शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024

दिन गुज़र गया ऐतबार में.../ फ़ना निज़ामी / गायन : कृपा ठक्कर

https://youtu.be/qk7Jg7L5y9E  


दिन गुज़र गया ऐतबार में
रात कट गयी इंतज़ार में

वो मज़ा कहाँ वस्ल-ए-यार में
लुत्फ़ जो मिला इंतज़ार में

उनकी इक नज़र, काम कर गयी
होश अब कहाँ होशियार में

मेरे कब्ज़े में कायनात है
मैं हूँ आपके इख़्तियार में

आँख तो उठी फूल की तरफ
दिल उलझ गया हुस्न-ए-ख़ार में

तुजसे क्या कहें, कितने ग़म सहे
हमने बेवफ़ा तेरे प्यार में

फ़िक्र-ए-आशियाँ, हर ख़िज़ाँ में की
आशियाँ जला हर बहार में

किस तरह ये ग़म भूल जाएं हम
वो जुदा हुआ इस बहार में

दिन गुज़र गया ऐतबार में
रात कट गयी इंतज़ार में

वो मज़ा कहाँ वस्ल-ए-यार में
लुत्फ़ जो मिला इंतज़ार में



(ऐतबार = भरोसा, विश्वास)
(फ़िक्र-ए-आशियाँ = घोंसले (घर) की चिंता), (ख़िज़ाँ = पतझड़)
हुस्न-ए-ख़ार = काँटों की खूबसूरती)

(कायनात = सृष्टि, जगत), (इख़्तियार = अधिकार, काबू, स्वामित्व, प्रभुत्व)
(वस्ल-ए-यार = प्रिय से मिलन)

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