बुधवार, 30 जून 2021

जय भगवंत अनंत अनामय.../ श्री रामचरित मानस, उत्तर काण्ड / गोस्वामी तुलसीदास रचित / गायक : सुरेश वाडेकर

 https://youtu.be/b1XZMH2b6Mo  

जय भगवंत अनंत अनामय...
सुनि प्रभु बचन हरषि मुनि चारी।पुलकित तन अस्तुति अनुसारी॥
जय भगवंत अनंत अनामय। अनघ अनेक एक करुनामय॥१॥

मंगलवार, 29 जून 2021

तेरी उल्फत में सनम दिल ने बहुत दर्द सहे.../ तुफेल होशियारपुरी / स्वर : नहीद अख्तर

 https://youtu.be/y2JUA4kIOUc 

Teri Ulfat Mein Sannam, Dil Nay Buhat Dard Sahay..

Film : Sarfarosh - Urdu - 1956 (Pakistan)
Oiginal Singer : Zubaida Khanum 
Voice in this video : Naheed Akhtar
Music : Rasheed Attray
Poet : Tufail Hoshiarpuri 

तेरी उल्फ़त में सनम 
दिल ने बहुत दर्द सहे 
और हम चुप ही रहे 
ग़म हमें लूट गया 
हाय, दिल टूट गया 
फिर भी आँसू न बहे 
और हम चुप ही रहे 

हमने मिलते ही नज़र 
दिल दिया नज़राना तुझे 
प्यार से, प्यार भरा 
कह दिया अफ़साना तुझे 
तुझसे पाया ये सिला 
दर्द दुनिया से मिला 
ग़म ज़माने के सहे 
और हम चुप ही रहे 

आग सीने में लगी 
ऐसी कि, निकला न धुआँ 
इस तरह जल गया दिल 
दिल है, न अब दिल का निशां 
हाय अब दिल का निशां 
इस क़दर ज़ब्त किया 
हमने हर अश्क़ पिया 
दिल में अरमां न रहे 
और हम चुप ही रहे 

फ़स्ल-ए-ग़ुल आ भी चुकी 
आस के ग़ुंचे न खिले 
फ़ासले बढ़ते गए 
मिल के भी, दो दिल न मिले 
बन के हर नक़्श मिटा 
क़ाफ़िला दिल का लुटा 
अश्क़ थम-थम के बहे 
और हम चुप ही रहे 
तेरी उल्फ़त में सनम.... 

सोमवार, 28 जून 2021

जय राम रमारमनं समनं.../ श्री रामचरित मानस - उत्तर काण्ड / गोस्वामी तुलसी दास रचित / गायक : महेंद्र कपूर

