मंगलवार, 30 मार्च 2021

हां हां हां हां मोहन गिरधारी.../ पारम्परिक कुमाऊँनी होली गीत

https://youtu.be/_M_2fArVan8 

 

हां हां हां मोहन गिरधारी 

हां हां हां मोहन गिरधारी 

ऐसो अनाड़ी चुनर गयो फाड़ी 

हँसी हँसी दे गयो गारी 

मोहन गिरधारी 

हां हां हां..../ 

सुंदर रूप अहीर को छोरो 

नैनन की छवि न्यारी 

मोहन गिरधारी 

हां हां......../ 

बंसी के बट पर जमुना के तट पर 

सुंदर रास रचाई 

मोहन गिरधारी 

हां हां....../ 

दही मेरो खायो मटकी मेरी फोड़ी 

हँसी हँसी दे गयो गारी 

मोहन गिरधारी 

हां हां....../ 

चीर चुराय कदम चढी बैठो 

गोपी रही शरमाई 

मोहन गिरधारी 

हां हां......./ 

हरी हरी चुड़ियां पलंग पर तोड़ी 

पलंग पर तोड़ी बलम घर तोड़ी 

नाजुक बय्यां मरोड़ी 

मोहन गिरधारी 

हां हां.......//

सोमवार, 29 मार्च 2021

यूँ हवाओं में, घुल गई होली.../ अरुण मिश्र

 

होली...

                        -अरुण मिश्र 

   यूँ हवाओं में,  घुल  गई होली।
रंग बरसे तो,  धुल  गई होली।
सारे आलम में, मस्तियाँ बिखरीं।
इक पिटारी सी,खुल गई होली।।    



बेल-बूटों सी,  है  कढ़ी  होली।
फ्रेम में मन के, है  मढ़ी  होली। 
रंग का इक तिलिस्म है, हर-सू।
सर पे जादू सी, है  चढ़ी होली।।

   

सीढ़ी दर सीढ़ी है,  उतरी  होली।
आके अब लान में,  पसरी  होली।
संग हवा के, गुलाल बन के उड़ी।
रंग में भीगी तो,   निखरी  होली।।

   

हाथ   यूँ   ही,   हिला  रही  होली।
खेल   मुझको,    खिला  रही  होली।
कितनी मुश्क़िल से, पहुँचा आंगन तक।
शायद  छत  पे,    बुला  रही  होली।।

    


   देखो हौले से,  आ  रही होली।
मेरे जी को,  लुभा  रही  होली।
उम्र तक को, धकेल कर  पीछे।
कानों में होली, गा रही,  होली।।

          

मीठी यादें,  जगा  रही  होली।
चैन मन का, भगा  रही  होली।
रंग की बारिशों,  न थम जाना।
आग दिल में, लगा  रही होली।।

      

ख़ुश्क  है ’औ कभी  पुरनम होली।
कभी शोला, कभी   शबनम होली।
रंग है, रस है,  रूप है, कि महक।
एक मौसम है,  कि  सरगम होली।।

      

प्यासी  आँखों  का,  ख़्वाब  है होली।
चप्पा- चप्पा,   गुलाब   है    होली।
लब पे आने से,  झिझकता जो सवाल।
उसका,   मीठा   जवाब   है   होली।।

     

फूली सरसों,  संवर  रही  होली।
आम बौरे,    निखर  रही  होली।
कोयलें    कूकीं,  पपीहे  पागल।
रस के झरने  सी झर रही होली।।

        

यूँ  मज़े  में,   शुमार   है   होली।
ज़ोश ,  मस्ती,   ख़ुमार,  है  होली।
इस बरस, कैश  जो किया सो किया।
बाकी   तुम  पर,  उधार  है होली।।

                         *
 (पूर्वप्रकाशित)

रविवार, 28 मार्च 2021

चलो रे! खेलें फाग; होली है.../ अरुण मिश्र

चलो रे! खेलें फाग; होली है... 

-अरुण  मिश्र 

चलो रे! खेलें फाग; होली है।

          सगरो  ब्रज में,  धूम  मची है; 
          लोक-लाज, कछु नाय बची है;

इत राधा,सखियन संग निकसीं, 
उत, नंदलाल  की  टोली  है। 
चलो रे! खेलें फाग; होली है।।
  
         नव  वसंत   कै,  बाजै   नूपुर; 
         लहरै  सरजू, उमगै  अवधपुर;
  
चलीं सीय, सखियन संग उतहीं, 
जित, रघुवीर  की  टोली  है। 
चलो रे! खेलें फाग; होली है।।
  
      धूम मची, कैलास-सिखर पर, 
        नाचें  सिव-गनेस, डमरू-स्वर
  
सुनि गौरा, सखियन संग धाईं, 
बम-भोले की भागी, टोली है। 
चलो रे! खेलें फाग; होली है।। 
                                   *

