शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

जाओ जाओ कन्हैया खेलूँगी नहीं होरी.../ गीतकार : द्वारिकानाथ तिवारी / गायन : चंदन तिवारी

 https://youtu.be/10v4DFU7UN4  


जाओ जाओ कन्हैया 
खेलूंगी नहीं होरी। 
जाओ जाओ कन्हैया 
खेलूंगी नहीं होरी।। 
आज पकड़ी कलइया,
करत बरजोरी।
जाओ जाओ कन्हैया 
खेलूंगी नहीं होरी।। 

चंचल चितवन, बाँके नैना। 
काहे बोलत अट-पट बैना। 
सावँल श्याम, सुघर राधा गोरी। 
जाओ जाओ कन्हैया 
खेलूंगी नहीं होरी।। 

वंशी बजइया, रास रचइया। 
मनिहारिन के वेष बनइया। 
आज पकड़ी गई तोरी-
चोरी, चोरी, चोरी। 
जाओ जाओ कन्हैया 
खेलूंगी नहीं होरी।। 

धानी चुनर मोरी, लहँगा हज़ारी। 
बरजूँ , न माने , मारत पिचकारी। 
ललिता, विशाखा बिरज की छोरी। 
जाओ जाओ कन्हैया 
खेलूंगी नहीं होरी।। 

आज पकड़ी गई तोरी-
चोरी, चोरी, चोरी। 
जाओ जाओ कन्हैया 
खेलूंगी नहीं होरी।। 

गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

हरे फूलों से मथुरा छाय रही.../ गढ़वाली होली / गायन : वीरू रावत एवं साथी

 https://youtu.be/Wwf_X_TG-Us  

हर फूलों से मथुरा छाय रही हर फूलों से मथुरा छाय रही पूरब झरोखे विष्णु जी बैठे लक्ष्मी झूला झूलाय रही हर फूलों......./ पश्चिम झरोखे से भोले जी बैठे गौरा झूला झूलाय रही हर फूलों......./ उत्तर झरोखे से राम जी बैठे सीता झूला झूलाय रही हर फूलों...../ दक्षिण झरोखे से कृष्णा जी बैठे राधा झूला झूलाय रही हर फूलों....।।

बुधवार, 24 अप्रैल 2024

होरी खेलूँगी श्याम संग जाय, सखी री बडे भाग से फागुन आयो री.../ होली के रसिया / श्री घनानंद जी / पुष्टिमार्गीय हवेली संगीत

 https://youtu.be/nIumZ50Bz7Y   

होरी खेलूँगी श्याम संग जाय - घनानंद ग्रंथावली

होरी खेलूँगी श्याम संग जाय,
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री॥ [१]
फागुन आयो…फागुन आयो…फागुन आयो री
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री
वो भिजवे मेरी सुरंग चुनरिया,
मैं भिजवूं वाकी पाग।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री॥ [२]
चोवा चंदन और अरगजा,
रंग की पडत फुहार।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री॥ [३]
लाज निगोडी रहे चाहे जावे,
मेरो हियडो भर्यो अनुराग।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री॥ [४]
आनंद घन जेसो सुघर स्याम सों,
मेरो रहियो भाग सुहाग।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री॥ [५]
-  श्री घनानंद जी / घनानंद ग्रंथावली

हे सखी, बड़े भाग्य से फागुन का यह उत्सव आया है, 
मैं जाकर श्याम के संग होली खेलूंगी। [१]

सखी, बड़े भाग्य से फागुन (होली उत्सव) आया है, 
इसमें श्री कृष्ण सुन्दर रंगों से मेरी चुनरी को भिगो देंगे 
और मैं उनकी पाग को भिगोऊँगी । [२]

इत्र, चन्दन, सुगन्धित उबटन, एवं रंगों की फुहार पड़ रही है, 
सखी, बड़े भाग्य से फागुन (होली उत्सव) आया है। [३]

आज चाहे लाज रहे अथवा जाये मुझे इसकी कोई परवाह नहीं, 
क्योंकि मेरा ह्रदय तो अनुराग से भरा है। सखी, बड़े भाग्य से 
फागुन (होली उत्सव) आया है। [४]

श्री घनानंद जी कहते हैं कि "परमानंद एवं सुंदरता के घर 
श्री कृष्ण से अनंतकाल तक मेरा संबंध ऐसे ही बना रहे। 
सखी, बड़े भाग्य से फागुन (होली उत्सव) आया है।" [५]

