सोमवार, 20 सितंबर 2021

शिव सुवर्णमाला स्तुति.../ श्री शंकराचार्य कृत / स्वर : माधवी मधुकर झा

 https://youtu.be/PItOs6H8JHQ

श्री शंकराचार्य कृत "शिव सुवर्णमाला" के ५० छन्दों में से केवल १४ छन्दों, क्रमशः 
श्लोक संख्या ४ , ५, ६, ७, १४, १६, २३, २४, ३४, ३८, ३९, ४५, ४७ एवं ४८ का 
गायन ही सुश्री माधवी जी द्वारा प्रस्तुत वीडियो में किया गया है। 

शिव सुवर्णमाला स्तुति

आदि शंकराचार्य ने भगवान शिव की स्तुति में सुवर्णमाला स्तुति की रचना की है। शिव सुवर्णमाला में कुल ५० छंद हैं जिनमे शिव की स्तुति की गई है। इसमें भगवान शिव की महिमा के साथ शिव को स्वंय की चिंताओं का समर्पण है। इस स्तुति के पाठ/जाप से साधक की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

अथ कथमपि मद्रसनां त्वद्गुणलेशैर्विशोधयामि विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥१॥

अर्थ : हे नाथ, यद्यपि कठिनाइयों हैं, आपके दिव्य गुणों के बारे में वर्णन करने के लिए मेरी जिव्हा को शुद्ध कीजिए। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

आखण्डलमदखण्डनपण्डित तण्डुप्रिय चण्डीश विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ २॥


अर्थ : हे नाथ आप स्वर्ग के देवता इंद्र के घमंड को पराजित / दूर करने वाले हैं। हे नाथ आप ताण्डू (नृत्य की एक शैली जिसे तांडव कहा जाता है) को पसंद करते हैं। आप चंडी (माता दुर्गा का एक रूप) के स्वामी हैं, हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ। 
 
इभचर्मांबर शंबररिपुवपुरपहरणोज्जवलनयन विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥३॥


अर्थ : हे नाथ आप हाथी की पोशाक धारण करते हैं (शिव जी ने शनि देव के प्रकोप को समाप्त करने के लिए हाथी का रूप धारण किया था ), हे नाथ आपके नेत्र दिव्य और तेज से भरे हैं और आपने कामदेव के शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए थे, हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।
 
ईश गिरीश नरेश परेश महेश बिलेशयभूषण भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥४॥

अर्थ : हे नाथ आप पर्वतों/पहाड़ों के स्वामी हैं। आप पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ हैं और आप अपने गले में सर्पों/साँपों की माला को आभूषण की भाँती धारण करते हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

उमया दिव्यसुमङ्गळविग्रहयालिङ्गितवामाङ्ग विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥५॥

अर्थ : हे नाथआपकी बाई भुजा में पार्वती हैं, जो दिव्य और शुभ है। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

ऊरीकुरु मामज्ञमनाथं दूरीकुरु मे दुरितं भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥६॥

अर्थ : हे नाथ आप मुझे स्वीकार करो/अपनी शरण में ले लो। मैं मुर्ख, अज्ञानी और अनाथ हूँ, मुझे अपनी शरण में जगह दो। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

ऋषिवरमानसहंस चराचरजननस्थितिकारण भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ७॥
अर्थ : हे नाथ आप महान दूर दृष्टि रखने वाले और भविष्य को जानने वाले हैं। हे नाथ आप ही समस्त जीवों का सृजन करते हो, भरण पोषण करते हो और आप ही विघटन करने वाले भी हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

ऋक्षाधीशकिरीट महोक्षारूढ विधृतरुद्राक्ष विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥८॥

अर्थ : हे नाथ आपके बालों पर आभूषण के रूप में अर्धचंद्र शोभित है और जिसके पास सवारी के लिए एक बैल (नंदी) है। आप रुद्राक्षों की माला को धारण करते हैं, हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

लृवर्णद्वन्द्वमवृन्तसुकुसुममिवाङ्घ्रौ तवार्पयामि विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥९॥

अर्थ : हे नाथ मैं आपके चरणों में मेरी दोनों आँखें पुष्पों के रूप में अर्पित करता हूँ। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