लाज न कर गोरी होरी में.../ रसिया पुष्टिमार्ग / पुरुषोत्तम दास / स्वर : श्री रसेश शाह

https://youtu.be/KWY8q-cxAh4 

होरी में लाज न कर गोरी होरी में।
हम ब्रज के रसिया तू गोरी, भली बनी है यह जोरी,
होरी में, हाँ हाँ होरी में, हम्बै होरी में,
होरी में ----

जो हमसो सूधे नहीं खेलो, तो फिर हम करि हैं बरजोरी,
होरी में, हाँ हाँ होरी में, 
लाज न कर गोरी होरी में
होरी में ----

सास ननद से दुबक दुबक के, हमसे खेल लै होरी गोरी,
होरी में, हाँ हाँ होरी में,
लाज न कर गोरी होरी में
होरी में ----

नारायन अब निकस द्वार से, छूटेगी नाँय बन के भोरी,
होरी में, हाँ हाँ होरी में, 
लाज न कर गोरी होरी में
होरी में ----

पुरुषोत्तम प्रभु की छवि निरखें, निरखें बरसाने की होरी।
होरी में, हाँ हाँ होरी में, 
लाज न कर गोरी होरी में

होरी में ----

मैं होली में आऊँगा.../ ग़ज़ल : अरुण मिश्र / संगीत, धुन एवं स्वर : श्री केवल कुमार

 

संगीत, धुन एवं स्वर : श्री केवल कुमार 

मैं होली में आऊँगा...

-अरुण मिश्र 

होली की मस्ती भरी वर्ष १९९४ में लिखी यह ग़ज़ल, 
होली की मंगलकामनाओं के साथ प्रस्तुत है | 
रंगों एवं मस्तियों का यह त्यौहार सभी को 
बहुत-बहुत शुभ हो | 
- अरुण मिश्र.

(पूर्वप्रकाशित)

शनिवार, 27 मार्च 2021

आज खेलूँ श्याम संग होरी...(राग काफी) / गायन : पारुल मिश्रा

 https://youtu.be/gJYETzL9uwg 

आज खेलूँ श्याम संग होरी...
गायन : पारुल मिश्रा
तबला : कौशिक बसु
आज खेलूँ श्याम संग होरी
रंग भरी केसर की पिचकारी 
आज खेलूँ श्याम संग होरी

कुँवर कन्हैया संग सखि राधे 
रंग भरी जोरी 
सोहत री 
आज खेलूँ श्याम संग होरी

बुधवार, 24 मार्च 2021

आज बिरज में होली रे रसिया...(होरी ठुमरी) / रचना : चन्द्र सखी / स्वर : विदुषी शोभा गुर्टू (पद्म भूषण)

 https://youtu.be/6gpZDtfzkB8 

अबीर गुलाल के बादल छाए,
धूम मचाई रे सब मिल सखिया ।


शोभा गुर्टू को सन २००२ में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में 
पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
जन्म ; १९२५, कर्नाटक 
निधन : २००४ 

आज बिरज में होरी रे रसिया
आज बिरज में होरी रे रसिया ।
होरी रे होरी रे बरजोरी रे रसिया ॥

