गुरुवार, 30 मार्च 2023

राम तांडव स्तोत्र / श्रीराघवेंद्रचरितम् / श्रीभागवतानंद गुरु विरचित / स्वर :डॉ. विजया गाडबोले

श्री राम नवमी पर विशेष  
https://youtu.be/-suuBc2TCBM
His Holiness Nigrahacharya 
Shri Bhagavatananda Guru, 
is one of the great personalities existing today. 
He is a living example of child prodigy. 
He is a renowned religious preacher, research 
scholar, philanthropist and sociopolitical orator. 
He is famous for having a great command over 
the Sanatan Vedic Scriptures. Shri Bhagavatananda 
Guru was born on 20th March, 1997 AD at Bokaro 
Steel City district of Jharkhand. 
He is the eldest son of famous social activist 
Acharya Shri Shankar Das Guru and Gyanmati Devi. 
He has authored many books in Sanskrit, Hindi and 
English on various topics, appreciated by various 
universities and scholars worldwide. 
He is the supreme acharya of nearly extinct 
Nigraha Sampradaya.  

Dr. Vijaya Godbole (Deo) is a Hindustani classical
music (vocal) artist, based in Dehradun (Uttarakhand).
A gold medalist, Dr. Godbole has a masters degree in
Hindustani music, and a Doctorate from Benaras Hindu
University (BHU), Varanasi. Dr. Godbole has a teaching
experience of 26 years in Hindustani vocal music. She is
a graded (B-High) artist at the All India Radio and keeps
performing at various concerts throughout India. She has
also been blessed and honoured by Kanchi Kamakoti Peeth
Shankaracharya “Swami Shankar Vijayendra Saraswati
Maharaj“ for recital of Stotras of the Adi Shankaracharya in
March 2019.

राम तांडव स्तोत्र संस्कृत के राम कथानक पर आधारित महाकाव्य
श्रीराघवेंद्रचरितम् से उद्धृत है। इसमें प्रमाणिका छंद के बारह श्लोकों
में राम रावण युद्ध एवं इंद्रादि देवताओं के द्वारा की गई श्रीराम स्तुति
का वर्णन है।
तपस्या में लीन अवस्था में श्रीभागवतानंद गुरु को स्वप्न में श्रीरामचंद्र
जी ने शक्तिपात के माध्यम से कुण्डलिनी शक्ति का उद्बोधन कराया
एवं बाद में उन्हें भगवान शिव ने श्रीरामकथा पर आधारित ग्रन्थ
श्रीराघवेंद्रचरितम् लिखने की प्रेरणा दी। इस स्तोत्र की शैली और भाव
वीर रस एवं युद्ध की विभीषिका से भरे हुए हैं।
कहा जाता है कि इतिहास में युगों युगों तक सबसे भीषण युध्द भगवान
श्री राम और रावण का ही हुआ था।ताण्डव का एक अर्थ उद्धत उग्र
संहारात्मक क्रिया भी है। रामायण के अनुसार राम रावण युद्ध के समान
घोर तथा उग्र युद्ध कोई नहीं है। 
इसीलिये यह भी कहा जाता है "रामरावणयोर्युद्धं रामरावणयोरिव" 
(राम रावण केयुद्ध की तुलना सिर्फ राम- रावण युद्ध से ही हो सकती है)