रविवार, 21 अप्रैल 2024

मडये में भये हैं बियहवा हो त कोहबर गवन गये.../ अवधी सोहर / पति-पत्नी हास्य-गीत / गीत-संगीत : नितेश उपाध्याय / गायन : अंजू उपाध्याय 'अमृत'

 https://youtu.be/dkDMT6RQ7Pw   


मड़ये में भये हैं वियहवा हो त कोहबर गवन गये हो,
त कोहबर गवन गये हो
मोरी सखियाँ , घुंघटा उठाय पिया झांकें
हो त धनि मोरी सुन्दरि हो
हो त धनि मोरी सुन्दरि हो
मोरी सखियाँ , घुंघटा उठाय पिया झांकें
हो त धनि मोरी सुन्दरि हो

जिनि जाइउ हटिया-बजरिया ,
त बर्तन जिनि माजिउ हो
मोरी धना जिनि किउह राम के रसोइया
चुनरिया धुमिलइहैं हो

के जइहैं हटिया-बजरिया
हो त बर्तन के मजिहैं हो
मोरे पियवा के करिहैं राम के रसोइया
त चुनरिया कैसे बचिहैं हो

मइया जइहें हटिया-बजरिया
मोरी बहिनी बर्तन मजिहें हो
मोरी धना भाभी करिहें राम के रसोइया
चुनरिया तोहरी बचिहें हो

तोहरी माई जे बुढ़ानी, बहिन ससुरैतिन हो
मोरे पियवा
भाभी तोहरी हईं पटिअइतिन
चुनरिया नाहीं बचिहैं हो

माई क करू तुही सेवा
हो बहिन जइहें ससुरे हो
मोरी धाना भाभी के भेजबे नइहरवा
चुनरिया तोहरी बचिहैं हो

सासू के करिबे हम सेवा
ननद जइहें ससुरे हो
हो मोरे पियवा
जेठनी क भेजब्या नइहरवा
हो चुनरिया कैसे बचिहैं हो

हम जाबे हटिया-बजरिया
हो त बरतन हम मजबै हो
मोरी धाना
हम करबै राम के रसोइया
चुनरिया तोहरी बचिहैं हो

गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

राघव पे जनि रंग डारो री राघव पे...

 https://youtu.be/hc5aCV63cmc 

राघव पे जनि रंग डारो री।।राघव पे।।

कोमलगात बयस अति थोरी।
मूरति मधुर निहारो री।।राघव पे।।

सकुचि सभीत छिपे आँचर महँ।
कुछ तो दया विचारो री।।राघव पे।।

विविध शृङ्गार बिरचि साजो हौं।
दृग अंजन न बिगारो री।।राघव पे।।

बरजोरी भावज रघुवर की।
जनि मारो पिचकारी री।।राघव पे।।

'गिरिधर' प्रभु की ओरी हेरी।
होरी खेल सुधारो री।।राघव पे।।

बुधवार, 17 अप्रैल 2024

चहुँ दिस मंगल गान हो रामा, नगर अयोध्या .../ राम जन्म / चैतावरि / रचना : मैथिल प्रशांत / स्वर : रंजना झा

 https://youtu.be/1XZL4ZDCkCk   

चहुँ दिस मंगल गान हो रामा, 
नगर अयोध्या। 
ऐला श्री भगवान हो रामा, 
नगर अयोध्या।।

हुलसित दशरथ, पूर मनोरथ,
भेंटल धन-संतान, हो रामा,
नगर अयोध्या।।

चहुँ दिस मंगल गान हो रामा, 
नगर अयोध्या।।

केलनी तपस्या मातु कोसल्या,
राखल माय क मान हो रामा,
नगर अयोध्या।।

चहुँ दिस मंगल गान हो रामा, 
नगर अयोध्या।।

बनला बालक , जग प्रतिपालक,
अवधपुरी दिये मान,  हो रामा,
नगर अयोध्या।।

चहुँ दिस मंगल गान हो रामा, 
नगर अयोध्या।।
ऐला श्री भगवान हो रामा, 
नगर अयोध्या।।

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

मैं कांच की गुड़िया.../ नवरात्रि भजन / गीत, संगीत एवं स्वर : डॉ. निधि पाण्डेय

https://youtu.be/ct8BwGsfJ4Q 


मैं काँच की गुड़िया तुम्हारी मैया!
राख ले अपनी शरण में मैया। 
काँच की गुड़िया तुम्हारी मैया!!