 https://youtu.be/iPmNG78FqFI   

राज्याभिषेक उपरान्त शम्भु कृत श्री राम स्तुति 

छंद
जय राम रमारमनं समनं। भवताप भयाकुल पाहि जनं॥ अवधेस सुरेस रमेस बिभो। सरनागत मागत पाहि प्रभो॥1॥ भावार्थ:-हे राम! हे रमारमण (लक्ष्मीकांत)! हे जन्म-मरण के संताप का नाश करने वाले! आपकी जय हो, आवागमन के भय से व्याकुल इस सेवक की रक्षा कीजिए। हे अवधपति! हे देवताओं के स्वामी! हे रमापति! हे विभो! मैं शरणागत आपसे यही माँगता हूँ कि हे प्रभो! मेरी रक्षा कीजिए॥1॥ दससीस बिनासन बीस भुजा। कृत दूरि महा महि भूरि रुजा॥ रजनीचर बृंद पतंग रहे। सर पावक तेज प्रचंड दहे॥2॥ भावार्थ:-हे दस सिर और बीस भुजाओं वाले रावण का विनाश करके पृथ्वी के सब महान्‌ रोगों (कष्टों) को दूर करने वाले श्री रामजी! राक्षस समूह रूपी जो पतंगे थे, वे सब आपके बाण रूपी अग्नि के प्रचण्ड तेज से भस्म हो गए॥2॥ महि मंडल मंडन चारुतरं। धृत सायक चाप निषंग बरं। मद मोह महा ममता रजनी। तम पुंज दिवाकर तेज अनी॥3॥ भावार्थ:-आप पृथ्वी मंडल के अत्यंत सुंदर आभूषण हैं, आप श्रेष्ठ बाण, धनुष और तरकस धारण किए हुए हैं। महान्‌ मद, मोह और ममता रूपी रात्रि के अंधकार समूह के नाश करने के लिए आप सूर्य के तेजोमय किरण समूह हैं॥3॥ मनजात किरात निपात किए। मृग लोग कुभोग सरेन हिए॥ हति नाथ अनाथनि पाहि हरे। बिषया बन पावँर भूलि परे॥4॥ भावार्थ:-कामदेव रूपी भील ने मनुष्य रूपी हिरनों के हृदय में कुभोग रूपी बाण मारकर उन्हें गिरा दिया है। हे नाथ! हे (पाप-ताप का हरण करने वाले) हरे ! उसे मारकर विषय रूपी वन में भूल पड़े हुए इन पामर अनाथ जीवों की रक्षा कीजिए॥4॥ बहु रोग बियोगन्हि लोग हए। भवदंघ्रि निरादर के फल ए॥ भव सिंधु अगाध परे नर ते। पद पंकज प्रेम न जे करते॥5॥ भावार्थ:-लोग बहुत से रोगों और वियोगों (दुःखों) से मारे हुए हैं। ये सब आपके चरणों के निरादर के फल हैं। जो मनुष्य आपके चरणकमलों में प्रेम नहीं करते, वे अथाह भवसागर में पड़े हैं॥5॥ अति दीन मलीन दुखी नितहीं। जिन्ह कें पद पंकज प्रीति नहीं॥ अवलंब भवंत कथा जिन्ह कें। प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह कें॥6॥ भावार्थ:-जिन्हें आपके चरणकमलों में प्रीति नहीं है वे नित्य ही अत्यंत दीन, मलिन (उदास) और दुःखी रहते हैं और जिन्हें आपकी लीला कथा का आधार है, उनको संत और भगवान्‌ सदा प्रिय लगने लगते हैं॥6॥ नहिं राग न लोभ न मान सदा। तिन्ह कें सम बैभव वा बिपदा॥ एहि ते तव सेवक होत मुदा। मुनि त्यागत जोग भरोस सदा॥7॥ भावार्थ:-उनमें न राग (आसक्ति) है, न लोभ, न मान है, न मद। उनको संपत्ति सुख और विपत्ति (दुःख) समान है। इसी से मुनि लोग योग (साधन) का भरोसा सदा के लिए त्याग देते हैं और प्रसन्नता के साथ आपके सेवक बन जाते हैं॥7॥ करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ। पद पंकज सेवत सुद्ध हिएँ॥ सम मानि निरादर आदरही। सब संतु सुखी बिचरंति मही॥8॥ भावार्थ:-वे प्रेमपूर्वक नियम लेकर निरंतर शुद्ध हृदय से आपके चरणकमलों की सेवा करते रहते हैं और निरादर और आदर को समान मानकर वे सब संत सुखी होकर पृथ्वी पर विचरते हैं॥8॥ मुनि मानस पंकज भृंग भजे। रघुबीर महा रनधीर अजे॥ तव नाम जपामि नमामि हरी। भव रोग महागद मान अरी॥9॥ भावार्थ:-हे मुनियों के मन रूपी कमल के भ्रमर! हे महान्‌ रणधीर एवं अजेय श्री रघुवीर! मैं आपको भजता हूँ (आपकी शरण ग्रहण करता हूँ) हे हरि! आपका नाम जपता हूँ और आपको नमस्कार करता हूँ। आप जन्म-मरण रूपी रोग की महान्‌ औषध और अभिमान के शत्रु हैं॥9॥ गुन सील कृपा परमायतनं। प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं॥ रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं। महिपाल बिलोकय दीन जनं॥10॥ भावार्थ:-आप गुण, शील और कृपा के परम स्थान हैं। आप लक्ष्मीपति हैं, मैं आपको निरंतर प्रणाम करता हूँ। हे रघुनन्दन! (आप जन्म-मरण, सुख-दुःख, राग-द्वेषादि) द्वंद्व समूहों का नाश कीजिए। हे पृथ्वी का पालन करने वाले राजन्‌। इस दीन जन की ओर भी दृष्टि डालिए॥10॥ दोहा
बार बार बर मागउँ हरषि देहु श्रीरंग। पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग॥14 क॥ भावार्थ:-मैं आपसे बार-बार यही वरदान माँगता हूँ कि मुझे आपके चरणकमलों की अचल भक्ति और आपके भक्तों का सत्संग सदा प्राप्त हो। हे लक्ष्मीपते! हर्षित होकर मुझे यही दीजिए॥ बरनि उमापति राम गुन हरषि गए कैलास। तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास॥14 ख॥ भावार्थ:-श्री रामचंद्रजी के गुणों का वर्णन करके उमापति महादेवजी हर्षित होकर कैलास को चले गए। तब प्रभु ने वानरों को सब प्रकार से सुख देने वाले डेरे दिलवाए॥14 (ख)॥

रविवार, 27 जून 2021

हमारी सांसो में आज तक वो हिना की खुशबू महक रही है.../ तस्लीम फाजली (१९४७ - १९८२) / नूर जहां

https://youtu.be/hI3PEDLGPKU 

तस्लीम फ़ाज़ली  
पाकिस्तानी शायर। असली नाम इज़हार अनवर। दिल्ली में वर्ष १९४७ में पैदा हुए। 
बाद में पाकिस्तान चले गए। 
मशहूर हिंदुस्तानी शायर निदा फ़ाज़ली के भाई। उर्दू फिल्मों के प्रख्यात गीतकार हुए। 
फिल्म आशिक़ से वर्ष १९६८ में शुरुआत। 
कुछ प्रसिद्द नग़्मे -
खुदा करे कि, मोहब्बत में वो मक़ाम आये। (अफ्शां - १९७१) 
रफ़्ता-रफ़्ता वो मेरी हस्ती का सामां  हो गए। (ज़ीनत - १९७५)
अगस्त १७, १९८२ को मृत्यु हुई। 

