सोमवार, 21 अक्तूबर 2024

हर हर हर महादेव महेश्वर.../ गायन : स्नीति मिश्रा

https://youtu.be/ik0zFmy-Dd8  


हर हर हर महादेव महेश्वर 
महाजोगी जोगेश्वर शंकर 
गिरिजापति परमेश्वर शुभकर 
हर हर हर महादेव महेश्वर 

जटाजूट पर शोभत गंगा 
नीलकंठ भूषित भुजंगा
उमा सहित षडनायक कार्तिक 
सुर नर वन्दित रुद्रगण सेवित 

हर हर हर महादेव महेश्वर

रविवार, 20 अक्तूबर 2024

भज गोविन्दम् .../ आदि शंकराचार्य / गायन : सिवस्री स्कन्द प्रसाद

https://youtu.be/2D06mgUI4jY 


भज गोविन्दं भज गोविन्दं,
गोविन्दं भज मूढ़मते।
संप्राप्ते सन्निहिते काले,
न हि न हि रक्षति डुकृञ् करणे॥१॥

हे मोह से ग्रसित बुद्धि वाले मित्र, गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो क्योंकि मृत्यु के समय व्याकरण के नियम याद रखने से आपकी रक्षा नहीं हो सकती है॥१॥

मूढ़ जहीहि धनागमतृष्णाम्,
कुरु सद्बुद्धिमं मनसि वितृष्णाम्।
यल्लभसे निजकर्मोपात्तम्,
वित्तं तेन विनोदय चित्तं॥२॥

हे मोहित बुद्धि! धन एकत्र करने के लोभ को त्यागो। अपने मन से इन समस्त कामनाओं का त्याग करो। सत्यता के पथ का अनुसरण करो, अपने परिश्रम से जो धन प्राप्त हो उससे ही अपने मन को प्रसन्न रखो॥२॥

नारीस्तनभरनाभीदेशम्,
दृष्ट्वा मागा मोहावेशम्।
एतन्मान्सवसादिविकारम्,
मनसि विचिन्तय वारं वारम्॥३॥

स्त्री शरीर पर मोहित होकर आसक्त मत हो। अपने मन में निरंतर स्मरण करो कि ये मांस-वसा आदि के विकार के अतिरिक्त कुछ और नहीं हैं॥३॥

नलिनीदलगतजलमतितरलम्, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्।
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं,
लोक शोकहतं च समस्तम्॥४॥

जीवन कमल-पत्र पर पड़ी हुई पानी की बूंदों के समान अनिश्चित एवं अल्प (क्षणभंगुर) है। यह समझ लो कि समस्त विश्व रोग, अहंकार और दु:ख में डूबा हुआ है॥४॥

यावद्वित्तोपार्जनसक्त:,
तावन्निजपरिवारो रक्तः।
पश्चाज्जीवति जर्जरदेहे,
वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे॥५॥

जब तक व्यक्ति धनोपार्जन में समर्थ है, तब तक परिवार में सभी उसके प्रति स्नेह प्रदर्शित करते हैं परन्तु अशक्त हो जाने पर उसे सामान्य बातचीत में भी नहीं पूछा जाता है॥५॥

यावत्पवनो निवसति देहे,
तावत् पृच्छति कुशलं गेहे।
गतवति वायौ देहापाये,
भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये॥६॥

जब तक शरीर में प्राण रहते हैं तब तक ही लोग कुशल पूछते हैं। शरीर से प्राण वायु के निकलते ही पत्नी भी उस शरीर से डरती है॥६॥

बालस्तावत् क्रीडासक्तः,
तरुणस्तावत् तरुणीसक्तः।
वृद्धस्तावच्चिन्तासक्तः,
परे ब्रह्मणि कोऽपि न सक्तः॥७॥

बचपन में खेल में रूचि होती है , युवावस्था में युवा स्त्री के प्रति आकर्षण होता है, वृद्धावस्था में चिंताओं से घिरे रहते हैं पर प्रभु से कोई प्रेम नहीं करता है॥७॥

का ते कांता कस्ते पुत्रः,
संसारोऽयमतीव विचित्रः।
कस्य त्वं वा कुत अयातः,
तत्त्वं चिन्तय तदिह भ्रातः॥८॥

