बुधवार, 9 अक्टूबर 2019

॥ नवदुर्गास्तोत्र ॥

प्रथम शैलपुत्री 










"अर्द्धचन्द्र मस्तक पर, शूल लिए, वृषारूढ़ ;
इच्छित फलवाली, यशस्विनि! शैलपुत्री माँ !"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)

"वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्।।"
(मूल श्लोक)
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द्वितीय ब्रह्मचारिणी










"सदा कमण्डलु-अक्षमाल तुम- 
धरहु, युगल-कर-कमल मातु !
मो पर होहु प्रसन्न देवि हे !
ब्रह्मचारिणी उत्तमा।।"  
(अनुवाद : अरुण मिश्र)

"दधाना

करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि
ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।"
(मूल श्लोक)
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तृतीय चन्द्रघण्टा 








"सिंह पर आरूढ़, पिण्डज, 
दैत्य दल पर अति कुपित।
विविध आयुध कर धरे,
माँ चन्द्रघण्टा इति, विश्रुत।।

हे तृतीया रूप, मुझको 
निज कृपा का दो प्रसाद।।" 
(अनुवाद : अरुण मिश्र)

'पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।" 
(मूल श्लोक)

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चतुर्थ कूष्माण्डा 












"अपने करकमल धरे, 
  अमृत-रुधिर-पूर्ण कलश । 
  देवी       कूष्माण्डा, 
  शुभ फल मुझको दें सदा ।।"
   (अनुवाद : अरुण मिश्र)

"सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। 
  दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ।।"
  (मूल श्लोक)

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पञ्चम स्कन्दमाता 








"कर-युगल में कमल शोभित
नित्य सिंहासनगता।
स्कन्दमाता हे यशस्वनि-
देवि! शुभ फल दो सदा।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र) 

"सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। 
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।"
(मूल श्लोक)

षष्ठम कात्यायनी 









"शार्दूल वाहन वर, 
  चन्द्रहास उज्ज्वल कर ;
  शुभदा ! दानवघातिनि ! 
  देवी कात्यायनी।।"
  (अनुवाद : अरुण मिश्र)

"चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना 
 कात्यायिनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी।।" 
 (मूल श्लोक )
सप्तम कालरात्रि 









"मात्र एक वेणी है, जवाकुसुम-रक्त-कर्ण ;
गर्दभ आरूढ़, नग्न, तैल से सना शरीर ;
लम्बे ओष्ठ और कान कर्णिका-सुमन समान ;
वाम पद में जिनके लता-कंटक आभूषण। 
उन्नत ध्वज, कृष्ण वर्ण, रूप से भयंकरी 
कालरात्रि माँ, सदा हम सब की रक्षा करें।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)


"एकवेणी जपाकर्ण, पूरा नग्ना खरास्थिता। 
 लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलाभ्यक्तशरीरिणी। 
 वामपादोल्लसल्लोह लताकंटकभूषणा। 
 वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा, कालरात्रिभयंकरी।।"
(मूल श्लोक)
अष्टम महागौरी 









"धारे शुचि श्वेत वस्त्र, श्वेत वृषभ पर सवार। 
शिव को देती प्रमोद, महागौरी शुभ दे तू।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)

"श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः। 
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा।।"
(मूल श्लोक) 

नवम सिद्धिदायिनी  










"सिद्ध से, गन्धर्व से, यक्षादि, सुर से, असुर से;
सदा सेवित सिद्धिदायिनि देवि, दात्री सिद्धि की ।।"
(अनुवाद  : अरुण मिश्र)

"सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। 
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।"
(मूल श्लोक) 

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