सोमवार, 22 अगस्त 2022

संगच्छध्वं संवदध्वं..../ समानो मन्त्रः .../ ऋग्वेद / गायन : संजय द्विवेदी

 https://youtu.be/BBk8lVsWny0


संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते।।
-ऋग्वेद १०.१९१.२

हम सब एक साथ चले; एक साथ बोले; हमारे मन एक हो | प्रााचीन समय में देवताओं का ऐसा आचरण रहा इसी कारण वे वंदनीय है |

समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सहचित्तमेषाम्।
समानं मन्त्रमभिमन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि।।
-ऋग्वेद १०.१९१.३

हम सबकी प्रार्थना एकसमान हो, भेद-भाव से रहित परस्पर मिलकर रहें, अंतःकरण
मन-चित्त-विचार समान हों । मैं सबके हित के लिए समान मन्त्रोंको अभिमंत्रित करके
हवि प्रदान करता हूँ ।

मंगलवार, 16 अगस्त 2022

जय राधा-माधव, जय कुन्ज-विहारी.../ गायन : वर्षा श्रीवास्तव

 https://youtu.be/hPZ-0OGxeUE

जय राधा माधव, 
जय कुन्ज विहारी।।

जय गोपी-जन-वल्लभ, 
जय गिरिवर-धारी।। 

यशोदा-नंदन, ब्रज-जन-रंजन
यमुना-तीर-वन-चारी।।

जय राधा माधव, 
जय कुन्ज बिहारी।।

हरे कृष्णा हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे । 
हरे कृष्णा हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे ।।

TRANSLATION

1) Krsna is the lover of Radha. He displays many amorous pastimes
in the groves of Vrndavana, He is the lover of the cowherd maidens of
Vraja, and the holder of the great hill named Govardhana.

2) He is the beloved son of mother Yasoda, the delighter of the inhabitants
of Vraja, and He wanders in the forests along the banks of the River Yamuna!

सोमवार, 15 अगस्त 2022

ऐ तिरंगे ! तू जहॉ में हिन्द की पहचान है..../ नज़्म / अरुण मिश्र

https://youtu.be/8VJ1spll0ss

 ऐ तिरंगे ! तू जहॉ में हिन्द की पहचान है....
-अरुण मिश्र
ऐ  तिरंगे !  तू  जहॉ   में,  हिन्द  की   पहचान है। 
हिन्द  की  है शान  तू  औ’ हिन्दियों की  आन है।
तू   हमारे  वीर पुरखों  की,  शहादत  का  निशाँ ।   
तेरे ज़ल्वों  पर, वतन का  हर  बसर, क़ुरबान है।।

      तू  लहरता,  तो  उमंगें,  मन  की  हैं  होती ज़वां। 
      तू   फहरता,  तो   रगों  में,  खून   होता  है  रवां। 
      तुझको  छू कर के  गुज़रती है, मुक़द्दस जो हवा। 
      झूमता  है , सॉस  उसमें  ले   के , ये  हिन्दोस्तां।।
 
तू  रहे  रोशन  हमेशा, नभ में, सूरज-चॉद  बन। 
तेरी  ही  छाया में , लहरायें  सदा , गंगो-जमन। 
आस्मां  में  तू  सदा , लिखता  रहे , हिन्दोस्तां। 
बॉटता यूँ  ही  रहे,  दुनिया  को , पैगामे-अमन।।
      तू हिलाता हाथ दुश्मन  की तरफ भी मीत सा। 
      तू   फिज़ां में  गूँजता  है , हिन्द के  संगीत सा।।  
      तेरे   रंगों  में   बहारें ,  हिन्द  की,  होती  अयां। 
      तू  धरा पर,  भारतीयों  के सुयश के, गीत सा।।
                                           * 
(पूर्वप्रकाशित)

वन्दे मातरम् / रचना : बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय / गायन : संगीता कट्टी

 https://youtu.be/HZXd6oKXZwk 

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (२७ जून १८३८ - ८ अप्रैल १८९४) बांग्ला भाषा के प्रख्यात उपन्यासकारकविगद्यकार और पत्रकार थे। भारत का राष्ट्रगीत 'वन्दे मातरम्' उनकी ही रचना है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था। रबीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्यकारों में उनका अन्यतम स्थान है।

