बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

सोभित कर नवनीत लिए.../ सूरदास / पुष्टिमार्गीय हवेली संगीत / गायन : श्री गिरधर गोपाल जी मापावाला

https://youtu.be/4Ol2Lo-xmKk  


सोभित कर नवनीत लिए।
घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥
चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए।
लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥
कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए।
धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए॥

व्याख्या : सूरदास जी कहते हैं कि बालकृष्ण अपने हाथों में 
माखन लिए सुशोभित हो रहे हैं । श्री कृष्ण का स्वरूप 
बाल्यावस्था का है और वह घुटने के बल चल रहे हैं | 
उनके तन पर मिट्टी के कण लग गए हैं तथा उनके मुख 
पर दही लपेटा हुआ दिखाई दे रहा है | 
उनके कपोल अर्थात गाल बहुत सुंदर हैं । 
बालकृष्ण के नेत्र चपल तथा चंचल है और 
ललाट अर्थात माथे पर गोरोचन का तिलक 
लगा हुआ है | उनके बालों की लट इस तरह उनके 
गालों पर लटकती हुई या ऐसे झूमती -सी प्रतीत हो र
ही है मानो भंवरे मीठे शहद का पान कर (पीकर ) 
मतवाले हो गए हो | उनका यह असीम सौंदर्य गले में 
पड़े हुए कंठ हार और सिंह नख से और भी बढ़ जाता है । 
सूरदास जी कहते हैं कि श्री कृष्ण के बाल रूप के दर्शन
यदि एक पल के लिए भी हो जाते है तो जीवन कृतकृत्य 
हो जाता है अन्यथा सौ कल्पों तक जीवन जीना भी 
निरर्थक ही है यदि उसमें श्याम सुंदर के इस बालस्वरूप 
की झांकी का दर्शन प्राप्त ना हो ।

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