रविवार, 31 जनवरी 2021

तोता उड़ी जाणा एक दिन रे......(अंतिम सत्य) / हिमाचली लोकगीत से प्रेरित / रचना : राजेंद्र आचार्य / स्वर : गोपाल शर्मा एवं राजेंद्र आचार्य

 https://youtu.be/KPDA1rpFxFw  

तोता उड़ी जाणा एक दिन रे 2 पिंजरा छोड़ी जाना एक दिन रे 2 रातें बीतें सोते सोते दिन ये बीते हँसते रोते सोचो विचारो जीवन में यारो क्या हो पाते क्या हो खोते कोठडू फुकी जाना एक दिन रे सब कुछ मुकी जाना एक दिन रे टिक टिक टिक पल जायेगा कोई आज गया कोई कल जायेगा न कर खुद पे इतना गुमान तू तेरा यौवन भी ढल जायेगा सपना टूटी जाना एक दिन रे सब तोसे रूठी जाना एक दिन रे बून्द बून्द जोड़ के भरे घड़ा तू खुद को सोचे फिर बड़ा तू है ये किस चक्कर में पड़ा तू भूल भुलैया में है अड़ा तू घड़ा यह फूटी जाना एक दिन रे सब यहीं छुटि जाना

शनिवार, 30 जनवरी 2021

श्री शङ्कराचार्य कृतं - अन्नपूर्णा स्तोत्रम् / शिवश्री स्कन्दप्रसाद​

 https://youtu.be/ZmkjjN8YwNc


पौष बड़ा उत्सव
 | आज का भजन

नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी ।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१॥
अर्थात्-देवि अन्नपूर्णा ! तुम सदैव सबका आनन्द बढ़ाया करती हो, तुमने अपने हाथ में वर तथा अभय मुद्रा धारण की हैं, तुम्हीं सौंदर्यरूप रत्नों की खान हो, तुम्हीं भक्तगणों के समस्त पाप विनाश करके उनको पवित्र करती हो, तुम्हीं साक्षात् माहेश्वरी हो और तुमने ही हिमालय का वंश पवित्र किया है, तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी हो, तुम्हीं अन्नपूर्णेश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहारविलम्बमानविलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी ।
काश्मीरागरुवासिताङ्गरुचिरे काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥२॥
अर्थात्-देवि अन्नपूर्णा ! तुम्हीं अनेक प्रकार के विचित्र रत्नों से जड़े हुए आभूषण धारण करती हो, तुम्हीं ने स्वर्ण-रचित वस्त्र पहन करके मुक्तामय हार द्वारा दोनों स्तन सुशोभित किए हैं, सारे शरीर पर कुंकुम और अगर का लेपन करके अपनी शोभा बढ़ाई है, तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी हो, तुम्हीं अन्नपूर्णेश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी ।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥३॥
अर्थात्-हे देवि ! तुम्हीं योगीजनों को आनन्द प्रदान करती हो, तुम्ही भक्तगणों के शत्रुओं का विनाश करती हो, तुम्हीं धर्मार्थ साधन में प्रीति बढ़ाती हो, तुमने ही चन्द्र, सूर्य और अग्नि की आभा धारण कर रखी है, तुम्हीं तीनों भुवनों की रक्षा करती हो, तुम्हारे भक्तगण जो इच्छा करते हैं, तुम उनको वही सब ऐश्वर्य प्रदान करती हो, हे माता ! तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी ।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥४॥
अर्थात्-हे अन्नपूर्णे ! तुम्हीं ने कैलास पर्वत की कंदरा में अपना निवास स्थापित किया है । हे माता ! तुम्हीं गौरी, तुम्हीं उमा और तुम्हीं शंकरी हो, तुम्हीं कौमारी हो, वेद के गूढ़ अर्थ को बताने वाली हो, तुम्हीं बीज मंत्र ओंकार की देवी हो और तुम्हीं मोक्ष-द्वार के दरवाजे खोलती हो, तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो, हे जननि ! कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
दृश्यादृश्यविभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी ।
श्रीविश्वेशमनःप्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥५॥
अर्थात्-हे देवि ! तुम्हीं स्थूल और सूक्ष्म-समस्त जीवों को पवित्रता प्रदान करती हो, यह ब्रह्माण्ड तुम्हारे ही उदर में स्थित है, तुम्हारी लीला में सम्पूर्ण जीव अपना-अपना कार्य करते हैं, तुम्हीं ज्ञानरूप प्रदीप का स्वरूप हो, तुन्हीं श्रीविश्वनाथ का संतोषवर्द्धन करती हो । हे माता अन्नपूर्णेश्वरी ! तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
उर्वीसर्वजनेश्वरी भगवती मातान्नपूर्णेश्वरी
वेणीनीलसमानकुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥६॥
