शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

स्मृति शेष कुँवर 'बेचैन' जी को याद करते हुए ...

आदरणीय कुँवर 'बेचैन' जी के स्मृति शेष होने पर  
शोक संतप्त मन से एक पुरानी ग़ज़ल के माध्यम से 
उन्हें याद  कर, श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा हूँ।
यह ग़ज़ल, उनसे ही किसी मुलाकात के बाद लिखी गई थी।
-अरुण मिश्र 
 
जब  मुक़द्दर में  लिखीं,   हमदम   हों  ये   बेचैनियां।
हों   शरीक़े - जां,   शरीक़े - ग़म   हों    ये   बेचैनियां।।

दूसरों  के   दर्द  को ,   महसूस   करने   की   सिफ़त।
जिसमें हो,  उसमें न  क्यूँ ,  पैहम  हों  ये   बेचैनियां।।

दिल को पिघलायेगी,इनकी आँच सुलगायेगी मन।
कर लो ऑखें नम, तो कुछ   मद्धम हो ये  बेचैनियां।।

हर  सुख़न के  फूल में,  रोशन हों  ज्यूं   रंगे-शफ़क।
गुंचों   पे  अशआर  के,   शबनम  हों   ये  बेचैनियां।।

हम   इधर  बेचैन  हैं,   तुम   भी   उधर   बेचैन  हो।
साथ बैठो तो ‘अरुन’,  कुछ   कम हों ये  बेचैनियां।।
                                 *

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

आस्तीं बर रुख़ कशीदी.../ कलाम हज़रत क़ुतब-ए-आलम शेख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही / गायन : सुब्हान अहमद निज़ामी क़व्वाल

 https://youtu.be/jT-pnJ0CouQ 

गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

नवग्रह स्तोत्रम् महर्षि व्यासरचित / ईशान पई

 https://youtu.be/ROnh4Zbdrgs


जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिं
तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरं (रवि)

दधिशंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवं
नमामि शशिनं सोंमं शंभोर्मुकुट भूषणं (चंद्र)

धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांतीं समप्रभं
कुमारं शक्तिहस्तंच मंगलं प्रणमाम्यहं (मंगळ)

प्रियंगुकलिका शामं रूपेणा प्रतिमं बुधं
सौम्यं सौम्य गुणपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहं (बुध)

देवानांच ऋषिणांच गुरुंकांचन सन्निभं
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिं (गुरु)

हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूं
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहं (शुक्र)

नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्वरं (शनि)

अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनं
सिंहिका गर्भसंभूतं तं राहूं प्रणमाम्यहं (राहू)

पलाशपुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकं
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहं (केतु)

फलश्रुति :
इति व्यासमुखोदगीतं य पठेत सुसमाहितं दिवा वा यदि वा रात्रौ
विघ्नशांतिर्भविष्यति नर, नारी, नृपाणांच भवेत् दु:स्वप्न नाशनं
ऐश्वर्यंमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनं
ग्रह
नक्षत्रजा पीडास्तस्कराग्नि समुद्भवा ता: सर्वा: प्रशमं यान्ति व्यासो ब्रुतेन
संशय:

इति श्री व्यासविरचित आदित्यादि नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं

अर्थ-
  1. जपा के फूल की तरह जिनकी कान्ति है, कश्यप से जो उत्पन्न हुए हैं, अंधकार जिनका शत्रु है, जो सब पापों को नष्ट कर देते हैं, उन सूर्य भगवान् को मैं प्रणाम करता हूँ.
  2. दही, शंख अथवा हिम के समान जिनकी दीप्ति है, जिनकी उत्पत्ति क्षीर-समुद्र से है, जो शिवजी के मुकुट पर अलंकार की तरह विराजमान रहते हैं, मैं उन चन्द्रदेव को प्रणाम करता हूँ.
  3.  पृथ्वी के उदर से जिनकी उत्पत्ति हुई है, विद्युत्पुंज के समान जिनकी प्रभा है, जो हाथों में शक्ति धारण किये रहते हैं, उन मंगल देव को मैं प्रणाम करता हूँ. 
  4. प्रियंगु की कली की तरह जिनका श्याम वर्ण है, जिनके रूप की कोई उपमा नहीं है, उन सौम्य और गुणों से युक्त बुध को मैं प्रणाम करता हूँ.
  5. जो देवताओं और ऋषियों के गुरु हैं, कंचन के समान जिनकी प्रभा है, जो बुद्धि के अखण्ड भण्डार और तीनों लोकों के प्रभु हैं, उन बृहस्पति को मैं प्रणाम करता हूँ.
  6. तुषार, कुन्द अथवा मृणाल के समान जिनकी आभा है, जो दैत्यों के परम गुरु हैं, उन सब शास्त्रों के अद्वितीय वक्ता शुक्राचार्यजी को मैं प्रणाम करता हूँ.
  7. नील अंजन के समान जिनकी दीप्ति है, जो सूर्य भगवान् के पुत्र तथा यमराज के बड़े भ्राता हैं, सूर्य की छाया से जिनकी उत्पत्ति हुई है, उन शनैश्चर देवता को मैं प्रणाम करता हूँ.
  8. जिनका केवल आधा शरीर है, जिनमें महान पराक्रम है, जो चन्द्र और सूर्य को भी परास्त कर देते हैं, सिंहिका के गर्भ से जिनकी उत्पत्ति हुई है, उन राहु देवता को मैं प्रणाम करता हूँ.
  9. पलाश के फूल की तरह जिनकी लाल दीप्ति है, जो समस्त तारकाओं में श्रेष्ठ हैं, जो स्वयं रौद्र रूप और रौद्रात्मक हैं, ऐसे घोर रूपधारी केतु को मैं प्रणाम करता हूँ.
  10. व्यास के मुख से निकले हुए इस स्तोत्र का जो सावधानीपूर्वक दिन या रात्रि के समय पाठ करता है, उसकी सारी विघ्न बाधायें शान्त हो जाती हैं.
  11. संसार के साधारण स्त्री पुरुष और राजाओं के भी दुःस्वप्न जन्य दोष दूर हो जाते हैं.
  12. किसी भी ग्रह, नक्षत्र, चोर तथा अग्नि से जायमान पीड़ायें शान्त हो जाती हैं. इस प्रकार स्वयं व्यास जी कहते हैं, इसलिए इसमें कोई संशय नहीं करना चाहिए

रविवार, 11 अप्रैल 2021

ना ये वक़्त मेरा है, ना ये वक़्त तेरा है.../ ग़ज़ल (१९९८) / अरुण मिश्र

२२/०९ /१९९८ को लिखी यह ग़ज़ल आज एक पुरानी डायरी 
में मिली। एक तरह से खोई हुई। शेयर कर रहा हूँ। 
-अरुण मिश्र 

ना  ये वक़्त  मेरा है, ना ये वक़्त तेरा है।
उम्र  लूटने  वाला,  वक़्त  इक  लुटेरा है।

जो जहाँ में आया है, वो जहाँ से जायेगा।  
मोह क्यूँ घनेरा है, कुछ समय का डेरा है।। 

धूल-धूल  धरती  पर,  फूल-फूल रंगीनी। 
पात-पात हरियाली, किसने ये बिखेरा है।

क़ायनात में सारी, भर रहा शफ़क़ के रंग। 
रौशनी की  कूची से,  कौन सा  चितेरा है।

एक पल सँवरता है, दूजे पल बिगड़ता है। 
फ़ानी  हर नज़ारा, जो  वक़्त ने  उकेरा है।

नींद है, तो सपने हैं, सपने तो, छलावे हैं। 
छोड़ नींद ग़फ़लत की, जब जगे सबेरा है।

सिलसिले तिलिस्मों के आदमी है, दुन्या है। 
धूप   और   छाया   है,   रौशनी - अँधेरा  है।

बुधवार, 7 अप्रैल 2021

घर जाने दे छाँड़ मोरी बइयां.../ बन्दिश दरबारी कान्हड़ा / साँवर मल कथक

 https://youtu.be/n_Jb_6G8pTs

घर जाने दे छाँड़ मोरी बइयां - बन्दिश दरबारी कान्हड़ा गायक : साँवर मल कथक तबला : कार्तिक कुमार

घर जाने दे छाँड़ मोरी बईयां
हा हा करत तोरी पईयां पड़त हूं तुम बालक लड़कईयां नगर डगर के लोगवा सुनत हैं चर्चा करत ब्रिज नारियां जाओ जी जाओ जी तुम खाओगे गारियां मोहन से झगड़ईयां