एकं सदिति श्रुत्या त्वमेव सदसीत्युपास्महे मृड भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥१०॥

अर्थ : हे कृपालु नाथ (देव) मैं सिर्फ आपकी वंदना करता हूँ क्योंकि आप ही सर्वत्र विद्यमान हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

ऐक्यं निजभक्तेभ्यो वितरसि विश्वंभरोऽत्र साक्षी भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ११॥

अर्थ : हे नाथ आप अपने भक्तों को आशीर्वाद देने वाले हैं और आप ही इस सृष्टि (ब्रह्माण्ड) को धारण (स्थापित किए हैं ) किये हैं, आप ही इस ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं। आप सभी जीवों की चेतना में हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

ओमिति तव निर्देष्ट्री मायाऽस्माकं मृडोपकर्त्री भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥१२॥

अर्थ : हे नाथ ओमकार आपको ही इंगित करता है जो मुझे समझने में मदद करता है और यह माया से परे हैं। हे नाथ आप अत्यंत दयालु हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

औदास्यं स्फुटयति विषयेषु दिगम्बरता च तवैव विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥१३॥

अर्थ : हे नाथ आप वस्त्र धारण नहीं करते हैं जो यह दर्शाता है की आप सांसारिक वस्तुओं से परे हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

अन्तः करणविशुद्धिं भक्तिं च त्वयि सतीं प्रदेहि विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥१४॥
अर्थ : हे नाथ आपकी सहचारी मुझ पर दया कर सकती हैं और मुझे मेरे मन की पवित्रता और भक्ति दया के रूप में दें। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

अस्तोपाधिसमस्तव्यस्तै रूपैर्जगन्मयोऽसि विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥१५॥

अर्थ : हे नाथ आप ही इस विशाल ब्राह्माण के रूप में हैं। आप ही समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

करुणावरुणालय मयि दास उदासस्तवोचितो न हि भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥१६॥

अर्थ : हे नाथ आप करुणा के स्वामी हैं। मैं आपका दास हूँ और मुझ जैसे दास के प्रति आपकी विमुखता उचित नहीं है, भाव है की आप मुझ पर अपनी करुणा रूपी आर्शीवाद को दें। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

खलसहवासं विघटय सतामेव सङ्गमनिशं भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ १७॥

अर्थ : हे नाथ मुझे दुर्बुद्धि और दुष्टजनों से दूर रखें और मुझे इस क़ाबिल बनाएं की मैं केवल पवित्र आत्मा (जो अवगुणों से दूर हैं ) के संपर्क में ही रहूं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

गरळं जगदुपकृतये गिलितं भवता समोऽस्ति कोऽत्र विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ १८॥

अर्थ : हे नाथ आप के समान इस श्रष्टि अन्य कौन इतना महान है जिसने श्रष्टि को बचाने के लिए ज़हर पिया था। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

घनसारगौरगात्र प्रचुरजटाजूटबद्धगङ्ग विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥१९॥

अर्थ : हे नाथ आपकी देह कर्पूर की भाँती धवल है। आप, जिसने गंगा नदी को अपने बालों में बाँध रखा है। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

ज्ञप्तिः सर्वशरीरेषवखण्डिता या विभाति सा त्वयि भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ २०॥

अर्थ : हे नाथ आप एकात्म जड़ चेतना हैं जो सभी जीवों में देदीप्यमान है। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।
चपलं मम हृदयकपिं विषयदुचरं दृढं बधान विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥२१॥

अर्थ : हे नाथ शीघ्र ही मेरे चंचल मन को केंद्रित करो, मेरा चंचल मन बंदर की तरह से सांसारिक सुखों/विषयों पर भटक रहा है। जैसे बन्दर एक वृक्ष से दूसरे पर छलांग लगाता है ऐसे ही मेरा मन भी चंचल है। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

छाया स्थाणोरपि तव तापं नमतां हरत्यहो शिव भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥२२॥

अर्थ : हे नाथ मैं आपको नमन करता हूँ मेरे समस्त दुखों की छांया को आप दूर कर दो। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

जय कैलासनिवास प्रमथगणाधीश भूसुरार्चित भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ २३॥

