रविवार, 21 अप्रैल 2024

मडये में भये हैं बियहवा हो त कोहबर गवन गये.../ अवधी सोहर / पति-पत्नी हास्य-गीत / गीत-संगीत : नितेश उपाध्याय / गायन : अंजू उपाध्याय 'अमृत'

 https://youtu.be/dkDMT6RQ7Pw   


मड़ये में भये हैं वियहवा हो त कोहबर गवन गये हो,
त कोहबर गवन गये हो
मोरी सखियाँ , घुंघटा उठाय पिया झांकें
हो त धनि मोरी सुन्दरि हो
हो त धनि मोरी सुन्दरि हो
मोरी सखियाँ , घुंघटा उठाय पिया झांकें
हो त धनि मोरी सुन्दरि हो

जिनि जाइउ हटिया-बजरिया ,
त बर्तन जिनि माजिउ हो
मोरी धना जिनि किउह राम के रसोइया
चुनरिया धुमिलइहैं हो

के जइहैं हटिया-बजरिया
हो त बर्तन के मजिहैं हो
मोरे पियवा के करिहैं राम के रसोइया
त चुनरिया कैसे बचिहैं हो

मइया जइहें हटिया-बजरिया
मोरी बहिनी बर्तन मजिहें हो
मोरी धना भाभी करिहें राम के रसोइया
चुनरिया तोहरी बचिहें हो

तोहरी माई जे बुढ़ानी, बहिन ससुरैतिन हो
मोरे पियवा
भाभी तोहरी हईं पटिअइतिन
चुनरिया नाहीं बचिहैं हो

माई क करू तुही सेवा
हो बहिन जइहें ससुरे हो
मोरी धाना भाभी के भेजबे नइहरवा
चुनरिया तोहरी बचिहैं हो

सासू के करिबे हम सेवा
ननद जइहें ससुरे हो
हो मोरे पियवा
जेठनी क भेजब्या नइहरवा
हो चुनरिया कैसे बचिहैं हो

हम जाबे हटिया-बजरिया
हो त बरतन हम मजबै हो
मोरी धाना
हम करबै राम के रसोइया
चुनरिया तोहरी बचिहैं हो

गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

राघव पे जनि रंग डारो री राघव पे...

 https://youtu.be/hc5aCV63cmc 

राघव पे जनि रंग डारो री।।राघव पे।।

कोमलगात बयस अति थोरी।
मूरति मधुर निहारो री।।राघव पे।।

सकुचि सभीत छिपे आँचर महँ।
कुछ तो दया विचारो री।।राघव पे।।

विविध शृङ्गार बिरचि साजो हौं।
दृग अंजन न बिगारो री।।राघव पे।।

बरजोरी भावज रघुवर की।
जनि मारो पिचकारी री।।राघव पे।।

'गिरिधर' प्रभु की ओरी हेरी।
होरी खेल सुधारो री।।राघव पे।।

बुधवार, 17 अप्रैल 2024

चहुँ दिस मंगल गान हो रामा, नगर अयोध्या .../ राम जन्म / चैतावरि / रचना : मैथिल प्रशांत / स्वर : रंजना झा

 https://youtu.be/1XZL4ZDCkCk   

चहुँ दिस मंगल गान हो रामा, 
नगर अयोध्या। 
ऐला श्री भगवान हो रामा, 
नगर अयोध्या।।

हुलसित दशरथ, पूर मनोरथ,
भेंटल धन-संतान, हो रामा,
नगर अयोध्या।।

चहुँ दिस मंगल गान हो रामा, 
नगर अयोध्या।।

केलनी तपस्या मातु कोसल्या,
राखल माय क मान हो रामा,
नगर अयोध्या।।

चहुँ दिस मंगल गान हो रामा, 
नगर अयोध्या।।

बनला बालक , जग प्रतिपालक,
अवधपुरी दिये मान,  हो रामा,
नगर अयोध्या।।

चहुँ दिस मंगल गान हो रामा, 
नगर अयोध्या।।
ऐला श्री भगवान हो रामा, 
नगर अयोध्या।।

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

मैं कांच की गुड़िया.../ नवरात्रि भजन / गीत, संगीत एवं स्वर : डॉ. निधि पाण्डेय

https://youtu.be/ct8BwGsfJ4Q 


मैं काँच की गुड़िया तुम्हारी मैया!
राख ले अपनी शरण में मैया। 
काँच की गुड़िया तुम्हारी मैया!!