इंद्रादयो ऊचु: (इंद्र आदि ने कहा)
जटाकटाहयुक्तमुण्डप्रान्तविस्तृतम् हरे:
अपांगक्रुद्धदर्शनोपहार चूर्णकुन्तलः।
प्रचण्डवेगकारणेन पिंजलः प्रतिग्रहः
स क्रुद्धतांडवस्वरूपधृग्विराजते हरि: ॥१॥
जटासमूह से युक्त विशालमस्तक वाले श्रीहरि के क्रोधित हुए 
लाल आंखों की तिरछी नज़र से, विशाल जटाओं के बिखर जाने 
से रौद्र मुखाकृति एवं प्रचण्ड वेग से आक्रमण करने के कारण 
विचलित होती, इधर उधर भागती शत्रुसेना के मध्य तांडव 
(उद्धत विनाशक क्रियाकलाप) स्वरूप धारी भगवान् हरि शोभित 
हो रहे हैं।
अथेह व्यूहपार्ष्णिप्राग्वरूथिनी निषंगिनः
तथांजनेयऋक्षभूपसौरबालिनन्दना:।
प्रचण्डदानवानलं समुद्रतुल्यनाशका:
नमोऽस्तुते सुरारिचक्रभक्षकाय मृत्यवे ॥२॥
अब वो देखो !! महान् धनुष एवं तरकश धारण वाले प्रभु की 
अग्रेगामिनी, एवं पार्श्वरक्षिणी महान् सेना जिसमें हनुमान्, जाम्बवन्त, 
सुग्रीव, अंगद आदि वीर हैं, प्रचण्ड दानवसेना रूपी अग्नि के शमन 
के लिए समुद्रतुल्य जलराशि के समान नाशक हैं, ऐसे मृत्युरूपी 
दैत्यसेना के भक्षक के लिए मेरा प्रणाम है।
कलेवरे कषायवासहस्तकार्मुकं हरे:
उपासनोपसंगमार्थधृग्विशाखमंडलम्।
हृदि स्मरन् दशाकृते: कुचक्रचौर्यपातकम्
विदार्यते प्रचण्डतांडवाकृतिः स राघवः ॥३॥
शरीर में मुनियों के समान वल्कल वस्त्र एवं हाथ मे विशाल धनुष 
धारण करते हुए, बाणों से शत्रु के शरीर को विदीर्ण करने की इच्छा 
से दोनों पैरों को फैलाकर एवं गोलाई बनाकर, हृदय में रावण के 
द्वारा किये गए सीता हरण के घोर अपराध का चिन्तन करते हुए 
प्रभु राघव प्रचण्ड तांडवीय स्वरूप धारण करके राक्षसगण को 
विदीर्ण कर रहे हैं।
प्रकाण्डकाण्डकाण्डकर्मदेहछिद्रकारणम्
कुकूटकूटकूटकौणपात्मजाभिमर्दनम्।
तथागुणंगुणंगुणंगुणंगुणेन दर्शयन्
कृपीटकेशलंघ्यमीशमेकराघवं भजे ॥४॥
अपने तीक्ष्ण बाणों से निंदित कर्म करने वाले असुरों के शरीर को वेध 
देने वाले, अधर्म की वृद्धि के लिए माया और असत्य का आश्रय लेने 
वाले प्रमत्त असुरों का मर्दन करने वाले, अपने पराक्रम एवं धनुष की 
डोर से, चातुर्य से एवं राक्षसों को प्रतिहत करने की इच्छा से प्रचण्ड 
संहारक, समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर जाने वाले राघव को मैं 
भजता हूँ।
सवानरान्वितः तथाप्लुतम् शरीरमसृजा
विरोधिमेदसाग्रमांसगुल्मकालखंडनैः।
महासिपाशशक्तिदण्डधारकै: निशाचरै:
परिप्लुतं कृतं शवैश्च येन भूमिमंडलम् ॥५॥
वानरों से घिरे, शरीर में रक्त की धार से नहाए हुए जिनके द्वारा बहुत बड़ी 
शक्ति, तलवार, दण्ड, पाश आदि धारण करने वाले राक्षसों के मांस, चर्बी, 
कलेजा, आंत, एवं टुकड़े टुकड़े हुए शवों के द्वारा सम्पूर्ण युद्धभूमि ढक दी 
गयी है....
विशालदंष्ट्रकुम्भकर्णमेघरावकारकै:
तथाहिरावणाद्यकम्पनातिकायजित्वरै:।
सुरक्षितां मनोरमां सुवर्णलंकनागरीम्
निजास्त्रसंकुलैरभेद्यकोटमर्दनं कृतः ॥६॥
जिनके द्वारा विशालदंष्ट्र, कुम्भकर्ण, मेघनाद, अहिरावण, आदि, अकम्पन, 
अतिकाय आदि अजेय वीरों के द्वारा सुरक्षित सुंदर सोने की लंका नगरी, 
जो अभेद्य दुर्ग थी, वह भी दिव्य अस्त्रों की मार से विदीर्ण कर दी गयी....
