सोमवार, 1 अगस्त 2022

नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं.../ शम्भु स्तुति भगवान राम द्वारा / ब्रह्म पुराण से / स्वर : पण्डित हरिनाथ

 https://youtu.be/ptmCIF7ZpiM  

लंका प्रवेश के समय भगवान श्री राम ने रामेश्वरम में स्वयं शिवलिंग की स्थापना 
के साथ भगवान शिव का आह्वान किया था। शम्भु स्तुति को भगवान राम द्वारा 
रचित कहा जाता है, इस शम्भु स्तुति का उल्लेख ब्रह्म पुराण से लिया गया है।

नमामि शम्भो नमामि शम्भो नमामि शम्भो नमामि शम्भो नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं नमामि सर्वज्ञमपारभावम् । नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं नमामि शर्वं शिरसा नमामि ॥१॥ नमामि देवं परमव्ययंतं उमापतिं लोकगुरुं नमामि । नमामि दारिद्रविदारणं तं नमामि रोगापहरं नमामि ॥२॥ नमामि कल्याणमचिन्त्यरूपं नमामि विश्वोद्ध्वबीजरूपम् । नमामि विश्वस्थितिकारणं तं नमामि संहारकरं नमामि ॥३॥ नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं नमामि नित्यं क्षरमक्षरं तम् । नमामि चिद्रूपममेयभावं त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि ॥४॥ नमामि कारुण्यकरं भवस्या भयंकरं वापि सदा नमामि । नमामि दातारमभीप्सितानां नमामि सोमेशमुमेशमादौ ॥५॥ नमामि वेदत्रयलोचनं तं नमामि मूर्तित्रयवर्जितं तम् । नमामि पुण्यं सदसद्व्यतीतं नमामि तं पापहरं नमामि ॥६॥ नमामि विश्वस्य हिते रतं तं नमामि रूपाणि बहूनि धत्ते । यो विश्वगोप्ता सदसत्प्रणेता नमामि तं विश्वपतिं नमामि ॥७॥ यज्ञेश्वरं सम्प्रति हव्यकव्यं तथागतिं लोकसदाशिवो यः । आराधितो यश्च ददाति सर्वं नमामि दानप्रियमिष्टदेवम् ॥८॥ नमामि सोमेश्वरंस्वतन्त्रं उमापतिं तं विजयं नमामि । नमामि विघ्नेश्वरनन्दिनाथं पुत्रप्रियं तं शिरसा नमामि ॥९॥ नमामि देवं भवदुःखशोकविनाशनं चन्द्रधरं नमामि । नमामि गंगाधरमीशमीड्यम् उमाधवं देववरं नमामि ॥१०॥ नमाम्यजादीशपुरन्दरादिसुरासुरैरर्चितपादपद्मम । नमामि देवीमुखवादनाना मिक्षार्थमक्षित्रितयं य ऐच्छत ॥११॥ पंचामृतैर्गन्धसुधूपदीपैर्विचित्रपुष्पैर्विविधैश्च मन्त्रैः । अन्नप्रकारैः सकलोपचारैः सम्पूजितं सोममहं नमामि ॥१२॥

॥ इति श्रीब्रह्ममहापुराणे शम्भुस्तुतिः सम्पूर्णा ॥

अर्थ 

श्रीराम उवाच 
नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं नमामि सर्वज्ञमपारभावम् ।
नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं नमामि शर्वं शिरसा नमामि ॥ १॥ 

श्रीराम बोले–मैं पुराणपुरुष शम्भुको नमस्कार करता हूँ । जिनकी असीम सत्ता
का कहीं पार या अन्त नहीं है,हैउन सर्वज्ञ शिवको मैं प्रणाम करता हूँ। । 
अविनाशी प्रभु रुद्रको नमस्कार करता हूँ। सबका संहार करनेवाले शर्वको मस्तक 
झुकाकर प्रणाम करता हूँ ॥ १॥ 

नमामि देवं परमव्ययं तमुमापतिं लोकगुरुं नमामि । 
नमामि दारिद्र्यविदारणं तं नमामि रोगापहरं नमामि ॥ २॥
 

अविनाशी परमदेवको नमस्कार करता हूँ । लोकगुरु उमापतिको प्रणाम करता हूँ । 

दरिद्रताको विदीर्ण करनेवाले [शिव]-को नमस्कार करता हूँ । रोगोंका विनाश 
करनेवाले महेश्वरको प्रणाम करता हूँ ॥ २॥ 

नमामि कल्याणमचिन्त्यरूपं नमामि विश्वोद्भवबीजरूपम् ।
नमामि विश्वस्थितिकारणं तं नमामि संहारकरं नमामि ॥ ३॥ 

जिनका रूप चिन्तनका विषय नहीं है,हैउन कल्याणमय शिवको नमस्कार करता हूँ । 
विशवकी उत्पत्तिके बीजरूप भगवान भवको प्रणाम करता हूँ । जगतका पालन 
करनेवाले परमात्माको नमस्कार करता हूँ । संहारकारी रुद्रको नमस्कार करता हूँ॥ ३॥ 

नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं नमामि नित्यं क्षरमक्षरं तम् ।
तम् नमामि चिद्रूपममेयभावं त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि ॥ ४॥ 

पार्वतीजीके प्रियतम अविनाशी प्रभुको नमस्कार करता हूँ । नित्य क्षर-अक्षरस्वरूप 
शंकरको प्रणाम करता हूँ । जिनका स्वरूप चिन्मय है और अप्रमेय है, उन भगवान 
त्रिलोचनको मैं मस्तक झुकाकर बारम्बार नमस्कार करता हूँ ॥ ४॥ 