जग ले जाल खिलौना तोड़ी 
टुकड़े-टुकड़े कर के छोड़ी 
टुकड़े जोड़ सँवार दे मैया !
काँच की गुड़िया तुम्हारी मैया!!



सोमवार, 8 अप्रैल 2024

वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह.../ कविता एवं वाचन : श्री सोम ठाकुर

https://youtu.be/ZZdozrTf_V0  

सोम ठाकुर (जन्म- ५ मार्च, १९३४आगराउत्तर प्रदेश),
मुक्तकब्रजभाषा के छंद और बेमिसाल लोक गीतों के वरिष्ठ एवं लोकप्रिय 
रचनाकार हैं। वे बड़े ही सहज, सरल व संवेदनशील व्यक्तित्व के कवि है। 
इन्होंने 1959 से 1963 तक 'आगरा क़ोलेज', उत्तर प्रदेश में अध्यापन कार्य 
भी किया। वर्ष 1984 में सोम ठाकुर पहले कनाडा, फिर हिन्दी के प्रसार के लिए 
मॉरिसस भेजे गए। बाद में ये अमेरिका चले गए। वापस लौटने पर इन्हें 
'उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान' का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और राज्यमंत्री 
का दर्जा दिया गया। इनके उल्लेखनीय योगदान के लिए इन्हें 2006 में 
'यशभारती सम्मान' और वर्ष 2009 में दुष्यंत कुमार अलंकरण प्रदान किया गया।

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

ज़िंदगी की रंगशाला में मुझे 
रोज़ अभिनय के लिए भेजा गया। 
और कुछ आया न आया, पर मुझे,
दर्द से संवाद करना आ गया।
भावना अपराध से नापी गयी,
यक्ष अभिशापित हुआ, मेरी तरह।। 

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

मैं रहा जब तक, अँधेरे चुप रहे;
रात की साज़िश सभी नाक़ाम थी। 
रोशनी मैंने कमाई थी सदा 
पर विरासत जुगनुओं के नाम थी। 
चाँदनी की राजधानी के लिए,
चाँद निर्वाचित हुआ मेरी तरह।।

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

शूल को मैं, फूल से तौला किया,
सिर्फ़ इतनी सी कमी, मुझमें रही। 
रात की, दिन की, सुबह की, शाम की;
जो कही मैंने कहानी, सच कही।।
सामने ही झूठ का पूजन हुआ,
सत्य अपमानित हुआ मेर तरह।।

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

शब्द के कारागृहों को छोड़ कर, 
अर्थ जब आज़ाद हो कर, आ गया। 
मिल नहीं पायी उसे कोई शरण,
अंत में मेरा तपोवन पा गया। 
बाण बींधे आंसुओं से श्लोक तक,
मौन संवादित हुआ, मेरी तरह।।

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

मैं उठा तो सिंधु बादल हो गया,
मैं चला तो बिजलियाँ गाने लगीं। 
मैं रुका तो रुक गया, पारस पवन,
खुश्बुएं घर लौट कर जाने लगीं। 
गीत होठों पर, दृगों में जागरण,
प्यार परिभाषित हुआ मेरी तरह।।

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

दशरथ क खिलल अंगनवां हो रामा, अइलें ललनवां.../ चैती सोहर / गायन : चंदन तिवारी

 https://youtu.be/ysPBb3Ee2lQ  

दशरथ क खिलल अंगनवां हो रामा,
अइलें ललनवा।।

कोसिला के राम मिललें ललनवां,
सुमितरा के गोदिया लखन बलवनवा।
झूले लगलें सोने के पलंगवा हो रामा,
अइलें ललनवां।।

भरत भुआल अइलें कैकयी के अंचरवा,
एक कोखिया ते भरत शत्रुघन छोकरवा,
गुलज़ार भइलें अंगनवा हो रामा 
अइलें ललनवा।।

गूंजेले भवनवा, गूंज गइल बखरिया, 
अवध में गवाये लागल, झूमर औ कजरिया,
चैता से गूंजेला अंगनवां, हो रामा,
अइलें ललनवा।।

