सोमवार, 23 अक्तूबर 2017

गर दिवाली का नतीजा........


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गर दिवाली का नतीजा न दिवाला होता...
-अरुण मिश्र 

गर  दिवाली  का  नतीजा  न  दिवाला    होता। 
चाँद  का  मुँह  तो अमावस को न काला होता।।

तेल - बाती   के   लिए   सारे   दिए   हैं  बेचैन।
रौशनी कैसे  हो,  कुछ  जलने  तो वाला  होता।।

बिना  मिठाइयां, फीके   तो  न   लगते त्यौहार।
काश ! खाया  न   कभी,  मीठा  निवाला  होता।।

गुड़  कहाँ,  दूध  कहाँ, आँटा   कहाँ  से  लायें।
इस से  बेहतर  था,  कोई  ख़्वाब  न पाला होता।।

तंगदस्ती  से   ‘अरुन’ ,  तंग  रहे  होंगे  जरूर।
वर्ना  दरवाज़े  से,  क्या  दोस्त को  टाला  होता।।
                                  *


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