शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

न किसी की आँख का नूर हूँ.../ शायर : मुज़्तर खैराबादी / गायक : मोहम्मद रफ़ी

 https://youtu.be/r8AJSNyzME4



मुज़्तर खैराबादी
इफ्तिखार हुसैन, जिन्हें उनके कलम नाम मुज़्तर खैराबादी के नाम से भी 
जाना जाता है, एक भारतीय उर्दू कवि थे। मुज़्तर ख़ैराबादी अपने समय के 
उर्दू के बड़े शायर हैं, प्रसिद्ध शायर जां निसार अख़्तर उनके बेटे हैं और 
गीतकार जावेद अख़्तर उनके पोते हैं। 
जन्म : 1865, खैराबाद
मृत्यु : 27 मार्च 1927, ग्‍वालियर 

किसी की आँख का नूर हूँ किसी के दिल का क़रार हूँ

कसी काम में जो सके मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ

दवा-ए-दर्द-ए-जिगर हूँ मैं किसी की मीठी नज़र हूँ मैं

इधर हूँ मैं उधर हूँ मैं शकेब हूँ क़रार हूँ

मिरा वक़्त मुझ से बिछड़ गया मिरा रंग-रूप बिगड़ गया

जो ख़िज़ाँ से बाग़ उजड़ गया मैं उसी की फ़स्ल-ए-बहार हूँ

पए फ़ातिहा कोई आए क्यूँ कोई चार फूल चढ़ाए क्यूँ

कोई के शम्अ' जलाए क्यूँ मैं वो बेकसी का मज़ार हूँ

मैं लाग हूँ लगाव हूँ सुहाग हूँ सुभाव हूँ

जो बिगड़ गया वो बनाव हूँ जो नहीं रहा वो सिंगार हूँ

मैं नहीं हूँ नग़्मा-ए-जाँ-फ़ज़ा मुझे सुन के कोई करेगा क्या

मैं बड़े बिरोग की हूँ सदा मैं बड़े दुखी की पुकार हूँ

मैं 'मुज़्तर' उन का हबीब हूँ मैं 'मुज़्तर' उन का रक़ीब हूँ

जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ जो उजड़ गया वो दयार हूँ

रविवार, 25 सितंबर 2022

तुम मेरी राखो लाज हरि.../ रचना : सन्त सूरदास / गायन : पण्डित भीमसेन जोशी

 https://youtu.be/70p9u79ISOQ

तुम  मेरी राखो लाज हरि...
रचना : सन्त सूरदास
संगीत : एस. बी. जोशी
गायन : पण्डित भीमसेन जोशी

तुम  मेरी राखो लाज हरि

तुम जानत सब अन्तर्यामी
करनी कछु ना करी
तुम मेरी राखो लाज हरि

अवगुन मोसे बिसरत नाहिं
पलछिन घरी घरी
सब प्रपंच की पोट बाँधि कै
अपने सीस धरी
तुम मेरी राखो लाज हरि

दारा सुत धन मोह लिये हौं
सुध-बुध सब बिसरी
सूर पतित को बेगि उबारो
अब मोरि नाव भरी
तुम मेरी राखो लाज हरि

बुधवार, 21 सितंबर 2022

श्री राधिका कृपा कटाक्ष स्तोत्र / श्री उर्ध्वाम्नाय तंत्र /स्वर : माधवी मधुकर झा

https://youtu.be/37x7NO8SXRY 
श्री राधिका कृपा कटाक्ष स्तोत्र राधा रानी की दयालु पार्श्व दृष्टि के लिए एक विनम्र 
प्रार्थना है | जो लोग इस प्रार्थना को नियमित रूप से करते हैं, उन्हें श्री श्री राधा-कृष्ण के 
चरण कमलों की प्राप्ति निश्चित है। आप सभी “राधा कृपा कटाक्ष” का श्रवण नित्य करें ।
कहा जाता है कि राधारानी को प्रसन्न करने के लिए महादेव ने स्वयं ये स्तोत्र माता पार्वती 
को सुनाया ​था. इस स्तोत्र में राधारानी के श्रृंगार, रूप और करूणा का वर्णन किया गया है।  
कहा जाता है कि श्रद्धा के साथ यदि इस स्तोत्र का पाठ किया जाए तो ये सभी सांसारिक 
इच्छाओं को पूरा कर सकता है.
4-4 पंक्तियों के 13 अंतरों और 2-2 पंक्तियों के 6 श्लोकों में राधा जी की स्तुति 
में, उनके श्रृंगार,रूप और करूणा का वर्णन है। इसमें उनसे प्रश्न कर्ता बार-बार 
पूछता है कि राधा रानी जी अपने भक्त पर कब कृपा करेंगी?