हमारी साँसों में आज तक वोह हीना की खुशबू महक रही है
लबों पे नग़मे मचल रहे हैं नज़र से मस्ती छलक रही है

सांस, Saans: Breath, Sigh
हीना, Heena: The plant Lawsonia inermis, Egyptian privet or Indian myrtle, henna (used for dyeing the hands and feet and hair)
खुशबू, Khushboo: Aroma, Fragrance, Scent
महक, Mehak: A wide-spread fragrance; fragrance, odour, perfume
नग़मा, Naghma: Melody, Musical Note, Song, Tone, Tune
मचल, Machal: Wayward, headstrong, obstinate, perverse; refractory, disobedient; restive, fidgety; pert; cross; squeamish, fastidious.
मस्ती, Masti: Lust, Intoxication
छलक, Chhalak: Running over, overflow; splashing, splash

वो मेरे नज़दीक आते आते हया से एक दिन सिमट गए थे
मेरे ख्यालों में आज तक वोह बदन की डाली लचक रही है

नज़दीक, Nazdeek: Near, Juxtaposition
हया, Hayaa: Bashfulness, Modesty, Retiring, Shame, Shyness
सिमट, Simat: The act of collecting, condensing, constringing; contracting, contraction; crumpling up, shrivelling, shrinking
ख़याल, Khayaal: Care, Imagination, Judgement, Opinion, Respect, Remember, Thought, Whim
डाली, Daali: Basket, Branch
लचक, Lachak: Elasticity
लचकना, Lachakna: Bend, Flex

सदा जो दिल से निकल रही है वो शेर-ओ-नग़मों में ढल रही है
के दिल के आँगन में जैसे कोई ग़ज़ल की झांझर छनक रही है 

सदा, Sadaa: Always, Call, Conversation, Echo, Ever, Sound, Tone, Voice
शेर, Sher: Poetry, verse; a verse, a couplet
ढलता, Dhalta: Rolling; falling; moving, slipping, shifting
आँगन, Aangan: Frontyard, Yard
झांझर, Jhaanjhar: A cymbal; a hollow tinkling anklet

तड़प मेरे बेकरार दिल की कभी तो उन पे असर करेगी
कभी तो वो भी जलेंगे इसमें जो आग दिल में देहक रही है

तड़प, Tadap: Yearning, Yen
बेकरार, Bekaraar: Uneasy, Restless, Unsettled
असर, Asar: Action, Effect, Governance, Impression , Influence, Mark, Ruin, Sign, Trace
देहक, Dahek: Burning, blazing, conflagration; glow; ardour, fervency, fervour

शनिवार, 26 जून 2021

तू छुट्टी लेके आजा बालमा.../ नाहिद अख़्तर

 https://youtu.be/bzTmJGjOyJc   

Naheed Akhtar, born in 1956 in MultanPunjabis a Pakistani 
playback singerHer career began in 1970 when she sang a duet 
with Khalid Asghar in "Raag Malhar" at Radio Pakistan Multan

आये मौसम रंगीले सुहाने 
आये मौसम रंगीले सुहाने

आये मौसम रंगीले सुहाने
जिया नाही माने 
तू छुट्टी लेके आजा बालमा 

ओ...जब बहती नदिया शोर करे 
मेरा दिल मिलने को जोर करे 
याद आयें ख़ुशी के ज़माने 
जिया नाही माने 
तू छुट्टी लेके आजा बालमा 

जब आये पंछी शाम ढले 
मेरे दिल में तेरी याद चले 
हो... कोई गाए अनोखे तराने 
जिया नाही माने 
तू छुट्टी लेके आजा बालमा 

कहीं फूल को भौंरा चूम गया 
मेरा दिल मस्ती में झूम गया 
कोई मेरी लगी को न जाने 
जिया नाही माने 
तू छुट्टी लेके आजा बालमा 

शुक्रवार, 25 जून 2021

जय जय सुरनायक.../ श्री रामचरित मानस - बालकाण्ड / गोस्वामी तुलसीदास रचित / स्वर : संजय रॉय

 https://youtu.be/XMgaa-5-mGo 

छंद
जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता ।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिधुंसुता प्रिय कंता ॥

पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई ।
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई ॥

जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा ।
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा ॥

जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगतमोह मुनिबृंदा ।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा ॥

जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा ।
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा ॥

जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा ।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुर जूथा ॥

सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहि जाना ।
जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना ॥

भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा ।
मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा ॥

दोहा
जानि सभय सुरभूमि सुनि बचन समेत सनेह ।
गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह ॥
- गोस्वामी तुलसीदास रचित, रामचरित मानस, बालकाण्ड -१८६ 

गुरुवार, 24 जून 2021

छुन छुन छुन, मेरी पायल की धुन.../ गायिका : नहीद अख़्तर

 https://youtu.be/2l8ITW4wzNE


नहीद अख़्तर पाकिस्तानी पृष्ठभूमि गायिका है। वह शहर मुल्तान में वर्ष १९५६ में पैदा हुई थीं । 
अख़्तर पाकिस्तान के सर्वश्रेष्ठ गायकों में से एक है।

छुन छुन छुन...

