शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

गौरीदशकम्.../ आदि शंकराचार्य विरचित / स्वर : माधवी मधुकर झा

https://youtu.be/VTheYgq8IK4  


लीलालब्धस्थापितलुप्ताखिललोकां 
लोकातीतैर्योगिभिरन्तश्चिरमृग्याम्।
बालादित्यश्रेणिसमानघुतिपुञ्जां 
गौरीमम्बामम्बुरुहाक्षीमहमीडे ।।१।।

जिन्होंने अपनी लीला मात्र से इस संसार का सृजन, पालन 
तथा प्रलय काल में संहार किया है, जो असाधारण, लोकातीत 
अलौकिक योगियों द्वारा चित्त में दीर्घकाल तक ध्यान करने 
योग्य हैं, जिनकी प्रभा नवोदित आदित्य (सूर्य) की श्रेणी के 
सदृश है, उन पद्मनयना माँ गौरीजी की मैं वन्दना करता हूँ।॥१॥

प्रत्याहारध्यानसमाधिस्थितिभाजां 
नित्यं चित्ते निर्वृतिकाष्ठां कलयन्तीम् ।
सत्यज्ञानानन्दमयीं तां तनुरुपां 
गौरीमम्बामम्बुरुहाक्षीमहमीडे ।।२।।

प्रत्याहार, ध्यान, धारणा व समाधि के द्वारा जो स्थिर हैं, 
उनके चित्त में जो निवृत्ति मार्ग (मोक्ष) का नित्य सम्पादन 
करती हैं, सूक्ष्मस्वरूपा, सत्य, ज्ञानानन्दमयी, उन 
पद्मनयना माँ गौरीजी की मैं वन्दना करता हूँ।।२।।

चन्द्रापीडानन्दितमन्दस्मितवक्त्रां 
चन्द्रापीडालंकृतनीलालकभाराम् ।
इन्द्रोपेन्द्राद्यर्चितपादाम्बुजयुग्मां 
गौरीमम्बामम्बुरुहाक्षीमहमीडे ॥३॥

चन्द्रपीड (उनके कुल में पैदा हुए राजकुमार) अथवा 
चन्द्रमण्डल को देखकर जो सदैव आनन्दमग्न रहती हैं, 
अतः जिनका मुख मन्दस्मित से भरा रहता है, जिनके 
मस्तक पर चन्द्राकार सज्जित केशों का धम्मिल (जूड़ा) 
विभूषित है, जिनके पादपद्म युग्म इन्द्र, उपेन्द्र (विष्णु) 
आदि देवताओं के द्वारा पूजित हैं, उन पद्मनयना माँ 
गौरीजी की मैं वन्दना करता हूँ॥३॥

आदिक्षान्तामक्षरमूर्त्या विलसन्तीं 
भूते भूते भूतकदम्बप्रसवित्रीम् ।
शब्दब्रह्मानन्दमयीं तां तटिदाभां 
गौरीमम्बामम्बुरुहाक्षीमहमीडे ॥४॥

सृष्टि के आरम्भ से पूर्व, शान्त व स्थिर विशुद्ध स्वरूपवाली, 
उसके बाद सृजनकाल में हर प्राणी में अक्षर रूप से 
प्रस्फुटित होनेवाली, तथा जीवों की माता, शब्द-ब्रह्मानन्दमयी, 
विद्युत् के सदृश प्रभावाली, उन पद्मनयना माँ गौरीजी की मैं 
वन्दना करता हूँ॥४॥

मूलाधारादुत्थितवीथ्या विधिरन्ध्रं 
सौरं चान्द्रं व्याप्य विहारज्वलिताङ्गीम् ।
येयं सूक्ष्मात्सूक्ष्मतनुस्तां सुखरूपां 
गौरीमम्बामम्बुरुहाक्षीमहमीडे ॥५॥

मूलाधार चक्र से उत्थित होनेवाले मार्ग से ब्रह्मरन्ध्र की ओर जानेवाली, 
चान्द्र और सौर दलवाले चक्रों को व्याप्त कर उनमें विहार करनेवाली, 
जो सूक्ष्म से भी सूक्ष्म कान्तिमान देहवाली सुखस्वरूपा हैं, उन पद्मनयना 
माँ गौरीजी की मैं वन्दना करता हूँ।॥५॥

