बुधवार, 23 अक्तूबर 2019

हमें अदाएँ दीवाली की ज़ोर भाती हैं.../ नज़ीर अकबराबादी (१७३५ -१८३०)

नज़ीर अकबराबादी


हमें अदाएँ दीवाली की ज़ोर भाती हैं ।
कि लाखों झमकें हरएक घर में जगमगाती हैं ।
चिराग जलते हैं और लौएँ झिलमिलाती हैं ।
मकां-मकां में बहारें ही झमझमाती हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।1।

गुलाबी बर्फ़ियों के मुंह चमकते-फिरते हैं ।
जलेबियों के भी पहिए ढुलकते-फिरते हैं ।
हर एक दाँत से पेड़े अटकते-फिरते हैं ।
इमरती उछले हैं लड्डू ढुलकते-फिरते हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।2।

मिठाईयों के भरे थाल सब इकट्ठे हैं ।
तो उन पै क्या ही ख़रीदारों के झपट्टे हैं ।
नबात, सेव, शकरकन्द, मिश्री गट्टे हैं ।
तिलंगी नंगी है गट्टों के चट्टे-बट्टे हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।3।

जो बालूशाही भी तकिया लगाए बैठे हैं ।
तो लौंज खजले यही मसनद लगाए बैठे हैं ।
इलायची दाने भी मोती लगाए बैठे हैं ।
तिल अपनी रेबड़ी में ही समाए बैठे हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।4।

उठाते थाल में गर्दन हैं बैठे मोहन भोग ।
यह लेने वाले को देते हैं दम में सौ-सौ भोग ।
मगध का मूंग के लड्डू से बन रहा संजोग ।
दुकां-दुकां पे तमाशे यह देखते हैं लोग ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।5।

दुकां सब में जो कमतर है और लंडूरी है ।
तो आज उसमें भी पकती कचौरी-पूरी है ।
कोई जली कोई साबित कोई अधूरी है ।
कचौरी कच्ची है पूरी की बात पूरी है ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।6।

कोई खिलौनों की सूरत को देख हँसता है ।
कोई बताशों और चिड़ों के ढेर कसता है ।
बेचने वाले पुकारे हैं लो जी सस्ता है ।
तमाम खीलों बताशों का मीना बरसता है ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।7।

और चिरागों की दुहरी बँध रही कतारें हैं ।
और हर सू कुमकुमे कन्दीले रंग मारे हैं ।
हुजूम, भीड़ झमक, शोरोगुल पुकारे हैं ।
अजब मज़ा है, अजब सैर है अजब बहारें हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।8।

अटारी, छज्जे दरो बाम पर बहाली है ।
दिबाल एक नहीं लीपने से खाली है ।
जिधर को देखो उधर रोशनी उजाली है ।
गरज़ मैं क्या कहूँ ईंट-ईंट पर दीवाली है ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।9।

जो गुलाब-रू हैं सो हैं उनके हाथ में छड़ियाँ ।
निगाहें आशि‍कों की हार हो गले पड़ियाँ ।
झमक-झमक की दिखावट से अँखड़ियाँ लड़ियाँ ।
इधर चिराग उधर छूटती हैं फुलझड़ियाँ ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।10।

क़लम कुम्हार की क्या-क्या हुनर जताती है ।
कि हर तरह के खिलौने नए दिखाती है ।
चूहा अटेरे है चर्खा चूही चलाती है ।
गिलहरी तो नव रुई पोइयाँ बनाती हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।11।

कबूतरों को देखो तो गुट गुटाते हैं ।
टटीरी बोले है और हँस मोती खाते हैं ।
हिरन उछले हैं, चीते लपक दिखाते हैं ।
भड़कते हाथी हैं और घोड़े हिनहिनाते हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।12।

किसी के कान्धे ऊपर गुजरियों का जोड़ा है ।
किसी के हाथ में हाथी बग़ल में घोड़ा है ।
किसी ने शेर की गर्दन को धर मरोड़ा है ।
अजब दीवाली ने यारो यह लटका जोड़ा है ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।13।

धरे हैं तोते अजब रंग के दुकान-दुकान ।
गोया दरख़्त से ही उड़कर हैं बैठे आन ।
मुसलमां कहते हैं ‘‘हक़ अल्लाह’’ बोलो मिट्ठू जान ।
हनूद कहते हैं पढ़ें जी श्री भगवान ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।14।

कहीं तो कौड़ियों पैसों की खनख़नाहट है ।
कहीं हनुमान पवन वीर की मनावट है ।
कहीं कढ़ाइयों में घी की छनछनाहट है ।
अजब मज़े की चखावट है और खिलावट है ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।15।

‘नज़ीर’ इतनी जो अब सैर है अहा हा हा ।
फ़क़्त दीवाली की सब सैर है अहा हा ! हा ।
निषात ऐशो तरब सैर है अहा हा हा ।
जिधर को देखो अज़ब सैर है अहा हा हा ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।16।

शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

दीवाली आने वाली है, श्री लक्ष्मी-गणेश की आरती के लिए तैयार रहें...