राधा कृपा कटाक्ष अर्थ सहित

मुनीन्दवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी,
प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकंजभूविलासिनी।
व्रजेन्दभानुनन्दिनी व्रजेन्द सूनुसंगते,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (१)

समस्त मुनिगण आपके चरणों की वंदना करते हैं, आप तीनों लोकों का शोक 

दूर करने वाली हैं, आप प्रसन्नचित्त प्रफुल्लित मुख कमल वाली हैं, आप धरा 

पर निकुंज में विलास करने वाली हैं।

आप राजा वृषभानु की राजकुमारी हैं, आप ब्रजराज नन्द किशोर श्री कृष्ण 

की चिरसंगिनी है, हे जगज्जननी श्रीराधे माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि 

से कृतार्थ करोगी ? (१)


अशोकवृक्ष वल्लरी वितानमण्डपस्थिते,
प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङि्घ् कोमले।
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (२)

आप अशोक की वृक्ष-लताओं से बने हुए मंदिर में विराजमान हैं, आप सूर्य की 

प्रचंड अग्नि की लाल ज्वालाओं के समान कोमल चरणों वाली हैं, आप भक्तों 

को अभीष्ट वरदान, अभय दान देने के लिए सदैव उत्सुक रहने वाली हैं।

आप के हाथ सुन्दर कमल के समान हैं, आप अपार ऐश्वर्य की भंङार स्वामिनी 

हैं, हे सर्वेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ?(२)


अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां,
सुविभ्रमं ससम्भ्रमं दृगन्तबाणपातनैः।
निरन्तरं वशीकृत प्रतीतनन्दनन्दने,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (३)

रास क्रीड़ा के रंगमंच पर मंगलमय प्रसंग में आप अपनी बाँकी भृकुटी से 

आश्चर्य उत्पन्न करते हुए सहज कटाक्ष रूपी वाणों की वर्षा करती रहती हैं।

आप श्री नन्दकिशोर को निरंतर अपने बस में किये रहती हैं, हे जगज्जननी 

वृन्दावनेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (३)


तड़ित्सुवर्ण चम्पक प्रदीप्तगौरविग्रहे,
मुखप्रभा परास्त-कोटि शारदेन्दुमण्ङले।
विचित्रचित्र-संचरच्चकोरशाव लोचने,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (४)

आप बिजली के सदृश, स्वर्ण तथा चम्पा के पुष्प के समान सुनहरी आभा 

वाली हैं, आप दीपक के समान गोरे अंगों वाली हैं, आप अपने मुखारविंद 

की चाँदनी से शरद पूर्णिमा के करोड़ों चन्द्रमा को लजाने वाली हैं।

आपके नेत्र पल-पल में विचित्र चित्रों की छटा दिखाने वाले चंचल चकोर 

शिशु के समान हैं, हे वृन्दावनेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से 

कृतार्थ करोगी ? (४)


मदोन्मदाति यौवने प्रमोद मानमण्डिते,
प्रियानुरागरंजिते कलाविलासपणि्डते।
अनन्य धन्यकुंजराज कामकेलिकोविदे,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (५)

आप अपने चिर-यौवन के आनन्द के मग्न रहने वाली है, आनंद से पूरित मन 

ही आपका सर्वोत्तम आभूषण है, आप अपने प्रियतम के अनुराग में रंगी हुई 

विलासपूर्ण कला पारंगत हैं।

आप अपने अनन्य भक्त गोपिकाओं से धन्य हुए निकुंज-राज के प्रेम क्रीड़ा 

की विधा में भी प्रवीण हैं, हे निकुँजेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि 

से कृतार्थ करोगी ? (५)


अशेषहावभाव धीरहीर हार भूषिते,
प्रभूतशातकुम्भकुम्भ कुमि्भकुम्भसुस्तनी।
प्रशस्तमंदहास्यचूर्ण पूर्ण सौख्यसागरे,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (६)

आप संपूर्ण हाव-भाव रूपी श्रृंगारों से परिपूर्ण हैं, आप धीरज रूपी हीरों के 
हारों से विभूषित हैं, आप शुद्ध स्वर्ण के कलशों के समान अंगो वाली है, 
आपके पयोंधर स्वर्ण कलशों के समान मनोहर हैं। आपकी मंद-मंद मधुर 
मुस्कान सागर के समान आनन्द प्रदान करने वाली है, हे कृष्णप्रिया माँ! 
आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ?(६)