छुन छुन छुन, 
मेरी पायल की धुन
गए तेरा ही तराना 
कभी आके तू सुन 
कभी...आ... के...सुन 

सीप में जैसे मोती 
और जैसे गगन में तारा 
ऐसे ही चमके बालमा 
मेरे दिल में प्यार तुम्हारा 
पायल मेरी रैन-दिना 
पिया गाए तेरे गुन 

छुन छुन छुन...

छुन छुन छुन, 
मेरी पायल की धुन
गए तेरा ही तराना 
कभी आके तू सुन 
कभी...आ... के...सुन 

तुम आये रुत बदली 
महकी जीवन की फुलवारी 
जोत जली और पंछी बोले 
फूल खिले हर डारी 
प्यार के सपने रूप की कलियाँ 
बलमा आ के चुन 
हो सजना आ के चुन 

छुन छुन छुन...

छुन छुन छुन, 
मेरी पायल की धुन
गए तेरा ही तराना 
कभी आके तू सुन 
कभी...आ... के...सुन 

बुधवार, 23 जून 2021

जय राम सोभा धाम... / श्री रामचरित मानस - लंका काण्ड / गोस्वामी तुलसी दास रचित / स्वर : जगजीत सिंह एवं सुरेश वाडेकर

 https://youtu.be/tLtiGV2L2gw 

रावण वध उपरान्त देवराज इंद्र कृत श्री राम स्तुति 

दोहा
अनुज जानकी सहित प्रभु कुसल कोसलाधीस। सोभा देखि हरषि मन अस्तुति कर सुर ईस ॥ ११२ ॥ छंद
जय राम सोभा धाम। दायक प्रनत बिश्राम ॥ धृत त्रोन बर सर चाप। भुजदंड प्रबल प्रताप ॥ १ ॥ जय दूषनारि खरारि। मर्दन निसाचर धारि ॥ यह दुष्ट मारेउ नाथ। भए देव सकल सनाथ ॥ २ ॥ जय हरन धरनी भार। महिमा उदार अपार ॥ जय रावनारि कृपाल। किए जातुधान बिहाल ॥ ३ ॥ लंकेस अति बल गर्ब। किए बस्य सुर गंधर्ब ॥ मुनि सिद्ध नर खग नाग। हठि पंथ सब कें लाग ॥ ४ ॥ परद्रोह रत अति दुष्ट। पायो सो फलु पापिष्ट ॥ अब सुनहु दीन दयाल। राजीव नयन बिसाल ॥ ५ ॥ मोहि रहा अति अभिमान। नहिं कोउ मोहि समान ॥ अब देखि प्रभु पद कंज। गत मान प्रद दुख पुंज ॥ ६ ॥ कोउ ब्रह्म निर्गुन ध्याव। अब्यक्त जेहि श्रुति गाव ॥ मोहि भाव कोसल भूप। श्रीराम सगुन सरूप ॥ ७ ॥ बैदेहि अनुज समेत। मम हृदयँ करहु निकेत ॥ मोहि जानिए निज दास। दे भक्ति रमानिवास ॥ ८ ॥ दे भक्ति रमानिवास त्रास हरन सरन सुखदायकं। सुख धाम राम नमामि काम अनेक छबि रघुनायकं ॥ सुर बृंद रंजन द्वंद भंजन मनुज तनु अतुलितबलं। ब्रह्मादि संकर सेब्य राम नमामि करुना कोमलं ॥ दोहा
अब करि कृपा बिलोकि मोहि आयसु देहु कृपाल। काह करौं सुनि प्रिय बचन बोले दीनदयाल ॥ ११३ ॥

मंगलवार, 22 जून 2021

जय जय देव हरे.../ महाकवि जय देव रचित / मुख्य स्वर एवं संगीत : रामाश्रय अच्युत (नेपाल)

 https://youtu.be/D6didJri8S0  

श्रित-कमला-कुच-मण्डल धृत-कुण्डल ए
कलित-ललित-वन-माल जय जय देव हरे (१)

दिन-मणि-मण्डल-मण्डन भव-खण्डन ए
मुनि-जन-मानस-हंस जय जय देव हरे (२)

कालिय-विष-धर-गञ्जन जन-रञ्जन ए
यदुकुल-नलिन-दिनेश जय जय देव हरे (३)

मधु-मुर-नरक-विनाशन गरुडासन ए
सुर-कुल-केलि-निदान जय जय देव हरे (४)