अपने अपने घर से निकसी,
कोई श्यामल कोई गोरी रे रसिया ।

कौन गावं के कुंवर कन्हिया,
कौन गावं राधा गोरी रे रसिया ।

नन्द गावं के कुंवर कन्हिया,
बरसाने की राधा गोरी रे रसिया ।

कौन वरण के कुंवर कन्हिया,
कौन वरण राधा गोरी रे रसिया ।

श्याम वरण के कुंवर कन्हिया प्यारे,
गौर वरण राधा गोरी रे रसिया ।

इत ते आए कुंवर कन्हिया,
उत ते राधा गोरी रे रसिया ।

कौन के हाथ कनक पिचकारी,
कौन के हाथ कमोरी रे रसिया ।

कृष्ण के हाथ कनक पिचकारी,
राधा के हाथ कमोरी रे रसिया ।

उडत गुलाल लाल भए बादल,
मारत भर भर झोरी रे रसिया ।

अबीर गुलाल के बादल छाए,
धूम मचाई रे सब मिल सखिया ।

चन्द्र सखी भज बाल कृष्ण छवि,
चिर जीवो यह जोड़ी रे रसिया ।

आज बिरज में होरी रे रसिया ।
होरी रे होरी रे बरजोरी रे रसिया ॥


शोभा गुर्टू
कर्नाटक में जन्मीं शोभा गुर्टू भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्रसिद्ध गायिका थीं। उन्हें ठुमरी की रानी कहा जाता था। उनका मूल नाम भानुमति शिरोडकर था। शोभा गुर्टू ने ऐसे समय में ख्याति प्राप्त की, जब महिलाओं का घरों से निकलना भी मुश्किल था। उन्हें गायन की शुरुआती शिक्षा अपनी मां से मिली। उनकी मां मेनेकाबाई शिरोडकर एक नृत्यांगना थीं। शोभा की मां जयपुर-अतरौली घराने के उस्ताद अल्लादिया खां से गायफकी सीखती थीं।
प्रारंभिक जीवन :
कहते हैं जिसको सीखने की ललक होती है, उसमें उसका हुनर बचपन से ही दिखने लगता है। शोभा गुर्टू ने बचपन से ही गायन सीखना शुरू कर दिया था। उनका विवाह विश्वनाथ गुर्टू से हुआ था। विश्वनाथ के पिता पंडित नारायणनाथ गुर्टू वरिष्ठ पुलिस अधिकारी थे, पर संगीत के विद्वान और सितारवादक भी थे।
करिअर :
संगीत के क्षेत्र में शोभा की विधिवत शुरुआत उस्ताद भुर्जी खां के साथ हुई। भुर्जी खां अल्लादिया खां के छोटे बेटे थे। वे जयपुर-अतरौली घराने के संस्थापक थे। जब शोभा की मां को उस्ताद घाममन खां ठुमरी, दादरा और अन्य शास्त्रीय शैलियां सिखाने आया करते थे तब शोभा भी उनसे सीखतीं थीं। उस्ताद घाममन खां मुंबई में शोभा के घर पर ही रहने लगे थे। वहीं रह कर वे उन्हें संगीत की शिक्षा दिया करते थे।
ठुमरी की मल्लिका :
शोभा गुर्टू को ठुमरी की रानी कहा जाता है। वे केवल गले से नहीं, आंखों से भी गाती थीं। वे ठुमरी के अलावा दादरा, कजरी, होरी आदि में भी निपुण थीं। वे बेगम अख्तर और उस्ताद बड़े गुलाम अली से अधिक प्रभावित थीं। शुद्ध शास्त्रीय संगीत में शोभा की अच्छी पकड़ थी। उनके गायन की वजह से उन्हें देश-विदेश में ख्याति प्राप्त हुई। अपने मनमोहक ठुमरी गायन के लिए वे ‘ठुमरी क्वीन’ कहलार्इं।
सिनेमा में भी गूंजी आवाज :
उन्होंने कई मराठी और हिंदी सिनेमा के लिए भी गीत गाए। उन्हें 1972 में आई कमाल अमरोही की पाकीजा में पहली बार पार्श्वगायन का मौका मिला था। इसमें उन्होंने एक गीत ‘बंधन बांधो’ गाया था। इसके बाद 1973 में आई ‘फागुन’ में ‘मोरे सैंया बेदर्दी बन गए कोई जाओ मनाओ’ गीत गाया। यह गीत आज भी लोगों की जुबान पर है। 1978 में आई ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ में उन्होंने ‘सैंया रूठ गए’ गीत गाया। इस गीत के लिए उन्हें सर्वेश्रेष्ठ पार्श्वगायक का पुरस्कार मिला। इसके अलावा मराठी सिनेमा में उन्होंने सामना और लाल माटी के लिए गाया। 1979 में उनका एक एलबम आया। उसके बाद मेहदी हसन के साथ आया उनका एलबम ‘तर्ज’ भी लोगों को खूब पसंद आया। उन्होंने पचासवें गणतंत्र दिवस पर जन गण मन का गायन भी किया था। उन्होंने अपने कई कार्यक्रम पंडित बिरजू महाराज के साथ प्रस्तुत किए थे, जिनमें विशेष रूप से उनके गायन के ‘अभिनय’ अंग का प्रयोग किया जाता था।
पुरस्कार :
उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। फिल्म ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ की ठुमरी के लिए उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। 1978 में संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार, 2002 में पद्मभूषण और महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार, लता मंगेशकर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
निधन : 

शोभा गुर्टू का निधन 27 सितंबर, 2004 में हो गया।


मंगलवार, 23 मार्च 2021

व्रज में हरि होरी मचाई.../ धमार के पद, राग काफी / सूरदास जी / गायक : राजीव रावत

https://youtu.be/dVnJxqgN8bg 

सम्पूर्ण भजन 

व्रज में हरि होरी मचाई ।

इततें आई कुँवरि राधिका उततें कुँवर कन्हाई ।
खेलत फाग परसपर हिलमिल शोभा बरनी न जाई ॥१॥ 

