शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

गंगा, यमुना, सिंधु, कावेरी.../ भारत का नदी-गीत

https://youtu.be/7wmCGm8k2eU 

"गङ्गे  यमुने चैव गोदावरि सरस्वति
 नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु
॥"
-ब्रह्मवैवर्तपुराण-ब्रह्मखण्ड अध्याय २६, श्लोक ६६ 
अर्थ : हे गंगे, यमुने, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदे, सिंधु तथा  कावेरी, 
आप सब नदियां मेरे स्नानके जलमें आएं (आकर इसे पवित्र करें)।

गंगा, यमुना, सरस्वती,
सिंधु, कावेरी, नर्मदा,
जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु।
जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु।।

गंगा, यमुना, सिंधु, कावेरी, 
नर्मदा, गोदावरी, श्री सरस्वती।  
अलकनंदा, जान्ह्वी, ब्रह्मपुत्र, गोमती,
तुंगभद्रा, स्वर्णरेखा, मयूराक्षी, पार्वती।। 
गंगा, यमुना...
गंगा, यमुना...
गंगा, यमुना...
गंगा, यमुना...

भागीरथी, कविनी, शरावती,
साबरमती, अमरावती, ताप्ती। 
मन्दाकिनी, सरयू, नेत्रवाती 
कुण्डली, महानदी, पम्पा, बेतवती 

सोन वैतरणी ....
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'Rivers of India' is a tribute to the timeless spirit of India
that accords a revered place to precious water resources.
Conceived and created by IITM Distinguished Alumnus
Kanniks Kannikeswaran, this music video is produced by
the International Center for Clean Water, IIT Madras to
promote awareness about the need for conserving and
protecting water resources. It is released on Earth Day 2021.
CREDITS Bombay Jayashri Kaushiki Chakraborty Rishith Desikan Amrit Ramnath Music Composed by Kanniks Kannikeswaran Conceptualization, Script and Lyrics Kanniks Kannikeswaran (Inspired by the names of rivers from all over India and a phrase
from the first millennium Tamil epic Silappathikaram)
Silapadhikaram is one of the five great epics in Tamil literature.
It is the story that is known for its unique plot which covers 
the life of a common man and not a king like other literary 
works. Also the story progresses in all the three major Chola,
Chera and Pandya kingdom in its three parts (called kaandam in tamil).
In the first part - pugaar kaandam, in chapter (kaathai in tamil) 
kanal vari, the conversation between kovalan and madhavi involving 
kaveri is as follows.
“Poovar solai mayilala
purindhu kuilgal isai pada
kamar malai arugu asaiya
nadanthai vazhi kaveri ! " (
नाणंदाई वाडी कावेरी )

"nadanthai vazhi kaveri ! " - phrase means the eternal river Kaveri.

मंगलवार, 26 अप्रैल 2022

संकट मोचन हनुमानाष्टक / श्री गोस्वामी तुलसी दास कृत / प्रस्तुति : अयोध्या दास नीमावत

 https://youtu.be/oi0OkueSjCY

बाल समय रवि भक्षि लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब, छांड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥ को नहिं...
अंगद के संग लेन गए सिय- खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो।
हेरि  थके तट सिन्धु सबे तब, लाय सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥ को नहिं...
रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥ को नहिं...
बान लाग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥ को नहिं...
रावन जुद्ध  अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥ को नहिं...
बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबन्हिं पूजि भलि विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाय भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥ को नहिं...
काज किये बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो ॥ ८ ॥ को नहिं...
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर ॥ 
इति संकट मोचन हनुमानाष्टक सम्पूर्ण 

रविवार, 24 अप्रैल 2022

श्रीरामरक्षास्तोत्रम् .../ बुधकौशिक ऋषि: / प्रस्तुति : रंजनी-गायत्री

 https://youtu.be/EMeSTcffrEI 

Ranjani and Gayatri chant Sri Rama Raksha Stotram, composed by
Sage Budha Kaushika. It's believed that the chant of these divine
slokas has a powerfully positive impact on mind and body. The slokas
are meant to be chanted in the original traditional metre which is
followed by Ranjani - Gayatri in this rendition.