आधुनिक युग में बंगला साहित्य का उत्थान उन्नीसवीं सदी के मध्य से शुरु हुआ। इसमें राजा राममोहन रायईश्वर चन्द्र विद्यासागरप्यारीचाँद मित्रमाइकल मधुसुदन दत्त, बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय और रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अग्रणी भूमिका निभायी। इसके पहले बंगाल के साहित्यकार बंगला की जगह संस्कृत या अंग्रेजी में लिखना पसन्द करते थे। बंगला साहित्य में जनमानस तक पैठ बनाने वालों मे शायद बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय पहले साहित्यकार थे।

बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म उत्तरी चौबीस परगना के कंठालपाड़ा, नैहाटी में एक परंपरागत और समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा हुगली कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई। १८५७ में उन्होंने बीए पास किया। प्रेसीडेंसी कालेज से बी. ए. की उपाधि लेनेवाले ये पहले भारतीय थे। शिक्षासमाप्ति के तुरंत बाद डिप्टी मजिस्ट्रेट पद पर इनकी नियुक्ति हो गई। कुछ काल तक बंगाल सरकार के सचिव पद पर भी रहे। रायबहादुर और सी. आई. ई. की उपाधियाँ पाईं।

और १८६९ में क़ानून की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होने सरकारी नौकरी कर ली और १८९१ में सेवानिवृत्त हुए। ८ अप्रैल १८९४ को उनका निधन हुआ।

बंकिमचंद्र चटर्जी की पहचान बांग्ला कवि, उपन्यासकार, लेखक और पत्रकार के रूप में है। उनकी प्रथम प्रकाशित रचना राजमोहन्स वाइफ थी। इसकी रचना अंग्रेजी में की गई थी। उनकी पहली प्रकाशित बांग्ला कृति 'दुर्गेशनंदिनी' मार्च १८६५ में छपी थी। यह एक रूमानी रचना है। दूसरे उपन्यास [कपालकुंडला]] (1866) को उनकी सबसे अधिक रूमानी रचनाओं में से एक माना जाता है। उन्होंने 1872 में मासिक पत्रिका बंगदर्शन का भी प्रकाशन किया। अपनी इस पत्रिका में उन्होंने विषवृक्ष (1873) उपन्यास का क्रमिक रूप से प्रकाशन किया। कृष्णकांतेर विल में चटर्जी ने अंग्रेजी शासकों पर तीखा व्यंग्य किया है।

आनंदमठ (१८८२) राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के संन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में देशभक्ति की भावना है। चटर्जी का अंतिम उपन्यास सीताराम (1886) है। इसमें मुस्लिम सत्ता के प्रति एक हिंदू शासक का विरोध दर्शाया गया है।

उनके अन्य उपन्यासों में दुर्गेशनंदिनी, मृणालिनीइंदिराराधारानीकृष्णकांतेर दफ्तरदेवी चौधरानी और मोचीराम गौरेर जीवनचरित शामिल है। उनकी कविताएं ललिता ओ मानस नामक संग्रह में प्रकाशित हुई। उन्होंने धर्म, सामाजिक और समसामायिक मुद्दों पर आधारित कई निबंध भी लिखे।

बंकिमचंद्र के उपन्यासों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद किया गया। बांग्ला में सिर्फ बंकिम और शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय को यह गौरव हासिल है कि उनकी रचनाएं हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं में आज भी चाव से पढ़ी जाती है। लोकप्रियता के मामले में बंकिम और शरद और रवीन्द्र नाथ ठाकुर से भी आगे हैं। बंकिम बहुमुखी प्रतिभा वाले रचनाकार थे। उनके कथा साहित्य के अधिकतर पात्र शहरी मध्यम वर्ग के लोग हैं। इनके पात्र आधुनिक जीवन की त्रासदियों और प्राचीन काल की परंपराओं से जुड़ी दिक्कतों से साथ साथ जूझते हैं। यह समस्या भारत भर के किसी भी प्रांत के शहरी मध्यम वर्ग के समक्ष आती है। लिहाजा मध्यम वर्ग का पाठक बंकिम के उपन्यासों में अपनी छवि देखता है।

वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
शस्यशामलां मातरम् ।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीं
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं
सुखदां वरदां मातरम् ।। १ ।।

वन्दे मातरम् ।
कोटि-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले
कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,
अबला केन मा एत बले ।
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं मातरम् ।। २ ।।

वन्दे मातरम् ।
तुमि विद्या, तुमि धर्म तुमि हृदि,
तुमि मर्म त्वं हि प्राणा:
शरीरे बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारई प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे मातरम् ।। ३ ।।

वन्दे मातरम् ।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी वाणी विद्यादायिनी,
नमामि त्वाम् नमामि कमलां
अमलां अतुलां सुजलां सुफलां मातरम् ।। ४ ।।

वन्दे मातरम् ।
श्यामलां सरलां सुस्मितां
भूषितां धरणीं भरणीं मातरम् ।। ५ ।।

Sangeeta Katti Kulkarni, is an Indian playback singer, Hindustani classical vocalist, musician, music composer from Karnataka. She was awarded the Karnataka Rajyotsava Award in 2006 by the Government of Karnataka.

Sangeeta Katti was born in Dharwad in Karnataka. She is a daughter of Dr. H. A . Katti and Bharati Katti, born on 7 October 1970.

Sangeeta Katti has a performance experience in Hindustani Vocal as well as Bhajans, Vachanas, Dasavani, Abhangs, Bhavageet, Folk Music and Playback singing.

Sangeeta Katti is a graduate in chemistry (with distinction) and well versed in several languages like Kannada, Hindi, English, Marathi etc. Sangeeta Katti won several awards for her compositions and albums.

She has toured abroad, all over UK, USA, Australia, New Zealand, Gulf and Canada and other countries performing live concerts.

Sangeeta Katti is residing in Bangalore, India with her husband and children.

जय हे ! / रचना : रबीन्द्रनाथ ठाकुर / गायन : ७५ शीर्षस्थ कलाकारों का समवेत प्रयास

 https://youtu.be/79Y8wvwk28A   

रबीन्द्रनाथ ठाकुर,(७ मई१८६१ – ७ अगस्त१९४१) विश्वविख्यात कविसाहित्यकार
दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी 
जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान 
फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। 
वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 
रचनाएँ हैं।

जनगणमन-अधिनायक जय हे भारतभाग्यबिधाता!

पाञ्जाब सिन्धु गुजराट मराठा द्राबिड़ उत्कल बङ्ग
बिन्ध्य हिमाचल यमुना गङ्गा उच्छलजलधितरङ्ग
तब शुभ नामे जागे, तब शुभ आशिष मागे,
गाहे तब जयगाथा।
जनगणमङ्गलदायक जय हे भारतभाग्यबिधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे॥

अहरह तब आह्बान प्रचारित, शुनि तब उदार बाणी
हिन्दु बौद्ध शिख जैन पारसिक मुसलमान खृस्टानी
पूरब पश्चिम आसे तब सिंहासन-पाशे
प्रेमहार हय गाँथा।
जनगण-ऐक्य-बिधायक जय हे भारतभाग्यबिधाता!
(जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे॥)

पतन-अभ्युदय-बन्धुर पन्था, युग युग धाबित यात्री।
हे चिरसारथि, तब रथचक्रे मुखरित पथ दिनरात्रि।
दारुण बिप्लब-माझे तब शङ्खध्बनि बाजे
सङ्कटदुःखत्राता।
जनगणपथपरिचायक जय हे भारतभाग्यबिधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे॥

घोरतिमिरघन निबिड़ निशीथे पीड़ित मूर्छित देशे
जाग्रत छिल तब अबिचल मङ्गल नतनयने अनिमेषे।
दुःस्बप्ने आतङ्के रक्षा करिले अङ्के
स्नेहमयी तुमि माता।
जनगणदुःखत्रायक जय हे भारतभाग्यबिधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे॥

रात्रि प्रभातिल, उदिल रबिच्छबि पूर्ब-उदयगिरिभाले –
गाहे बिहङ्गम, पूण्य समीरण नबजीबनरस ढाले।
तब करुणारुणरागे निद्रित भारत जागे
तब चरणे नत माथा।
जय जय जय हे जय राजेश्बर भारतभाग्यबिधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे॥