मृणाल वालवल्लरी तरंग रंग दोर्लते ,
लताग्रलास्यलोलनील लोचनावलोकने।
ललल्लुलमि्लन्मनोज्ञ मुग्ध मोहनाश्रिते
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (७)

जल की लहरों से कम्पित हुए नूतन कमल-नाल के समान आपकी सुकोमल 

भुजाएँ हैं, आपके नीले चंचल नेत्र पवन के झोंकों से नाचते हुए लता के 

अग्र-भाग के समान अवलोकन करने वाले हैं।

सभी के मन को ललचाने वाले, लुभाने वाले मोहन भी आप पर मुग्ध होकर 

आपके मिलन के लिये आतुर रहते हैं ऎसे मनमोहन को आप आश्रय देने वाली 

हैं, हे वृषभानुनन्दनी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ?(७)


सुवर्ण्मालिकांचिते त्रिरेख कम्बुकण्ठगे,
त्रिसुत्रमंगलीगुण त्रिरत्नदीप्ति दीधिते।
सलोल नीलकुन्तले प्रसूनगुच्छगुम्फिते,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (८)

आप स्वर्ण की मालाओं से विभूषित है, आप तीन रेखाओं युक्त शंख के समान 
सुन्दर कण्ठ वाली हैं, आपने अपने कण्ठ में प्रकृति के तीनों गुणों का मंगलसूत्र 
धारण किया हुआ है, इन तीनों रत्नों से युक्त मंगलसूत्र समस्त संसार को 
प्रकाशमान कर रहा है। आपके काले घुंघराले केश दिव्य पुष्पों के गुच्छों से 
अलंकृत हैं, हे कीरतिनन्दनी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ 
करोगी ? (८)


नितम्बबिम्बलम्बमान पुष्पमेखलागुण,
प्रशस्तरत्नकिंकणी कलापमध्यमंजुले।
करीन्द्रशुण्डदण्डिका वरोहसोभगोरुके,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (९)

हे देवी, तुम अपने घुमावदार कूल्हों पर फूलों से सजी कमरबंद पहनती हो, तुम 
झिलमिलाती हुई घंटियों वाली कमरबंद के साथ मोहक लगती हो, तुम्हारी सुंदर 
जांघें राजसी हाथी की सूंड को भी लज्जित करती हैं, हे देवी! कब तुम मुझ पर 
अपनी कृपा कटाक्ष (दृष्टि) डालोगी? (९)

अनेकमन्त्रनादमंजु नूपुरारवस्खलत्,
समाजराजहंसवंश निक्वणाति गौरवे,
विलोलहेमवल्लरी विडमि्बचारू चक्रमे,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (१०)

आपके चरणों में स्वर्ण मण्डित नूपुर की सुमधुर ध्वनि अनेकों वेद मंत्रो के समान 

गुंजायमान करने वाले हैं, जैसे मनोहर राजहसों की ध्वनि गूँजायमान हो रही है।

आपके अंगों की छवि चलते हुए ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे स्वर्णलता लहरा रही 

है, हे जगदीश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ?(१०)


अनन्तकोटिविष्णुलोक नम्र पदम जार्चिते,
हिमद्रिजा पुलोमजा-विरंचिजावरप्रदे।
अपार सिद्धिऋद्धि दिग्ध -सत्पदांगुलीनखे,

कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (११)

अनंत कोटि बैकुंठो की स्वामिनी श्रीलक्ष्मी जी आपकी पूजा करती हैं, श्रीपार्वती जी, 

इन्द्राणी जी और सरस्वती जी ने भी आपकी चरण वन्दना कर वरदान पाया है।

आपके चरण-कमलों की एक उंगली के नख का ध्यान करने मात्र से अपार सिद्धि 

की प्राप्ति होती है, हे करूणामयी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ 

करोगी ? (११)


मखेश्वरी क्रियेश्वरी स्वधेश्वरी सुरेश्वरी,
त्रिवेदभारतीश्वरी प्रमाणशासनेश्वरी।
रमेश्वरी क्षमेश्वरी प्रमोदकाननेश्वरी,
ब्रजेश्वरी ब्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते॥ (१२)