नंद घर बजत बधाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।

बाजत ताल मृदंग बांसुरी वीणा ढफ शहनाई ।
उडत अबीर गुलाल कुंकुमा रह्यो सकल ब्रज छाई ॥२॥ 

मानो मघवा झर लाई…..ब्रज में हरि होरी मचाई ।

लेले रंग कनक पिचकाई सनमुख सबे चलाई ।
छिरकत रंग अंग सब भीजे झुक झुक चाचर गाई ॥३॥ 

परस्पर लोग लुगाई…ब्रज में हरि होरी मचाई ।

राधा ने सेन दई सखियन को झुंड झुंड घिर आई ।
लपट झपट गई श्यामसुंदर सों बरबस पकर ले आई ॥४॥ 

लाल जु को नाच नचाई…ब्रज में हरि होरी मचाई ।

छीन लई हैं मुरली पीतांबर सिरतें चुनर उढाई ।
बेंदी भाल नयन बिच काजर नकबेसर पहराई ॥५॥ 

मानो नई नार बनाई …..ब्रज में हरि होरी मचाई ।

सुस्कत है मुख मोड मोड कर कहां गई चतुराई ।
कहां गये तेरे तात नंद जी कहां जसोदा माई ॥६॥ 

तुम्ह अब ले ना छुडाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।

फगुवा दिये बिन जान न पावो कोटिक करो उपाई ।
लेहूं कढ कसर सब दिन की तुम चित चोर सबाई ॥७॥ 

बहुत दधि माखन खाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।

रास विलास करत वृंदावन जहां तहां यदुराई ।
राधा श्याम की जुगल जोरि पर सूरदास बलि जाई ॥८॥ 

प्रीत उरहि न समाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।

सोमवार, 22 मार्च 2021

खेलि रहे रंग होरी.../ शुभा मुद्गल

 https://youtu.be/VwHK7ZDq1nc

पारम्परिक मंदिर होली गीत 

खेलि रहे रंग होरी 
उनके दोउ नैना 

सैंनन की पिचकारी चली है 
बाढ़ी प्रीति दोउ ओरी 

निरखि रहे वसुदेव-देवकी 
जैसे चन्द्र चकोरी 

तेल-फुलेल सहज चिकनाई 
अंजन करत अँजोरी 
श्याम पूतरी श्याम भाई है 
ज्योति बनी राधा गोरी 

शुभा मुद्गल (जन्म १९४९) भारत की एक प्रसिद्ध हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत
खयाल, टुमरी, दादरा और प्रचलित पॉप संगीत गायिका हैं। इन्हें १९९६ में सर्वश्रेष्ठ 
गैर-फीचर फिल्म संगीत निर्देशन का नेशनल अवार्ड अमृत बीज के लिये मिला था। 
१९९८ में संगीत में विशेष योगदान हेतु गोल्ड प्लाक अवार्ड, ३४वें शिकागो अंतर्राष्ट्रीय 
फिल्म उत्सव में उनकी फिल्म डांस ऑफ द विंड (१९९७) के लिये मिला था। इसके 
अलावा इन्हें २००० में पद्मश्री भी मिल चुका है।

शुक्रवार, 19 मार्च 2021

खेलें बिरज में होरी कन्हैया.../ महाकवि सूरदास / स्वर : अंकिता जोशी

 https://youtu.be/bAVETFy4gDM 

स्वर : अंकिता जोशी
हारमोनियम : स्वस्ति पाण्डेय
तबला : नील प्रसाद
सिंथेसाइज़र : तरुण कैलाश

खेलें बिरज में होरी कन्हैया
राधा कहे अब छोड़ो मोरी बइयाँ 

कनक पिचकारी अब मारो नाहीं  
भीग गयी मोरी चुनरी कन्हैया 

मोरे कन्हाई अब छिड़को गुलाल नाहीं 
नैनन में मोरे खटके कन्हैया 

बुधवार, 17 मार्च 2021

आरज़ू दारम कि मेहमानत कुनम...(फ़ारसी)/ हज़रत शम्स तबरेज़ी (११८५-१२४८) / गायन : क़व्वाल निज़ामुद्दीन-सैफ़ुद्दीन एवं साथी / काव्य-भावानुवाद : अरुण मिश्र

 https://youtu.be/96VTl_Lx_XY 

आरज़ू दारम कि मेहमानत कुनम...(फ़ारसी)
कलाम : हज़रत शम्स तबरेज़ी
गायन : क़व्वाल निज़ामुद्दीन-सैफ़ुद्दीन एवं साथी
काव्य-भावानुवाद : अरुण मिश्र 