To celebrate the 75 glorious years of Independence and
in keeping with the Government of India’s Azadi Ka Amrit
Mahotsav, Ambuja Neotia chairman Harshavardhan Neotia
presents Jaya Hey 2.0, a musical tribute involving 75 artistes
from across India, supported by the Ambuja Neotia Group.
Conceptualised, music composed & directed by
Sourendro Mullick and Soumyojit Das, better
known as the Sourendro-Soumyojit duo,
Jaya Hey 2.0 is a rendition of the full 5 verses of
Bharat Bhagya Vidhata aka Jana Gana Mana, a timeless
tune that fills us with pride, love, admiration
and reverence for our dear Motherland.
The song Bharat Bhagya Vidhata was written by
Rabindranath Tagore in 1911 and had five stanzas.
However, only the first stanza was adopted as our
National Anthem in the 1950’s, to keep the song’s
duration well within one minute.
Presented by: Harshavardhan Neotia Concept, Music, Direction: Sourendro-Soumyojit Supported by: Ambuja Neotia Artistes as per their order of appearance:
1. Amjad Ali Khan 2. Asha Bhosle 3. Hariharan 4. Kavita Krishnamurti 5. Shreya Ghoshal 6. P. Unnikrishnan 7. Bombay Jayashri 8. Papon 9. K S Chithra 10. Rewben Mashangva 11. Rashid Khan 12. Ajoy Chakrabarty 13. Hariprasad Chaurasia 14. L. Subramaniam 15. Ambi Subramaniam 16. V. Selvaganesh 17. Swaminathan Selvaganesh 18. Harshavardhan Neotia 19. Benny Dayal 20. Bela Shende 21. Teejan Bai 22. Kaushiki Chakraborty 23. Anup Jalota 24. Shubha Mudgal 25. Harshdeep Kaur 26. Salim Merchant 27. Parvathy Baul 28. Shankar Mahadevan 29. Sujatha Mohan 30. Shweta Mohan 31. Rakesh Chaurasia 32. Purbayan Chatterjee 33. Shaan 34. Kalpana Patowary 35. Amit Trivedi 36. Mahesh Kale 37. Kumar Sanu 38. Somlata Acharyya Chowdhury 39. Shantanu Moitra 40. Amrit Ramnath 41. Srinivas 42. Sadhana Sargam 43. Kailash Kher 44. Parveen Sultana 45. Mame Khan 46. Vishwa Mohan Bhatt 47. Sivamani 48. Vikku Vinayakram 49. Rhythm Shaw 50. Jayanthi Kumaresh 51. Alka Yagnik 52. Lou Majaw 53. Rekha Bhardwaj 54. Suresh Wadkar 55. Malini Awasthi 56. Rupam Islam 57. Tetseo Sisters 58. Mohit Chauhan 59. Aruna Sairam 60. Vishal Dadlani 61. Usha Uthup 62. Bindu Subramaniam 63. Omkar Dhumal 64. Amaan Ali Bangash 65. Ayaan Ali Bangash 66. Shilpa Rao 67. Anupam Roy 68. Pratibha Singh Baghel 69. Rahul Deshpande 70. Udit Narayan 71. Parthiv Gohil 72. Anwesshaa 73. Javed Ali 74. Mahalakshmi Iyer 75. Sourendro-Soumyojit

रविवार, 14 अगस्त 2022

भारत माता मन्दिर, काशी विद्यापीठ, वाराणसी


भारत माता मन्दिर, काशी विद्यापीठ, वाराणसी 

इस मन्दिर के संस्थापक काशी के चर्चित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं काशी विद्यापीठ के संस्थापक स्व. बाबू शिवप्रसाद गुप्त थे। इस मन्दिर की स्थापना के विषय में बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने एक विज्ञप्ति उस समय जारी की थी, जिसमें लिखा है, इसका निर्माण कार्य सम्वत्‌ १९७५ तद्नुसार वर्ष (१९१८ ई.) में प्रारंभ हुआ और ५-६ वर्ष में पूरा भी हो गया। यहां स्थापित भारतमाता की मूर्ति का शिलान्यास २ अप्रैल १९२३ को श्री भगवानदास के करकमलों से हुआ था।