आप सभी प्रकार के यज्ञों की स्वामिनी हैं, आप संपूर्ण क्रियाओं की स्वामिनी हैं, 

आप स्वधा देवी की स्वामिनी हैं, आप सब देवताओं की स्वामिनी हैं, आप तीनों 

वेदों की स्वामिनी है, आप संपूर्ण जगत पर शासन करने वाली हैं।

आप रमा देवी की स्वामिनी हैं, आप क्षमा देवी की स्वामिनी हैं, आप आमोद-प्रमोद 

की स्वामिनी हैं, हे ब्रजेश्वरी! हे ब्रज की अधीष्ठात्री देवी श्रीराधिके! आपको मेरा 

बारंबार नमन है।(१२)


इतीदमतभुतस्तवं निशम्य भानुननि्दनी,
करोतु संततं जनं कृपाकटाक्ष भाजनम्।
भवेत्तादैव संचित-त्रिरूपकर्मनाशनं,
लभेत्तादब्रजेन्द्रसूनु मण्डल प्रवेशनम्॥ (१३)

हे वृषभानु नंदिनी! मेरी इस निर्मल स्तुति को सुनकर सदैव के लिए मुझ दास को 

अपनी दया दृष्टि से कृतार्थ करने की कृपा करो। केवल आपकी दया से ही मेरे 

प्रारब्ध कर्मों, संचित कर्मों और क्रियामाण कर्मों का नाश हो सकेगा, आपकी कृपा 

से ही भगवान श्रीकृष्ण के नित्य दिव्यधाम की लीलाओं में सदा के लिए प्रवेश हो 

जाएगा। (१३)


राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धधीः ।

एकादश्यां त्रयोदश्यां यः पठेत्साधकः सुधीः ॥१४॥

यदि कोई साधक पूर्णिमा, शुक्ल पक्ष की अष्टमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी के 

रूप में जाने जाने वाले चंद्र दिवसों पर स्थिर मन से इस स्तवन का पाठ करे तो…। ( १४ )


यं यं कामयते कामं तं तमाप्नोति साधकः ।

राधाकृपाकटाक्षेण भक्तिःस्यात् प्रेमलक्षणा ॥१५॥


जो-जो साधक की मनोकामना हो वह पूर्ण हो। और श्री राधा की दयालु पार्श्व दृष्टि से वे 

भक्ति सेवा प्राप्त करें जिसमें भगवान के शुद्ध, परमानंद प्रेम (प्रेम) के विशेष गुण हैं। ( १५ )


ऊरुदघ्ने नाभिदघ्ने हृद्दघ्ने कण्ठदघ्नके ।

राधाकुण्डजले स्थिता यः पठेत् साधकः शतम् ॥१६॥

जो साधक श्री राधा-कुंड के जल में खड़े होकर (अपनी जाँघों, नाभि, छाती या गर्दन 

तक) इस स्तम्भ (स्तोत्र) का १०० बार पाठ करे…। (१६)


तस्य सर्वार्थ सिद्धिः स्याद् वाक्सामर्थ्यं तथा लभेत् ।

ऐश्वर्यं च लभेत् साक्षाद्दृशा पश्यति राधिकाम् ॥१७॥


वह जीवन के पाँच लक्ष्यों धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और प्रेम में पूर्णता प्राप्त करे, उसे 

सिद्धि प्राप्त हो। उसकी वाणी सामर्थ्यवान हो (उसके मुख से कही बातें व्यर्थ न 

जाए) उसे श्री राधिका को अपने सम्मुख देखने का ऐश्वर्य प्राप्त हो और…। (१७ )


तेन स तत्क्षणादेव तुष्टा दत्ते महावरम् ।

येन पश्यति नेत्राभ्यां तत् प्रियं श्यामसुन्दरम् ॥१८॥

श्री राधिका उस पर प्रसन्न होकर उसे महान वर प्रदान करें कि वह स्वयं अपने नेत्रों 

से उनके प्रिय श्यामसुंदर को देखने का सौभाग्य प्राप्त करे। (१८ )


नित्यलीला–प्रवेशं च ददाति श्री-व्रजाधिपः ।

अतः परतरं प्रार्थ्यं वैष्णवस्य न विद्यते ॥१९॥


वृंदावन के अधिपति (स्वामी), उस भक्त को अपनी शाश्वत लीलाओं में प्रवेश दें। 

वैष्णव जन इससे आगे किसी चीज की लालसा नहीं रखते। (१९ )


॥ इति श्रीमदूर्ध्वाम्नाये श्रीराधिकायाः कृपाकटाक्षस्तोत्रं सम्पूर्णम ॥

इस प्रकार श्री उर्ध्वाम्नाय तंत्र का श्री राधिका कृपा कटाक्ष स्तोत्र पूरा हुआ।