गर दिवाली का नतीजा न दिवाला होता...
-अरुण मिश्र
गर दिवाली का नतीजा न दिवाला होता।
चाँद का मुँह तो अमावस को न काला होता।।
तेल - बाती के लिए सारे दिए हैं बेचैन।
रौशनी कैसे हो, कुछ जलने तो वाला होता।।
बिना मिठाइयां, फीके तो न लगते त्यौहार।
काश ! खाया न कभी, मीठा निवाला होता।।
गुड़ कहाँ, दूध कहाँ, आँटा कहाँ से लायें।
इस से बेहतर था, कोई ख़्वाब न पाला होता।।
तंगदस्ती से ‘अरुन’ , तंग रहे होंगे जरूर।
वर्ना दरवाज़े से, क्या दोस्त को टाला होता।।
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