सतह या भूतल पर सफेद और काले संगमरमर पत्थरों से बनी सम्पूर्ण भारतवर्ष की भौगोलिक स्थिति को दर्शाती मां भारती की यह मूर्ति, पवित्र भारतभूमि की सम्पूर्ण भौगोलिक स्थितियों को आनुपातिक रूप में प्रकट करती है। पूरब से पश्चिम ३२ फुट २ इंच तथा उत्तर से दक्षिण ३० फुट २ इंच के पटल पर बनी मां भारती की इस प्रतिमूर्ति के रूप के लिए ७६२ चौकोर ग्यारह इंच वर्ग के मकराने के सफेद और काले संगमरमर के घनाकार टुकड़ों को जोड़कर भारत महादेश के इस भूगोलीय आकार को मूर्तिरूप प्रदान किया गया है। मां भारती की इस पटलीय मूर्ति के माध्यम से भारत राष्ट्र को पूर्व से पश्चिम तक २३९३ मील तथा उत्तर से दक्षिण तक २३१६ मील के चौकोर भूखण्ड पर फैला दिखाया गया है।

इस मूर्ति पटल में हिमालय सहित जिन ४५० पर्वत चोटियों को दिखाया गया है उनकी ऊंचाई पैमाने के अनुसार १ इंच से २००० फीट की ऊंचाई को दर्शाती है।

इस में छोटी-बड़ी आठ सौ नदियों को उनके उद्गम स्थल से लेकर अन्तिम छोर तक दिखाया गया है।

इस मूर्ति पटल पर भारत के लगभग समस्त प्रमुख पर्वत, पहाड़ियों, झीलों, नहरों और प्रान्तों के नामों को अंकित किया गया है। लगभग ४५०० वर्ग फुट क्षेत्र में तीन फीट ऊंचे एक विशाल चबूतरे पर यह मन्दिर बना है। भारत माता के इस मन्दिर के मध्य भाग में स्थापित भारत के विभिन्न भौगोलिक उपादानों के रूप में पर्वत, पठार, नदी और समुद्र के सजीव निर्माण के लिए संगमरमर के पत्थरों को जिस कलात्मक ढंग से तराश कर भारत के भौगोलिक भू-परिवेश का यथार्थ प्रतिरूपांकन किया गया है, वह भारत में पत्थर पर कलाकृति निर्माण कार्य में प्राचीन काल से चली आ रही कला और तकनीकी पक्ष को उजागर करती है। वास्तव में राष्ट्रभाव की अनुप्रेरक मां भारती के इस मन्दिर के निर्माण में कला, शिल्प और तकनीकी ज्ञान का उत्कृष्ट समन्वय हुआ है।

झूलत हैं नंदलाल.../ रचना : सूरदास / पुष्टिमार्ग कीर्तन

 https://youtu.be/gvCT1eNwlQI 

हिंडोरे माई झूलत हैं नंदलाल...
राग मल्हार

हिंडोरे माई झूलत हैं नंदलाल।। गावत सरस सकल ब्रजवनिता, बाढ्यो है रंग रसाल।।१।। संग झूलत बृषभाननंदिनी, उर गज मोतिन माल।। कंचन वेली यों राजत है, अरुझि श्याम तमाल।।२।। बाजत ताल पखावज मुरली पग नूपुर झनकार।। सूरदास प्रभु की छबि ऊपर तन मन डारों वार ।।३।।

शनिवार, 13 अगस्त 2022

गुरुविन गुलामनागुव तनक.../ कन्नड़ भजन / भक्त श्री पुरंदर दास कृति / गायन : पावनी कोटाः

https://youtu.be/NOQGSsFJg5A 

  