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ॥

श्रीगणेशायनम: ।
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप् छन्द: ।
सीता शक्ति: ।
श्रीमद्‌हनुमान् कीलकम् ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥

इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक ऋषि हैं, सीता और 
रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक 
हैं तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में 
विनियोग किया जाता हैं |
॥ अथ ध्यानम् ॥ 
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥

ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्द पद्मासन की मुद्रा में 
विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल 
दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल 
से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारों से विभूषित 
तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें |
॥ इति ध्यानम् ॥ 
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥

श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं | उसका एक-एक अक्षर 
महापातकों को नष्ट करने वाला है |
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥

नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमलनेत्र वाले , जटाओं के मुकुट से सुशोभित, 
जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्री राम का स्मरण करके,
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥

जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों 
के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके,
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥

मैं सर्वकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ।  
राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें। 
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥

कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण 
की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें। 
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥

मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, कंठ की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और 
भुजाओं की महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें। 
करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥

मेरे हाथों की सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम) 
को जीतने वाले, मध्य भाग की खर (नाम के राक्षस) के वधकर्ता और नाभि की 
जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें। 
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥

मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हडियों की हनुमान के प्रभु और रानों की राक्षस कुल 
का विनाश करने वाले रघुश्रेष्ठ रक्षा करें। 
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥

मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओं की दशानन वधकर्ता, चरणों की विभीषण को 
ऐश्वर्य प्रदान करने वाले और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें। 

           एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् ।
           स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥

शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुक्त होकर 
इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील 
हो जाता हैं। 
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥

जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते 
रहते हैं, वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते। 
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥

राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से 
लिप्त 
नहीं होता. इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है। 
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥

जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर 
लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं। 
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥

जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का 
कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं। 
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥

भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक ऋषि को 
दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया। 
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥

जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को 
दूर करने वाले हैं (विराम माने थमा देना, किसको थमा देना/दूर कर देना ? 
सकलापदाम = सकल आपदा = सारी विपत्तियों को)  और जो तीनो लोकों में सुंदर 
(अभिराम + स्+ त्रिलोकानाम) हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं। 
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥

जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमल (पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों 
वाले हैं, मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं। 
 
           फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
           पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं, 
वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें। 
 
           शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
           रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी 
धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारा 
त्राण करें। 
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङि‌गनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥

संधान किये धनुष धारण किये, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणो से युक्त तूणीर 
लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें।   
संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्‌मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥

हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् 
राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें। 
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥

भगवान् का कथन है की श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, 
पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम, 
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥

वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम 
आदि नामों का
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥

नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक 
फल प्राप्त होता हैं। 
रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥

दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य 
नामों से स्तुति करने वाला संसारचक्र में नहीं पड़ता। 
रामं लक्ष्मण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥

लक्ष्मण जी के पूर्वज , सीताजी के पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणा के सागर, 
गुण-निधान, विप्र भक्त, परम धार्मिक , राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, 
श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावण 
के शत्रु भगवान् राम की मैं वंदना करता हूँ |
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥

राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजी के स्वामी की मैं 
वंदना करता हूँ। 
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम 
श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए। 
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूँ, 
वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ 
मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ। 
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥

श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं | इस प्रकार दयालु श्रीराम 
मेरे सर्वस्व हैं. उनके सिवा में किसी दुसरे को नहीं जानता। 
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥

जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और जानकी जी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, 
मैं उन्ही रघुनाथ जी की वंदना करता हूँ। 
लोकाभिरामं रणरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की 
मूर्ति और करुणा के भण्डार की श्रीराम की शरण में हूँ। 
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय 
एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत की शरण लेता हूँ। 
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥

मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए 
वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूँ। 
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥

मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूँ, जो सभी 
आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं। 
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥

‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं | वह समस्त 
सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं | राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा 
भयभीत रहते हैं। 
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥

राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं | मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम 
का भजन करता हूँ। सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार 
करता हूँ। श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं। मैं उन शरणागत वत्सल का 
दास हूँ। मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ। हे श्रीराम ! आप मेरा (इस संसार सागर से) 
उद्धार करें। 
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥

(शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं। मैं सदा 
राम का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ। 
           ॥ इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

शनिवार, 23 अप्रैल 2022

"शनि शान्ति स्तोत्र" / दशरथकृत / स्वर : राजीव कौशिक

https://youtu.be/qO6l9ZOBX8M  


"शनि शान्ति स्तोत्र", शनि शान्ति के लिए शनि देव की प्रार्थना। इस स्तोत्र की रचना महाराज दशरथ ने की थी इसका वर्णन
पद्म पुराण में मिलता है।

शनि स्तोत्र 

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।
।१
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते 
।२
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते 
।३
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने 
।४
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च 
।५
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते 
।६
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: 
।७
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् 
।८
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: 
।९
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: 
।१०