रविवार, 7 अप्रैल 2024

आई गयो फ़ाग सम्भालो रे चुनरिया.../ कुमाउँनी होली / गायन : सुरेश जोशी

 https://youtu.be/v7RRW6f1zJo  


आयी गयो फाग,
कुँजन मा जे मोहन ठाढ़े,
मार रहे देखो भर पिचकरिया।।

राधा मोहन रास रचत हैं,
गोपियन की देखो उड़त चुनरिया।।

कुंकुम बदरी मा रंग फुहारें 
इंद्रधनुष छवि छाई सत रंगियाँ।। 

शनिवार, 6 अप्रैल 2024

ब्रज गोपी खेले होरी.../ गीत : काज़ी नज़रुल इस्लाम / स्वर ; मोहम्मद रफ़ी / नृत्य : प्रीति मिस्त्री

https://youtu.be/aOobHpY_OEM   

Dance cover by Priti Gayen Mistri
होरी रे
ब्रज गोपी खेले होरी
होरी रे

ब्रज गोपी खेले होरी
खेले आनन्द नबघन श्याम साथे।
ब्रज गोपी खेले होरी
होरी रे

ब्रज गोपी खेले होरी
पिरीति–फाग माखा गोरीर सङ्गे
होरि खेले हरि उन्माद रङ्गे।
पिरीति–फाग माखा गोरीर सङ्गे
होरि खेले हरि उन्माद रङ्गे।

बसन्ते ए कोन् किशोर दुरन्त
बसन्ते ए कोन् किशोर दुरन्त
राधारे जिनिते एलो पिच्कारी हाते
ब्रज गोपी खेले होरी
होरी रे

ब्रज गोपी खेले होरी
गोपीनीरा हाने अपाङ्ग खर शर
भ्रुकुटि भङ्ग अनङ्ग आबेशे
जर जर थर थर जर जर थर थर
श्यामेर अङ्ग।

श्यामल तनुते हरित कुञ्जे
अशोक फुटेछे येन पुञ्जे पुञ्जे
श्यामल तनुते हरित कुञ्जे
अशोक फुटेछे येन पुञ्जे पुञ्जे
रङ–पियासि मन भ्रमर गुञ्जे
रङ–पियासि मन भ्रमर गुञ्जे
ढालो आरो ढालो रङ
ढालो आरो ढालो रङ
प्रेम–यमुनाते।।

ब्रज गोपी खेले होरी
होरी रे
ब्रज गोपी खेले होरी
होरी रे

ब्रज गोपी खेले होरी
खेले आनन्द नबघन श्याम साथे
ब्रज गोपी खेले होरी
होरी रे
ब्रज गोपी खेले होरी
होरी रे
ब्रज गोपी खेले होरी

ব্রজ গোপী খেলে হোরী

হোরী রে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
হোরী রে

ব্রজ গোপী খেলে হোরী
খেলে আনন্দ নবঘন শ্যাম সাথে।
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
হোরী রে

ব্রজ গোপী খেলে হোরী
পিরীতি–ফাগ মাখা গোরীর সঙ্গে
হোরি খেলে হরি উন্মাদ রঙ্গে।
পিরীতি–ফাগ মাখা গোরীর সঙ্গে
হোরি খেলে হরি উন্মাদ রঙ্গে।

বসন্তে এ কোন্ কিশোর দুরন্ত
বসন্তে এ কোন্ কিশোর দুরন্ত
রাধারে জিনিতে এলো পিচ্কারী হাতে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
হোরী রে

ব্রজ গোপী খেলে হোরী
গোপীনীরা হানে অপাঙ্গ খর শর
ভ্রুকুটি ভঙ্গ অনঙ্গ আবেশে
জর জর থর থর জর জর থর থর
শ্যামের অঙ্গ।

শ্যামল তনুতে হরিত কুঞ্জে
অশোক ফুটেছে যেন পুঞ্জে পুঞ্জে
শ্যামল তনুতে হরিত কুঞ্জে
অশোক ফুটেছে যেন পুঞ্জে পুঞ্জে
রঙ–পিয়াসি মন ভ্রমর গুঞ্জে
রঙ–পিয়াসি মন ভ্রমর গুঞ্জে
ঢালো আরো ঢালো রঙ
ঢালো আরো ঢালো রঙ
প্রেম–যমুনাতে।।

ব্রজ গোপী খেলে হোরী
হোরী রে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
হোরী রে

ব্রজ গোপী খেলে হোরী
খেলে আনন্দ নবঘন শ্যাম সাথে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
হোরী রে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
হোরী রে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