नमामि कारुण्यकरं भवस्य भयंकरं वाऽपि सदा नमामि । 
नमामि दातारमभीप्सितानां नमामि सोमेशमुमेशमादौ ॥ ५॥ 

करुणा करनेवाले भगवान शिवको प्रणाम करता हूँ तथा संसारको भय देनेवाले भगवान 
भूतनाथको सर्वदा नमस्कार करता हुँ । मनोवांछित फलोंके दाता महेशवरको प्रणाम 
करता हूँ । भगवती उमाके स्वामी श्रीसोमनाथको नमस्कार करता हूँ ॥ ५॥ 

नमामि वेदत्रयलोचनं तं नमामि मूर्तित्रयवर्जितं तम् ।
नमामि पुण्यं सदसद्व्यतीतं नमामि तं पापहरं नमामि ॥ ६॥ 

तीनों वेद जिनके तीन नेत्र हैं, उन त्रिलोचनको प्रणाम करता हूँ । त्रिविध मूर्तिसे रहित 
सदाशिवको नमस्कार करता हूँ । पुण्यमय शिवको प्रणाम करता हूँ । सत्-असत्से पृथक् 
परमात्माको नमस्कार करता हूँ । पापोंको नष्ट करनेवाले भगवान हरको प्रणाम करता हूँ ॥ ६॥ 

नमामि विश्वस्य हिते रतं तं नमामि रूपाणि बहूनि धत्ते । 
यो विश्वगोप्ता सदसत्प्रणेता नमामि तं विश्वपतिं नमामि ॥ ७॥
 
जो विश्वके हितमें लगे रहते हैं, बहुत-से रूप धारण करते हैं, उन भगवान शंकरको मैं प्रणाम 
करता हूँ । जो संसारके रक्षक तथा सत् और सत् असत्के निर्माता हैं, उन विशवपति 
(भगवान् विश्वनाथ भगवान् ) -को मैं नमस्कार करता हूँ, नमस्कार करता हूँ ॥ ७॥ 

यज्ञेश्वरं सम्प्रति हव्यकव्यं तथागतिं लोकसदाशिवो यः । 
आराधितो यश्च ददाति सर्व नमामि दानप्रियमिष्टदेवम् ८॥ 

हव्य-कव्यस्वरूप यज्ञेश्वरको नमस्कार करता हूँ । सम्पूर्ण लोकोंका सर्वदा कल्याण करनेवाले 
जो भगवान शिव आराधना करनेपर उत्तम गति एवं सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुएँ प्रदान करते हैं, 
उन दानप्रिय इष्टदेवको मैं नमस्कार करता हूँ ॥ ८॥ 

नमामि सोमेशवरमस्वतन्त्रमुमापतिं तं विजयं नमामि । 
नमामि विघ्नेशवरनन्दिनाथं पुत्रप्रियं तं शिरसा नमामि ॥ ९॥ 

भगवान सोमनाथको प्रणाम करता हूँ । जो स्वतन्त्र न रहकर भक्तोंके वश रहते हैं, उन 
विजयशील उमानाथको मैं नमस्कार करता हूँ । विघ्नराज गणेश तथा नन्दीके स्वामी पुत्रप्रिय 
भगवान् शिवको भगवान् मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ ॥ ९॥ 

नमामि देवं भवदुःखशोकविनाशनं चन्द्रधरं नमामि । 
नमामि गङ्गाधरमीशमीड्यमुमाधवं देववरं नमामि ॥ १०॥ 

संसारके दुःख और शोकका नाश करनेवाले देवता भगवान् चन्द्रशेखरको मैं बारम्बार 
नमस्कार करता हूँ । जो स्तुति करनेयोग्य और मस्तकपर गंगाजीको धारण करनेवाले हैं, 
उन महेश्वरको नमस्कार करता हूँ । देवताओंमें श्रेष्ठ उमापतिको प्रणाम करता हूँ ॥ १०॥

 नमाम्यजादीशपुरन्दरादिसुरासुरैरचितपादपद्मम् । 
नमामि देवीमुखवादनानामीक्षार्थमक्षित्रितयं य ऐच्छत् ११॥ 

कमलोंकी पूजा करते हैं, उन भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ । जिन्होंने पार्वतीदेवीके मुखसे 
निकलनेवाले वचनोंपर दृष्टिपात करनेको इच्छासे मानो तीन नेत्र धारण कर रखे हैं, उन 
भगवानको प्रणाम करता हूँ ॥ ११॥ 

पञ्चामृतैर्गन्धसुधूपदीपैर्विचित्रपुष्पैर्विविधैश्च मन्त्रैः । 
अन्नप्रकारैः सकलोपचारैः सम्पूजितं सोममहं नमामि ॥ १२॥

पंचामृत , चन्दन, उत्तम धूप , दीप, भाँति-भाँतिके विचित्र पुष्प , मन्त्र तथा अन्न आदि समस्त 
उपचारोंसे पूजित भगवान सोमको में नमस्कार करता हूँ ॥ १२॥ 

॥ इति श्रीब्रह्ममहापुराणे शम्भुस्तुतिः सम्पूर्णा ॥ 
॥ इस प्रकार श्रीब्रह्ममहापुराणमें शम्भुस्तुति सम्पूर्ण हुई ॥


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