अर्थात्-हे अन्नपूर्णे ! तुम्हीं पृथ्वीमण्डल स्थित जनसमूह की ईश्वरी हो, तुम षडेश्वर्यशालिनी हो, तुम्हीं जगत् की माता हो, तुम्हीं सबको अन्न प्रदान करती हो । तुम्हारे नीलवर्ण केश वेणी रूप से शोभा पाते हैं, तुम्हीं प्राणीगण को नित्य अन्न प्रदान करती हो और तुम्हीं लोकों को अवस्था की उन्नति प्रदान करती हो । हे माता ! तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरात्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी ।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥७॥
अर्थात्-हे देवि ! लोग तन्त्रविद्या में दीक्षित होकर जो कुछ शिक्षा करते हैं, वह तुम्हीं ने वर्णन करके उपदेश प्रदान किया है । तुम्हीं ने हर (शंकरजी) के तीनों भाव (सत्, रज, तम) का विधान किया है, तुम्हीं काश्मीर वासिनी शारदा, अम्बा, भगवती हो, तुम्हीं स्वर्ग, मर्त्य और पाताल इन तीनों लोकों में ईश्वरीरूप से विद्यमान रहती हो । तुम्हीं गंगा, यमुना और सरस्वती-इन तीन रूपों से पृथ्वी में प्रवाहित रहती हो, नित्य वस्तु भी सब तुम्हीं से अंकुरित होती है, तुम्हीं शर्वरी (रात्रि) के समान चित्त के सभी व्यापारों को शांत करने वाली हो, तुम्हीं सकाम भक्तों को इच्छानुसार फल प्रदान करती हो और तुम्हीं सभी जनों का उन्नति साधन करती हो । हे जननि ! केवल तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो । हे माता अन्नपूर्णेश्वरी ! तुम्हीं कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वामं स्वादुपयोधरप्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥८॥
अर्थात्-हे देवि ! तुम सर्व प्रकार के विचित्र रत्नों से विभूषित हुई हो, तुम्हीं दक्षराज के गृह में पुत्री रूप से प्रकट हुई थीं, तुम्हीं केवल जगत की सुन्दरी हो, तुम्हीं अपने सुस्वादु पयोधर प्रदान करके जगत् का प्रिय कार्य करती हो, तुम्हीं सबको सौभाग्य प्रदान करके महेश्वरी रूप में विदित हुई हो, तुम्हीं भक्तगणों को वांछित फल प्रदान करती हो और उनकी बुरी अवस्था को शुभ रूप मे बदल देती हो । हे माता ! केवल तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी हो, तुम्हीं अन्नपूर्णेश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्निसमानकुन्तलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी ।
मालापुस्तकपाशासाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥९॥
अर्थात्-हे देवि ! तुम्हीं कोटि-कोटि चन्द्र, सूर्य और अग्नि के समान उज्ज्वल प्रभाशालिनी हो, तुम चन्द्र किरणों के तथा बिम्ब फल के समान अधरों से युक्त हो, तुम्हीं चन्द्र, सूर्य और अग्नि के समान उज्ज्वल कुण्डलधारिणी हो, तुमने ही चन्द्र, सूर्य के समान वर्ण धारण किया है, हे माता ! तुम्हीं चतुर्भुजा हो, तुमने चारों हाथों में माला, पुस्तक, पाश और अंकुश धारण किया है । हे अन्नपूर्णे ! तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरश्रीधरी ।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१०॥
अर्थात्-हे माता ! तुम्हीं क्षत्रियकुल की रक्षा करती हो, तुम्हीं सबको अभय प्रदान करती हो, प्राणियों की माता हो तुम्हीं कृपा का सागर हो, तुम्हीं भक्तगणों को मोक्ष प्रदान करती हो, और सर्वदा सभी का कल्याण करती हो, हे माता तुम्हीं विश्वेश्वरी हो, तुम्हीं संपूर्ण श्री को धारण करती हो, तुम्हीं ने दक्ष का नाश किया है और तुम्हीं भक्तों का रोग नाश करती हो । हे अन्नपूर्णे ! तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे ।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ॥११॥
अर्थात्-हे अन्नपूर्णे ! तुम्हीं सर्वदा पूर्ण रूप से हो, तुम्हीं महादेव की प्राणों के समान प्रियपत्नी हो । हे पार्वति ! तुम्हीं ज्ञान और वैराग्य की सिद्धि के निमित्त भिक्षा प्रदान करो, जिसके द्वारा मैं संसार से प्रीति त्याग कर मुक्ति प्राप्त कर सकूं, मुझको यही भिक्षा प्रदान करो ।
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः ।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥१२॥
अर्थात्-हे जननि ! पार्वती देवी मेरी माता, देवाधिदेव महेश्वर मेरे पिता शिवभक्त गण मेरे बांधव और तीनों भुवन मेरा स्वदेश है। इस प्रकार का ज्ञान सदा मेरे मन में विद्यमान रहे, यही प्रार्थना है ।
।। इति श्रीमच्छंकराचार्य विरचित अन्नपूर्णा स्तोत्रम् ।।

शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

भारत की प्रथम ग्रामोफ़ोन गायिका : गौहर जान (१८७३–१९३०)

https://youtu.be/1oV4X_j8sWk

https://youtu.be/SBQDW75Blr4 
गौहर जान 
(जन्म नाम एंजेलीना योवार्ड, २६ जून १८७३ – १७ जनवरी १९३०) 
कलकत्ता की एक भारतीय गायिका एवं नर्तिका थीं। वे ७८ आरपीएम रिकॉर्ड पर 
संगीत रिकॉर्ड करने वाली भारत की पहली कलाकारों में से एक थीं जिसे ग्रामोफ़ोन 
रिकॉर्ड पर ग्रामोफोन कंपनी द्वारा जारी किया गया।

गुरुवार, 28 जनवरी 2021

पारम्परिक ईरानी वाद्यवृन्द / आकर्षक, मधुर, उत्सवी प्रस्तुति

 https://youtu.be/37cW92t3Dkw 


An Iranian Traditional Music Ensemble
Hesar Ensemble - Dele Sheida ( Shabe Yalda ) Band Director : Mahnaz Poorghasemian Vocal : Nasim Rouhi , Zahra Chavoshi , Nasrin Omid kamanche : Tahmineh Jamshidian Setar : Efat Soleymani Tonbak : Monir Ghotbi Daf and Dayere : Mahnaz Poorghasemian

Shabe Yalda :
Yalda is one of the most celebrated traditional events in Iran
which marks the longest night of the year. Every year, on
December 21st, Iranians celebrate the arrival of winter,
the renewal of the sun and the victory of light over darkness
on Yalda Night. Family members get together (most often in
the house of the eldest member) and stay awake all night
long in Yalda. Watermelon, pomegranate and dried nuts are
served as a tradition and classic poetry and old mythologies
are read in the gathering. Getting a ‘Hafez reading’ from the
book of great Persian poet Shamsu d-Din Muhammad
Hafez-e Shirazi is also practiced in this night. Central Asian
countries such as Afghanistan, Tajikistan, Uzbekistan,
Turkmenistan and some Caucasian states such as Azerbaijan
and Armenia share the same tradition as well and celebrate
Yalda Night annually at this time of the year.

मंगलवार, 26 जनवरी 2021

श्री रामचन्द्र कृपालु.....(गोस्वामी तुलसीदास कृत) / स्वर : शिवश्री स्कन्दप्रसाद

 https://youtu.be/g7kFcat7ZCQ  

गोपिका जीवन स्मरणं गोविन्द ! गोविन्द ! 
Remember the soul of Gopis, Govinda, Govinda !
जानकीकान्तं स्मरणम जय जय राम ! राम !
Remember the soul of Sita, Victory, victory to Rama, Rama !
श्लोक :
श्री राघवम् दशरथात्मजम् अप्रमेयम्  
सीता पतिम् रघुकुलान्वय रत्नदीपम् 
आजानु बाहुम् अरविन्द दलायदाक्षम् 
रामम् निशाचर विनाशकरम् नमामि 
(श्री रामचन्द्र कृपालु... : गोस्वामी तुलसीदास कृत)
श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणं ।
नव कञ्ज लोचन कञ्ज मुख कर कञ्ज पद कञ्जारुणं ॥१॥
कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ॥२॥
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोसल चंद्र दशरथ नन्दनं ॥३॥
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदार अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं ।
मम हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं ॥५॥