आरज़ू दारम कि मेहमानत कुनम
जान-ओ-दिल ऐ दोस्त क़ुर्बानत कुनम

आरज़ू है कि तुझे मेहमाँ करूँ
औ ' दिल -ओ -जां दोस्त पर क़ुर्बां करूँ

ग़र यकीं दानम कि बर मन आशिक़ी
अज़ जमाल-ए-ख़्वेश हैरानत कुनम

ग़र यक़ीं हो तुझ को मुझसे इश्क़ है
तो मैं अपने हुस्न से हैराँ करूँ

ग़र तू तर्क़-ए-सर कुनी मर्दानावार
हम चू इस्माईल क़ुर्बानत कुनम

ग़र तू मर्दों की तरह सर वार दे
तो मैं इस्माईल सा क़ुर्बां करूँ

'शम्स तबरेज़ी' ब-मौलाना ब-गो
दफ़्तर-ए-असरार-ए-दीवानत कुनम

'शम्स तबरेज़ी' कहें मौलाना से
दफ़्तर-ए-असरार मैं दीवां करूँ

Shams-i Tabrīzī or Shams al-Din Mohammad 
(1185–1248) was a Persian poet, who is credited as the spiritual 
known as Rumi and is referenced with great reverence in Rumi's 
poetic collection, in particular Diwan-i Shams-i Tabrīzī (The 
Works of Shams of Tabriz)Tradition holds that Shams taught 
Rumi in seclusion in Konya for a period of forty days, before 
fleeing for Damascus. The tomb of Shams-i Tabrīzī was recently 
nominated to be a UNESCO World Heritage Site.




मंगलवार, 16 मार्च 2021

होली खेलैं नन्द लाल बिरज में...(राग काफी) / स्वर : पण्डित विनोद मिश्र

 https://youtu.be/ZSKNiJdwVh4 


होली खेलत नन्द लाल
बिरज में होली खेलत नंदलाल
ग्वाल बाल संग रास रचाए
ग्वाल बाल संग रास रचाए
नटखट नंदगोपाल
बिरज में होली खेलत नंदलाल
बिरज में होली खेलत नंदलाल

बाजत ढोलक झांझ मंजीरा
बाजत ढोलक झांझ मंजीरा
गावत सब मिल आज कबीरा
नाचत दे दे ताल
होली खेलत नन्द लाल
बिरज में होली खेलत नंदलाल

भर भर मारे रंग पिचकारी
भर भर मारे रंग पिचकारी
रंग गए ब्रिज के नर नारी
रंग गए ब्रिज के नर नारी
उड़त अबीर गुलाल
होली खेलत नन्द लाल
बिरज में होली खेलत नंदलाल

ऐसी होरी खेली कन्हाई
ऐसी होरी खेली कन्हाई
जमुना तट पर धूम मचाई
जमुना तट पर धूम मचाई
रास रचें नंदलाल

होली खेलत नन्द लाल
होली खेलत नन्द लाल
होली खेलत नन्द लाल
होली खेलत नन्द लाल
होली खेलत नन्द लाल.

सोमवार, 15 मार्च 2021

चला फुलारी फूलों को...(फूलदेई गीत) / रचना : नरेंद्र सिंह नेगी / स्वर : कवीन्द्र सिंह नेगी एवं अन्य

https://youtu.be/xV7cJBIzdJQ

'फूलदेई' प्रकृति को आभार प्रकट करने वाला लोकपर्व है। चैत के महीने की 
संक्रांति (मीन संक्रांति) को, जब ऊंची पहाड़ियों से बर्फ पिघल जाती है, सर्दियों 
के मुश्किल दिन बीत जाते हैं, उत्तराखंड के पहाड़ बुरांश के लाल फूलों की चादर 
ओढ़ने लगते हैं, तब पूरे इलाके की खुशहाली के लिए फूलदेई का त्योहार मनाया 
जाता है। ये त्योहार आमतौर पर किशोरी लड़कियों और छोटे बच्चों का पर्व है। 
सर्दी और गर्मी के बीच का खूबसूरत मौसम, फ्यूंली, बुरांश और बासिंग के पीले, 
लाल, सफेद फूल और बच्चों के खिले हुए चेहरे... 'फूलदेई' से यही तस्वीरें सबसे 
पहले ज़ेहन में आती हैं। उत्तराखंड के पहाड़ों का लोक पर्व है फूलदेई। नए साल 
का, नई ऋतुओं का, नए फूलों के आने का संदेश लाने वाला है ये त्योहार।