अमल-कमल-दल-लोचन भव-मोचन ए
त्रिभुवन-भुवन-निधान जय जय देव हरे (५)

जनक-सुता-कृत-भूषण जित-दूषण ए
समर-शमित-दश-कण्ठ जय जय देव हरे (६)

अभिनव-जल-धर-सुन्दर धृत-मन्दर ए
श्री-मुख-चन्द्र-चकोर जय जय देव हरे (७)

तव चरणं प्रणता वयम् इति भावय ए
कुरु कुशलं प्रणतेषु जय जय देव हरे (८)

श्री-जयदेव-कवेर् इदं कुरुते मुदम् ए
मङ्गलम् उज्ज्वल-गीतं जय जय देव हरे (९)

अनुवाद

श्रितकमलाकुचमण्डल! धृत कुण्डल! 
कलित-ललित-वनमाल! 
जय जय देव हरे ॥1॥ ध्रुवम्र॥

अनुवाद - हे श्रीराधा जी के स्तन मण्डल का आश्रय लेने वाले! कानों में कुण्डल तथा अतिशय मनोहर वनमाला धारण करने वाले हे हरे! आपकी जय हो॥ अथवा हे देव! हे हरे! हे कमला कुचमण्डल बिहारी! हे कुण्डल भूषण धारि! हे ललित मालाधर! आपकी जय हो ॥1॥

दिनमणि-मण्डल-मण्डन! भवखण्डन! 
मुनिजन-मानस-हंस! 
जय जय देव हरे ॥2॥ 

अनुवाद - हे देव! हे हरे! हे सूर्य-मण्डल को विभूषित करने वाले, भव-बन्धन का छेदन करने वाले! मुनिजनों के मानस सरोवर में विहार करने वाले हंस! आपकी जय हो! जय हो ॥2॥

कालिय-विषधर-गञ्जन जनरञ्जन!
यदुकुल-नलिन-दिनेश!
जय जय देव हरे ॥3॥

अनुवाद- हे देव! हे हरे! विषधर कालिय नाम के नाग का मद चूर्ण करने वाले, निजजनों को आह्लादित करने वाले, हे यदुकुलरूप कमल के प्रभाकर! आपकी जय हो! जय हो ॥3॥

मधु-मुर-नरक-विनाशन! गरुड़ासन! 
सुरकुल-केलि-निदान! 
जय जय देव हरे ॥4॥

अनुवाद- हे देव! हे हरे! हे मधुसूदन! हे मुरारे! हे नरकान्तकारी! हे गरुड़-वाहन! हे देवताओं के क्रीड़ा-विहार-निदान, आपकी जय हो! जय हो ॥4॥

जनक-सुता-कृतभूषण! जितदूषण! 
समर-शमित-दशकण्ठ! 
जय जय देव हरे ॥6॥

अनुवाद- हे देव! हे हरे! श्रीरामावतार में सीता जी को विभूषित करने वाले, दूषण नामक राक्षस पर विजय प्राप्त करने वाले तथा युद्ध में दशानन रावण को वधकर शान्त करने वाले, आपकी जय हो! जय हो ॥6॥

अभिनव-जलधर-सुन्दर! धृतमन्दर! 
श्रीमुखचन्द्रचकोर! 
जय जय देव हरे॥7॥ 

अनुवाद- हे नवीन जलधर के समान वर्ण वाले श्यामसुन्दर! हे मन्दराचल को धारण करने वाले! श्रीराधारूप महालक्ष्मी के मुखचन्द्र पर आसक्त रहने वाले चकोर-स्वरूप! हे हरे! हे देव! आपकी जय हो! जय हो ॥7॥

तव चरणे प्रणता वयम्र इति भावय। 
कुरु कुशलं प्रणतेषु, 
जय जय देव हरे ॥8॥ 

अनुवाद- हे भगवन! हम आपके चरणों में शरणागत हैं। आप प्रेमभक्ति प्रदान कर अपने प्रति प्रणतजनों का कुशल विधान करें। हे देव! हे हरे! आपकी जय हो! जय हो ॥8॥

श्रीजयदेवकवेरिदं कुरुते मुदम्। 
मंगलमुज्ज्वलगीतम्, 
जय जय देव हरे ॥9॥ 

अनुवाद- श्रीजयदेव कवि प्रणीत यह मनोहर, उज्ज्वल गीतिमय मंगलाचरण आपका आनन्द वर्द्धन करें अथवा आपके गुणों के श्रवण कीर्तन करने वाले भक्तजनों को आनन्द प्रदान करें। आपकी जय हो! जय हो ॥9॥

साभार krishnakosh.org



सोमवार, 21 जून 2021

ओ मेरा बाबू छैल छबीला, मैं तो नाचूँगी.../ रूना लैला

 https://youtu.be/-R2I9kgQelI  

Runa Laila (born 17 November 1952) is a Bangladeshi playback singer and composer. She started her career in Pakistan film industry in the late 1960s. Her style of singing is inspired by Pakistani playback singer Ahmed Rushdi and she also made a pair with him after replacing another singer Mala. Her playback singing in films – The Rain (1976), Jadur Banshi (1977), Accident (1989), Ontore Ontore (1994), Devdas (2013) and Priya Tumi Shukhi Hou (2014) - earned her seven Bangladesh National Film Awards for Best Female Playback Singer.[1] She won the Best Music Composer award for the film Ekti Cinemar Golpo (2018).