अर्थ

जिनके शरीर का रंग भगवान् शंकर के समान कृष्ण तथा नीला है उन शनि देव को मेरा नमस्कार है, इस जगत् के लिए कालाग्नि एवं कृतान्त रुप शनैश्चर को पुनः पुनः नमस्कार है। जिनका शरीर कंकाल जैसा मांस-हीन तथा जिनकी दाढ़ी-मूंछ और जटा बढ़ी हुई है, उन शनिदेव को नमस्कार है, जिनके बड़े-बड़े नेत्र, पीठ में सटा हुआ पेट तथा भयानक आकार वाले शनि देव को नमस्कार है। जिनके शरीर दीर्घ है, जिनके रोएं बहुत मोटे हैं, जो लम्बे-चौड़े किन्तु जर्जर शरीर वाले हैं तथा जिनकी दाढ़ें कालरुप हैं, उन शनिदेव को बार-बार नमस्कार है। हे शनि देव ! आपके नेत्र कोटर के समान गहरे हैं, आपकी ओर देखना कठिन है, आप  रौद्र,  भीषण और विकराल हैं, आपको नमस्कार है। सूर्यनन्दन, भास्कर-पुत्र, अभय देने वाले देवता, वलीमूख आप सब कुछ भक्षण करने वाले हैं, ऐसे शनिदेव को प्रणाम है। आपकी दृष्टि अधोमुखी है आप संवर्तक, मन्दगति से चलने वाले तथा जिसका प्रतीक तलवार के समान है, ऐसे शनिदेव को पुनः-पुनः नमस्कार है। आपने तपस्या से अपनी देह को दग्ध कर लिया है, आप सदा योगाभ्यास में तत्पर, भूख से आतुर और अतृप्त रहते हैं। आपको सर्वदा सर्वदा नमस्कार है। जिसके नेत्र ही ज्ञान है, काश्यपनन्दन सूर्यपुत्र शनिदेव आपको नमस्कार है। आप सन्तुष्ट होने पर राज्य दे देते हैं और रुष्ट होने पर उसे तत्क्षण क्षीण लेते हैं वैसे शनिदेव को नमस्कार। देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और नाग- ये सब आपकी दृष्टि पड़ने पर समूल नष्ट हो जाते ऐसे शनिदेव को प्रणाम। आप मुझ पर प्रसन्न होइए। मैं वर पाने के योग्य हूं और आपकी शरण में आया हूं।

मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

प्रभु रामचंद्र के दूता.../ गायन : सूर्य गायत्री

 https://youtu.be/x2UQE-g4y18 

प्रभु रामचंद्र के दूता, हनुमंता आञ्जनेया। 
हे ! पवनपुत्र हनुमंता, बलभीमा आञ्जनेया। 
जय हो ! जय हो ! जय हो ! आञ्जनेया।।

रविवार, 17 अप्रैल 2022

नमामि भक्त वत्सलं / श्री रामचरितमानस / श्री गोस्वामी तुलसी दास कृत / स्वर : माधवी मधुकर झा