कौन तुम्हारी पत्नी है, कौन तुम्हारा पुत्र है, ये संसार अत्यंत विचित्र है, तुम कौन हो, कहाँ से आये हो, बन्धु ! इस बात पर तो पहले विचार कर लो॥८॥

सत्संगत्वे निस्संगत्वं,
निस्संगत्वे निर्मोहत्वं।
निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं
निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः॥९॥

सत्संग से वैराग्य, वैराग्य से विवेक, विवेक से स्थिर तत्त्वज्ञान और तत्त्वज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है॥९॥

वयसि गते कः कामविकारः,
शुष्के नीरे कः कासारः।
क्षीणे वित्ते कः परिवारः,
ज्ञाते तत्त्वे कः संसारः॥१०॥

आयु बीत जाने के बाद काम भाव नहीं रहता, पानी सूख जाने पर तालाब नहीं रहता, धन चले जाने पर परिवार नहीं रहता और तत्त्व ज्ञान होने के बाद संसार नहीं रहता॥१०॥

मा कुरु धनजनयौवनगर्वं,
हरति निमेषात्कालः सर्वं।
मायामयमिदमखिलम् हित्वा,
ब्रह्मपदम् त्वं प्रविश विदित्वा॥११॥

धन, शक्ति और यौवन पर गर्व मत करो, समय क्षण भर में इनको नष्ट कर देता है| इस विश्व को माया से घिरा हुआ जान कर तुम ब्रह्म पद में प्रवेश करो॥११॥

दिनयामिन्यौ सायं प्रातः,
शिशिरवसन्तौ पुनरायातः।
कालः क्रीडति गच्छत्यायुस्तदपि
न मुन्च्त्याशावायुः॥१२॥

दिन और रात, शाम और सुबह, सर्दी और बसंत बार-बार आते-जाते रहते है काल की इस क्रीडा के साथ जीवन नष्ट होता रहता है पर इच्छाओ का अंत कभी नहींहोता है॥१२॥

द्वादशमंजरिकाभिरशेषः
कथितो वैयाकरणस्यैषः।
उपदेशोऽभूद्विद्यानिपुणैः, श्रीमच्छंकरभगवच्चरणैः॥१२अ॥

बारह गीतों का ये पुष्पहार, सर्वज्ञ प्रभुपाद श्री शंकराचार्य द्वारा एक वैयाकरण को प्रदान किया गया॥१२अ॥

काते कान्ता धन गतचिन्ता,
वातुल किं तव नास्ति नियन्ता।
त्रिजगति सज्जनसं गतिरैका,
भवति भवार्णवतरणे नौका॥१३॥

तुम्हें पत्नी और धन की इतनी चिंता क्यों है, क्या उनका कोई नियंत्रक नहीं है| तीनों लोकों में केवल सज्जनों का साथ ही इस भवसागर से पार जाने की नौका है॥१३॥

जटिलो मुण्डी लुञ्छितकेशः, काषायाम्बरबहुकृतवेषः।
पश्यन्नपि च न पश्यति मूढः,
उदरनिमित्तं बहुकृतवेषः॥१४॥

बड़ी जटाएं, केश रहित सिर, बिखरे बाल , काषाय (भगवा) वस्त्र और भांति भांति के वेश ये सब अपना पेट भरने के लिए ही धारण किये जाते हैं, अरे मोहित मनुष्य तुम इसको देख कर भी क्यों नहीं देख पाते हो॥१४॥

अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं,
दशनविहीनं जतं तुण्डम्।
वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं,
तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम्॥१५॥

क्षीण अंगों, पके हुए बालों, दांतों से रहित मुख और हाथ में दंड लेकर चलने वाला वृद्ध भी आशा-पाश से बंधा रहता है॥१५॥

अग्रे वह्निः पृष्ठेभानुः,
रात्रौ चुबुकसमर्पितजानुः।
करतलभिक्षस्तरुतलवासः,
तदपि न मुञ्चत्याशापाशः॥१६॥