फूलदेई के दिन लड़कियां और बच्चे सुबह-सुबह उठकर स्नान करके पास के जंगल
जाकर ताजे-ताजे फूल तोड़कर लाते हैं, जिनमें बुरांश, फ्यूंली, बासिंग, भिटौर और 
कचनार आदि के सुन्दर पुष्प होते हैं। इन्हें बच्चे रिंगाल की छोटी टोकरियों में सजाते
हैं और फिर नए कपड़े धारण कर घर-घर जाते हैं और लोगों के घरों की देहरी पर फूल
बिखेरते हुए यह कहते हैं :
' फूलदेई, फूलदेई, छम्मा देई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार, यो देई सौं,
टोकरी में फूलों-पत्तों के साथ गुड़, चावल और नारियल रखकर बच्चे अपने गांव और 
मुहल्ले की ओर निकल जाते हैं। इन फूलों और चावलों को गांव के घर की देहरी, यानी 
मुख्यद्वार पर डालकर लड़कियां उस घर की खुशहाली की दुआ मांगती हैं।

गीत : फुलारी
रचना : नरेंद्र सिंह नेगी
स्वर : कवीन्द्र सिंह नेगी, अंजलि खरे, अनामिका वशिष्ठ, सुनिधि वशिष्ठ
अतिरिक्त अंतराएँ : डॉ. डी. आर. पुरोहित, प्रेम मोहन डोभाल संगीत : ईशान डोभाल

फुलारी गीत

चला फुलारी फूलों को सौदा-सौदा फूल बिरौला हे जी सार्यूं मा फूलीगे ह्वोलि फ्योंली लयड़ी मैं घौर छोड्यावा हे जी घर बौण बौड़ीगे ह्वोलु बालू बसंत मैं घौर छोड्यावा हे जी सार्यूं मा फूलीगे ह्वोलि चला फुलारी फूलों को सौदा-सौदा फूल बिरौला भौंरों का जूठा फूल ना तोड्यां म्वारर्यूं का जूठा फूल ना लायाँ ना उनु धरम्यालु आगास ना उनि मयालू यखै धरती अजाण औंखा छिन पैंडा मनखी अणमील चौतर्फी छि भै ये निरभै परदेस मा तुम रौणा त रा मैं घौर छोड्यावा हे जी सार्यूं मा फूलीगे ह्वोलि फुल फुलदेई दाल चौंल दे घोघा देवा फ्योंल्या फूल घोघा फूलदेई की डोली सजली गुड़ परसाद दै दूध भत्यूल अयूं होलू फुलार हमारा सैंत्यां आर चोलों मा होला चैती पसरू मांगणा औजी खोला खोलो मा ढक्यां द्वार मोर देखिकी फुलारी खौल्यां होला हिंदी अनुवाद :

चलो 'फुलारियो'! (फूल डालने वाले बच्चे) फूलों के लिए ताज़े ताज़े फूल चुन लें हे जी ! खेतों में खिल गयी होंगी 'फ्योलि' की लड़ियाँ मुझे घर छोड़ आओ हे जी ! घर और वन में लौट आया होगा सुकुमार बसन्त मुझे घर छोड़ आओ चलो 'फुलारियो'! (फूल डालने वाले बच्चे) फूलों के लिए ताज़े ताज़े फूल चुन लें भँवरों के झूठे फूल ना तोड़ना मधु-मक्खियों के झूठे फूल ना लाना ना वैसा निर्मल यहाँ का आकाश, ना स्नेहिल यहाँ की धरती अनजान लोग हैं, विपरीत मनुष्य अनमेल हैं चारों ओर छी ! अभागे परदेस में तुम्हें रहना है, रहो मुझे घर छोड़ आओ फुल फुल देवी! दाल चावल दे घोघा देवता, फ्युली के फूल घोघा फुलदेयी की डोली सजेगी गुड़ का प्रसाद, दही, दूध-भात का नैवेद्य खिले होंगे फूल हमारे उगाये हुवे आड़ू (peach), ख़ुबानी (apricot) पर होंगे चैत (महीने) का शगुन माँग रहे, औजी (drummers) आँगन आँगन में ढके हुवे दरवाजे (मोरी) देख कर 'फुलारि' (फूल डालने वाले बच्चे), ठगे रह गये होंगे

रविवार, 14 मार्च 2021

होरी खेलत गिरधारी.../ मीरा बाई / स्वर - साँवर मल कथक

 https://youtu.be/jPWyggeMRaQ 

स्वर - साँवर मल कथक
तबला - मोहित कथक
ढोलक - ,राहुल कथक

होरी खेलत गिरधारी...