प्रबुद्धबुद्धयोगिभिः महर्षिसिद्धचारणै:
विदेहजाप्रियः सदानुतो स्तुतो च स्वस्तिभिः।
पुलस्त्यनंदनात्मजस्य मुण्डरुण्डछेदनं
सुरारियूथभेदनं विलोकयामि साम्प्रतम् ॥७॥
प्रबुद्ध प्रज्ञा वाले योगी, महर्षि, सिद्ध, चारण, आदि जिन सीतापति को सदा 
प्रणाम करते हैं, सुंदर मंगलायतन स्तुतियों के द्वारा प्रशंसा करते हैं, उनके 
द्वारा आज मैं पुलस्त्यनन्दन विश्रवा के पुत्र रावण के मस्तक और धड़ को 
अलग किया जाता एवं सेना का घोर संहार होता देख रहा हूँ।
करालकालरूपिणं महोग्रचापधारिणं
कुमोहग्रस्तमर्कटाच्छभल्लत्राणकारणम्।
विभीषणादिभिः सदाभिषेणनेऽभिचिन्तकं
भजामि जित्वरं तथोर्मिलापते: प्रियाग्रजम् ॥८॥
कराल मृत्युरूपी, महान् उग्र धनुष को धारण करने वाले, मोहग्रस्त बन्दर 
भालुओं को अपनी शरण में लेने वाले, शत्रु पक्ष को नष्ट करने के लिए नीति 
और योजनाओं पर विभीषण आदि के साथ विचार विमर्श करने में मग्न 
अजेय पराक्रमी उर्मिलापति लक्ष्मण के बड़े भाई श्रीरामचन्द्र का मैं भजन 
करता हूँ।
इतस्ततः मुहुर्मुहु: परिभ्रमन्ति कौन्तिकाः
अनुप्लवप्रवाहप्रासिकाश्च वैजयंतिका:।
मृधे प्रभाकरस्य वंशकीर्तिनोऽपदानतां
अभिक्रमेण राघवस्य तांडवाकृते: गताः ॥९॥
इधर उधर बार बार वेगपूर्वक भागती हुई शत्रुसेना के अनुचर गण जो पताका, 
भाले एवं तलवार धारण किये हुए हैं, युद्ध में सूर्यवंश की कीर्तिरूपी रौद्ररूपधारी 
रामचन्द्र जी के महान् असह्य प्रभाव के कारण व्याकुलता एवं विनाश को प्राप्त 
हो गए हैं।
निराकृतिं निरामयं तथादिसृष्टिकारणं
महोज्ज्वलं अजं विभुं पुराणपूरुषं हरिम्।
निरंकुशं निजात्मभक्तजन्ममृत्युनाशकं
अधर्ममार्गघातकं कपीशव्यूहनायकम् ॥१०॥
आकृति, परिवर्तन क्लेशादि विकारों से रहित, आदिकाल में सृष्टिसम्भूति के 
निमित्त, महान् प्रभा से युक्त, अनादि, सर्वपोषक, प्राचीन दिव्य चेतन, दुःखत्राता, 
स्वामीरहित, अपने भक्त के जन्ममरणादि दु:खों के नाशक, अधर्ममार्ग का 
संहार करने वाले, वानरों की सेना के स्वामी श्रीरामचंद्र जी के...
करालपालिचक्रशूलतीक्ष्णभिंदिपालकै:
कुठारसर्वलासिधेनुकेलिशल्यमुद्गरै:।
सुपुष्करेण पुष्कराञ्च पुष्करास्त्रमारणै:
सदाप्लुतं निशाचरै: सुपुष्करञ्च पुष्करम् ॥११॥
विकराल खड्ग, चक्र, शूल, भिन्दिपाल, फरसा, छोटी छुरिका, तीर, मुद्गर, तोमर 
और धनुष की प्रत्यंचा से निक्षेपित वारुणास्त्र आदि की मार से राक्षसों के शव 
आकाश और समुद्र आदि सर्वत्र व्याप्त हो गए हैं।
प्रपन्नभक्तरक्षकम् वसुन्धरात्मजाप्रियं
कपीशवृंदसेवितं समस्तदूषणापहम्।
सुरासुराभिवंदितं निशाचरान्तकम् विभुं
जगद्प्रशस्तिकारणम् भजेह राममीश्वरम् ॥१२॥
अपनी शरण में आये भक्त की रक्षा करने वाले सीतापति, वानर सम्राटों से सेवित, 
समस्त दुर्गुणों का नाश करने वाले, इन्द्रादि देवगण तथा प्रह्लादादि असुरों से द्वारा 
वन्दित, राक्षसों का संहार करने वाले विश्व पोषक एवं संरक्षक परमेश्वर श्रीराम जी 
को भजो।
इति श्रीभागवतानंद गुरुणा विरचिते श्रीराघवेंद्रचरिते इन्द्रादि देवगणै: कृतं 
श्रीराम तांडव स्तोत्रम् सम्पूर्णम्।