घर जाने दे छाँड़ मोरी बईयां
हा हा करत तोरी पईयां पड़त हूं तुम बालक लड़कईयां

सोमवार, 5 अप्रैल 2021

हमारी साँसों में आज तक वो हिना की खुशबू महक रही है.../ गीत : तस्लीम फ़ाज़ली (१९४७-१९८२) / स्वर : मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ (१९२६-२०००)

 https://youtu.be/2KEF2ZQRWyU


गाना : हमारी साँसों में आज तक, वो हिना की खुशबू महक रही है 
चित्रपट : मेरे हुज़ूर (१९७७, पाकिस्तान)
गीतकार : तस्लीम फ़ाज़ली (१९४७-१९८२) 
गायक : मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ (१९२६-२०००)
संगीतकार : ऍम. अशरफ़ (१९४२-२००७)

हमारी साँसों में आज तक 
वो हिना की खुशबू महक रही है
लबों पे नगमें मचल रहे हैं
नज़र से मस्ती झलक रही है

तड़प मेरे बेक़रार दिल की
कभी तो उन पे असर करेगी
कभी तो वो भी जलेंगे इस में
जो आग दिल में दहक रही है

वो मेरे नज़दीक आते आते
हया से इक दिन सिमट गये थे
मेरे ख़यालों में आज तक
वो बदन की डाली लचक रही है

सदा जो दिल से निकल रही है
वो शेर-ओ-नग़मों में ढल रही है
कि दिल के आंगन में जैसे कोई
ग़ज़ल की झांझर छनक रही है

Noor Jehan 

(born Allah Wasai; 21 September 1926 ; died 23 December 2000;)  also 

known by her honorific title Malika-e-Tarannum (the queen of melody), 

was a Pakistani playback singer and actress who worked first iBritish 

India and then in the cinema of Pakistan. Her career spanned more than 

six decades (the 1930s–1990s). She was renowned as one of the greatest 

and most influential singers of all time especially throughout South Asia 

and was given the honorific title of Malika-e-Tarannum in Pakistan. She 

had a command of Hindustani classical music as well as other music 

genres. Along with Ahmed Rushdi, she holds the record for having given 

voice to the largest number of film songs inthe history of Pakistani cinema

She is estimated to have made more than 40 films and sung around 20,000 

numbers during a career which lasted more than half a century. She is 

thought to be one of the most prolific singers of all time. She is also 

considered to be the first female Pakistani film director.


Taslim Fazli 

Pakistani poet, famous for his Gazal "रफ़्ता-रफ़्ता वो मेरे हस्ती का सामां हो गए"

His real name was Izhar Anwar and he was born in Delhi in 1947. He was 

brother of famous Indian poet Nida FazliHe was married to Pakistani 

actress Nisho and died on August 17, 1982.


M. Ashraf or Muhammad Ashraf 

(1 February 1942 – 4 February 2007) was a Pakistani film composer. 

In the early 1960s, he first started as one member of the music directors 

duo of Manzoor - Ashraf in the Pakistan film industry. By the end of his 

45 years long career, he had composed more than 2,000 film songs for 

over 400 films compared to any other music directors in Pakistan.

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

निरखत सिया जी कंगनवाँ हो रामा.../ चैती / मैथिली ठाकुर

https://youtu.be/5BhocQVZDTQ 

निरखत सिया जी कंगनवाँ हो रामा 
निरखत सिया जी कंगनवाँ हो रामा
छवि रघुवर की 

निरखत सिया जी कंगनवाँ हो रामा
छवि रघुवर की 
निरखत सिया जी कंगनवाँ हो रामा
छवि रघुवर की 

निरखत सिया जी कंगनवाँ
कंगनवाँ
कंगनवाँ
निरखत सिया जी कंगनवाँ हो रामा
छवि रघुवर की
 
टारत नाहीं, टेक रही कर  
टारत नाहीं, टेक रही कर  
टारत नाहीं, टेक रही कर  
झाँकी देख मगनवा हो रामा 
छवि रघुवर की 

निरखत सिया जी कंगनवाँ हो रामा
छवि रघुवर की
निरखत सिया जी कंगनवाँ हो रामा
छवि रघुवर की
निरखत सिया जी कंगनवाँ हो रामा
छवि रघुवर की

छवि रघुवर की
छवि रघुवर की

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

आदि देव महादेव हे दयानिधे ! / स्वामी तेजोमयानन्द / विदुषी कौशिकी चक्रवर्ती

 https://youtu.be/ohTnNK2ep4A 

शिव भजन 
रचना : स्वामी तेजोमयानन्द
गायन : विदुषी कौशिकी चक्रवर्ती 
राग : कल्याणी 
ताल : आदि 

आदि देव महादेव हे दयानिधे !
नीलकण्ठ पार्वतीश हे कृपानिधे !
आदि देव महादेव हे दयानिधे !!