सूर्यास्त के बाद, रात्रि में आग जला कर और घुटनों में सर छिपाकर सर्दी बचाने वाला, हाथ में भिक्षा का अन्न खाने वाला, पेड़ के नीचे रहने वाला भी अपनी इच्छाओं के बंधन को छोड़ नहीं पाता है॥१६॥

कुरुते गङ्गासागरगमनं,
व्रतपरिपालनमथवा दानम्।
ज्ञानविहिनः सर्वमतेन,
मुक्तिं न भजति जन्मशतेन॥१७॥

किसी भी धर्म के अनुसार ज्ञान रहित रह कर गंगासागर जाने से, व्रत रखने से और दान देने से सौ जन्मों में भी मुक्ति नहीं प्राप्त हो सकती है॥१७॥

सुर मंदिर तरु मूल निवासः,
शय्या भूतल मजिनं वासः।
सर्व परिग्रह भोग त्यागः,
कस्य सुखं न करोति विरागः॥१८॥

देव मंदिर या पेड़ के नीचे निवास, पृथ्वी जैसी शय्या, अकेले ही रहने वाले, सभी संग्रहों और सुखों का त्याग करने वाले वैराग्य से किसको आनंद की प्राप्ति नहीं होगी॥१८॥

योगरतो वाभोगरतोवा,
सङ्गरतो वा सङ्गवीहिनः।
यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं,
नन्दति नन्दति नन्दत्येव॥१९॥

कोई योग में लगा हो या भोग में, संग में आसक्त हो या निसंग हो, पर जिसका मन ब्रह्म में लगा है वो ही आनंद करता है, आनंद ही करता है॥१९॥

भगवद् गीता किञ्चिदधीता,
गङ्गा जललव कणिकापीता।
सकृदपि येन मुरारि समर्चा,
क्रियते तस्य यमेन न चर्चा॥२०॥

जिन्होंने भगवदगीता का थोडा सा भी अध्ययन किया है, भक्ति रूपी गंगा जल का कण भर भी पिया है, भगवान कृष्ण की एक बार भी समुचित प्रकार से पूजा की है, यम के द्वारा उनकी चर्चा नहीं की जाती है॥२०॥

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,
पुनरपि जननी जठरे शयनम्।
इह संसारे बहुदुस्तारे,
कृपयाऽपारे पाहि मुरारे॥२१॥

बार-बार जन्म, बार-बार मृत्यु, बार-बार माँ के गर्भ में शयन, इस संसार से पार जा पाना बहुत कठिन है, हे कृष्ण कृपा करके मेरी इससे रक्षा करें॥२१॥

रथ्या चर्पट विरचित कन्थः,
पुण्यापुण्य विवर्जित पन्थः।
योगी योगनियोजित चित्तो,
रमते बालोन्मत्तवदेव॥२२॥

रथ के नीचे आने से फटे हुए कपडे पहनने वाले, पुण्य और पाप से रहित पथ पर चलने वाले, योग में अपने चित्त को लगाने वाले योगी, बालक के समान आनंद में रहते हैं॥२२॥

कस्त्वं कोऽहं कुत आयातः,
का मे जननी को मे तातः।
इति परिभावय सर्वमसारम्,
विश्वं त्यक्त्वा स्वप्न विचारम्॥२३॥

तुम कौन हो, मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, मेरी माँ कौन है, मेरा पिता कौन है? सब प्रकार से इस विश्व को असार समझ कर इसको एक स्वप्न के समान त्याग दो॥२३॥

त्वयि मयि चान्यत्रैको विष्णुः,
व्यर्थं कुप्यसि मय्यसहिष्णुः।
भव समचित्तः सर्वत्र त्वं,
वाञ्छस्यचिराद्यदि विष्णुत्वम्॥२४॥

तुममें, मुझमें और अन्यत्र भी सर्वव्यापक विष्णु ही हैं, तुम व्यर्थ ही क्रोध करते हो, यदि तुम शाश्वत विष्णु पद को प्राप्त करना चाहते हो तो सर्वत्र समान चित्त वाले हो जाओ॥२४॥

शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ,
मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ।
सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं,
सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम्॥२५॥

शत्रु, मित्र, पुत्र, बन्धु-बांधवों से प्रेम और द्वेष मत करो, सबमें अपने आप को ही देखो, इस प्रकार सर्वत्र ही भेद रूपी अज्ञान को त्याग दो॥२५॥