ओ मेरा बाबू छैल छबीला, मैं तो नाचूँगी
ओ मेरा बलमा रँग रंगीला, मैं तो नाचूँगी
ओ मेरा बाबू छैल छबीला, मैं तो नाचूँगी
ओ मेरा बलमा रँग रंगीला, मैं तो नाचूँगी
कजरा लगाके, गजरा सजाके, मैं शर्माऊँ रे
ओ मेरा बाबू छैल छबीला, मैं तो नाचूँगी
ओ मेरा बलमा रँग रंगीला, मैं तो नाचूँगी
आँखों में प्यार बसाके
करता है मीठी-मीठी बतियाँ
आँखों में प्यार बसाके
करता है मीठी-मीठी बतियाँ
होंठों पे फूल खुशी के
हँस दे तो बिखरें पत्तियाँ
प्यार जताये नैन लड़ाये मैं कित जाऊँ रे
हाय मैं कित जाऊँ रे
ओ मेरा बाबू छैल छबीला, मैं तो नाचूँगी
ओ मेरा बलमा रँग रंगीला, मैं तो नाचूँगी
आज हँसेगी देखके
मुझको सारी सखियाँ
आज हँसेगी देखके
मुझको सारी सखियाँ
पास बुलाके चुपके से
पूछेँगी सजना कि बतियाँ
कुछ न बताऊँ, सब से छुपाऊँ, मैं घबराऊँ रे
हाय मैं घबराऊँ रे
ओ मेरा बाबू छैल छबीला, मैं तो

रविवार, 20 जून 2021

इतना टूटा हूँ के, छूने से, बिखर जाऊँगा.../ ग़ज़ल : मोईन नज़र / प्रस्तुति : गुलाम अली

 https://youtu.be/vL3BwIs3xbI 


Moin Nazar is a Lyricist in Bollywood.

ग़ज़ल : मोईन नज़र प्रस्तुति : गुलाम अली इतना टूटा हूँ के, छूने से, बिखर जाऊँगा - 2 अब अगर और, दुआ दोगे तो, मर जाऊँगा - 2 इतना टूटा हूँ के, छूने से, बिखर जाऊँगा - 2 पूछकर, मेरा पता वक्त, रायगां न करो - 2 मैं तो बंजारा हूँ, क्या जाने, किधर जाऊँगा - 2 अब अगर और, दुआ दोगे तो, मर जाऊँगा इतना टूटा हूँ के, छूने से, बिखर जाऊँगा..... हर तरफ़ धुंध है, जुगनू है, न चराग कोई - 2 कौन पहचानेगा, बस्ती में, अगर जाऊँगा - 2 अब अगर और, दुआ दोगे तो, मर जाऊँगा इतना टूटा हूँ के, छूने से, बिखर जाऊँगा..... ज़िन्दगी मैं भी, मुसाफिर हूँ, तेरी कश्ती का - 2 तू जहाँ मुझसे, कहेगी मैं, उतर जाऊँग - 2 अब अगर और, दुआ दोगे तो, मर जाऊँगा इतना टूटा हूँ के, छूने से, बिखर जाऊँगा..... फूल रह जायेंगे, गुलदानों में, यादों की नज़र - 2 मै तो खुशबु हूँ, फिज़ाओं में, बिखर जाऊँगा - 2 अब अगर और, दुआ दोगे तो, मर जाऊँगा इतना टूटा हूँ के, छूने से, बिखर जाऊँगा..... इतना टूटा हूँ के, छूने से, बिखर जाऊँगा अब अगर और, दुआ दोगे तो, मर जाऊँगा इतना टूटा हूँ के, छूने से, बिखर जाऊँगा..... बिखर जाऊँगा - 2

शनिवार, 19 जून 2021

श्याम तामरस दाम शरीरं...(श्री रामचरित मानस - अरण्य काण्ड) / गोस्वामी तुलसी दास / गायक : श्रीकान्त परगांवकर

