सोमवार, 27 सितंबर 2021

आदि योगी - आद्य शून्यता / भरतनाट्यम / सयानी चक्रवर्ती

 https://youtu.be/mBaf_hQTKUA 


Choreographed and performed by Sayani Chakraborty

Sayani Chakraborty
Sayani is a Bharatanatyam dancer, disciple of 
Guru Smt. Rama Vaidyanathan. 
She is the Founder of her own Institute named, 
Dhruba Institute of Dance, Kolkata.

सहस्र सहस्रादि संवत्सरपूर्वं
नरज्ञान उद्धारणाय समर्पितम
अदियोगिनाद्यं सप्तर्षिभ्योबोधितम्
अति श्रेष्ठं इदं विशालं विज्ञानं


अदियोगिनं प्रणमाम्यहम्


अदियोगिन नमस्तुभ्यं
प्रसीद योगेश्वर
जन्ममरणोलन्कृत
महाकाल नमोस्तुते


ज्ञानशृङ्ग वृषारूढं
प्रचण्डं विश्वेश्वरं
जटाजूटं भस्माङ्गम्


अदियोगिनं प्रणमाम्यहम्


पृथ्वीतेजोदकंवायु
वशीकृतं आकाश च
महाभूतेश्वरं देवं


अदियोगिनं प्रणमाम्यहम्


निर्गुणं त्रिगुणपारम्
रुद्र हर सदाशिवं
बन्धपाशहरं देवं

अदियोगिनं प्रणमाम्यहम्

त्रिनेत्रं गङ्गाधरं
सोम कुण्डलभूषितं
नागराजधरं देवं


अदियोगिनं प्रणमाम्यहम्


दक्षिणाभि मुखस्थितं
योगविज्ञानमोक्षदं
सप्तऋषिभिर्वन्दितं


अदियोगिनं प्रणमाम्यहम्


अदियोगिनं प्रणमाम्यहम्
अदियोगिनं प्रणमाम्यहम्


ENGLISH TRANSLATION

Many thousands of years ago
One who was devoted to raising of the consciousness of mankind
Adiyogi (the first yogi) gave this to Saptrishis (the seven sages)
The immensely high and greatest form of wisdom
To that Adiyogi, I bow down to

I bow down to Adiyogi,
Be pleased O! Lord of Yoga (Yogeshwara)
The one who carries life and death as mere ornaments
To that Mahaakal (Lord of time), I bow down to

One who is the peak of knowing,
One who rides the bull, the fierce Lord of Universe (Vishweshwara)
The one who has matted locks of hair and carries ash on his body,
To that Adiyogi, I bow down to
Earth, Fire, Water, Air and Ether:
The one who is Lord of all great elements (Mahabhuteshwara),
To that Adiyogi, I bow down to

One who is without Gunas,
One who is beyond the three Gunas,
That Rudra Har and Sadashiva
The one who destroys or severs the knot of bondage,
To that Adiyogi, I bow down to

One who has three eyes
One who carries the Ganga
One who has Moon and earrings as ornaments
One who carries Nagraja (the king of snakes)
To that Adiyogi, I bow down to

One who faces the South,
One who gave the liberating wisdom of Yoga
One who is saluted by the seven sages
To that Adiyogi, I bow down to

To that Adiyogi, I bow down to
To that Adiyogi, I bow down to

रविवार, 26 सितंबर 2021

बच्चा-ए-काबुल / अफ़गानी गीत / आर्याना सईद

 https://youtu.be/0APqhi-TY2Q 

Roman Transliteration and English Translation 
of the song is available in the video itself.
Aryana Sayeed, born 14 July, 1985, Kabul, Afghanistan, is an 
Afghan singer, songwriter and TV personality. She sings mostly in 
Dari but also has many songs in Pashto. She is one of Afghanistan's 
most famous musical artists, performing regularly in concerts and 
philanthropic festivals within and outside 
Afghanistan. 