नमस्तेस्तु विश्वेशर त्र्यम्बकेश गङ्गाधर 
नन्दिकेश भालचन्द्र हे पशुपते !
आदि देव महादेव हे दयानिधे !!

कृपा करो दुःख हरो हर्ष भरो हे शंकर !
ह्रदय कञ्ज सदा बसो हे शिव करुणानिधे !
आदि देव महादेव हे दयानिधे !! 

गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

नव गौर वरम...(शची सुत अष्टकं) / श्री चैतन्य महाप्रभु स्तुति / रचना : श्रीला सार्वभौम भट्टाचार्य / स्वर : नेहा सोबती एवं निर्दोष सोबती

https://youtu.be/QusA7RwH6eA


Credits: Song - Nava Gaur Varam - Sacisuta Ashtakam Lyrics - Srila Sarvabhauma Bhattacharya Singers - Neha Sobti, Nirdosh Sobti Music Composer - Nirdosh Sobti Music Label/Publisher - Madhavas Rock Band Namabhakti Devi Dasi (Bass Guitar), Nikhil Ramesh Singh - (Piano) Guitar - Nilesh Narsayya Deshwani Mridangam - Ravi Parmar

Lyrics - (1) nava gaura-varam nava-pushpa-saram nava-bhava-dharam nava-lasya-param nava-hasya-karam nava-hema-varam pranamami saci-suta-gaura-varam (2) nava-hema-yutam nava-nita-sucam nava-vesa-kritam hari-nama-param navadha vilasat subha-premamayam pranamami saci-suta-gaura-varam (3) hari-bhakti-param hari-nama-dharam kara-japa-karam hari-nama-param nayane satatam pranayasru-dharam pranamami saci-suta-gaura-varam (4) satatam janata-bhava-tapa-haram paramartha-parayana-loka-gatim nava-leha-karam jaga-tapa-haram pranamami saci-suta-gaura-varam (5) nija-bhakti-karam priya-carutaram nata-nartana-nagara-raja-kulam kula-kamini-manasa-lasya-karam pranamami saci-suta-gaura-varam (6) karatala-valam kala-kantha-varam mridu-vadya-suvinakaya madhuram nija-bhakti-gunavrita-natya-karam pranamami saci-suta-gaura-varam (7) yuga-dharma-yutam punarnanda-sutam dharani-sucitram bhava-bhavacitam tanu-dhyana-cittam nija-vasa-yutam pranamami saci-suta-gaura-varam (8) arunam nayanam caranam vasanam vadane skhalitam svaka-nama-dharam kurute surasam jagatah jivanam pranamami saci-suta-gaura-varam

Shri Chaitanya Mahaprabhu, was a 15th century Indian 
saint. Devotees consider him an incarnation of Krishna. 
Chaitanya Mahaprabhu's mode of worshipping Krishna with 
ecstatic song and dance had a profound effect on Vaishnavism 
in Bengal. He was also the chief proponent of the Vedantic 
philosophy of Achintya Bheda Abheda. Mahaprabhu founded 
Gaudiya Vaishnavism (a.k.a. Brahma-Madhva-Gaudiya 
Sampradaya). He expounded Bhakti yoga and popularized the 
chanting of the Hare Krishna Maha-mantra. He composed the 
Shikshashtakam (eight devotional prayers).

Chaitanya means "one who is conscious" (derived from Chetana, 
which means "Consciousness"); Maha means "Great" and Prabhu
means "Lord" or "Master". 

Chaitanya was born as the second son 
of Jagannath Mishra and his 
wife Sachi Devi. Mishra migrated from small village in Sylhet and 
Devi was the daughter of Nilambara Chakravarti, another Brahmin 
of Sylhet. Jagannath's family lived in the village of Dhakadakshin in 
Srihatta. The ruins of his ancestral home still survive in present day 
Bangladesh.

According to Chaitanya Charitamrita, Chaitanya was born in 
Nabadwip(in present-day West Bengal) on the full moon night 
of 18 February 1486,at the time of a lunar eclipse.  

He spent the last 24 years of his life in Puri, Odisha. He was born 
as Vishvambhar Mishra on 18 February 1486 in present-day Nadia, 
West Bengal, India, into a Brahmin family, to Jagannath Mishra 
and his wife Sachi Devi. His childhood nickname was Nimai.
He died on 14 June,1534 at the age of 48, in Puri.