अर्थ : हे नाथ आपकी जय हो आप कैलाश के निवासी हैं। आप प्रथमगण के स्वामी हैं और आपको ब्राह्मणों के द्वारा पूजा जाता है। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

झणुतकझङ्किणुझणुतत्किटतकशब्दैर्नटसि महानट भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥२४॥

अर्थ : हे नाथ आप महान नृत्य कुशल हैं और आप नृत्य से झनु, ताक, झनकिनु, झानू, तातकिता की ध्वनि उत्पन्न करते हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

ज्ञानं विक्षेपावृतिरहितं कुरु मे गुरुस्त्वमेव विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥२५॥

अर्थ : हे नाथ आप एकमात्र हैं जो मुझे दिशा दिखा सकते हैं। हे नाथ आप मुझे ऐसा ज्ञान दे जो सत्य हो और मित्थ्या से परे हो। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

टङ्कारस्तव धनुषो दलयति हऋदयं द्विषामशनिरिव भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ २६॥

अर्थ : हे नाथ आपके त्रिशूल की ध्वनि से शत्रुओं के हृदय टूट जाते हैं, हृदय में भय व्याप्त हो जाता है। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

ठाकृतिरिव तव माया बहिरन्तः शून्यरूपिणी खलु भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ २७॥
अर्थ : हे प्रभु आपकी माया समझ से परे है जो अंदर और बाहर से खाली है। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

डंबरमंबुरुहामपि दलयत्यनघं त्वदङ्घ्रियुगळं भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ २८॥

अर्थ : हे नाथ आपके चरण लाल कमल से भी अधिक आकर्षक हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

ढक्काक्षसूत्रशूलद्रुहिणकरोटीसमुल्लसत्कर भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ २९॥

अर्थ: हे नाथ हाथों में डमरू और त्रिशूल धारण करते हैं और ब्रह्मकपाल को धारण करते हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

णाकारगर्भिणी चेच्छुभदा ते शरणगतिर्नृणामिह भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ३०॥

अर्थ : हे नाथ आपके तीर लोगों की भलाई के लिए ही तरकश में रखे हुए हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

तव मन्वतिसञ्जपतः सद्यस्तरति नरो हि भवाब्धिं भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥३१

अर्थ : हे नाथ जो व्यक्ति आपके नाम के नाम के मन्त्र का जाप करता है वह एक बार में ही भव सागर से पार हो जाता है। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

थूत्कारस्तस्य मुखे भूयात्ते नाम नास्ति यस्य विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ३२॥

अर्थ : हे नाथ आप उस व्यक्ति से घृणा करो/क्रोध करो जो आपने नाम का जाप नहीं करता है। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

दयनीयश्च दयाळुः कोऽस्ति मदन्यस्त्वदन्य इह वद भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥३३॥

अर्थ: हे नाथ मेरे से अधिक याचक कौन है और आपसे अधिक कृपालु कौन है। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

धर्मस्थापनदक्ष त्र्यक्ष गुरो दक्षयज्ञशिक्षक भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥३४॥

अर्थ : हे नाथ आपके पास धर्म को स्थापित रखने की शक्ति और प्रभाव है। हे प्रभु आप त्रिनेत्र धारी हैं, आप गुरु हैं और आप ही दक्ष के बलिदान के प्रभाव को समाप्त करने वाले हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

ननु ताडीतोऽसि धनुषा लुब्धधिया त्वं पुरा नरेण विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ३५॥

अर्थ : हे नाथ हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

परिमातुं तव मूर्तिं नालमजस्तत्परात्परोऽसि विभो।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ३६॥

हिंदी मीनिंग : हे नाथ ब्रह्मा और विष्णु भी आपकी थाह नहीं ले सकते हैं, आपकी शक्तियों को नहीं जान पाए हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

फलमिह नृतया जनुषस्त्वत्पदसेवा सनातनेश विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ३७॥

अर्थ : हे नाथ आपके चरण कमल की सेवा  मानव जन्म के रूप में उपहार है। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

बलमारोग्यं चायुस्त्वद्गुणरुचितां चिरं प्रदेहि विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ३८॥

अर्थ : हे नाथ मुझे सदा स्थाई / चिर काल के लिए सामर्थ्य और शक्ति प्रदान करें। मुझे दीर्घायु और स्वास्थ्य प्रदान करें, और ऐसी बुद्धि दें जो सदा आपमें ही लगी रहे। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