 https://youtu.be/528FNZne0O8  

सुतीक्ष्ण मुनि कृत श्री राम स्तुति 

चौपाई
कह मुनि प्रभु सुनु बिनती मोरी। अस्तुति करौं कवन बिधि तोरी।।
महिमा अमित मोरि मति थोरी। रबि सन्मुख खद्योत अँजोरी।।
श्याम तामरस दाम शरीरं। जटा मुकुट परिधन मुनिचीरं।। 
पाणि चाप शर कटि तूणीरं। नौमि निरंतर श्रीरघुवीरं।।
मोह विपिन घन दहन कृशानुः। संत सरोरुह कानन भानुः।।
निशिचर करि वरूथ मृगराजः। त्रातु सदा नो भव खग बाजः।।
अरुण नयन राजीव सुवेशं। सीता नयन चकोर निशेशं।।
हर ह्रदि मानस बाल मरालं। नौमि राम उर बाहु विशालं।।
संशय सर्प ग्रसन उरगादः। शमन सुकर्कश तर्क विषादः।।
भव भंजन रंजन सुर यूथः। त्रातु सदा नो कृपा वरूथः।।
निर्गुण सगुण विषम सम रूपं। ज्ञान गिरा गोतीतमनूपं।।
अमलमखिलमनवद्यमपारं। नौमि राम भंजन महि भारं।।
भक्त कल्पपादप आरामः। तर्जन क्रोध लोभ मद कामः।।
अति नागर भव सागर सेतुः। त्रातु सदा दिनकर कुल केतुः।।
अतुलित भुज प्रताप बल धामः। कलि मल विपुल विभंजन नामः।।
धर्म वर्म नर्मद गुण ग्रामः। संतत शं तनोतु मम रामः।। 
जदपि बिरज ब्यापक अबिनासी। सब के हृदयँ निरंतर बासी।।
तदपि अनुज श्री सहित खरारी। बसतु मनसि मम काननचारी।।
जे जानहिं ते जानहुँ स्वामी। सगुन अगुन उर अंतरजामी।।
जो कोसल पति राजिव नयना। करउ सो राम हृदय मम अयना।
अस अभिमान जाइ जनि भोरे। मैं सेवक रघुपति पति मोरे।।
सुनि मुनि बचन राम मन भाए। बहुरि हरषि मुनिबर उर लाए।।
परम प्रसन्न जानु मुनि मोही। जो बर मागहु देउ सो तोही।।
मुनि कह मै बर कबहुँ न जाचा। समुझि न परइ झूठ का साचा।।
तुम्हहि नीक लागै रघुराई। सो मोहि देहु दास सुखदाई।।
अबिरल भगति बिरति बिग्याना। होहु सकल गुन ग्यान निधाना।।
प्रभु जो दीन्ह सो बरु मैं पावा। अब सो देहु मोहि जो भावा।। 

सोरठा
अनुज जानकी सहित प्रभु चाप बान धर राम।
मम हिय गगन इंदु इव बसहु सदा निहकाम।।11।।

चौपाई 

कह मुनि प्रभु सुनु बिनती मोरी। अस्तुति करौं कवन बिधि तोरी॥
महिमा अमित मोरि मति थोरी। रबि सन्मुख खद्योत अँजोरी॥1

भावार्थ:-मुनि कहने लगे- हे प्रभो! मेरी विनती सुनिए। मैं किस प्रकार से आपकी स्तुति करूँआपकी महिमा अपार है और मेरी बुद्धि अल्प है। जैसे सूर्य के सामने जुगनू का उजाला!॥1

श्याम तामरस दाम शरीरं। जटा मुकुट परिधन मुनिचीरं॥
पाणि चाप शर कटि तूणीरं। नौमि निरंतर श्रीरघुवीरं॥2

भावार्थ:-हे नीलकमल की माला के समान श्याम शरीर वाले! हे जटाओं का मुकुट और मुनियों के (वल्कल) वस्त्र पहने हुएहाथों में धनुष-बाण लिए तथा कमर में तरकस कसे हुए श्री रामजी! मैं आपको निरंतर नमस्कार करता हूँ॥2

मोह विपिन घन दहन कृशानुः। संत सरोरुह कानन भानुः॥
निसिचर करि वरूथ मृगराजः। त्रास सदा नो भव खग बाजः॥3

भावार्थ:-जो मोह रूपी घने वन को जलाने के लिए अग्नि हैंसंत रूपी कमलों के वन को प्रफुल्लित करने के लिए सूर्य हैंराक्षस रूपी हाथियों के समूह को पछाड़ने के लिए सिंह हैं और भव (आवागमन) रूपी पक्षी को मारने के लिए बाज रूप हैंवे प्रभु सदा हमारी रक्षा करें॥3

 अरुण नयन राजीव सुवेशं। सीता नयन चकोर निशेशं॥

हर हृदि मानस बाल मरालं। नौमि राम उर बाहु विशालं॥4

भावार्थ:-हे लाल कमल के समान नेत्र और सुंदर वेश वाले! सीताजी के नेत्र रूपी चकोर के चंद्रमाशिवजी के हृदय रूपी मानसरोवर के बालहंसविशाल हृदय और भुजा वाले श्री रामचंद्रजी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ॥4

 संशय सर्प ग्रसन उरगादः। शमन सुकर्कश तर्क विषादः॥

भव भंजन रंजन सुर यूथः। त्रातु सदा नो कृपा वरूथः॥5

भावार्थ:-जो संशय रूपी सर्प को ग्रसने के लिए गरुड़ हैंअत्यंत कठोर तर्क से उत्पन्न होने वाले विषाद का नाश करने वाले हैंआवागमन को मिटाने वाले और देवताओं के समूह को आनंद देने वाले हैंवे कृपा के समूह श्री रामजी सदा हमारी रक्षा करें॥5