इस प्रकार श्रीभागवतानंद गुरु के द्वारा लिखे गए श्रीराघवेंद्रचरितम् में इन्द्रादि 

देवगणों के द्वारा किये गए श्रीराम तांडव का वर्णन समाप्त हुआ।

पालने झूलें रघुवर प्यारे.../ भजन : सद्गुरु प्रेमानन्द स्वामी / गायन : श्रीमती यशस्वी सिरपोतदार

 https://youtu.be/rIPL6Ic7TWU  

पालने झूलें रघुवर प्यारे...

भजन : सद्गुरु प्रेमानन्द स्वामी 
सँगीत : श्रीमती अपूर्वा गोखले 
गायन : श्रीमती यशस्वी सिरपोतदार 

पालने झूलें रघुवर प्यारे 
कमल नयन त्रिभुवन उजियारे। 
बाल विनोद करत रघुनायक, 
रोवत करत नयन रतनारे।।  
पालने झूलें रघुवर प्यारे...

भुज उठाय माँगत जननी पें 
देहु मातु मोहि शशि अरु तारे। 
पालने झूलें रघुवर प्यारे...

पुलकि कौशल्या लेति गोद में,
चुम्बि चुम्बि मुख प्रान लेवारे।  
पालने झूलें रघुवर प्यारे...
 
निगमागम जेहि कहत अपारे,
प्रेमानन्द पुलकि उर धारे। 
पालने झूलें रघुवर प्यारे...

अवध में बाजेला बधाई श्री राम के जनम भइल हो !.../ सोहर / मारीशस भोजपुरी समाज की प्रस्तुति

https://youtu.be/hHUu9YVjx4Q 

अवध में बाजेला बधाई श्री राम के जनम भइल हो !...

अवध में बाजेला बधाई, श्री राम के जनम भइल हो !
आहो ललना, 
आहो ललना, गोदिया में खेलें श्री राम कौशल्या खेलावेला हो 

राम के नयन में कजरवा, बड़ा ही शोभेला हो 
आहो ललना, पलना में झूलें श्री राम कौशल्या झुलावेला हो  
अवध में बाजेला बधाई...

रामा के पैरों में पैजनियाँ, बड़ा ही शोभेला हो 
आहो ललना, पलना में झूलें श्री राम कौशल्या झुलावेला हो 
अवध में बाजेला बधाई...

सखी सब मंगल गावेला, रंग बरसावेला हो 
आहो ललना, पलना में झूलें श्री राम कौशल्या झुलावेला हो 
अवध में बाजेला बधाई...

सोहर के गवइया सोहर गा देहलन, गा के सुना देहलन हो 
आहो ललना, पलना में झूलें श्री राम कौशल्या झुलावेला हो 
अवध में बाजेला बधाई...

बुधवार, 29 मार्च 2023

भये प्रकट कृपाला दीन दयाला.../ गोस्वामी तुलसीदास कृत / मारीशस भोजपुरी समाज की प्रस्तुति

