सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

SANGEET SANDHYA

MY DAUGHTER TARU'S SHUBH VIVAH SANGEET SANDHYA
ON 26th JANUARY, 2016
AT MY RESIDENCE AT LUCKNOW.

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

TARU-AVINASH VIVAH



बिटिया निज गृह जाहु तुम... 

-अरुण मिश्र 

दुलहा  बने  अविनाश प्रिय,  दुलहिन बनीं  तरुश्री  लली।
बेला   परम  सौभाग्य  कै,  प्रभु  की  कृपा  महती  फली।।
वर का  मिली  सुन्दर वधू   अरु  है   वधू  के  जोग्य  वर।
मन मुदित दुलहिन लाडली, हर्षित फिरहिं  दुलहा कुँवर ।।


वर-मातु हिय हुलसैं,  भरहिं आनंद  पितुश्री  निज उरहिं।
श्रीमान जय-परकास जी भार्या सहित  सुख-सरि तिरहिं।।
परिवार  कै  मन-मोर  नाचै,  निरखि  नव सुख की  घटा।
सब  नात-बाँत   प्रसन्नमन,   चँहु  ओर  उत्सव कै  छटा।।


वर  अरु  वधू  के    संग-संग,  परिवार  दुइ   इक  होइ  रहे।
उल्लास   कन्यापक्ष  कै   सुख-दुक्खमय   कोउ  कस  कहे।।
पितु अरुण मिश्र  प्रसन्नचित,  मन मगन मातु शकुन्तला।
स्वागत बरातिन्ह करि करैं,  कुश  कुँवर, प्रिय  अंकुर लला।।


सखियाँ-सखा,   भ्राता-भगिनि,  जेतने  भतीज-भतीजियाँ।
फूफा-बुआ,    चाची-चचा,   मौसा   सहित   सब   मौसियाँ।
उल्लास भरि  निज उरहिं  सबहीं,  अश्रु  नयनन  महिं  भरे।
पीड़ा  मधुर  जानहि उहै,   बिटिया  जे   घर  ते   विदा  करे।।


       बिटिया  निज गृह जाहु तुम, बाँधि  प्रीति कै डोर।
       यहि आँगन की चन्द्रिका,  उहि घर करहु अँजोर ।।


       चिर   जीवै     जोरी   सदा,    देहिं   सबै    आसीस।
       अटल  करैं  सौभाग्य  तव,   सकल विस्व के  ईस।।


      उमा संग सिव-सम्भु जिमि, जैसेहि सिय संग राम।
      तैसेहि  तरु   अविनाश   संग,  लहैं   लोक  विस्राम।।


                                                 *

 

बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

कस्मै देवाय

आज दिनांक  ०३.०२. २०१६ को सुखद आश्चर्य के रूपमें में श्री देवकी  नंदन ' शांत' जी
का  कृपा पत्र  स्पीड पोस्ट से प्राप्त हुआ।  'कस्मै देवाय' के बहाने उनके इस स्नेहिल सौजन्य का आभार व्यक्त करते हुए पूरा पत्र यथावत  प्रस्तुत है।  - अरुण मिश्र