 https://youtu.be/5UPOdL5GudI  

नमामि भक्त वत्सलं। कृपालु शील कोमलं॥ भजामि ते पदांबुजं। अकामिनां स्वधामदं॥१॥ भावार्थ हे भक्त वत्सल! हे कृपालु! हे कोमल स्वभाव वाले! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निष्काम पुरुषों को अपना परमधाम देने वाले आपके चरण कमलों को मैं भजता हूँ॥१॥ निकाम श्याम सुंदरं। भवांबुनाथ मंदरं॥ प्रफुल्ल कंज लोचनं। मदादि दोष मोचनं॥२॥ भावार्थ आप नितान्त सुंदर श्याम, संसार (आवागमन) रूपी समुद्र को मथने के लिए मंदराचल रूप, फूले हुए कमल के समान नेत्रों वाले और मद आदि दोषों से छुड़ाने वाले हैं॥२॥ प्रलंब बाहु विक्रमं। प्रभोऽप्रमेय वैभवं॥ निषंग चाप सायकं। धरं त्रिलोक नायकं॥३॥ भावार्थ हे प्रभो! आपकी लंबी भुजाओं का पराक्रम और आपका ऐश्वर्य अप्रमेय (बुद्धि के परे अथवा असीम) है। आप तरकस और धनुष-बाण धारण करने वाले तीनों लोकों के स्वामी,॥३॥ दिनेश वंश मंडनं। महेश चाप खंडनं॥ मुनींद्र संत रंजनं। सुरारि वृंद भंजनं॥४॥ भावार्थ सूर्यवंश के भूषण, महादेवजी के धनुष को तोड़ने वाले, मुनिराजों और संतों को आनंद देने वाले तथा देवताओं के शत्रु असुरों के समूह का नाश करने वाले हैं॥४॥ मनोज वैरि वंदितं। अजादि देव सेवितं॥ विशुद्ध बोध विग्रहं। समस्त दूषणापहं॥५॥ भावार्थ आप कामदेव के शत्रु महादेवजी के द्वारा वंदित, ब्रह्मा आदि देवताओं से सेवित, विशुद्ध ज्ञानमय विग्रह और समस्त दोषों को नष्ट करने वाले हैं॥५॥ नमामि इंदिरा पतिं। सुखाकरं सतां गतिं॥ भजे सशक्ति सानुजं। शची पति प्रियानुजं॥६॥ भावार्थ हे लक्ष्मीपते! हे सुखों की खान और सत्पुरुषों की एकमात्र गति! मैं आपको नमस्कार करता हूँ! हे शचीपति (इन्द्र) के प्रिय छोटे भाई (वामनजी)! स्वरूपा-शक्ति श्री सीताजी और छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित आपको मैं भजता हूँ॥६॥ त्वदंघ्रि मूल ये नराः। भजंति हीन मत्सराः॥ पतंति नो भवार्णवे। वितर्क वीचि संकुले॥७॥ भावार्थ जो मनुष्य मत्सर (डाह) रहित होकर आपके चरण कमलों का सेवन करते हैं, वे तर्क-वितर्क (अनेक प्रकार के संदेह) रूपी तरंगों से पूर्ण संसार रूपी समुद्र में नहीं गिरते (आवागमन के चक्कर में नहीं पड़ते)॥७॥ विविक्त वासिनः सदा। भजंति मुक्तये मुदा॥ निरस्य इंद्रियादिकं। प्रयांतिते गतिं स्वकं॥८॥ भावार्थ जो एकान्तवासी पुरुष मुक्ति के लिए, इन्द्रियादि का निग्रह करके (उन्हें विषयों से हटाकर) प्रसन्नतापूर्वक आपको भजते हैं, वे स्वकीय गति को (अपने स्वरूप को) प्राप्त होते हैं॥८॥ तमेकमद्भुतं प्रभुं। निरीहमीश्वरं विभुं॥ जगद्गुरुं च शाश्वतं। तुरीयमेव केवलं॥९॥ भावार्थ उन (आप) को जो एक (अद्वितीय), अद्भुत (मायिक जगत् से विलक्षण), प्रभु (सर्वसमर्थ), इच्छारहित, ईश्वर (सबके स्वामी), व्यापक, जगद्गुरु, सनातन (नित्य), तुरीय (तीनों गुणों से सर्वथा परे) और केवल (अपने स्वरूप में स्थित) हैं॥९॥ भजामि भाव वल्लभं। कुयोगिनां सुदुर्लभं॥ स्वभक्त कल्प पादपं। समं सुसेव्यमन्वहं॥१०॥ भावार्थ (तथा) जो भावप्रिय, कुयोगियों (विषयी पुरुषों) के लिए अत्यन्त दुर्लभ, अपने भक्तों के लिए कल्पवृक्ष (अर्थात्‌ उनकी समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाले), सम (पक्षपातरहित) और सदा सुखपूर्वक सेवन करने योग्य हैं, मैं निरंतर भजता हूँ॥१०॥ अनूप रूप भूपतिं। नतोऽहमुर्विजा पतिं॥ प्रसीद मे नमामि ते। पदाब्ज भक्ति देहि मे॥११॥ भावार्थ हे अनुपम सुंदर! हे पृथ्वीपति! हे जानकीनाथ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। मुझ पर प्रसन्न होइए, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। मुझे अपने चरण कमलों की भक्ति दीजिए॥११॥ पठंति ये स्तवं इदं। नरादरेण ते पदं॥ व्रजंति नात्र संशयं। त्वदीय भक्ति संयुताः॥१२॥ भावार्थ जो मनुष्य इस स्तुति को आदरपूर्वक पढ़ते हैं, वे आपकी भक्ति से युक्त होकर आपके परम पद को प्राप्त होते हैं, इसमें संदेह नहीं॥१२॥

शनिवार, 16 अप्रैल 2022

हनुमत तांडव स्तोत्र / लोकेश्वराख्य भट्ट कृत / स्वर : स्नेहवर्धन शुक्ला

 https://youtu.be/Pxl6PbbHkek 

वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् ।
रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, 
दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम् ।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, 
समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम् ॥१॥
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं 
वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽ-
धिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥२॥
सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, 
भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, 
विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम् ॥३॥
सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, 
कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम् ।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः 
कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः॥४॥
प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, 
फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत् ।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, 
सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम् ॥५॥
नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं 
गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम् ।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं 
विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम् ॥६॥
रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं 
दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम् ।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् 
सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम् ॥७॥
नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महा-
सहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः ।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां 
निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम् ॥८॥
इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः
कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः ।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा
न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह ॥९॥
नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे ।
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥१०॥