मुरली चंग बजत डफ न्यारो।
संग जुबती ब्रजनारी॥
चंदन केसर छिड़कत मोहन
अपने हाथ बिहारी।
भरि भरि मूठ गुलाल लाल संग
स्यामा प्राण पियारी।
गावत चार धमार राग तहं
दै दै कल करतारी॥
फाग जु खेलत रसिक सांवरो
बाढ्यौ रस ब्रज भारी।
मीराकूं प्रभु गिरधर मिलिया
मोहनलाल बिहारी॥

शनिवार, 13 मार्च 2021

ग़ज़ल के दिलरुबा लहज़े में बोलूँ.../ अज़हर इनायती

https://youtu.be/YpVTcgH-BcQ

ग़ज़ल के  दिलरुबा लहज़े में बोलूँ 
वो आ जाये  तो मैं  फूलों में तोलूँ 

बदल जाते हैं  मंज़र  एक पल में 
अभी मैं  बंद आँखों को  न खोलूँ 

तेरी आँखें नहीं क्या  मेरी आँखें 
तेरी आँखों से मैं कुछ देर सो लूँ 

जिसे  खोया है  मैंने  कहकहों में 
वो मिल जाये तो मैं जी भर के रो लूँ 

मज़ा  देने लगे  जब  ख़ुद-कलामी 
तो फिर काहे को मैं तुझ-मुझ से बोलूँ 

दिलरुबा - हृदयग्राही 
मंज़र - दृश्य 
ख़ुद-कलामी - खुद से बातचीत 

अज़हर इनायती
15 अप्रैल 1946 को उत्तर प्रदेश के रामपुर में जन्मे अज़हर इनायती को बचपन 
से ही शायरी का शौक था। 12 साल की उम्र में ही रामपुर के ख्याति नाम शायर 
जनाब महशर इनायती को उन्होंने अपना उस्ताद मान लिया और अपना नाम भी 
अज़हर अली खां से 'अज़हर इनायती' रख लिया। निहायत सलीकेदार और उम्दा 
शायरी करने वाले अज़हर साहब ग़ज़ल को टूट कर चाहने वाले शायर हैं। अमेरिका, 
क़तर, दुबई, अबूधाबी , शारजाह और दुनिया के कोने- कोने में जाकर अज़हर साहब 
ने शायरी की है। 

बुधवार, 10 मार्च 2021

महाशिवरात्रि पर विशेष / रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्रम् का काव्य-भावानुवाद.../ अरुण मिश्र


https://youtu.be/MZ9njJYqOBw 
रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्रम् का भावानुवाद...
        रावणकृत  यह  शिवताण्डव स्तोत्र  न केवल  भक्ति  एवं  भाव के  दृष्टि से अनुपम है
अपितु, काव्य की दृष्टि से भी अद्भुत है। इसकी लयात्मकता, छन्द- प्रवाह,  ध्वनि-सौष्ठव,
अलंकार-छटा,  रस-सृष्टि  एवं  चित्रात्मक संप्रेषणीयता  सब कुछ अत्यन्त आकर्षक एवं
मनोहारी  है।  यह  अप्रतिम  रचना  महामना  रावण  के   विनयशीलता,   पाण्डित्य  एवं
काव्य-लाघव का उत्कृष्ट उदाहरण है।
       अनन्य  भक्ति  की  गंगा,  प्रवहमान  स्वर-ध्वनि  की  यमुना  एवं  उत्कृष्ट काव्य की
सरस्वती की इस त्रिवेणी में अवगाहन के पुण्यलाभ के कृतज्ञतास्वरूप इसके भावानुवाद
का अकिंचन प्रयास किया है। आप भी पुण्यलाभ लें।
      भगवान शिव मेरा एवं समस्त लोक का कल्याण करें।

-अरुण मिश्र.  

 ‘‘अथ शिवताण्डवस्तोत्रम्’’


जटा - वन - निःसृत,   गंगजल    के   प्रवाह   से-
पावन     गले,    विशाल     लम्बी     भुजंगमाल।
डम्-डम्-डम्, डम्-डम्-डम्, डमरू-स्वर पर प्रचंड,
करते   जो   तांडव,  वे   शिव  जी,  कल्याण  करें।।

जटा     के     कटाह    में,    वेगमयी    गंग    के,
चंचल   तरंग - लता   से   शोभित   है    मस्तक।
धग् - धग् - धग्  प्रज्ज्वलित पावक  ललाट पर;
बाल - चन्द्र - शेखर  में   प्रतिक्षण  रति  हो मेरी।।

गिरिजा के  विलास हेतु  धारित  शिरोभूषण  से,
भासित  दिशायें देख, प्रमुदित है   मन  जिनका।
जिनकी  सहज  कृपादृष्टि,  काटे  विपत्ति  कठिन,
ऐसे     दिगम्बर    में,    मन    मेरा    रमा    रहे।।

जटा   के   भुजंगो   के   फणों  के   मणियों   की-
पिंगल  प्रभा, दिग्वधुओं  के  मुख   कुंकुम  मले।
स्निग्ध,   मत्त - गज - चर्म - उत्तरीय  धारण  से,
भूतनाथ   शरण,    मन   अद्भुत     विनोद   लहे।।