अफ़गानी गीत 

न न न न नइ नइ नइ नइ नइ 
न न न न नाए नाए नाए नाए नाए
न न न न नाए नाए नाए नाए नाए
न न न न ये ये ये ये ये
न न न न 
नइ नइ नइ नइ नइ
न न न न नाए नाए नाए नाए नाए
न न न न नाए नाए नाए नाए नाए
न न न न ये ये ये ये ये
शीरीनु यारी दारम, यारु बावफ़ा
एन दिलि बा ख़ुदि मीबरह बा यख़ निगाह
मीख़वाम अमरम बा ओ यख़ जा बगज़रह
वक़्ते मीबींमश हालिम बहतरह
मीख़वाम अमरम बा ओ यख़ जा बगज़रह
वक़्ते मीबींमश हालिम बहतरह
दो चश्म आहो दारह
लबख़ंदश जादू दारह
ए बच्चा शहर-ए-खाबल
बा एन दिलि बाज़ी दारह
दो चश्म आहो दारह
लबख़ंदश जादू दारह
ए बच्चा 
शहर-ए-खाबल
बा एन दिलि बाज़ी दारह
आशिक़ु शदम सुरु यारु
अज़ आशिक़ी दिलि ओगार
एन दर्दु दिलि दवाएश
हसतह द पीशख यारु
आशिक़ु शदम सुरु यारु
अज़ आशिक़ी दिलि ओगार
एन दर्दु दिलि दवाएश
हसतह द पीशख यारु
दो चश्म आहो दारह
लबख़ंदश जादू दारह
ए बच्चा 
शहर-ए-खाबल
बा एन दिलि बाज़ी दारह
दो चश्म आहो दारह
लबख़ंदश जादू दारह
ए बच्चा
 शहर-ए-खाबल
बा एन दिलि बाज़ी दारह
दरु बामु दिलि नशिस्ता
ख़ुश्बू तिरु अज़ गुलु हसतह
दरु एन रोज़ु हाय तारीख़
ओ नोरु खाबल हसतह
दरु बामु दिलि नशिस्ता
ख़ुश्बू तिरु अज़ गुलु हसतह
दरु एन रोज़ु हाय तारीख़
ओ नोरु खाबल हसतह
दो चश्म आहो दारह
ए बच्चा 
शहर-ए-खाबल
दो चश्म आहो दारह
लबख़ंदश जादू दारह
ए बच्चा 
शहर-ए-खाबल
बा एन दिलि बाज़ी दारह
न न न न नी नी नी नी नी
न न न न नाए नाए नाए नाए नाए
न न न न नाए नाए नाए नाए नाए
न न न न ये ये ये ये ये
न न न न 
नइ नइ नइ नइ नइ
न न न न नाए नाए नाए नाए नाए
न न न न नाए नाए नाए नाए नाए
न न न न ये ये ये ये ये

हिंदी अनुवाद (गूगल ट्रांसलेट)

नहीं नहीं नहीं नहीं नी नी नी नि
नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं
नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं
नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं
नहीं नहीं नहीं नहीं नी नी नी नि
नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं
नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं
नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं
मेरे पास एक प्यारी मदद है, मेरे वफादार दोस्त
यह एक नज़र में दिल को अपने साथ ले लेता है
मैं उसके साथ अपना जीवन बिताना चाहता हूँ
जब मैं उसे देखता हूं तो मुझे अच्छा लगता है
मैं उसके साथ अपना जीवन बिताना चाहता हूँ
जब मैं उसे देखता हूं तो मुझे अच्छा लगता है
इसकी दो हिरण आंखें हैं
उनकी मुस्कान जादुई है
हे काबुली के बच्चे
इस दिल से खेल रहा है
इसकी दो हिरण आंखें हैं
उनकी मुस्कान जादुई है
हे काबुली के बच्चे
इस दिल से खेल रहा है
मुझे अपने दोस्त से प्यार हो गया
ओगर के दिल के प्यार से
ये है उनके दिल का दर्द
पिस्क यारो का कोर
मुझे अपने दोस्त से प्यार हो गया
ओगर के दिल के प्यार से
ये है उनके दिल का दर्द
पिस्क यारो का कोर
इसकी दो हिरण आंखें हैं
उनकी मुस्कान जादुई है
हे काबुली के बच्चे
इस दिल से खेल रहा है
इसकी दो हिरण आंखें हैं
उनकी मुस्कान जादुई है
हे काबुली के बच्चे
इस दिल से खेल रहा है
दिल की छत पर बैठी
फूल से अधिक सुगंधित
इन काले दिनों में
और 
अँधेरे में 
दिल की छत पर बैठी
फूल से अधिक सुगंधित
इन काले दिनों में
और अँधेरे में 
इसकी दो हिरण आंखें हैं
हे काबुली के बच्चे
इसकी दो हिरण आंखें हैं
उनकी मुस्कान जादुई है
हे काबुली के बच्चे
इस दिल से खेल रहा है
नहीं नहीं नहीं नहीं नी नी नी नि
नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं
नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं
नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं
नहीं नहीं नहीं नहीं नी नी नी नि
नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं
नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं
नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं

शनिवार, 25 सितंबर 2021

रासे हरिमिह विहित-विलासं.../ अष्टपदी गीतगोविन्द / महाकवि जय देव / नृत्य : विदुषी श्रीमती अपर्णा महाबलेश्वर / गायन : विद्वान श्री के. हरिप्रसाद

 https://youtu.be/A1s4SY_bf6s 

अष्टपदी : रासे हरिमिह विहित-विलासं... नृत्य : विदुषी श्रीमती अपर्णा महाबलेश्वर गायन : विद्वान श्री के. हरिप्रसाद 

गुरु डॉ. एम. आर. कृष्णामूर्ति की शिष्या, सिद्धहस्त नृत्यांगना 
विदुषी श्रीमती अपर्णा महाबलेश्वर ने अपने मोहक नृत्यमुद्राओं
एवं मुखर भाव भावभंगिमाओं से अष्टपदी के पदों के शब्द-शब्द
को जीवंत कर दिया है। सर्वथा दर्शनीय प्रस्तुति।

अष्टपदी के नृत्य में प्रयुक्त पद 

सञ्चरदधर-सुधा-मधुर-ध्वनि-मुखरित-मोहन-वंशं

बलित-दृगञ्चल-चञ्चल-मौलि-कपोल-विलोल-वतंसम्र।
रासे हरिमिह विहित-विलासं
स्मरति मनो मम कृत-परिहासम् ॥1॥ध्रुवम्॥

अनुवाद- सखि, कैसी आश्चर्य की बात है कि इस शारदीय रासोत्सव में श्रीकृष्ण मुझे छोड़कर अन्य कामिनियों के साथ कौतुक आमोद में विलास कर रहे हैं। फिर भी मेरा मन उनका पुन: पुन: स्मरण कर रहा है। वे सञ्चरणशील अपने मुखामृत को अपने करकमल में स्थित वेणु में भरकर फुत्कार के साथ सुमधुर मुखर स्वरों में बजा रहे हैं, अपांग-भंगी के द्वारा अपने मणिमय शिरोभूषण को चञ्चलता प्रदान कर रहे हैं, उनके कानों के आभूषण कपोल देश में दोलायमान हो रहे हैं, उनके इस श्याम रूप का, उनके हास-परिहास का मुझे बारम्बार स्मरण हो रहा है ॥1॥
In my heart of hearts, I still remember the captivating 
form of Krishna, with sweetness spilling from his lips,  
enchanting melodies flowing from his flute, eyes 
wavering, headgear quivering, cheeks trembling.  
I remember Hari, his frolics in the rasa dance and 
his making a laughing stock of me.   

विपुल-पुलक-भुज-पल्लव-वलयित-वल्लव-युवति-सहंस्त्र।
कर-चरणोरसि-मणिगण-भूषण-किरण-विभिन्न-तमिस्त्रं-
रासे हरिमिह ... ... ॥4॥

अनुवाद- अतिशय रोमाञ्च से परिप्लुत होकर अपने सुकोमल भुज-पल्लव के द्वारा हजारों-हजारों गोप-युवतियों को समालिंगित करने वाले एवं कर, चरण और वक्षस्थल में ग्रथित मणिमय आभूषणों की किरणों से दिशाओं को आलोकित करने वाले श्रीकृष्ण का मुझे स्मरण हो रहा है।

I remember Hari who encircles with his hands, soft as 
leaf buds, a thousand young gopis and who dispels the 
darkness (of the night)  by the dazzle of ornaments, 
studded with diamonds and precious gems, adorning 
his hands, feet and chest.  I now remember.
Hari etc……..   
सम्पूर्ण अष्टपदी 
॥ गीतम् ५॥