कामं क्रोधं लोभं मोहं,
त्यक्त्वाऽत्मानं भावय कोऽहम्।
आत्मज्ञान विहीना मूढाः,
ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः॥२६॥

काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ कर, स्वयं में स्थित होकर विचार करो कि मैं कौन हूँ, जो आत्म- ज्ञान से रहित मोहित व्यक्ति हैं वो बार-बार छिपे हुए इस संसार रूपी नरक में पड़ते हैं॥२६॥

गेयं गीता नाम सहस्रं,
ध्येयं श्रीपति रूपमजस्रम्।
नेयं सज्जन सङ्गे चित्तं,
देयं दीनजनाय च वित्तम्॥२७॥

भगवान विष्णु के सहस्त्र नामों को गाते हुए उनके सुन्दर रूप का अनवरत ध्यान करो, सज्जनों के संग में अपने मन को लगाओ और गरीबों की अपने धन से सेवा करो॥२७॥

सुखतः क्रियते रामाभोगः,
पश्चाद्धन्त शरीरे रोगः।
यद्यपि लोके मरणं शरणं,
तदपि न मुञ्चति पापाचरणम्॥२८॥

सुख के लिए लोग आनंद-भोग करते हैं जिसके बाद इस शरीर में रोग हो जाते हैं। यद्यपि इस पृथ्वी पर सबका मरण सुनिश्चित है फिर भी लोग पापमय आचरण को नहीं छोड़ते हैं॥२८॥

अर्थंमनर्थम् भावय नित्यं,
नास्ति ततः सुखलेशः सत्यम्।
पुत्रादपि धनभजाम् भीतिः,
सर्वत्रैषा विहिता रीतिः॥२९॥

धन अकल्याणकारी है और इससे जरा सा भी सुख नहीं मिल सकता है, ऐसा विचार प्रतिदिन करना चाहिए | धनवान व्यक्ति तो अपने पुत्रों से भी डरते हैं ऐसा सबको पता ही है॥२९॥

प्राणायामं प्रत्याहारं,
नित्यानित्य विवेकविचारम्।
जाप्यसमेत समाधिविधानं,
कुर्ववधानं महदवधानम्॥३०॥

प्राणायाम, उचित आहार, नित्य इस संसार की अनित्यता का विवेक पूर्वक विचार करो, प्रेम से प्रभु-नाम का जाप करते हुए समाधि में ध्यान दो, बहुत ध्यान दो॥३०॥

गुरुचरणाम्बुज निर्भर भक्तः, संसारादचिराद्भव मुक्तः।
सेन्द्रियमानस नियमादेवं,
द्रक्ष्यसि निज हृदयस्थं देवम्॥३१॥

गुरु के चरण कमलों का ही आश्रय मानने वाले भक्त बनकर सदैव के लिए इस संसार में आवागमन से मुक्त हो जाओ, इस प्रकार मन एवं इन्द्रियों का निग्रह कर अपने हृदय में विराजमान प्रभु के दर्शन करो॥३१॥

मूढः कश्चन वैयाकरणो,
डुकृञ्करणाध्ययन धुरिणः।
श्रीमच्छम्कर भगवच्छिष्यै,
बोधित आसिच्छोधितकरणः॥३२॥

इस प्रकार व्याकरण के नियमों को कंठस्थ करते हुए किसी मोहित वैयाकरण के माध्यम से बुद्धिमान श्री भगवान शंकर के शिष्य बोध प्राप्त करने के लिए प्रेरित किये गए॥३२॥

 भजगोविन्दं भजगोविन्दं,
गोविन्दं भजमूढमते।
नामस्मरणादन्यमुपायं,
नहि पश्यामो भवतरणे॥३३॥

गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो क्योंकि भगवान के नाम जप के अतिरिक्त इस भव-सागर से पार जाने का अन्य कोई मार्ग नहीं है॥३३॥