 https://youtu.be/jmHDa0s2-eU

भये प्रगट कृपाला दीन दयाला, श्री रामावतार की स्‍तुति है, 
जिसे नित्‍य पाठ करने से सभी मनोकामनायें पूरी होती हैं। 
यह स्‍तुति श्री गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित, 'रामचरित 
मानस' के बालकाण्‍ड मे है।
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला, कौसल्‍या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप बिचारी ।।
अर्थ- माता कौशिल्‍या जी के हितकारी और दीन दुखियों पर दया 
करने वाले कृपालु भगवान आज प्रकट हुये। मुनियों के मन को 
हरने वाले तथा सदैव मुनियों के मन में निवास करने वाले भगवान 
के अदभुत रूप का विचार करते ही सभी मातायें हर्ष से भर गयी।
लोचन अभिरामा, तनु घनस्‍यामा, निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला, सोभासिंधु खरारी ।।
अर्थ- जिनका दर्शन नेत्रों को आनंद देता है, जिनका शरीर बादलों के 
जैसा श्‍याम रंग का है तथा जो अपनी चारों भुजाओं में अपने शस्‍त्र 
धारण किये हुये हैं।  जो वन माला को आभूषण के रूप में धारण किये 
हुये हैं, जिनके नेत्र बहुत ही सुंदर और विशाल है तथा जिनकी कीर्ति 
समुद्र की तरह अपूर्णनीय है ऐसे खर नामक राक्षक का वध करने वाले 
भगवान आज प्रकट हुये हैं।
कह दुई कर जोरी, अस्‍तुति तोरी, केहि बिधि करूं अनंता।
माया गुन ग्‍यानातीत अमाना, वेद पुरान भनंता ।।
अर्थ- दोनों हाथ जोड़कर मातायें कहने लगी- हे अनंत (जिसका पार न पाया 
जा सके) हम तुम्‍हारी स्‍तुति और पूजा किस विधि से करें, क्‍योंकि वेदों और 
पुराणों ने तुम्‍हें माया, गुण और ज्ञान से परे बताया है।
करुना सुख सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी, भयउ प्रगट श्रीकंता ।।
अर्थ- दया, करुणा और आनंद के सागर तथा सभी गुणों के धाम ऐसा 
श्रुतियां और संतजन जिनके बारे में हमेशा बखान करते रहते हैं। जन-जन 
पर अपनी प्रीति रखने वाले ऐसे श्री हरि नारायण भगवान आज मेरा 
कल्‍याण करने के लिए प्रकट हुये हैं।
ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया, रोम रोम प्रति बेद कहै ।
मम उर सो बासी, यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न रहै ॥
अर्थ- जिनके रोम रोम में कई ब्रम्‍हाण्‍डों का सृजन होता है और जिन्‍होंने 
ही संपूर्ण माया का निर्माण किया है, ऐसा वेद बताते हैं। माता कहती हैं 
कि ऐसे भगवान मेरे गर्भ में रहे, यह बहुत ही आश्‍चर्य और हास्‍यास्‍पद 
बात है, जो भी धीर व ज्ञानी जन यह घटना सुनते हैं वे अपनी बुद्धि खो 
बैठते हैं।
उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना, चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥
अर्थ-  माता को इस प्रकार की ज्ञानवर्धक बातें कहते देख प्रभु मुस्‍कुराने 
लगे और सोचने लगे कि माता को ज्ञान हो गया है। प्रभु अवतार लेकर 
कई प्रकार के चरित्र करना चाहते हैं। तब प्रभु ने पूर्व जन्‍म की कथा 
माता को सुनाई और उन्‍हें समझाया कि वे किस प्रकार से उन्‍हें अपना 
वात्‍सल्‍य प्रदान करें और पुत्र की भांति प्रेम करें।
माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा ।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला, यह सुख परम अनूपा ॥
अर्थ-  प्रभु की यह बातें सुनकर माता कौशिल्‍या की बुद्धि में परिवर्तन हो 
गया और वे कहने लगी कि आप यह रूप छोड़कर बाल्‍य रूप धारण करें 
और बाल्‍य लीला करें तो सबको प्रिय लगे। हमारे लिये यही सुख सबसे 
उत्‍तम है कि आप सुंदर बाल्‍य रूप में प्रकट हों।
सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना, होइ बालक सुरभूपा ।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं, ते न परहिं भवकूपा ॥
अर्थ- माता का यह प्रेम भरा भाव सुनकर, सबके मन की जानने वाले 
भगवान श्री सुजान, बालक रूप में प्रकट होकर बच्‍चों की तरह रोने लगे। 
बाबा श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि भगवान के स्‍वरूप का यह सुंदर 
चरित्र जो कोई भी भाव से गाता है, वह भगवान के परम पद को प्राप्‍त 
होता है और दोबारा इस संसार रूपी कुंए में गिरने से मुक्‍त हो जाता है।
दोहा:
बिप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार ।
निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गो पार ॥
अर्थ- धर्म की रक्षा करने वाले ब्राम्‍हणों, धरती का उद्धार करने वाली गौ माता, 
देवताओं और संतों का हित करने के लिए भगवान श्री हरि ने अवतार लिया।

भजे विशेषसुन्दरं समस्तपापखण्डनम्.../ महर्षि व्यास कृत रामाष्टक / स्वर : उत्तरा उन्नीकृष्णन

https://youtu.be/j1OwiU-euDU 


राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने //
(शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ 
के समान हैं। मैं सदा रामका स्तवन करता हूं और राम-नाममें ही 
रमण करता हूं । -श्री राम रक्षा स्तोत्र 

भजे विशेषसुन्दरं समस्तपापखण्डनम्। 
स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव राममद्वयम् ॥ १ ॥