इन्द्र   आदि   देवों   के   शीश   के   प्रसूनों   की- 
धूलि   से   विधूसर   है,  पाद-पीठिका   जिनकी।
शेष  नाग    की   माला   से     बाँधे  जटा - जूट,
चन्द्रमौलि,  चिरकालिक श्री  का  विस्तार  करें।।

ललाटाग्नि  ज्वाला  के   स्फुलिंग  से   जिसके-
दहे   कामदेव,   और   इन्द्र    नमन   करते   हैं।
चन्द्र की कलाओं से शोभित मस्तिष्क जटिल,
ऐसे  उन्नत  ललाट  शिव  को   मैं   भजता  हूँ ।।

भाल-पट्ट पर कराल,धग-धग-धग जले ज्वाल,
जिसकी    प्रचंडता    में    पंचशर    होम    हुये।
गौरी  के   कुचाग्रों  पर   पत्र - भंग - रचना   के-
एकमेव   शिल्पी,  हो  त्रिलोचन  में   रति  मेरी।।

रात्रि   अमावस्या   की,  घिरे   हों   नवीन  मेघ,
ऐसा   तम,  जिनके   है   कंठ  में   विराजमान।
चन्द्र  और   गंग  की   कलाओं को   शीश  धरे-
जगत्पिता  शिव,  मेरे   श्री  का   विस्तार  करें।।

खिले नील कमलों की,  श्याम वर्ण  हरिणों की,
श्यामलता से  चिह्नित, जिनकी  ग्रीवा  ललाम।
स्मर,पुर,भव, मख, गज, तम औरअन्धक का,
उच्छेदन  करते  हुये  शिव  को,  मैं   भजता हूँ।।

मंगलमयी   गौरी    के    कलामंजरी  का   जो-
चखते    रस - माधुर्य,   लोलुप    मधुप     बने।
स्मर,पुर,भव, मख, गज, तम और अन्धक के,
हैं जो  विनाशक, उन  शिव को  मैं   भजता  हूँ।।

भ्रमित    भुजंगों    के    तीव्र    निःश्वासों    से-
और भी  धधकती  है, भाल  की  कराल अग्नि।
धिमि-धिमि-धिमि मंगल मृदंगों की तुंग ध्वनि-
पर,  प्रचंड  ताण्डवरत्,  शिव जी की  जय होवे।।

पत्तों   की   शैय्या   और    सुन्दर  बिछौनों  में;
सर्प - मणिमाल,   और    पत्थर   में,  रत्नों  में।
तृण  हो  या  कमलनयन  तरुणी; राजा - प्रजा;
सब  में  सम  भाव, सदा  ऐसे  शिव  को  भजूँ।।

गंगा   तट  के   निकुंज - कोटर  में  रहते  हुये,
दुर्मति  से  मुक्त  और   शिर  पर अंजलि  बॉधे।
विह्वल  नेत्रों  में  भर  छवि  ललाम - भाल की,
जपता    शिवमंत्र,   कब    होऊँगा   सुखी   मैं।।

उत्तमोत्तम   इस   स्तुति  को   जो  नर  नित्य,
पढ़ता,   कहता   अथवा    करता   है   स्मरण।
पाता  शिव - भक्ति;  नहीं पाता  गति अन्यथा;
प्राणी   हो  मोहमुक्त,  शंकर   के   चिन्तन  से।।

शिव का कर  पूजन, जो पूजा की  समाप्ति पर,
पढ़ता   प्रदोष    में,   गीत   ये   दशानन   का।
रथ,    गज,    अश्व   से   युक्त,  उसे  अनुकूल,
स्थिर     श्री - सम्पदा,   शंभु    सदा   देते  हैं।।

 “इति श्रीरावणकृतं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम्।
                                *

मूल संस्कृत पाठ  :
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले 
      गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् । 
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं 
      चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥ १॥ 

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
     -विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।    
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके  
      किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥ २॥ 

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर 
      स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे । 
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि 
      क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥ ३॥ 

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा   
      कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे 
      मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥ ४

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर 
      प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः । 
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
      श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥ ५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा- 
     -निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् । 
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
      महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः  ॥ ६॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल- 
      द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक- 
     -प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥। ७॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्- 
      कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः 
      कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥ ८॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा- 
     -वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं 
      गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥ ९॥

अखर्व(अगर्व)सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
      रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
      गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥ १०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
     -द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
     ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥ ११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्-
     -गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
     समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥ १२॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
     विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
     शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥ १३॥

इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
     पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
     विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥ १४॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
     यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
     लक्ष्मीं सदैव  सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥ १५॥

इति श्रीरावण-कृतम्शिव-ताण्डव-स्तोत्रम्सम्पूर्णम्
(पूर्वप्रकाशित)