पायल में गीत हैं छम-छम के.../ क़तील शिफ़ाई / गायन : वहादत रमीज़

https://youtu.be/V3qKAinoSbo 


पाकिस्तानी फिल्म 'गुमनाम' (१९५४) में 
इक़बाल बानो का गाया गीत 

पायल मे गीत है छम छम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के

तू पिया से मिल कर आई है
बस आज से नींद परायी है
तू पिया से मिल कर आई है
बस आज से नींद परायी है
देखेगी सपने बालम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के

मैंने भी किया था प्यार कभी
मैंने भी किया था प्यार कभी
आई थी यही झनकार कभी
अब गीत मैं गाती हूँ गम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के

ये जीवन भर का रोग सखी
तोहे पगली कहेंगे लोग सखी
ये जीवन भर का रोग सखी
तोहे पगली कहेंगे लोग सखी

याद आएगे वादे बालम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2024

ज़िन्दगी रोज़ तेरा दर्द जिया है मैंने.../ शायर : हसीब सोज़ / गायन : डा. अनिल शर्मा

https://youtu.be/L3e10EUoJCc

ज़िन्दगी रोज़ तेरा दर्द जिया है मैंने 
ज़ह्र तो कुछ भी नहीं है जो पिया है मैंने

तुम अगर भूल गए हो तो कोई बात नहीं
वर्ना दामन तो तुम्हारा भी सिया है मैंने

कोई खुद आ के रुका है तो रुका है वर्ना
जाने वालों को कहाँ हाथ दिया है मैंने

मुझसे इस बार कोई चूक नहीं होने की
कितना भारी है उसे तोल लिया है मैंने

कद्दे-आदम तेरी तस्वीर लगी है घर में
घर को तरक़ीब से आबाद किया है मैंने

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2024

इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया.../ सुदर्शन फ़ाकिर / स्वर : प्राची गिरीश



इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया

आप कहते थे कि रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आप की इस बात ने रोने न दिया

रोने वालों से कहो उन का भी रोना रो लें
जिन को मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया

सोमवार, 14 अक्तूबर 2024

संगीत साम्राज्य संचारिणी.../ सरस्वती स्तुति / स्वर : श्वेता मोहन

https://youtu.be/mgaQSPFdGHA 

This is a krithi on goddess Saraswati of Sringeri. She is said to wander in the kingdom of music and the beautiful town of Sringeri. She is known to have lived in the lands of pandyas in Kerala and she is well praised as the one who resides in the center of sri chakra, a mystical geometric pattern of interlocking triangles where the center is known for creation and force. She certainly is in the heart of Adi SankarAcharya of KAlaDi and she has the full trust of lord Siva, the lords of the eight directions and Brahma. She is living in the form of all the musical notes, shines with beautiful hibiscus flowers and other jewels and dwells in the melodious tune of Mohanakalyani.

taaLam: aadi
Composer: Bangalore RAmamUrti
Language: Sanskrit


पल्लवी

संगीत साम्राज्य संचारिणी
श्रंगार श्रंगेरीपुर वासिनी

अनुपल्लवी


उन्नत पांड्या केरल वासिनी
सन्नुत श्रीचक्र मध्य निवासिनी
कलादी शंकर हृदय निवासिनी
कालदिक्पालक ब्रह्म विश्वासिनी


चरणं


गांधार पंचम धैवत रूपिणी
निषाद मध्यम सप्त स्वरूपिणी
मन्दार कुसुम मणिमय तेजो माधुर्य 
मोहनकल्याणी स्वरूपिणी


Meaning :

By Aparna from Neccheli (original article here, reproduced with permission)

Carnatic Compositions - The Essence and Embodiment
-Aparna Munukutla Gunupudi

sangIta sAmrAjya - The kingdom of music
sancAriNi - wanders in
sringAra - beautiful
sringEri pura - town of Sringeri
vAsini - resides in

unnata - high
pAnDya - pandya land
kEraLa - the state of Kerala
vAsini - resident
sannuta - well praised
srI chakra Madhya - in the center of sri chakra
nivAsini - resides in
kAlaDi - the town of KAladi (birthplace of Adi SankarAcharya)
sankara hrudaya - in the heart of Sankara
nivAsini - lives in
kAla - the lord Sankara, the time keeper
dikpAlaka - the lords of the eight directions
brahma - the lord Brahma
visvAsini - trusts you

gAndhAra - musical note gandhara
panchama - musical note panchama
dhaivata - musical note dhaivata
rUpiNi - in the form
niSAda - Musical note nishada
Madhyama -musical note madhyama
sapta swara rUpiNi - took the form of the seven musical notes
mandAra kusuma - the flower hibiscus
maNimaya - jeweled in abundance
tEjO - shining
mAdhurya - melodeous
mOhanakalyANi - mohana Kalyani
svarUpiNi - dwells