रचना : अरुण मिश्र 
संगीत : केवल कुमार 
स्वर : प्राची चन्द्रा एवं सखियाँ 

आरति श्री लक्ष्मी-गणेश की....

                    *आरती* 

आरति   श्री  लक्ष्मी-गणेश   की | 
धन-वर्षणि की,शमन-क्लेश की ||
             
             दीपावलि     में     संग     विराजें |
             कमलासन - मूषक     पर    राजें |
             शुभ  अरु  लाभ,   बाजने    बाजें |
           
ऋद्धि-सिद्धि-दायक -  अशेष  की || 

    
             मुक्त - हस्त    माँ,   द्रव्य    लुटावें |
             एकदन्त,    दुःख      दूर    भगावें |  
             सुर-नर-मुनि सब जेहि जस  गावें |
             

बंदउं,  सोइ  महिमा विशेष  की ||


             विष्णु-प्रिया, सुखदायिनि  माता |
             गणपति,  विमल  बुद्धि  के  दाता |
             श्री-समृद्धि,  धन-धान्य    प्रदाता |

मृदुल  हास  की, रुचिर  वेश की ||
माँ लक्ष्मी, गणपति  गणेश  की ||

                                 * 
                                                                       -अरुण मिश्र  
(पूर्वप्रकाशित )

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019

महालक्ष्मी कौतुवम

https://youtu.be/BP95AlFsj8w

Mahalakshmi Kouthvam 

A Kouthuvam in praise of Goddess Lakshmi, the embodiment of prosperity.
Emerging from the churning of the Milk ocean, She is the consort of the
dark hued Lord, Maha Vishnu. She bestows all kinds of wealth and radiates
auspiciousness.
Mahalakshmi Kouthuvam Ragam - Gowlai Talam - Adi Dancers: Bhairavi Venkatesan Kameshweri Ganesan Rajadarshini Saravanan Sai Smriti Suresh Choreography and Nattuvangam - Dr. Sheela Unnikrishnan Music and Vocals - Dr. Kuldeep M Pai Mridangam - Sri Guru Bharadwaaj Violin - Sri Embar Kannan Veena - Sri Ananthanarayanan Flute - Sri Vishnu Vijay

गुरुवार, 17 अक्तूबर 2019

"जीवनसंगिनी" / “उत्कर्षिता” (स्वधा रवींद्र) की एक उत्कृष्ट रचना


स्वधा रवींद्र गोमतीनगर स्थित स्टडी हॉल सेंटर फॉर लर्निंग में शिक्षिका हैं। 
उन्हें महादेवी सम्मान, कवितालोक सम्मान, सीवी रमन शांति सम्मान आदि 
कई सम्मान मिल चुके हैं। उनकी पुस्तक कल्पवृक्ष कविता संग्रह और तीन 
अन्य साझा संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं।

"जीवनसंगिनी"

तुम कहती हो ना
कि मैं
कभी नहीं कहता
कुछ भी
तो आज
बता रहा हूँ
तुम्हे
तुम किसी
परिचय की
मोहताज नहीं हो
तुम बहुत खास हो
कोई आम नहीं हो।

तुम चाय की पहली चुस्की हो
तुम नाश्ते के पहला निवाला
तुम मेरी शर्ट के टूटे बटन टांकने वाली
तुम मुझे मुझसा समझने वाली
वो जो नीली फ़ाइल में रख के अक्सर मैं
भूल जाता हूँ
तुम उसे उसकी सही दराज़ में रखने वाली हो
तुम मेरी चाभी की खनक
तुम मेरे रुमाल की खुशबू हो

तुम कहती हो ना
कि मैं
कभी नहीं कहता
कुछ भी
तो आज
बता रहा हूँ
तुम्हे
तुम किसी
परिचय की
मोहताज नहीं हो
तुम बहुत खास हो
कोई आम नहीं हो।

