यह हमारा सौभाग्य है कि अनाथबन्धु घोष जैसे स्वर वाला फ़कीर
आज जीवित है, वर्ना यह विश्वास करना कठिन हो जाता कि
आखिर महाकवि जयदेव ने घोर श्रृंगार के माध्यम से भक्ति की
संस्कृत पाठ एवं हिंदी अनुवाद
साभार krishnakosh.org
केलिचलन्मणि-कुण्डल-मण्डित-गण्डयुग-स्मितशाली
हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे
विलासिनी विलसति केलिपरे ॥1॥ ध्रुवम्र॥
अनुवाद- हे विलासिनी श्रीराधे! देखो! पीतवसन धारण किये हुए,
अपने तमाल-श्यामल-अंगो में चन्दन का विलेपन करते हुए,
केलिविलासपरायण श्रीकृष्ण इस वृन्दाविपिन में मुग्ध वधुटियों के
साथ परम आमोदित होकर विहार कर रहे हैं, जिसके कारण
दोनों कानों में कुण्डल दोलायमान हो रहे हैं, उनके कपोलद्वय
की शोभा अति अद्भुत है। मधुमय हासविलास के द्वारा
मुखमण्डल अद्भुत माधुर्य को प्रकट कर रहा है ॥1॥
अनुवाद- सखि! देखो, यमुना पुलिन पर मनोहर वेतसी (वञ्जुल या वेंत)
अनुवाद- श्रृंगार-रस की लालसा में श्रीकृष्ण कहीं किसी रमणी का
पराकाष्ठा कैसे प्राप्त की।
इस चक्षु हीन, संत समान, महान बाउल गायक के अमृत स्वरों में
महाकवि जयदेव कृत "गीत गोविन्द" की एक श्रृंगार पगी अष्टपदी
"चन्दन चर्चित नील कलेवर.." सुधी एवं गुणग्राही रसिक जनों के
आनंद हेतु प्रस्तुत है।
-अरुण मिश्र
https://youtu.be/y47v7hzdo1U
(Courtesy MALIK BHAROSA page you tube)
Anathbandhu Ghosh Geet Govindam
ANATHBONDHU GHOSH | The True Voice Of Baul
He has his own vision ,he sees the outside world with the eyes of his soul , so he is our ultimate master ( Parom Guru ) today . He is the living legend Sri Ananthbondhu Ghosh . He is the resource of our folk culture of Bengal . Many of us do not know him, because he is behind the scenes of ordinary people. He resides in his own heart, and lives in the hearts of people in love .
He composed songs based on his own nature . In fact, it is very difficult to recognize the legend people , just as Anath Bandhu Ghosh . There are very few people in my own self-view, in the folk culture of Bengal, like Guru Ananthbandhu Ghosh .
My firm belief that his creation will be immortal . If not today, people will listen to his songs after a hundred years, and people will judge his value on that day .
LYRICS TEXT AND TRANSLATION
चन्दन-चर्चित-नील-कलेवर.....
महाकवि जयदेव कृत गीत गोविन्द की एक अष्टपदी
साभार krishnakosh.org
English transliteration and commentary :https://gitagovinda.wordpress.com/2012/11/22/ashtapadi4/
Chandana charchita nila kalevar....(Geet Govindam)
Context and Meaning
Radha’s friend continues her narrative from the previous ashtapadi. She is reporting to Radha what Krishna is doing, and boy, is she rubbing it in! All the maids of Vrndavana seem to be enjoying Krishna’s company except for poor forlorn Radha! The friend describes one gopi’s romantic antics per couplet, and you can imagine what this does to Radha…
candana-carcita-nīla-kalevara-pīta-vasana-vana-mālī |
keli-calan-maṇi-kuṇḍala-maṇḍita-gaṇḍa-yuga-smita-śālī ||1||
keli-calan-maṇi-kuṇḍala-maṇḍita-gaṇḍa-yuga-smita-śālī ||1||
haririha mugdha-vadhū-nikare vilāsini vilāsati kelī-pare ||dhruvapadaṃ||
चन्दन-चर्चित-नील-कलेवर पीतवसन-वनमाली केलिचलन्मणि-कुण्डल-मण्डित-गण्डयुग-स्मितशाली
हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे
विलासिनी विलसति केलिपरे ॥1॥ ध्रुवम्र॥
अनुवाद- हे विलासिनी श्रीराधे! देखो! पीतवसन धारण किये हुए,
अपने तमाल-श्यामल-अंगो में चन्दन का विलेपन करते हुए,
केलिविलासपरायण श्रीकृष्ण इस वृन्दाविपिन में मुग्ध वधुटियों के
साथ परम आमोदित होकर विहार कर रहे हैं, जिसके कारण
दोनों कानों में कुण्डल दोलायमान हो रहे हैं, उनके कपोलद्वय
की शोभा अति अद्भुत है। मधुमय हासविलास के द्वारा
मुखमण्डल अद्भुत माधुर्य को प्रकट कर रहा है ॥1॥
pīna-payodhara-bhāra-bhareṇa hariṃ parirabhya sarāgam |
gopa-vadhūranugāyati kācid udañcita-parama-rāgam ||2||