आरति बॆळगिरे अष्टरूपिणिगॆ.../ रघुलीला स्कूल ऑफ़ म्यूजिक प्रस्तुति

https://youtu.be/NJGX5799d_4  


आरति बॆळगिरे अष्टरूपिणिगॆ 
इष्टदायिनिगॆ कष्ट कळॆव तायि आदिशक्तिगॆ ।।

नवरात्रि वेळॆयल्लि नवविधदि पूजिसुवल्लि 
करुनाड पॊरॆव तायि भुवनेश्वरिगॆ ।।

महिषन संहरिसिद चामुंडिगॆ 
मलॆनाड हॊरनाड अन्नपूर्णॆगॆ 
शृंगेरियल्लि मॆरॆव शारदांबॆगॆ 
शिरसि सिरिदेवि मारिकांबॆगॆ ।।

कॊल्लूर महामातॆ मूकांबिकॆ निनगॆ 
विष्णुविन प्रियवनितॆ श्रीलक्ष्मिये निनगॆ 
बादामि बनमातॆ बनशंकरि निनगॆ 
कटीलु क्षेत्रद दुर्गापरमेश्वरिगॆ ।।


कन्नड़ लिपि में 

ಆರತಿ ಬೆಳಗಿರೇ ಅಷ್ಟರೂಪಿಣಿಗೆ
ಇಷ್ಟದಾಯಿನಿಗೆ ಕಷ್ಟ ಕಳೆವ ತಾಯಿ ಆದಿಶಕ್ತಿಗೆ ||

ನವರಾತ್ರಿ ವೇಳೆಯಲ್ಲಿ ನವವಿಧದಿ ಪೂಜಿಸುವಲ್ಲಿ
ಕರುನಾಡ ಪೊರೆವ ತಾಯಿ ಭುವನೇಶ್ವರಿಗೆ ||

ಮಹಿಷನ ಸಂಹರಿಸಿದ ಚಾಮುಂಡಿಗೆ
ಮಲೆನಾಡ ಹೊರನಾಡ ಅನ್ನಪೂರ್ಣೆಗೆ
ಶೃಂಗೇರಿಯಲ್ಲಿ ಮೆರೆವ ಶಾರದಾಂಬೆಗೆ
ಶಿರಸಿ ಸಿರಿದೇವಿ ಮಾರಿಕಾಂಬೆಗೆ ||

ಕೊಲ್ಲೂರ ಮಹಾಮಾತೆ ಮೂಕಾಂಬಿಕೆ ನಿನಗೆ
ವಿಷ್ಣುವಿನ ಪ್ರಿಯವನಿತೆ ಶ್ರೀಲಕ್ಷ್ಮಿಯೇ ನಿನಗೆ
ಬಾದಾಮಿ ಬನಮಾತೆ ಬನಶಂಕರಿ ನಿನಗೆ
ಕಟೀಲು ಕ್ಷೇತ್ರದ ದುರ್ಗಾಪರಮೇಶ್ವರಿಗೆ ||

गूगल अनुवाद 

प्रातःकाल की आरती अष्टरूपिणी 
इष्टदायी माँ आदिशक्ति की ।।

नवरात्रि में नवविधाधि पूजित 
करुणादा पोरेवा माँ भुबनेश्वरि की ।।

चामुंडी की जिसने महिष को मारा
पर्वतों के पार अन्नपूर्णा तक 
श्रृंगेरी में मेरेवा शरदम्बे की 
शिरासी सिरीदेवी से मरिकंबे तक ।।

आपकी कोल्लूर महामथे मूकाम्बिके
विष्णु प्रिया श्री लक्ष्मी आपकी आरती  
आपकी बादामी बनामथे बनशंकरी
कटिलु क्षेत्र की दुर्गा परमेश्वरि की आरती ।।