संचरदधरसुधामधुरध्वनिमुखरितमोहनवंशम् ।
चलितदृगञ्चलचञ्चलमौलिकपोलविलोलवतंसम् ॥
रासे हरिमिह विहितविलासं
स्मरति मनो मम कृतपरिहासम् ॥१॥
चन्द्रकचारुमयूरशिखण्डकमण्डलवलयितकेशम् ।
प्रचुरपुरन्दरधनुरनुरञ्जितमेदुरमुदिरसुवेशम् ॥ २॥ रासे हरिमिह ...
गोपकदम्बनितम्बवतीमुखचुम्बनलम्भितलोभम्।
बन्धुजीवमधुराधरपल्लवमुल्लसितस्मितशोभम् ३॥ रासे हरिमिह ...
विपुलपुलकभुजपल्लववलयितवल्लवयुवतिसहस्रम् ।
मणिगणभूषणकिरणविभिन्नतमिस्रम् ४॥ रासे हरिमिह ...
जलदपटलचलदिन्दुविनन्दकचन्दनतिलकललाटम् ।
पीनघनस्तनमण्डलमर्दननिर्दयहृदयकपाटम् ॥ ५॥ रासे हरिमिह ...
मणिमयमकरमनोहरकुण्डलमण्डितगण्डमुदारम् ।
पीतवसनमनुगतमुनिमनुजसुरासुरवरपरिवारम् ६॥ रासे हरिमिह
विशदकदम्बतले मिलितं कलिकलुषभयं शमयन्तम् ।
मामपि किमपि तरङ्गदनङ्गदृशा मनसा रमयन्तम् ॥७॥ रासे हरिमिह ...
श्रीजयदेवभणितमतिसुन्दरमोहनमधुरिपुरूपम् ।
हरिचरणस्मरणं प्रति सम्प्रति पुण्यवतामनुरूपम् ॥८॥ रासे हरिमिह ...

अनुवाद

                       सञ्चरदधर-सुधा-मधुर-ध्वनि-मुखरित-मोहन-वंशं

बलित-दृगञ्चल-चञ्चल-मौलि-कपोल-विलोल-वतंसम्र।
रासे हरिमिह विहित-विलासं
स्मरति मनो मम कृत-परिहासम् ॥१॥ध्रुवम्॥

अनुवाद- सखि, कैसी आश्चर्य की बात है कि इस शारदीय रासोत्सव में श्रीकृष्ण मुझे छोड़कर अन्य कामिनियों के साथ कौतुक आमोद में विलास कर रहे हैं। फिर भी मेरा मन उनका पुन: पुन: स्मरण कर रहा है। वे सञ्चरणशील अपने मुखामृत को अपने करकमल में स्थित वेणु में भरकर फुत्कार के साथ सुमधुर मुखर स्वरों में बजा रहे हैं, अपांग-भंगी के द्वारा अपने मणिमय शिरोभूषण को चञ्चलता प्रदान कर रहे हैं, उनके कानों के आभूषण कपोल देश में दोलायमान हो रहे हैं, उनके इस श्याम रूप का, उनके हास-परिहास का मुझे बारम्बार स्मरण हो रहा है ॥1॥

चन्द्रक-चारु-मयूर-शिखण्डक-मण्डल-वलयित-केशं।
प्रचुर-पुरन्दर-धनुरनुरञ्जित-मेदुर-मुदिर-सुवेशं
रासे हरिमिह ... ... ॥२॥

अनुवाद- अर्द्धचन्द्रकार से सुशोभित अति मनोहर मयूर-पिच्छ से वेष्टित केश वाले तथा प्रचुर मात्र में इन्द्रधनुषों से अनुरञ्जित नवीन जलधर पटल के समान शोभा धारण करने वाले श्रीकृष्ण का मुझे अधिक स्मरण हो रहा है।

गोप-कदम्ब-नितम्बवती-मुख-चुम्बन-लम्भित-लोभं।
बन्धुजीव-मधुराधर-पल्लवमुल्लसित-स्मित-शोभम्
रासे हरिमिह ... ... ॥३॥

अनुवाद- गोपललनाओं के मुखकमल का चुम्बन करने की अभिलाषा से इस अनंग उत्सव में अपने मुख को झुकाये हुए, उनका सुकुमार अधर पल्लव बन्धुक कुसुमवत् मनोहारी अरुण वर्णीय हो रहा है, स्फूर्त्तियुक्त मन्द-मुस्कान की अपूर्व शोभा उनके सुन्दर मुखमण्डल में विस्तार प्राप्त कर रही है, ऐसे उन श्रीकृष्ण का मुझे अति स्मरण हो रहा है।