gopa-vadhūranugāyati kācid udañcita-parama-rāgam ||2||
पीन-पयोधर-भार-भरेण हरिं परिरभ्य सरागं। गोपवधूरनुगायति काचिदुदञ्चित-पञ्चम-रागम [हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥2॥]
अनुवाद- देखो सखि! वह एक गोपांगना अपने पीनतर पयोधर-युगल के विपुल भार को श्रीकृष्ण के वक्षस्थल पर सन्निविष्टकर प्रगाढ़ अनुराग के साथ सुदृढ़रूप से आलिंगन करती हुई उनके साथ पञ््चम स्वर में गाने लगती है।
kāpi vilāsa-vilola-vilocana-khelana-janita-manojam |
dhyāyati mugdha-vadhūradhikaṃ madhusūdana-vadana-sarojam ||3||
dhyāyati mugdha-vadhūradhikaṃ madhusūdana-vadana-sarojam ||3||
कापि विलास-विलोल-विलोचन-खेलन-जनित-मनोजं।
ध्यायति मुग्धवधूरधिकं मधुसूदन-वदन-सरोजम्र
[हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥3॥]
ध्यायति मुग्धवधूरधिकं मधुसूदन-वदन-सरोजम्र
[हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥3॥]
अनुवाद- देखो सखि! श्रीकृष्ण जिस प्रकार निज अभिराम मुखमण्डलकी श्रृंगार रस भरी चंचल नेत्रों की कुटिल दृष्टि से कामिनियों के चित्त में मदन विकार करते हैं, उसी प्रकार यह एक वरांगना भी उस वदनकमल में अश्लिष्ट (संसक्त) मकरन्द पान की अभिलाषा से लालसान्वित होकर उन श्रीकृष्ण का ध्यान कर रही है।
kāpi kapola-tale militā lapituṃ kim api śruti-mūle |
cāru cucumba nitambavatī dayitaṃ pulakair anukūle ||4||
cāru cucumba nitambavatī dayitaṃ pulakair anukūle ||4||
कापि कपोलतले मिलिता लपितुं किमपि श्रुतिमूले। चारु चुचुम्ब नितम्बवती दयितं पुलकैरनुकूले [हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥4॥]
अनुवाद- वह देखो सखि! एक नितम्बिनी (गोपी) ने अपने प्राणवल्लभ श्रीकृष्ण के कर्ण (श्रुतिमूल) में कोई रहस्यपूर्ण बात करने के बहाने जैसे ही गण्डस्थल पर मुँह लगाया तभी श्रीकृष्ण उसके सरस अभिप्राय को समझ गये और रोमाञ्चित हो उठे। पुलकाञ्चित श्रीकृष्ण को देख वह रसिका नायिका अपनी मनोवाञ्छा को पूर्ण करने हेतु अनुकूल अवसर प्राप्त करके उनके कपोल को परमानन्द में निमग्न हो चुम्बन करने लगी।
keli-kalā-kutukena ca kācid amuṃ yamunā-jala-kūle |
mañjula-vañjula-kuñja-gataṃ vicakarṣa kareṇa dukūle ||5||
mañjula-vañjula-kuñja-gataṃ vicakarṣa kareṇa dukūle ||5||
केलि-कला-कुतुकेन च काचिदमुं यमुनावनकुले।
मञ्जुल-वञ्जुल-कुञ्जगतं विचकर्ष करेण दुकूले
[हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥5॥]
मञ्जुल-वञ्जुल-कुञ्जगतं विचकर्ष करेण दुकूले
[हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥5॥]
अनुवाद- सखि! देखो, यमुना पुलिन पर मनोहर वेतसी (वञ्जुल या वेंत)
कुञ्ज में किसी गोपी ने एकान्त पाकर कामरस वशवर्त्तिनी हो
क्रीड़ाकला कौतूहल से उनके वस्त्रयुगल को अपने हाथों से पकड़कर खींच लिया।
kara-tala-tāla-tarala-valayāvali-kalita-kalasvana-vaṃśe |
rāsa-rase saha-nṛtya-parā hariṇa-yuvatī-praśaśaṃse ||6||
rāsa-rase saha-nṛtya-parā hariṇa-yuvatī-praśaśaṃse ||6||
करतल-ताल-तरल-वलयावलि-कलित-कलस्वन-वंशे। रासरसे सहनृत्यपरा हरिणा युवति: प्रशंससे [हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥6॥]
अनुवाद- हाथों की ताली के तान के कारण चञ्चल कंगण-समूह से अनुगत वंशीनाद से युक्त अद्भुत स्वर को देखकर श्रीहरि रासरस में आनन्दित नृत्य-परायणा किसी युवती की प्रशंसा करने लगे।
śliṣyati kām api cumbati kām api kām api ramayati rāmām |
paśyati sa-smita-cāru-tarām aparām anugacchati vāmām ||7|
paśyati sa-smita-cāru-tarām aparām anugacchati vāmām ||7|
श्लिष्यति कामपि चुम्बति कामपि कामपि रमयति रामां।पश्यति सस्मित-चारुतरामपरामनुगच्छति बामां[हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥7॥]
अनुवाद- श्रृंगार-रस की लालसा में श्रीकृष्ण कहीं किसी रमणी का
आलिंगन करते हैं, किसी का चुम्बन करते हैं, किसी के साथ
रमण कर रहे हैं और कहीं मधुर स्मित सुधा का अवलोकन कर
किसी को निहार रहे हैं तो कहीं किसी मानिनी के पीछे-पीछे चल रहे हैं।
śrī-jayadeva-bhaṇitam idam adbhuta-keśava-keli-rahasyam |
vṛndāvana-vipine lalitaṃ vitanotu śubhāni yaśasyam ||8||
vṛndāvana-vipine lalitaṃ vitanotu śubhāni yaśasyam ||8||