नित्यः शुद्धो निष्कल एको जगदीशः 
साक्षी यस्याः सर्गविधौ संहरणे च ।
विश्वत्राणक्रीडनलोलां शिवपत्नीं 
गौरीमम्बामम्बुरुहाक्षीमहमीडे ॥६॥

जिस माता गौरी के सृजन, पालन और संहार में नित्य शुद्ध-बुद्ध स्वरूप 
जगदीश्वर ही एकमात्र साक्षी होते हैं, और जो सम्पूर्ण जगत् के पालन 
करने के लिए अपने क्रीडा से आनन्दित होती हैं, उन शिववल्लभा 
पार्वती पद्मनयना माँ गौरी जी की मैं वन्दना करता हूँ।॥६॥

यस्याः कुक्षौ लीनमखण्डं जगदण्डं 
भूयो भूयः प्रादुरभूदुत्थितमेव ।
पत्या सार्धं तां रजताद्रौ विहरन्तीं 
गौरीमम्बामम्बुरुहाक्षीमहमीडे ॥७॥

स्थूल रूप से दृष्टिगोचर यह सम्पूर्ण विश्व, जिनकी कोख (कुक्षी) में पहले 
लीन था, पुनः प्रत्येक उत्पत्ति में उत्पन्न (प्रादुर्भाव) होता है, हिमगिरी में 
जो देवी भगवान् शिव के साथ भ्रमण (आमोद-प्रमोद) करती हैं, ऐसी 
पद्मनयना माँ गौरीजी की मैं वन्दना करता हूँ॥७॥

यस्यामोतं प्रोतमशेषं मणिमाला सूत्रे 
यद्वत् क्वापि चरं चाप्यचरं च ।
तामध्यात्मज्ञानपदव्या गमनीयां 
गौरीमम्बामम्बुरुहाक्षीमहमीडे ॥८॥

मणिमाला के सूत्र में जिस प्रकार मणिगण पिरोये हुए हैं, उसी तरह जिसमें
चराचर रूप यह सम्पूर्ण जगत् ओतप्रोत (व्याप्त) है, जो केवल अध्यात्मज्ञान 
मात्र से ही गम्य हैं, उन पद्मनयना माँ गौरीजी की मैं वन्दना करता हूँ।॥८॥

नानाकारैः शक्तिकदम्बैर्भुवनानि व्याप्य 
स्वैरं क्रीडति येयं स्वयमेका ।
कल्याणीं तां कल्पलतामानतिभाजां 
गौरीमम्बामम्बुरुहाक्षीमहमीडे ॥९॥

जो जगदम्बा एक होती हुई भी नाना रूपों से शक्ति-कदम्बों द्वारा समस्त 
लोकों में व्याप्त होकर अपनी इच्छा से भ्रमण करती हैं और जो विनयशील 
भक्तों के लिए कल्पवृक्ष के सदृश हैं, उन्हीं कल्याणकारिणी पद्मनयना माँ 
गौरीजी की मैं वन्दना करता हूँ।॥९

आशापाशक्लेशविनाशं विदधानां 
पादाम्भोजध्यानपराणां पुरुषाणाम् ।
ईशामीशार्धाङ्गहरां-तामभिरामां 
गौरीमम्बामम्बुरुहाक्षीमहमीडे ॥१०॥

जो जगदम्बा के पादपद्मों के ध्यान में निरत हैं, जो ऐसे पुरुषों के आशा रूपी 
पाशजनित क्लेश को नष्ट करनेवाली हैं, और भगवान् शिव की अर्धांगिनी हैं, 
ऐसी सुन्दर व मनोहर विग्रहवाली उन भवानी, पद्मनयना माँ गौरीजी की मैं 
वन्दना करता हूँ। ॥१०॥

प्रातःकाले भावविशुद्धः प्रणिधानात् 
भक्त्या नित्यं जल्पति गौरीदशकं यः ।
वाचां सिद्धिं सम्पदमग्र्यां शिवभक्तिं 
तस्यावश्यं पर्वतपुत्री विदधाति ॥११॥

जो प्रातःकाल शुद्ध भाव एवं एकाग्र मन से सदैव भक्तिपूर्वक इस 'गौरिदशक' 
नामक स्तोत्र का पठन करता है, उसके लिए गिरीराज-सुता गौरी जी निश्चित 
ही वाक् सिद्धि, श्रेष्ठ सम्पत्ति तथा शिवभक्ति प्रदान करती हैं।॥११॥

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