 निर्गुण सगुण विषम सम रूपं। ज्ञान गिरा गोतीतमनूपं॥

अमलमखिलमनवद्यमपारं। नौमि राम भंजन महि भारं॥6

भावार्थ:-हे निर्गुणसगुणविषम और समरूप! हे ज्ञानवाणी और इंद्रियों से अतीत! हे अनुपमनिर्मलसंपूर्ण दोषरहितअनंत एवं पृथ्वी का भार उतारने वाले श्री रामचंद्रजी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ॥6

 भक्त कल्पपादप आरामः। तर्जन क्रोध लोभ मद कामः॥

अति नागर भव सागर सेतुः। त्रातु सदा दिनकर कुल केतुः॥7

भावार्थ:-जो भक्तों के लिए कल्पवृक्ष के बगीचे हैंक्रोधलोभमद और काम को डराने वाले हैंअत्यंत ही चतुर और संसार रूपी समुद्र से तरने के लिए सेतु रूप हैंवे सूर्यकुल की ध्वजा श्री रामजी सदा मेरी रक्षा करें॥7

 अतुलित भुज प्रताप बल धामः। कलि मल विपुल विभंजन नामः॥

धर्म वर्म नर्मद गुण ग्रामः। संतत शं तनोतु मम रामः॥8

भावार्थ:-जिनकी भुजाओं का प्रताप अतुलनीय हैजो बल के धाम हैंजिनका नाम कलियुग के बड़े भारी पापों का नाश करने वाला हैजो धर्म के कवच (रक्षक) हैं और जिनके गुण समूह आनंद देने वाले हैंवे श्री रामजी निरंतर मेरे कल्याण का विस्तार करें॥8

 जदपि बिरज ब्यापक अबिनासी। सब के हृदयँ निरंतर बासी॥

तदपि अनुज श्री सहित खरारी। बसतु मनसि मम काननचारी॥9

भावार्थ:-यद्यपि आप निर्मलव्यापकअविनाशी और सबके हृदय में निरंतर निवास करने वाले हैंतथापि हे खरारि श्री रामजी! लक्ष्मणजी और सीताजी सहित वन में विचरने वाले आप इसी रूप में मेरे हृदय में निवास कीजिए॥9

 जे जानहिं ते जानहुँ स्वामी। सगुन अगुन उर अंतरजामी॥

जो कोसलपति राजिव नयना। करउ सो राम हृदय मम अयना॥10

भावार्थ:-हे स्वामी! आपको जो सगुणनिर्गुण और अंतर्यामी जानते होंवे जाना करेंमेरे हृदय में तो कोसलपति कमलनयन श्री रामजी ही अपना घर बनावें॥10

 अस अभिमान जाइ जनि भोरे। मैं सेवक रघुपति पति मोरे॥

सुनि मुनि बचन राम मन भाए। बहुरि हरषि मुनिबर उर लाए॥11

भावार्थ:-ऐसा अभिमान भूलकर भी न छूटे कि मैं सेवक हूँ और श्री रघुनाथजी मेरे स्वामी हैं। मुनि के वचन सुनकर श्री रामजी मन में बहुत प्रसन्न हुए। तब उन्होंने हर्षित होकर श्रेष्ठ मुनि को हृदय से लगा लिया॥11

 परम प्रसन्न जानु मुनि मोही। जो बर मागहु देउँ सो तोही॥

मुनि कह मैं बर कबहुँ न जाचा। समुझि न परइ झूठ का साचा॥12

भावार्थ:-(और कहा-) हे मुनि! मुझे परम प्रसन्न जानो। जो वर माँगोवही मैं तुम्हें दूँ! मुनि सुतीक्ष्णजी ने कहा- मैंने तो वर कभी माँगा ही नहीं। मुझे समझ ही नहीं पड़ता कि क्या झूठ है और क्या सत्य है, (क्या माँगूक्या नहीं)॥12

 तुम्हहि नीक लागै रघुराई। सो मोहि देहु दास सुखदाई॥

अबिरल भगति बिरति बिग्याना। होहु सकल गुन ग्यान निधाना॥13

भावार्थ:-((अतः) हे रघुनाथजी! हे दासों को सुख देने वाले! आपको जो अच्छा लगेमुझे वही दीजिए। (श्री रामचंद्रजी ने कहा- हे मुने!) तुम प्रगाढ़ भक्तिवैराग्यविज्ञान और समस्त गुणों तथा ज्ञान के निधान हो जाओ॥13

 प्रभु जो दीन्ह सो बरु मैं पावा। अब सो देहु मोहि जो भावा॥14

भावार्थ:-(तब मुनि बोले-) प्रभु ने जो वरदान दियावह तो मैंने पा लिया। अब मुझे जो अच्छा लगता हैवह दीजिए॥14

सोरठा 

अनुज जानकी सहित प्रभु चाप बान धर राम।
मन हिय गगन इंदु इव बसहु सदा निहकाम॥11