भक्त पुरन्दरदास

सोलहवीं शताब्दी का समय, कर्नाटक के विजयनगर राज्य के उत्कर्ष का शानदार समय था। 
विजय नगर के सम्राट कृष्णदेव राय न केवल सांस्कृतिक और धार्मिक बल्कि सामाजिक क्षेत्र 
के भी उस दौर के सबसे महानतम राजाओं में प्रसिद्ध थे। इस राज्य का, भक्ति काल को 
बुलंदियों पर पहुँचाने का विशेष योगदान है। इसी राज्य की बहुमूल्य भेंट है- श्रेष्ठ कवि, 
महान संगीतकार, धर्म का अवतार महान संत श्री पुरन्दरदास।
जो स्थान बंगाल में गौरांग महाप्रभु का, महाराष्ट्र में संत तुकाराम का, मारवाड़ में मीरा बाई 
का, उत्तर प्रदेश में गोस्वामी तुलसीदास जी का, तमिलनाडु में त्याग राजा का था, वही स्थान 
कर्नाटक में भक्त पुरन्दरदास जी का था। उन्हें कर्णाटक संगीत का भीष्म पितामह भी कहा 
जाता है।
पुरन्दर दास कर्णाटक संगीत के महान संगीतकार थे। इनकी कई कृतियां समकालीन तेलुगु 
गेयकार अन्नमचार्य से प्रेरित थे।
शिलालेखों के प्रमाणानुसार माना जाता है कि पुरन्दर दास का जन्म कर्नाटक के शिवमोगा 
जिले में तीर्थहल्ली के पास क्षेमपुरा में 1484 ईस्वी में हुआ था। एक धनी व्यापारी परिवार 
में जन्मे, पुरन्दर दास का नाम ‘श्रीनिवास नायक रखा गया था। उन्होंने अपने परिवार की 
परंपराओं के अनुसार औपचारिक शिक्षा प्राप्त की और संस्कृत, कन्नड़ और पवित्र संगीत में 
प्रवीणता हासिल की। अपने पैतृक कारोबार को सम्भालने के बाद, पुरन्दर दास ‘नवकोटि 
नारायण के रूप में लोकप्रिय हो गए।
30 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी सारी संपत्ति दान कर दी और अपने परिवार के साथ 
एक चारण का जीवन व्यतीत करने के लिए घर छोड़ दिया। कालांतर में उनकी भेंट ऋषि 
व्यासतीर्थ (माधव दर्शन के मुख्य समर्थकों में से एक) से हुई, जिन्होंने 1525 में उन्हें 
दीक्षा देकर एक नया नाम ‘पुरन्दर दास दिया।
उन्होंने 4.75 लाख कीर्तनों (भक्ति गीत) की रचना की। उनकी रचनाओं में से अधिकांश 
कन्नड़ में हैं और कुछ संस्कृत में हैं। उन्होंने ‘पुरन्दर विट्ठल नामक उपनाम से अपनी 
रचनाओं पर हस्ताक्षर किए। उनकी रचनाओं में भाव, राग और लय का एक अद्भुत संयोजन 
मिलता है। सन् 1564 में 80 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। 

प    || गुरुविन गुलामनागुव तनक | 
दॊरॆयदण्ण मुकुति || 
       परि परि शास्त्रवनोदिदरेनु | 
व्यर्थवायितु | मुकुति || 
|| आरु शास्त्रव नोदिदरेनु | 
नूरारु पुराणव मुगिसिदरेनु || 
सारन्याय कथॆ | केळिदरेनु | 
धीरनंतॆ ता तिरुगदरेनु ||                     
 || गुरुविन || 1. || 
कॊरळॊळु मालॆ धरिसिदरेनु | 
बॆरळॊळु जपमणि ऎणिसिदरेनु | 
मरुळनागि ता शरीरकॆ बूदि | 
बळिदुकॊंडु ता | तिरुगिदरेनु ||                 
 || गुरुविन ||  2. || 
नारिय भोग अळिसिदरिल्ला | 
शरीरकॆ सुखव बिडिसि
दरिल्ला || 
मारजनक श्री पुरंदर विठलन |  
सेरिसिकॊंडु ता पडॆयुव तनक ||                        
|| गुरुविन ||  3.

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शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

पंथ होने दो अपरिचित... / रचना : महादेवी वर्मा / गायन : संजय द्विवेदी एवं ज्ञानेश्वरी द्विवेदी

 https://youtu.be/qhAL9lm6nUQ  


पंथ होने दो अपरिचित  सहित 

पंथ होने दो अपरिचित

प्राण रहने दो अकेला !