जटाकलापशोभितं समस्तपापनाशकम्।
स्वभक्तभीतिभंजनं भजे ह राममद्वयम् ॥ २ ॥

निजस्वरूपबोधकं कृपाकरं भवापहम्।
समं शिवं निरंजनं भजे ह राममद्वयम् ॥ ३ ॥

सदाप्रञ्चकल्पितं ह्यनामरूपवास्तवम्।
निराकृतिं निरामयं भजे ह राममद्वयम् ॥ ४ ॥

निष्प्रपञ्चनिर्विकल्पनिर्मलं निरामयम्।
चिदेकरूपसंततं भजे ह राममद्वयम् ॥ ५ ॥

भवाब्धिपोतरूपकं ह्यशेषदेहकल्पितम्।
गुणाकरं कृपाकरं भजे ह राममद्वयम् ॥ ६ ॥

महावाक्यबोधकैर्विराजमनवाक्पदैः।
परब्रह्म व्यापकं भजे ह राममद्वयम् ॥ ७ ॥

शिवप्रदं सुखप्रदं भवच्छिदं भ्रमापहम्।
विराजमानदैशिकं भजे ह राममद्वयम् ॥ ८ ॥

रामाष्टकं पठति यः सुकरं सुपुण्यं 
व्यासेन भाषितमिदं श्रृणुते मनुष्यः।
विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्ति 
सम्प्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम् ॥ ९ ॥

॥ इति श्रीव्यासविरचितं रामाष्टकं संपूर्णम् ॥


ENGLISH TRANSLATION

Bhaje visesha sundaram, 
samastha papa khandanam,
Swabhaktha chitha ranjanam, 
Sadaiva rama madvayam., 1

I pray always that Rama,
Who is second to none,
Who is especially pretty,
Who cuts off all sins,
And who makes the mind,
Of his devotes happy.


Jatakalapa Shobhitham, 
Samastha papa nasakam,
Swabhaktha bheethi bhanjanam, 
Bhajeha rama madvayam., 2

I pray always that Rama,
Who is second to none,
Who shines with his matted hair,
Who destroys all sins,
And who makes the mind,
Of his devotees free from fear.


Nija swaroopa bhodhakam, 
krupakaram bhavapaham,
Samam shivam niranjanam, 
Bhajeha rama madvayam., 3

I pray always that Rama,
Who is second to none,
Who shows us his real self,
Who is very merciful,
Who destroys sorrows of life,
Who considers every one equal,
Who is peaceful,
And who does all that is good.


Saha prapancha kalpitham, 
hyanamaroopa vasthavam,
Nirakruthim niramayam, 
Bhajeha rama madvayam., 4

I pray always that Rama,
Who is second to none,
Who shows the world in himself,
Who is the truth without names,
Who is someone without form,
And who is away from sickness and pain.


Nishprapancha, nirvikalpa, 
nirmalam, niramayam,
Chideka roopa santhatham, 
Bhajeha rama madvayam., 5

I pray always that Rama,
Who is second to none,
Who is away from the world,
Who does not see differences,
Who is crystal clear,
Who does not have diseases,
And who stands always as,
The real form of truth.


Bhavabdhipotha roopakam, 
hyasesha deha kalpitham,
Gunakaram, krupakaram, 
Bhajeha rama madvayam., 6

I pray always that Rama,
Who is second to none,
Who is the ship to cross the sea of life,
Who shines as all types of bodies.
Who does good,
And who shows mercy.


Maha vakhya bodhakair 
virajamana vakpadai,
Parabrahma vyapakam, 
Bhajeha rama madvayam., 7

I pray always that Rama,
Who is second to none,
Who is so great that,
He is fit to be known through,
Great Vedic sayings,
And who is Brahmam,
Which is spread everywhere.


Shiva pradham sukhapradham, 
bhavaschidham bramapaham,
Virajamana desikam, 
Bhajeha rama madvayam., 8

I pray always that Rama,
Who is second to none,
Who grants peace,
Who gives us pleasure,
Who destroys the problems of life,
Who avoids illusion,
And who is the resplendent Guru.

Ramashtakam padathi ya 
sukaram supunyam,
Vyasena bhashithamidham, 
srunuthe manushya,
Vidhyam sriyam vipula 
soukhyamanantha keerthim,
Samprapya deha vilye 
labhathe cha moksham., 9

He who reads or hears this octet on rama,
Which is easy to understand,
Which gives rise to good deeds,
Which is written by sage Vyasa,
Would get knowledge,wealth,
Pleasure and limitless fame,
And once he leaves his body,
He would also get salvation.