मंगलवार, 22 जून 2021

जय जय देव हरे.../ महाकवि जय देव रचित / मुख्य स्वर एवं संगीत : रामाश्रय अच्युत (नेपाल)

 https://youtu.be/D6didJri8S0  

श्रित-कमला-कुच-मण्डल धृत-कुण्डल ए
कलित-ललित-वन-माल जय जय देव हरे (१)

दिन-मणि-मण्डल-मण्डन भव-खण्डन ए
मुनि-जन-मानस-हंस जय जय देव हरे (२)

कालिय-विष-धर-गञ्जन जन-रञ्जन ए
यदुकुल-नलिन-दिनेश जय जय देव हरे (३)

मधु-मुर-नरक-विनाशन गरुडासन ए
सुर-कुल-केलि-निदान जय जय देव हरे (४)

अमल-कमल-दल-लोचन भव-मोचन ए
त्रिभुवन-भुवन-निधान जय जय देव हरे (५)

जनक-सुता-कृत-भूषण जित-दूषण ए
समर-शमित-दश-कण्ठ जय जय देव हरे (६)

अभिनव-जल-धर-सुन्दर धृत-मन्दर ए
श्री-मुख-चन्द्र-चकोर जय जय देव हरे (७)

तव चरणं प्रणता वयम् इति भावय ए
कुरु कुशलं प्रणतेषु जय जय देव हरे (८)

श्री-जयदेव-कवेर् इदं कुरुते मुदम् ए
मङ्गलम् उज्ज्वल-गीतं जय जय देव हरे (९)

अनुवाद

श्रितकमलाकुचमण्डल! धृत कुण्डल! 
कलित-ललित-वनमाल! 
जय जय देव हरे ॥1॥ ध्रुवम्र॥

अनुवाद - हे श्रीराधा जी के स्तन मण्डल का आश्रय लेने वाले! कानों में कुण्डल तथा अतिशय मनोहर वनमाला धारण करने वाले हे हरे! आपकी जय हो॥ अथवा हे देव! हे हरे! हे कमला कुचमण्डल बिहारी! हे कुण्डल भूषण धारि! हे ललित मालाधर! आपकी जय हो ॥1॥

दिनमणि-मण्डल-मण्डन! भवखण्डन! 
मुनिजन-मानस-हंस! 
जय जय देव हरे ॥2॥ 

अनुवाद - हे देव! हे हरे! हे सूर्य-मण्डल को विभूषित करने वाले, भव-बन्धन का छेदन करने वाले! मुनिजनों के मानस सरोवर में विहार करने वाले हंस! आपकी जय हो! जय हो ॥2॥

कालिय-विषधर-गञ्जन जनरञ्जन!
यदुकुल-नलिन-दिनेश!
जय जय देव हरे ॥3॥

अनुवाद- हे देव! हे हरे! विषधर कालिय नाम के नाग का मद चूर्ण करने वाले, निजजनों को आह्लादित करने वाले, हे यदुकुलरूप कमल के प्रभाकर! आपकी जय हो! जय हो ॥3॥

मधु-मुर-नरक-विनाशन! गरुड़ासन! 
सुरकुल-केलि-निदान! 
जय जय देव हरे ॥4॥

अनुवाद- हे देव! हे हरे! हे मधुसूदन! हे मुरारे! हे नरकान्तकारी! हे गरुड़-वाहन! हे देवताओं के क्रीड़ा-विहार-निदान, आपकी जय हो! जय हो ॥4॥

जनक-सुता-कृतभूषण! जितदूषण! 
समर-शमित-दशकण्ठ! 
जय जय देव हरे ॥6॥

अनुवाद- हे देव! हे हरे! श्रीरामावतार में सीता जी को विभूषित करने वाले, दूषण नामक राक्षस पर विजय प्राप्त करने वाले तथा युद्ध में दशानन रावण को वधकर शान्त करने वाले, आपकी जय हो! जय हो ॥6॥

अभिनव-जलधर-सुन्दर! धृतमन्दर! 
श्रीमुखचन्द्रचकोर! 
जय जय देव हरे॥7॥ 

अनुवाद- हे नवीन जलधर के समान वर्ण वाले श्यामसुन्दर! हे मन्दराचल को धारण करने वाले! श्रीराधारूप महालक्ष्मी के मुखचन्द्र पर आसक्त रहने वाले चकोर-स्वरूप! हे हरे! हे देव! आपकी जय हो! जय हो ॥7॥

तव चरणे प्रणता वयम्र इति भावय। 
कुरु कुशलं प्रणतेषु, 
जय जय देव हरे ॥8॥ 

अनुवाद- हे भगवन! हम आपके चरणों में शरणागत हैं। आप प्रेमभक्ति प्रदान कर अपने प्रति प्रणतजनों का कुशल विधान करें। हे देव! हे हरे! आपकी जय हो! जय हो ॥8॥

श्रीजयदेवकवेरिदं कुरुते मुदम्। 
मंगलमुज्ज्वलगीतम्, 
जय जय देव हरे ॥9॥ 

अनुवाद- श्रीजयदेव कवि प्रणीत यह मनोहर, उज्ज्वल गीतिमय मंगलाचरण आपका आनन्द वर्द्धन करें अथवा आपके गुणों के श्रवण कीर्तन करने वाले भक्तजनों को आनन्द प्रदान करें। आपकी जय हो! जय हो ॥9॥

साभार krishnakosh.org



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