घर से आफिस के रास्ते में मैं कैसा हूँ
इसकी फिक्र करती तुम
मेरे सही वक्त पर ना लौटने पर
मेरे लिए डरती तुम
अक्सर मायके जाने की धमकी देती
और कभी उसे पूरा ना करती तुम
मेरे प्रमोशन में अपनी खुशियां तलाशती
उसके लिए पूजा करती तुम
तुम मेरे सपने देखने का
ऊपर जाने के प्रयत्नों का कारण हो

तुम कहती हो ना
कि मैं
कभी नहीं कहता
कुछ भी
तो आज
बता रहा हूँ
तुम्हे
तुम किसी
परिचय की
मोहताज नहीं हो
तुम बहुत खास हो
कोई आम नहीं हो।

तुम मेरे बच्चों की माँ हो
जो अपनी सारी खुशियाँ
उन पर लुटा के मुस्कुरा देती हो,
तुम मेरी माँ की दूसरी बेटी हो
जो जीजी की कमी कभी
माँ को महसूस नहीं होने देती हो,
तुम मेरे बाबा का सहारा हो
छड़ी हो , जो उनको संभालने के लिए
हमेशा खड़ी हो
तुम हमारे घर का स्तंभ हो
जो घर के आंगन के बीच में खड़ा है
और जिसने पूरे परिवार को
एक ही सांचे में गढ़ा है

तुम कहती हो ना
कि मैं
कभी नहीं कहता
कुछ भी
तो आज
बता रहा हूँ
तुम्हे
तुम किसी
परिचय की
मोहताज नहीं हो
तुम बहुत खास हो
कोई आम नहीं हो।

तुम नहीं होती तो सुबह
प्रार्थना विहीन होती है
तुम नहीं होती तो शाम
भी नहीं नमकीन होती है
तुम्हारे साथ होता हूं तो
भोर की पहली किरण से रात तक
में ताजा रहता हूँ
वरना सच कह रहा हूँ
मैं पूरा नहीं आधा रहता हूँ
तुम मेरे अनकहे शब्दों को समझने वाली हो
तुम मेरी खोई खुशियों को ढूंढने वाली हो
तुम शायद मिस वर्ड नहीं हो सुंदरता में
पर हाँ तुम मेरी वो परी हो
जो मेरी सभी अकथित एहसासों को
पूरा करती है।

तुम कहती हो ना
कि मैं
कभी नहीं कहता
कुछ भी
तो आज
बता रहा हूँ
तुम्हे
तुम किसी
परिचय की
मोहताज नहीं हो
तुम बहुत खास हो
कोई आम नहीं हो।

हाँ शायद सच कहा था तुमने कि
मैं नहीं कहता कुछ भी
तो आज बता रहा हूँ तुम्हें
तुम किसी के कहने और
परिभाषित करने की वस्तु नही
और तुम्हें बताना इतना भी आसान नहीं
तुम कलम और कागज़ में समा नहीं सकती
तुम वो हो जो कभी
मेरे हृदय से दूर जा नही सकती
तुम अर्धांगिनी हो मेरी
तुमसे मेरी पहचान है
ओर सच कह रहा हूँ

तुम किसी परिचय की मोहताज नहीं हो
तुम बहुत खास हो कोई आम नहीं हो।

– स्वधा रवींद्र “उत्कर्षिता” 
५/९३७ विराम खंड
गोमती नगर
लखनऊ
226010
(इंटरनेट से साभार संकलित) 


बुधवार, 16 अक्तूबर 2019

ॐ जय जगदीश हरे ...*/ पं. श्रद्धाराम शर्मा

ॐ जय जगदीश हरे ...
(श्री जोगिन्दर सिंह की फेस बुक वाल १७. १०.२०१९ 
 से)
कुछ लोगों से पूछा कि क्या उन्हें पता है कि प्रसिद्ध आरती 
*ओम्_जय_जगदीश_हरे के रचयिता कौन हैं? *
एक ने जवाब दिया कि हर आरती तो पौराणिक काल से गाई जाती है,
एक ने इस आरती को वेदों का एक भाग बताया
और एक ने कहा कि सम्भवत: इसके रचयिता अभिनेता-निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार हैं!
ओम् जय जगदीश हरे, आरती आज हर हिन्दू घर में गाई जाती है. इस आरती की तर्ज पर 
अन्य देवी देवताओं की आरतियाँ बन चुकी है और गाई जाती है,
*परंतु इस मूल आरती के रचयिता के बारे में काफी कम लोगों को पता है.