घेर ले छाया अमा बन,


आज कज्जल-अश्रुओं में

रिमझिमा ले यह घिरा घन;


और होंगे नयन सूखे,


तिल बुझे औ, पलक रूखे,


आर्द्र चितवन में यहाँ


शत विद्युतों में दीप खेला !

अन्य होंगे चरण हारे,


और हैं जो लौटते,

दे शूल को संकल्प सारे;


दुखव्रती निर्माण उन्मद,


यह अमरता नापते पद,


बाँध देंगे अंक-संसृति
से

तिमिर में स्वर्ण बेला!

दूसरी होगी कहानी,


शून्य में जिसके मिटे स्वर,

धूलि में खोई निशानी,


आज जिस पर प्रलय विस्मित,


मैं लगाती चल रही नित,


मोतियों की हाट औ,


चिनगारियों का एक मेला !

हास का मधु-दूत भेजो,


रोष की भ्रू-भंगिमा

पतझार को चाहे सहेजो !


ले मिलेगा उर अचंचल,


वेदना-जल, स्वप्न-शतदल,


जान लो, वह मिलन

एकाकी
विरह में है दुकेला !

पंथ होने दो अपरिचित

प्राण रहने दो अकेला !

भावार्थ 
यह कविता महादेवी वर्मा जी के प्रमुख काव्य-संग्रह ‘दीपशिखा’ में ‘गीत-2’ शीर्षक से संकलित है। 

१ पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला!
   घेर ले छाया अमा बन,
   आज कज्जल-अश्रुओं में रिमझिमा ले वह घिरा घन;
   और होंगे नयन सूखे,
   तिल बुझे औ पलक रूखे,
   आर्द्र चितवन में यहाँ
   शत विद्युतों में दीप खेला!

व्याख्या कवयित्री महादेवी वर्मा कहती हैं कि भले ही साधना-पथ
अनजान हो, उस मार्ग पर तुम्हारा साथ देने वाला भी कोई न हो, तब भी तुम्हें घबराना नहीं चाहिए, तुम्हारी स्थिति डगमगानी नहीं चाहिए। महादेवी जी कहती हैं कि मेरी छाया भले ही आज मुझे अमावस्या के गहन अन्धकार के समान घेर ले और मेरी काजल लगी आँखें भले ही बादलों के समान आँसुओं की वर्षा करने लगें, फिर भी चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। कठिनाइयों को देखकर जो आँखें सूख जाती हैं, जिन आँखों के तारे निर्जीव व धुंधले हो जाते हैं और निरन्तर, रोते रहने के कारण जिन आँखों की पलकें रूखी-सी हो जाती हैं, वे किसी और की होंगी। मैं उनमें से नहीं हूँ जो विघ्न-बाधाओं से घबरा जाऊँ। अनेक कष्टों के आने पर भी मेरी दृष्टि आर्द्र (गीली) अर्थात आँखों में आँसू रहेंगे ही, क्योंकि मेरे जीवन दीपों ने सैकड़ों विद्यतों में खेलना सीखा है। कष्टों से घबराकर पीछे हट जाना मेरे जीवन-दीप का स्वभाव नहीं है।

२ अन्य होंगे चरण हारे,
  और हैं जो लौटते, दे शूल की संकल्प सारे;
  दु:खव्रती निर्माण उन्मद
  यह अमरता नापते पद,
  बाँध देंगे अंक-संसृति
  से तिमिर में स्वर्ण बेला!

व्याख्या कवयित्री कहती हैं कि वे कोई अन्य ही चरण होंगे जो पराजय मानकर राह के काँटों को अपना सम्पूर्ण संकल्प समर्पित करके निराश व हताश होकर लौट आते हैं। मेरे चरण हताश व निराश नहीं हैं। मेरे चरणों ने तो दुःख सहने का व्रत धारण किया हुआ है। मेरे चरण नव निर्माण करने की इच्छा के कारण उन्मद (मस्ती) हो चुके हैं। वे स्वयं को अमर मानकर, प्रिय के पथ को निरन्तरता से नाप रहे हैं और इस प्रकार दूरी घटती चली जा रही
है, जो मेरे और मेरे लक्ष्य अर्थात आत्मा और परमात्मा के मध्य की दूरी थी।

मेरे चरण तो ऐसे हैं कि वे अपनी दृढ़ता से संसार की गोद में छाए हुए। अन्धेरे को स्वर्णिम प्रकाश में बदल देंगे अर्थात् निराशा का अन्धकार आशारूपी प्रकाश में परिवर्तित हो जाएगा। इस प्रकार लक्ष्य प्राप्ति हो सकेगी।

 ३  दूसरी होगी कहानी,
    शून्य में जिसके मिटे स्वर, 
    धूलि में खोई निशानी,
    आज जिस पर प्रलय विस्मित,
    मैं लगाती चल रही नित,
    मोतियों की हाट औ
    चिनगारियों का एक मेला!