विपुल-पुलक-भुज-पल्लव-वलयित-वल्लव-युवति-सहंस्त्र।
कर-चरणोरसि-मणिगण-भूषण-किरण-विभिन्न-तमिस्त्रं-
रासे हरिमिह ... ... ॥४॥

अनुवाद- अतिशय रोमाञ्च से परिप्लुत होकर अपने सुकोमल भुज-पल्लव के द्वारा हजारों-हजारों गोप-युवतियों को समालिंगित करने वाले एवं कर, चरण और वक्षस्थल में ग्रथित मणिमय आभूषणों की किरणों से दिशाओं को आलोकित करने वाले श्रीकृष्ण का मुझे स्मरण हो रहा है।

जलद-पटल-बलदिन्दु-विनिन्दक-चन्दन-तिलक-ललाटं।
पीन-पयोधर-परिसर-मर्दन-निर्दय-हृदय-कवाटम्-
रासे हरिमिह ... ... ॥५॥

अनुवाद- अपने ललाट में मनोहर चन्दन के तिलक को धारणकर नवीन जलद मण्डल में विद्यमान चञ्चल चन्द्रमा की महती शोभा को पराभूत कर अनिर्वचनीय सुषमा को धारण करने वाले एवं वर युवतियों के पीन पयोधरों के अमूल्य प्रान्त भाग को अपने सुविशाल सुदृढ़ वक्ष:स्थल से निपीड़ित करने में सतत अनुरक्त कवाटमय (किवाड़ स्वरूप) निर्दय-हृदय श्रीकृष्ण का मुझे बार-बार स्मरण हो रहा है।

मणिमय-मकर मनोहर-कुण्डल-मण्डित-गण्डमुदारं।
पीतवसन मनुगत-मुनि-मनुज-सुरासुरवर-परिवारं-
रासे हरिमिह ... ... ॥६॥

अनुवाद- जिनके कपोल-युगल मणिमय मनोहर मकराकृति कुण्डलों के द्वारा सुशोभित हो रहे हैं, जिन्होंने कामिनी जनों के मनोभिलाष को पूर्ण करने में महान उदार भाव अर्थात दक्षिण नायकत्व को धारण किया है, जिन पीताम्बरधारी श्रीकृष्ण ने अपनी माधुरी का विस्तार कर सुर, असुरमुनि, मनुष्य आदि अपने श्रेष्ठ परिवार को प्रेमरस में सराबोर कर दिया है, उन श्रीकृष्ण का मुझे बरबस ही स्मरण हो रहा है।

विशद-कदम्बतले मिलितं कलि-कलुषभयं शमयन्तं
मामपि किमपि तरंग दन दृशा मनसा रमयन्तं-
रासे हरिमिह ... ... ॥७॥

अनुवाद- विशाल एवं सुविकसित कदम्ब वृक्ष के नीचे समागत होकर मेरी अपेक्षा में प्रतीक्षा करने वाले विविध प्रकार के आश्वासनयुक्त चाटुवचनों के द्वारा विच्छेद भय को सम्यक् रूप से अपनयन (दूरीभूत) करने वाले प्रबलतर अनंग रस के द्वारा चंचल नेत्रों से तथा नितान्त स्पृहायुक्त मानस में मेरे साथ मन-ही-मन रमण करने वाले श्रीकृष्ण का स्मरण कर मेरा हृदय विकल हो रहा है।

श्रीजयदेव-भणितमतिसुन्दर-मोहन-मधुरिपु-रूपं।
हरि-चरण-स्मरणं संप्रति पुण्यवतामनुरूपं
रासे हरिमिह ... ... ॥८॥

अनुवादश्रीजयदेव कवि ने सम्प्रति हरिचरण स्मृतिरूप इस काव्य को भगवद्-भक्तिमान पुण्यशाली पुरुषों के लिए प्रस्तुत किया है, जिसमें श्रीकृष्ण के अतिशय सुन्दर मोहन रूप का वर्णन हुआ है। इसका आस्वादन मुख्यरस के आश्रय में रहकर ही किया जाना चाहिये।