इस आरती के रचयिता थे पं. श्रद्धाराम शर्मा या श्रद्धाराम फिल्लौरी. *
*पं. श्रद्धाराम शर्मा का जन्म पंजाब के जिले जालंधर में स्थित फिल्लौर शहर में हुआ था.*
*वे सनातन धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी और 
पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे. 
*उनका विवाह सिख महिला महताब कौर के साथ हुआ था.*
*बचपन से ही उन्हें ज्यौतिष और साहित्य के विषय में गहरी रूचि थी.*
*उन्होनें वैसे तो किसी प्रकार की शिक्षा हासिल नहीं की थी परंतु उन्होंने 
सात साल की उम्र तक गुरुमुखी में पढाई की और दस साल की उम्र तक 
वे संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी भाषाओं तथा ज्योतिष की विधा में पारंगत 
हो चुके थे.*

*उन्होने पंजाबी (गुरूमुखी) में 'सिक्खां दे राज दी विथियाँ' और 'पंजाबी बातचीत' जैसी पुस्तकें लिखीं.*
*'सिक्खां दे राज दी विथियाँ' उनकी पहली किताब थी. इस किताब में उन्होनें सिख धर्म की स्थापना और 
इसकी नीतियों के बारे में बहुत सारगर्भित रूप से बताया था. *
*यह पुस्तक लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय साबित हुई थी और अंग्रेज सरकार ने तब होने वाली आईसीएस 
(जिसका भारतीय नाम अब आईएएस हो गया है) परीक्षा के कोर्स में इस पुस्तक को शामिल किया था.*
*पं. श्रद्धाराम शर्मा गुरूमुखी और पंजाबी के अच्छे जानकार थे और उन्होनें अपनी पहली पुस्तक गुरूमुखी 
मे ही लिखी थी परंतु वे मानते थे कि हिन्दी के माध्यम से ही अपनी बात को अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाया 
जा सकता है. *

*हिन्दी के जाने माने लेखक और साहित्यकार पं. रामचंद्र शुक्ल ने पं. श्रद्धाराम शर्मा और भारतेंदु हरिश्चंद्र को 
हिन्दी के पहले दो लेखकों में माना है.*
उन्होनें 1877 में भाग्यवती नामक एक उपन्यास लिखा था जो हिन्दी में था. माना जाता है कि यह हिन्दी का 
पहला उपन्यास है.
इस उपन्यास का प्रकाशन 1888 में हुआ था. इसके प्रकाशन से पहले ही पं. श्रद्धाराम का निधन हो गया 
परंतु उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने काफी कष्ट सहन करके भी इस उपन्यास का प्रकाशन करावाया था.
वैसे पं. श्रद्धाराम शर्मा धार्मिक कथाओं और आख्यानों के लिए काफी प्रसिद्ध थे.
वे महाभारत का उध्दरण देते हुए अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जनजागरण का ऐसा वातावरण तैयार कर देते थे 
उनका आख्यान सुनकर प्रत्यैक व्यक्ति के भीतर देशभक्ति की भावना भर जाती.
इससे अंग्रेज सरकार की नींद उड़ने लगी और उसने 1865 में पं. श्रद्धाराम को फुल्लौरी से निष्कासित कर दिया 
और आसपास के गाँवों तक में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी.
लेकिन उनके द्वारा लिखी गई किताबों का पठन विद्यालयों में हो रहा था और वह जारी रहा.
निष्कासन का उन पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उनकी लोकप्रियता और बढ गई.
निष्कासन के दौरान उन्होनें कई पुस्तकें लिखी और लोगों के सम्पर्क में रहे.
पं. श्रद्धाराम ने अपने व्याख्यानों से लोगों में अंग्रेज सरकार के खिलाफ क्रांति की मशाल ही नहीं जलाई बल्कि 
साक्षरता के लिए भी ज़बर्दस्त काम किया.
*1870 में उन्होने एक ऐसी आरती लिखी जो भविष्य में घर घर में गाई जानी थी. वह आरती थी - 
ओम जय जगदीश हरे...*
*पं. शर्मा जहाँ कहीं व्याख्यान देने जाते ओम जय जगदीश आरती गाकर सुनाते. *
*उनकी यह आरती लोगों के बीच लोकप्रिय होने लगी और फिर तो आज कई पीढियाँ गुजर जाने के बाद भी 
यह आरती गाई जाती रही है और कालजई हो गई है. *
इस आरती का उपयोग प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक मनोज कुमार ने अपनी एक फिल्म में किया था और इसलिए 
कई लोग इस आरती के साथ मनोज कुमार का नाम जोड़ देते हैं.
पं. शर्मा सदैव प्रचार और आत्म प्रशंसा से दूर रहे थे. शायद यह भी एक वजह हो कि उनकी रचनाओं को 
चाव से पढने वाले लोग भी उनके जीवन और उनके कार्यों से परिचित नहीं हैं.
24 जून 1881 को लाहौर में पं. श्रद्धाराम शर्मा ने आखिरी सांस ली.

ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे |
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे |
ॐ जय जगदीश हरे ||🙏
जो ध्यावे फल पावे,
दुःखबिन से मन का,
स्वामी दुःखबिन से मन का |
सुख सम्पति घर आवे,
सुख सम्पति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का |
ॐ जय जगदीश हरे ||🙏
मात पिता तुम मेरे,
शरण गहूं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी |
तुम बिन और न दूजा,
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी |
ॐ जय जगदीश हरे ||🙏
तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्
तर्यामी |
पारब्रह्म परमेश्वर,
पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी |
ॐ जय जगदीश हरे ||🙏
तुम करुणा के सागर,
तुम पालनकर्ता,
स्वामी तुम पालनकर्ता |
मैं मूरख फलकामी
मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता |
ॐ जय जगदीश हरे ||🙏
तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति |
किस विधि मिलूं दयामय,
किस विधि मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति |
ॐ जय जगदीश हरे ||🙏
दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,
ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी रक्षक तुम मेरे |
अपने हाथ उठाओ,
अपने शरण लगाओ
द्वार पड़ा तेरे |
ॐ जय जगदीश हरे ||🙏
विषय-विकार मिटाओ,
पाप हरो देवा,
स्वमी पाप हरो देवा |
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा |
ॐ जय जगदीश हरे ||

( श्री अशोक करिशंत्रय के सौजन्य से साभार).

दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे.... / बेग़म अख़्तर

https://youtu.be/sG6dK3a1dyk 
dīvāna banānā hai to dīvāna banā de
varna kahīñ taqdīr tamāsha na banā de
ai dekhne vaalo mujhe hañs hañs ke na dekho
tum ko bhī mohabbat kahīñ mujh na banā de
maiñ DhūñDh rahā huuñ mirī vo sham.a kahāñ hai
jo bazm har chiiz ko parvāna banā de
āḳhir koī sūrat bhī to ho ḳhāna-e-dil
ka.aba nahīñ bantā hai to but-ḳhāna banā de
'bahzād' har ik gaam pe ik sajda-e-mastī
har zarre ko sañg-e-dar-e-jānāna banā de

सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

झिणि झिणी वाजे बीन

https://youtu.be/qbbSCMOHAD8
Song : Jhini Jhini Vaje Been Singer : Vibhavari Aapte - Joshi Lyrics : B.B.Borkar Music : Shridhar Phadke
"झिणि झिणी वाजे बीन
सख्या रे, अनुदिन चीज नविन
कधी अर्थावीण सुभग तराणा
कधी मंत्रांचा भास दिवाणा
सूर सुना कधी केविलवाणा, शरणागत अतिलीन
कधी खटका, कधी रुसवा लटका
छेडी कधी प्राणांतिक घटका
कधी जीवाचा तोडून लचका
घेते फिरत कठीन
सौभाग्ये या सुरात तारा
त्यातून अचपळ खेळे पारा
अलख निरंजन वाजविणारा, सहजपणात प्रविण"
Balakrishna Bhagwant Borkar (30 November 1910 – 8 July 1984) was a poet from Goa, India.Bā Bha Borkar, also known as Ba-ki-baab, started writing poems at an early age. Borkar joined Goa's fight for freedom in the 1950s and moved to Punewhere he worked for the radio. Most of his literature is written in Marathithough his Konkani output is also considerable. He excelled as a prose writer as well.Notable awardPadma Shri

Shridhar Phadke was born on 9 September 1950 in Mumbai.He is son of the famous Marathi singer and composerSudhir Phadke and singer Lalitabai Phadke. He completed his education from D. G. Ruparel College ofArts Science and Commerce[1] and later did his post graduation in Information Technology inUnited States of America in the decade of 1970. Later he joined Air India. He retired from Air Indiaas Executive Director-IT in the year 2009.

Vibhavari Apte Joshi is an Indian singer in Bollywood,and in Marathi and Tamil language films.She hails from Pune in Maharashtra state of India. She has sung inmany Marathi movies, Bollywood movies such as Guzaarish andmany other musical albums. Awards won by her includeVidya Pradnya Award from Maharashtra Government in 2013,Stardust New Musical Sensation Award in 2011andJio-Mirchi awardfor Best Female Vocalist in 2016.She is a post graduate in commerce.