व्याख्या कवयित्री कहती हैं कि वह कोई दूसरी कहानी होगी, जिसमें अपने लक्ष्य को प्राप्त किए बिना ही प्रिय के स्वर शान्त हो जाते हैं। ऐसे लोगों के पैरों के चिह्नों को समय मिटा देता है। ऐसे लोगों का जीवन तो व्यर्थ ही होता है, मेरी कहानी तो इसके विपरीत है। मैं जब तक अपने लक्ष्य अर्थात् परमात्मा को प्राप्त न कर लूँगी, तब तक मेरा साधना स्वर शान्त नहीं होगा। साधना के इस कठिन पथ पर मेरा चलना भी अनजाना नहीं होगा। वह कहती है कि मैं अपने दृढ निश्चय अर्थात अपने संकल्प से अपनी आध्यात्मिक शक्ति के द्वारा उस पथ पर ऐसे पद चिह्नों का निर्माण कर जाऊँगी, जिन्हें मिटाना समय की धूल के लिए भी दुष्कर होगा। मैं अपने संकल्प से उस
परमात्मा को प्राप्त करके ही रहूँगी। मेरे इस निश्चय से स्वयं प्रलय भी आश्चर्यचकित है। उस प्रियतम परमात्मा को प्राप्त करने के लिए मैं अपने मोतियों के समान आँसूओं के खजाने का घर अर्थात् बाजार लगा रही हूँ। इन मोती जैसे आँसूओं की चमक मेरे जैसे अन्य साधकों में भी ईश्वर प्राप्ति की चिंगारियाँ अर्थात अलख जगा देगी जिससे वे भी ईश्वर प्राप्ति की ओर अग्रसर हो जाएँगे।

४ हास का मधु दूत भेजो,
   रोष की भ्र-भंगिमा पतझार को चाहे सहेजो।
   ले मिलेगा उर अंचचल,
   वेदना-जल, स्वप्न-शतदल,
   जान लो वह मिलन एकाकी
   विरह में है दुकेला!
   पंथ होने दो अपरिचित 
   प्राण रहने दो अकेला!।

व्याख्या कवयित्री कहती हैं कि हे प्रिय! तुम मुझे अपनी ओर आकर्षित करने के लिए चाहे मुस्कानरूपी दूत भेजो या फिर क्रोधित होकर मेरे जीवन में पतझड़-सी नीरवता का संचार कर दो अर्थात् चाहे तुम मुझ से प्रसन्न हो जाओ या अप्रसन्न, किन्तु मेरे हृदय के प्रदेश में तुम्हारे लिए कोमल भावनाएँ बनी रहेंगी। मैं अपने हृदय की मधुर और कोमल भावनाओं से सिक्त वेदना के जल और स्वप्नों का कमल पुष्प लिए तुम्हारी सेवा में सदैव उपस्थित रहूँगी। मैं तुम्हें अवश्य प्राप्त कर लूंगी। हे प्रिय तुमसे मिलने के उपरान्त मेरा स्वतन्त्र अस्तित्व । समाप्त हो जाता है, मुझे तुमसे पृथक् स्वयं की कोई स्वतन्त्र सत्ता की अनुभूति नहीं होती, किन्तु वियोग की स्थिति में यह अनुभूति और अधिक बढ़ जाती है। है। प्रियतम! यद्यपि तुम्हें प्राप्त करने का मार्ग अत्यन्त कठिन और अपरिचित है, किन्तु मुझे इसकी कोई चिन्ता नहीं है। मुझे दृढ़ विश्वास है कि मैं तुम्हें अपने दृढ संकल्प से अवश्य प्राप्त कर लूँगी।