सोमवार, 11 अप्रैल 2022

श्रीभद्राचलराममङ्गलम् / श्रीभद्रगिरिरामदासविरचितं / रक्षिता रामजी, अव्यक्ता भट्ट, प्रकृति रघुनाथ एवं श्रीरंजनी बालाजी की प्रस्तुति

https://youtu.be/bunD6Pl65gA

रामचन्द्राय मङ्गलम्
चार नन्हीं बालिकाओं क्रमशः रक्षिता रामजी, अव्यक्ता भट्ट,
प्रकृति रघुनाथ एवं श्रीरंजनी बालाजी की प्रस्तुति।
स्वामी श्री भद्राचलं राम दास विरचित
राग : कुरिंजी

भद्राचलराममङ्गलम्
रामचन्द्राय जनकराजजा मनोहराय
मामकाभीष्टदाय महित मङ्गलम् ॥१॥पल्लवि॥
कोसलेशाय मन्दहासदासपोषणाय
वासवादिविनुतसद्वराय मङ्गलम् ॥२॥
चारुकुंकुमोपेतचन्दनादिचर्चिताय
हारकटकशोभिताय भूरिमङ्गलम् ॥३॥
ललितरत्नकुण्डलाय तुलसीवनमालिकाय
जलजसदृशदेहाय चारुमङ्गलम् ॥४॥
देवकीसुपुत्राय देवदेवोत्तमाय
भावजातगुरुवराय भव्यमङ्गलम् ॥५॥
पुण्डरीकाक्षाय पूर्णचन्द्राननाय
अण्डजातवाहनाय अतुलमङ्गलम् ॥६॥
विमलरूपाय विविधवेदान्तवेद्याय
सुमुखचित्तकामिताय शुभदमङ्गलम् ॥७॥
रामदासाय मृदुलहृदयकमलवासाय
स्वामि भद्रगिरिवराय सर्वमङ्गलम् ॥८॥
॥ इति श्रीभद्रगिरिरामदासविरचितं श्रीभद्राचलराममङ्गलम् ॥

रविवार, 10 अप्रैल 2022

राम प्रतिपल राम हैं.../ कविता / अरुण मिश्र

https://youtu.be/NBdpNp1bu6E
राम प्रतिपल राम हैं...
-अरुण मिश्र 
(मेरे कविता संग्रह 'अंजलि भर भाव के प्रसून' से साभार।)

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

अगर अन्तर्दृष्टि सुन्दर .../ कविता / अरुण मिश्र

https://youtu.be/-XRfEyG4HFw
अगर अन्तर्दृष्टि सुन्दर...
-अरुण मिश्र 

अगर    अंतर्दृष्टि    सुन्दर। 
सृष्टि सुन्दर, सृष्टि सुन्दर।।
                                        हरिण का लावण्य अपना,
                                        ऊँट   का   सौंदर्य   अपना। 
                                        वृक्ष की अपनी हरित छवि,
                                        ठूँठ   का    सौंदर्य   अपना।।
इस    जगत   में    वस्तुएँ -
होती   नहीं   सुंदर-असुंदर।।
                                        सृजन की घड़ियाँ मधुर हैं -
                                        कठिन    पीड़ाएँ     सुलातीं। 
                                        नाश-लीलाएँ     सदा     ही -
                                        नव -सृजन-आशा जगातीं।।
सुःख-दुःख का घोल समरस -
बह  रहा   जीवन   सुनिर्झर।।
                                        ग्राह्य क्या है, त्याज्य क्या है?
                                        यह    विवेकाधीन    प्रतिक्षण। 
                                        सर्वथा    जो       हो     असुंदर,
                                        है   न   ऐसा   एक   भी   कण।
ब्रह्म   के   आलोक   से   है -
दीप्त, प्रति परमाणु भास्वर।। 
                                        शोक   क्या,   आनंद   क्या  है ?
                                        क्या    बुरा,    क्या    है    भला ?
                                        दृश्य-पट,    क्षण-क्षण   बदलते,
                                        प्रकृति      है,      चिर - चंचला।। 
आँकती  जो  दृष्टि  उस पर -
प्रिय-अप्रिय  का  भेद  निर्भर।।

(मेरे कविता संग्रह 'अंजलि भर भाव के प्रसून' से साभार)