापी    वायु    पर   ही,
   प्राणियों  की   सॉस  निर्भर।।

जीव-जग-जीवनप्रदायिनि-
प्रकृति के, शुभ आचरण की।।

अन्न  के   भण्डार   दे   भर,
भूमि  उर्वर,  शस्य-श्यामल।
भूख    सबकी    मेटने   को-
वृक्ष,  फलते  हैं  मधुर फल।।

मॉ     धरा    की   गोद    के,
इस मोदमय वातावरण की।।
                       *

4 टिप्‍पणियां:

  1. परम आदरणीय अरुण मिश्र जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !
    प्रणाम !

    झर रहे निर्झर सुरीले,
    और नदियॉ बहें कल-कल।
    ताल, पोखर, झील, सागर,
    हर तरफ है, नीर निर्मल।।


    चर-अचर जिसमें सुरक्षित,
    स्नेहमय उस आवरण की।।

    वन्दना करिये धरा की;
    धरा के पर्यावरण की।।

    आहाऽऽह …! कितनी प्रखर लेखनी है आपकी !

    आपने हर विषय पर हर विधा में ; अनेक भाषाओं में काव्य सृजन किया है , और जिस विषय पर , जिस विधा में लिखा कमाल लिखा !
    … और दंभ छू भी नहीं गया आपको … प्रणाम है !

    मैं आपको एक लिंक मेल से भेजूंगा … कृपया , वहां भी जुड़िएगा ताकि एक गुणी सरस्वती पुत्र की लेखनी का प्रसाद अन्य लोगों तक पहुंचे … और आपसे अधिकाधिक छंदसाधक प्रेरणा ले सकें ।

    सादर
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाओं सहित

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  2. प्रिय राजेंद्र जी, उत्साहवर्धन के लिए हृदय से आभारी हूँ| स्नेह बनाये रखियेगा|लिंक की प्रतीक्षा करूंगा|
    शुभकामनायें|
    -अरुण मिश्र.

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रिय यशवंत माथुर जी एवं सुश्री विभा रानी श्रीवास्तव जी
    आप दोनों का आभार|
    शुभकामनायें|
    -अरुण मिश्र.

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