रविवार, 7 अगस्त 2022

राधाधरमधुमिलिंद जय-जय.../ नाटक ‘संगीत सौभद्र' से / रचनाकार : बळवंत पांडुरंग किर्लोस्कर (१८४३ - १८८५) / गायिका - श्रीया सोंडूर

 https://youtu.be/o7VA_PTGEwM  

अण्णा साहेब किर्लोस्कर (जन्म: ३१ मई, १८४३ - मृत्यु: २ नवंबर, १८८५) का वास्तविक 
नाम बळवंत पांडुरंग किर्लोस्कर है। इन्होंने नाटकों के कलापक्ष को समृद्ध किया और मराठी 
रंगमंच की आधुनिक तकनीक आंरभ की। लोकमान्य तिलक के शब्दों में इन्होंने अपने नाटकों 
के द्वारा भारतीय संस्कृति का पुनरुद्वार किया।

राधाधरमधुमिलिंद जय-जय ।
रमारमण हरि गोविंद जय-जय ॥ धृ ॥
कालिंदी–तट-पुलिन-लांच्छित
सुरनुपादारविंद जय-जय ॥१II
उद्‌धृतनग मध्वरिंदमानघ ।
सत्यपांडपटकुविंद जयजय II२II
गोपसदनगुर्वलिंदखेलन ।
बलवत्स्तुतिते न निंद जय-जय॥३II

भावार्थ में सहायक शब्दार्थ 

'पुलिंद' के बजाय 'पुलिन' पढ़ें यह समझ में आता है। 'पुलिन' का अर्थ है नदी के किनारे का रेतीला किनारा। 'कालिंदी–तट-पुलिन-लांच्छित' का अर्थ है यमुना के तट पर रेत से लथपथ शरीर।
सुरनुतपादारविंद -जिसके चरण कमलों में देवता नत (नतमस्तक) हैं.
राधाधरमधुमिलिंद का अर्थ है राधा-अधर-मधु-मिलिंद, राधा के अधर का मधु पीने वाला भ्रमर।
'उद्धृतनग' का अर्थ है (गोवर्धन) पर्वतों को उठाने वाला।
मध्वरिंदमानघ - मधु-अरिंदम-अनघ।
अरि = शत्रु। मधु राक्षस का शमन करने वाली और अघ (पाप) से रहित है।
सत्यपंडपटकुविन्द - सत्यप-अण्ड-पट-कुविंद अंडपट = विश्वरूपी कपड़ा (ब्रह्मांड में अंडा)। कुविन्द = बुनकर। सत्य के संरक्षक और विश्वरूपी वस्त्र के बुनकर।
भाव-गीत 'धागा धागा अखंड बीनूं' को आप इसी अर्थ के साथ जानते हैं।
गोपसदनगुर्वलिंदखेलन - गोपसदन-गुरु-अलिन्द-खेलन।
अलिन्द = प्रांगण। गोप-सदन और गुरु के प्रांगण में एक खिलाड़ी।
बलवत्स्तुतिते न निंद = बलवत्स्तुति को कम मत समझो (बलवंत, यह स्तवन स्वयं नाटककार किर्लोस्कर द्वारा किया गया है)।

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