देह कुंदन( भाल चन्दन( केसरी नंदन प्रभो --- |
है आसरा हनुमान जी---
&v#.k feJ
जैसे दुख श्री जानकी जी का हरा हनुमान जी।
दुख हमारे भी हरो] है आसरा हनुमान जी।।
देह कुंदन] भाल चंदन] केसरी नंदन प्रभो।
ध्यान इस छवि का सदा हमने धरा हनुमान जी।।
लॉघ सागर] ले उड़े] संजीवनी परबत सहज।
क्रोध] कौतुक में दिया लंका जरा हनुमान जी।।
मुद्रिका दी] वन उजारा और अक्षय को हना।
शक्ति का आभास पा] रावन डरा हनुमान जी।।
राम के तुम काम आये] काम क्या तुमको कठिन।
कौन संकट] ना तेरे टारे टरा हनुमान जी।।
चरणकमलों में तिरे निसिदिन ^अरुण* का मन रमे।
हो हृदय में भक्ति का सागर भरा हनुमान जी।।