भगवन भर्ग भयापह भूतपते भूतिभूषिताङ्ग विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ३९॥

अर्थ : हे नाथ आप सूर्य के स्वामी हैं और पाप और बुराइयों का अंत करने वाले और भय दूर करने वाले हैं। आप भूत गण के स्वामी हैं। आपके तन पर भभूति रमी हुई है। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

महिमा तव नहि माति श्रुतिषु हिमानीधरात्मजाधव भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ४०॥
अर्थ : हे नाथ आप पार्वती के स्वामी हैं जो हिमालय की पुत्री हैं। आपकी महानता का थाह वेद भी लगाने में सक्षम नहीं है। 
हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

यमनियमादिभिरङ्गैर्यमिनो हृदये भजन्ति स त्वं भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ४१॥

अर्थ : हे नाथ आप यम और नियम (वैदिक क्रियाएं ) के माध्यम से ध्यान कर रहे हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

रज्जावहिरिव शुक्तौ रजतमिव त्वयि जगन्ति भान्ति विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ४२॥

अर्थ : हे नाथ जैसे  सर्प के स्थान पर रस्सी प्रतीत होती है। जैसे चांदी आवरण के रूप में प्रतीत होती है। ऐसे ही आप इस जगत में प्रकट होते हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

लब्ध्वा भवत्प्रसादाच्चक्रं विधुरवति लोकमखिलं भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ४३॥

अर्थ : हे नाथ आपकी कृपा से ही भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र प्राप्त किया जो जगत की रक्षा के लिए है। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

वसुधातद्धरतच्छयरथमौर्वीशरपराकृतासुर भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ४४॥

अर्थ : हे नाथ आदिशेष भवगवान विष्णु जी रथ के रूप में हैं और आप दानवों का अंत करने वाले हैं। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

शर्व देव सर्वोत्तम सर्वद दुर्वृत्तगर्वहरण विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ४५॥

अर्थ : हे नाथ आप ही देवताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं। आप दुर्जनों के अभिमान को दूर करने के लिए उनका अंत करे। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

षड्रिपुषडूर्मिषड्विकारहर सन्मुख षण्मुखजनक विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ४६॥

अर्थ : हे नाथ आप छः प्रकार के शत्रुओं इच्छा, क्रोध, लालच, वासना, अभिमान और ईर्ष्या, को समाप्त करते हैं। संवेदनाओं की छह लहरें (प्यास, भूख, दु: ख, मोह, बुढ़ापा और मृत्यु) और जीवन के छह परिवर्तन (अस्तित्व, जन्म, वृद्धि, परिपक्वता, क्षय और मृत्यु), जो छह-मुखी कार्तिकेय (सुब्रह्मण्य) का पिता है, और जिसका सार अनंत काल है, हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्मेत्येतल्लक्षणलक्षित भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ४७॥

अर्थ : हे नाथ हे प्रभु, सत्य, ज्ञान और अनंत की विशेषता वाला ब्रह्म कौन है?
हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

हाहाहूहूमुखसुरगायकगीतपदानवद्य विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ४८॥

अर्थ : हे नाथ आपकी महानता का वर्णन गन्धर्व के गीतों से प्राप्त होता है।  हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

ळादिर्न हि प्रयोगस्तदन्तमिह मङ्गळं सदाऽस्तु विभो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥ ४९॥

अर्थ : हे नाथ ला शब्द मंगला सभी के लिए शुभ हो। हे अनादि और अनंत नाथ, पार्वती माता के पति, सदा शांत रहने वाले, आप समस्त सुखों के स्त्रोत हैं, आपके चरणों में मेरा स्थान है, मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ।

क्षणमिव दिवसान्नेष्य़ति त्वत्पदसेवाक्षणोत्सुकः शिव भो ।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥५०॥

अर्थ : हे नाथ जो आपके चरणों में स्थान रखने का इच्छुक है वह एक पल में बहुत अधिक समय आपके चरणों में बिताना चाहता है। 

इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यश्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य
श्रीशङ्करभगवतः कृतौ सुवर्णमालास्तुतिः संपूर्णा॥

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