गुरुवार, 17 अक्तूबर 2019

"जीवनसंगिनी" / “उत्कर्षिता” (स्वधा रवींद्र) की एक उत्कृष्ट रचना


स्वधा रवींद्र गोमतीनगर स्थित स्टडी हॉल सेंटर फॉर लर्निंग में शिक्षिका हैं। 
उन्हें महादेवी सम्मान, कवितालोक सम्मान, सीवी रमन शांति सम्मान आदि 
कई सम्मान मिल चुके हैं। उनकी पुस्तक कल्पवृक्ष कविता संग्रह और तीन 
अन्य साझा संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं।

"जीवनसंगिनी"

तुम कहती हो ना
कि मैं
कभी नहीं कहता
कुछ भी
तो आज
बता रहा हूँ
तुम्हे
तुम किसी
परिचय की
मोहताज नहीं हो
तुम बहुत खास हो
कोई आम नहीं हो।

तुम चाय की पहली चुस्की हो
तुम नाश्ते के पहला निवाला
तुम मेरी शर्ट के टूटे बटन टांकने वाली
तुम मुझे मुझसा समझने वाली
वो जो नीली फ़ाइल में रख के अक्सर मैं
भूल जाता हूँ
तुम उसे उसकी सही दराज़ में रखने वाली हो
तुम मेरी चाभी की खनक
तुम मेरे रुमाल की खुशबू हो

तुम कहती हो ना
कि मैं
कभी नहीं कहता
कुछ भी
तो आज
बता रहा हूँ
तुम्हे
तुम किसी
परिचय की
मोहताज नहीं हो
तुम बहुत खास हो
कोई आम नहीं हो।

घर से आफिस के रास्ते में मैं कैसा हूँ
इसकी फिक्र करती तुम
मेरे सही वक्त पर ना लौटने पर
मेरे लिए डरती तुम
अक्सर मायके जाने की धमकी देती
और कभी उसे पूरा ना करती तुम
मेरे प्रमोशन में अपनी खुशियां तलाशती
उसके लिए पूजा करती तुम
तुम मेरे सपने देखने का
ऊपर जाने के प्रयत्नों का कारण हो

तुम कहती हो ना
कि मैं
कभी नहीं कहता
कुछ भी
तो आज
बता रहा हूँ
तुम्हे
तुम किसी
परिचय की
मोहताज नहीं हो
तुम बहुत खास हो
कोई आम नहीं हो।

तुम मेरे बच्चों की माँ हो
जो अपनी सारी खुशियाँ
उन पर लुटा के मुस्कुरा देती हो,
तुम मेरी माँ की दूसरी बेटी हो
जो जीजी की कमी कभी
माँ को महसूस नहीं होने देती हो,
तुम मेरे बाबा का सहारा हो
छड़ी हो , जो उनको संभालने के लिए
हमेशा खड़ी हो
तुम हमारे घर का स्तंभ हो
जो घर के आंगन के बीच में खड़ा है
और जिसने पूरे परिवार को
एक ही सांचे में गढ़ा है

तुम कहती हो ना
कि मैं
कभी नहीं कहता
कुछ भी
तो आज
बता रहा हूँ
तुम्हे
तुम किसी
परिचय की
मोहताज नहीं हो
तुम बहुत खास हो
कोई आम नहीं हो।

तुम नहीं होती तो सुबह
प्रार्थना विहीन होती है
तुम नहीं होती तो शाम
भी नहीं नमकीन होती है
तुम्हारे साथ होता हूं तो
भोर की पहली किरण से रात तक
में ताजा रहता हूँ
वरना सच कह रहा हूँ
मैं पूरा नहीं आधा रहता हूँ
तुम मेरे अनकहे शब्दों को समझने वाली हो
तुम मेरी खोई खुशियों को ढूंढने वाली हो
तुम शायद मिस वर्ड नहीं हो सुंदरता में
पर हाँ तुम मेरी वो परी हो
जो मेरी सभी अकथित एहसासों को
पूरा करती है।

तुम कहती हो ना
कि मैं
कभी नहीं कहता
कुछ भी
तो आज
बता रहा हूँ
तुम्हे
तुम किसी
परिचय की
मोहताज नहीं हो
तुम बहुत खास हो
कोई आम नहीं हो।

हाँ शायद सच कहा था तुमने कि
मैं नहीं कहता कुछ भी
तो आज बता रहा हूँ तुम्हें
तुम किसी के कहने और
परिभाषित करने की वस्तु नही
और तुम्हें बताना इतना भी आसान नहीं
तुम कलम और कागज़ में समा नहीं सकती
तुम वो हो जो कभी
मेरे हृदय से दूर जा नही सकती
तुम अर्धांगिनी हो मेरी
तुमसे मेरी पहचान है
ओर सच कह रहा हूँ

तुम किसी परिचय की मोहताज नहीं हो
तुम बहुत खास हो कोई आम नहीं हो।

– स्वधा रवींद्र “उत्कर्षिता” 
५/९३७ विराम खंड
गोमती नगर
लखनऊ
226010
(इंटरनेट से साभार संकलित) 


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