जग ले जाल खिलौना तोड़ी 
टुकड़े-टुकड़े कर के छोड़ी 
टुकड़े जोड़ सँवार दे मैया !
काँच की गुड़िया तुम्हारी मैया!!



सोमवार, 8 अप्रैल 2024

वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह.../ कविता एवं वाचन : श्री सोम ठाकुर

https://youtu.be/ZZdozrTf_V0  

सोम ठाकुर (जन्म- ५ मार्च, १९३४आगराउत्तर प्रदेश),
मुक्तकब्रजभाषा के छंद और बेमिसाल लोक गीतों के वरिष्ठ एवं लोकप्रिय 
रचनाकार हैं। वे बड़े ही सहज, सरल व संवेदनशील व्यक्तित्व के कवि है। 
इन्होंने 1959 से 1963 तक 'आगरा क़ोलेज', उत्तर प्रदेश में अध्यापन कार्य 
भी किया। वर्ष 1984 में सोम ठाकुर पहले कनाडा, फिर हिन्दी के प्रसार के लिए 
मॉरिसस भेजे गए। बाद में ये अमेरिका चले गए। वापस लौटने पर इन्हें 
'उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान' का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और राज्यमंत्री 
का दर्जा दिया गया। इनके उल्लेखनीय योगदान के लिए इन्हें 2006 में 
'यशभारती सम्मान' और वर्ष 2009 में दुष्यंत कुमार अलंकरण प्रदान किया गया।

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

ज़िंदगी की रंगशाला में मुझे 
रोज़ अभिनय के लिए भेजा गया। 
और कुछ आया न आया, पर मुझे,
दर्द से संवाद करना आ गया।
भावना अपराध से नापी गयी,
यक्ष अभिशापित हुआ, मेरी तरह।। 

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

मैं रहा जब तक, अँधेरे चुप रहे;
रात की साज़िश सभी नाक़ाम थी। 
रोशनी मैंने कमाई थी सदा 
पर विरासत जुगनुओं के नाम थी। 
चाँदनी की राजधानी के लिए,
चाँद निर्वाचित हुआ मेरी तरह।।

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

शूल को मैं, फूल से तौला किया,
सिर्फ़ इतनी सी कमी, मुझमें रही। 
रात की, दिन की, सुबह की, शाम की;
जो कही मैंने कहानी, सच कही।।
सामने ही झूठ का पूजन हुआ,
सत्य अपमानित हुआ मेर तरह।।

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

शब्द के कारागृहों को छोड़ कर, 
अर्थ जब आज़ाद हो कर, आ गया। 
मिल नहीं पायी उसे कोई शरण,
अंत में मेरा तपोवन पा गया। 
बाण बींधे आंसुओं से श्लोक तक,
मौन संवादित हुआ, मेरी तरह।।

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

मैं उठा तो सिंधु बादल हो गया,
मैं चला तो बिजलियाँ गाने लगीं। 
मैं रुका तो रुक गया, पारस पवन,
खुश्बुएं घर लौट कर जाने लगीं। 
गीत होठों पर, दृगों में जागरण,
प्यार परिभाषित हुआ मेरी तरह।।

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

दशरथ क खिलल अंगनवां हो रामा, अइलें ललनवां.../ चैती सोहर / गायन : चंदन तिवारी

 https://youtu.be/ysPBb3Ee2lQ  

दशरथ क खिलल अंगनवां हो रामा,
अइलें ललनवा।।

कोसिला के राम मिललें ललनवां,
सुमितरा के गोदिया लखन बलवनवा।
झूले लगलें सोने के पलंगवा हो रामा,
अइलें ललनवां।।

भरत भुआल अइलें कैकयी के अंचरवा,
एक कोखिया ते भरत शत्रुघन छोकरवा,
गुलज़ार भइलें अंगनवा हो रामा 
अइलें ललनवा।।

गूंजेले भवनवा, गूंज गइल बखरिया, 
अवध में गवाये लागल, झूमर औ कजरिया,
चैता से गूंजेला अंगनवां, हो रामा,
अइलें ललनवा।।

रविवार, 7 अप्रैल 2024

आई गयो फ़ाग सम्भालो रे चुनरिया.../ कुमाउँनी होली / गायन : सुरेश जोशी

 https://youtu.be/v7RRW6f1zJo  


आयी गयो फाग,
कुँजन मा जे मोहन ठाढ़े,
मार रहे देखो भर पिचकरिया।।

राधा मोहन रास रचत हैं,
गोपियन की देखो उड़त चुनरिया।।

कुंकुम बदरी मा रंग फुहारें 
इंद्रधनुष छवि छाई सत रंगियाँ।।