जीर सन धनी मोर पातर.../ सोहर / गीत : डा. बुद्धिनाथ मिश्र / गायन : रंजना झा

 https://youtu.be/QgVTtUWO4mg  

जीर सन धनी मोर पातरि, चान सन सुन्नरी हे ललना रे फूल सन धनि सुकुमारि बेदन कोना सहतीहि हे। मांगि एलों देवता पितर सँ, पूजी एलों गहवर हे ललना रे निपी एलों देवी चिनवार, भरल आई नव घर हे। दसरथ लेल सुत राम , जनक लेल सिया धिया हे ललना रे जगतक लेल अनमोल, रतन दुनु सिया राम हे। उगले पुरुब दिस सुरुज, चनरमा पछिम दिस हे ललना रे चहु दिस भेल उजियार, भागल दुख कोन दिस हे। धरती सहय जेना बरखा, सहय जेना पाथर हे ललना रे जननी सहय दुख भारी भीजय नोरे आँचर हे। डुमरी के फूल नहि देखल, केरा फरय एक बेर हे ललना रे हरिन जनम नहि देब, बेदन सहय बेर बेर हे।

गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

तुम्हें भूला नहीं हूँ.../ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

 https://youtu.be/-7chY3tsgr4    


मैं बढ़ा ही जा रहा हूँ, 
पर तुम्हें भूला नहीं हूँ।।
चल रहा हूँ, क्योंकि चलने से थकावट दूर होती,
जल रहा हूँ क्योंकि जलने से तमिस्त्रा चूर होती,
गल रहा हूँ क्योंकि हल्का बोझ हो जाता हृदय का,
ढल रहा हूँ क्योंकि ढलकर साथ पा जाता समय का।

चाहता तो था कि रुक लूँ पार्श्व में क्षण-भर तुम्हारे
किन्तु अगणित स्वर बुलाते हैं मुझे बाँहे पसारे,
अनसुनी करना उन्हें भारी प्रवंचन कापुरुषता
मुँह दिखाने योग्य रक्खेगी ना मुझको स्वार्थपरता।
इसलिए ही आज युग की देहली को लाँघ कर मैं-
पथ नया अपना रहा हूँ
पर तुम्हें भूला नहीं हूँ।।

ज्ञात है कब तक टिकेगी यह घड़ी भी संक्रमण की
और जीवन में अमर है भूख तन की, भूख मन की
विश्व-व्यापक-वेदना केवल कहानी ही नहीं है
एक जलता सत्य केवल आँख का पानी नहीं है।

शान्ति कैसी, छा रही वातावरण में जब उदासी
तृप्ति कैसी, रो रही सारी धरा ही आज प्यासी
ध्यान तक विश्राम का पथ पर महान अनर्थ होगा
ऋण न युग का दे सका तो जन्म लेना व्यर्थ होगा।
इसलिए ही आज युग की आग अपने राग में भर-

गीत नूतन गा रहा हूँ, 
पर तुम्हें भूला नहीं हूँ।।

मंगलवार, 2 अप्रैल 2024

तेरी काया नगर का कुण धणी.../ संत कबीर / गायन : शबनम वीरमानी

 https://youtu.be/Z3H7NmiNtnc  


तेरी काया नगर का कुण धणी, मारग में लूटे पांच जणी पांच जनी, पच्चीस जनी, मारग में लूटे पांच जणी आशा तृष्णा नदियां भारी, बह गये संत बड़ा ब्रह्मचारी, हरे हरे जो उबरया जो शरण तुम्हारी, चमक रही है सेलाणी बन में लुट गये मुनीजन नंगा, डस गयी ममता उल्टा टांगा, हरे हरे जाके कान गुरु नहीं लागे, सृंगी ऋषी पर आन पड़ी साधू संत मिल रोके घांटा, साधु चढ़ ग्या उल्टी बाटा, हरे हरे घेर लिया सब औघट घाटा, पार उतारो आप धणी ईन्द्र बिगाड़ी गौतम नारी, कुबजा भई गया कृष्ण मुरारी, हरे हरे राधा रुखमा बिलकति हारी, राम चन्द्र पर आन बणी शंकर लुट गये नेजाधारी, रईयत उनकी कौन बिचारी, हरे हरे भूल रही कर मन की मारी, तीन युग झुक रही तीन जणी साहेब कबीर गुरु दीन्हा हेला, धर्मदास सुनो निज चेला, हरे हरे लंबा मारग पंथ दुहेला, सिमरो सिरजन हार धनी

सोमवार, 1 अप्रैल 2024

होरी खेलत नन्द लाल.../ गायन : रेशमा भट्ट एवं राम्या भट्ट

 https://youtu.be/NMZ_Ij4YP1o  

Composition: Pandit Balwant Rai Bhatt

होरी..होरी..होरी खेलत नन्दलाल। 

चन्दन वदन कुमकुम केसर 
उड़ावत भर..भर..भर गुलाल।।
 
होरी..होरी..होरी खेलत नन्दलाल।।

मच्यो शोर, बज्यो घोर, 
चहुँ ओर विविध बाजने बाजे। 
चंचल मधुर सुरन वरण वेद बाजे ;
अणु-अणु भावरंग राजे।।  

होरी..होरी..होरी खेलत नन्दलाल।।

होरी..होरी..होरी खेलत नन्दलाल।।
खेलत नन्दलाल। 
खेलत नन्दलाल।
खेलत नन्दलाल।।

शुक्रवार, 29 मार्च 2024

मैं गीत बेचकर घर आया.../ भारत भूषण

https://youtu.be/XYhXR7Hl3h0  

भारत भूषण (८ जुलाई १९२९ - १७ दिसम्बर २०११) हिन्दी के कवि एवं सुकुमार गीतकार थे।
भारत भूषण का जन्म उत्तरप्रदेश के मेरठ में हुआ था। इन्होंने हिन्दी में स्नातकोत्तर शिक्षा 
अर्जित की और प्राध्यापन को जीविकावृत्ति के रूप में अपनाया। एक शिक्षक के तौर पर 
कैरियर की शुरुआत करने वाले भारत भूषण बाद में काव्य की दुनिया में आए और छा गए। 
उनकी सैकडों कविताओं व गीतों में सबसे चर्चित 'राम की जलसमाधि' रही। उन्होंने तीन काव्य 
संग्रह लिखे। पहला सागर के सीप वर्ष 1958 में, दूसरा ये असंगति वर्ष 1993 में और तीसरा 
मेरे चुनिंदा गीत वर्ष 2008 में प्रकाशित हुआ। वर्ष 1946 से मंच से जुडने वाले भारत भूषण 
मृत्यु से कुछ महीनों पूर्व तक मंच से गीतों की रसधार बहाते रहे। उन्होंने महादेवी वर्मा
रामधारी सिंह 'दिनकर' जैसे कवि-साहित्यकारों के साथ भी मंच साझा किया। दिल्ली में 
२७ फ़रवरी २०११ को आयोजित कवि सम्मेलन में उन्होंने अंतिम बार भाग लिया था।

मैं गीत बेचकर घर आया
सीमेंट ईंट लोहा लाया
कवि-मन माया ने भरमाया
हे ईश्वर मुझे क्षमा करना !

जनमा था आँसू गाने को
खोया झूठी मुसकानों में
भीतर का सुख खोजता फिरा
बाहर से सजी दुकानों में
मैं अश्रु बेचकर घर आया
प्लास्टिक के गुलदस्ते लाया
अपनी आत्मा को बहकाया
हे ईश्वर मुझे क्षमा करना !

शब्दों-शब्दों सौन्दर्य गढ़ा
नगरों-नगरों नीलाम किया
संतों की सांगत छोड़ किसी
वेश्या के घर विश्राम किया
मैं प्यार बेचकर घर आया
चुटकी-भर सुविधाएँ लाया
क्या करना था क्या कर आया
हे ईश्वर मुझे क्षमा करना!

सारे दागों को ढके रहा
छंदों की शिल्पित चादर से
गोरे कागज़ काले करता
टेढ़े-मेढ़े हस्ताक्षर से
मैं शर्म बेचकर घर आया
गहरे रंग का चश्मा लाया
दर्पण पर परदा लटकाया
हे ईश्वर मुझे क्षमा करना !

सोमवार, 25 मार्च 2024

होली खेल मना रे फागुन के दिन चार रे !.../ मीरा बाई / गायन : मेघा मिश्रा एवं अन्य

 https://youtu.be/DMgshSuFGvQ 

होली खेल मना रे फागुन के दिन चार रे

बिन करताल पखावज बाजै अणहदकी झणकार रे।
बिन सुर राग छतीसूं गावै रोम रोम रणकार रे॥

सील संतोखकी केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार रे।
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे॥

घटके सब पट खोल दिये हैं लोकलाज सब डार रे।
मीराके प्रभु गिरधर नागर चरणकंवल बलिहार रे॥