भुवनभूषण ! भव्य भारतवर्ष ! भूतिनिधान हे !...(देश गान) / रचना : श्री विन्देश्वरी प्रसाद मिश्र / स्वर : माधवी मधुकर झा

 https://youtu.be/lrwzuavCZdU 


भुवनभूषण ! भव्यभारतवर्ष ! भूतिनिधान हे ! जय जयाजय ! धृतविनयनय ! हृद्य हिन्दुस्थान हे !!
अनवद्य हिन्दुस्थान हे !
तीनों लोकों के अलङ्कार,अत्यंत सुंदर और ऐश्वर्य के खजाने,
हे भारतवर्ष ! हे अजय,विनय और नीति को धारण करनेवाले,
ह्रदय के प्रिय लगने वाले, दोषरहित,
हे हिन्दुस्थान तुम्हारी जय हो जय हो | || १ || यत्र रत्नवसुंधरा यत्र मणिमयभूधराः अमृतवाहिन्यस्तटिनयस्तव समृद्धिवितान हे !
हृद्य हिन्दुस्थान हे ! अनवद्य हिन्दुस्थान हे !
जहाँ की धरती रत्नमयी है जहाँ के पर्वत मणि युक्त हैं
ऐसे तुम समृद्धि संपन्न हो | जहाँ नदियां अमृत रस बहाती हैं।
ह्रदय के प्रिय लगने वाले, दोषरहित,
हे हिन्दुस्थान ! तुम्हारी जय हो जय हो || २ || वेदमर्यादाधनम, सत्यधर्मसनातनं दिव्यपावनजीवनं तव विहितशास्त्रविधान हे ! हृद्य हिन्दुस्थान हे ! अनवद्य हिन्दुस्थान हे !
वैदिक मर्यादा ही तुम्हारा धन है, जहाँ का धर्म सत्य सनातन है,
जहाँ का जीवन शास्त्रीय विधान से अनुशासित है, ह्रदय के प्रिय
लगने वाले, दोषरहित, हे हिन्दुस्थान ! तुम्हारी जय हो जय हो | ३ || विश्वव्यापिन्यायतिः लोकमंगलसंस्कृतिः जय जयार्यावर्त ! हिन्दुजनौघमंडितमान हे ! हृद्य हिन्दुस्थान हे ! अनवद्य हिन्दुस्थान हे !
जिसका विस्तार विश्वव्यापी है, जिसकी संस्कृति लोक मगलकारिणी है।
ऐसे हे हिंदू जनता के स्वाभिमान,आर्यावर्त तुम्हारी जय हो - जय हो।
ह्रदय के प्रिय लगने वाले, दोषरहित, हे हिन्दुस्थान ! तुम्हारी जय हो जय हो || ४ || भगवदवतारावनिः जगतगुरुगौरवरवनिः त्वं विविधविद्याकलाकलितात्मतत्वज्ञान हे ! हृद्य हिन्दुस्थान हे ! अनवद्य हिन्दुस्थान हे !
तुम्हारी भूमि भगवान के अवतारों तथा जगतगुरुओं की प्रसूतिस्थली है,
तुम विविध विधाओं और कलाओं से युक्त आत्मविद्या के केंद्र हो। ह्रदय
के प्रिय लगने वाले, दोषरहित, हे हिन्दुस्थान ! तुम्हारी जय हो जय हो || ५ || सर्वमानवताहितं तव हि वर्णाश्रमयुतं बाह्यभेदे सत्यभेदस्त्वयि विमल विज्ञान हे ! हृद्य हिन्दुस्थान हे ! अनवद्य हिन्दुस्थान हे !
तुम्हारा वर्णाश्रमव्यवस्था से युक्त समाज सारी मानवता का हित करने वाला है।
बाहरी भेद रहने पर भी तुम्हारा अनुशासन में अभेद विराजमान है। ह्रदय के प्रिय
लगने वाले, दोषरहित, हे हिन्दुस्थान ! तुम्हारी जय हो जय हो || ६ ||
राष्ट्रदेव ! वयनन्नुम - स्त्वत्स्वरुपमावापनुमः, वन्द्य ! वृन्दारक सुवृन्दामन्दनन्दित गान हे ! हृद्य हिन्दुस्थान हे ! अनवद्य हिन्दुस्थान हे !
हे राष्ट्रदेवता हम आपको नमस्कार करते हुए आपके स्वरुप में स्थित है।
देवताओं के द्वारा जिसके गीत विपुल रूप से गाए जाते हैं, ऐसे आप वंदनीय
राष्ट्र ! आपकी जय हो - जय हो | ह्रदय के प्रिय लगने वाले, दोषरहित,
हे हिन्दुस्थान ! तुम्हारी जय हो जय हो || ७ || भुवनभूषण ! भव्यभारतवर्ष ! भूतिनिधान हे ! जय जयाजय ! धृतविनयनय ! हृद्य हिन्दुस्थान हे !!
अनवद्य हिन्दुस्थान हे !

सोमवार, 25 जनवरी 2021

हिमाद्रि तुंग श्रृंग से...(प्रयाण गीत) / जय शंकर 'प्रसाद'

 https://youtu.be/_glbEubVymw


हिमाद्रि तुंग श्रृंग से,
प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला,
स्वतंत्रता पुकारती।

अमर्त्य वीरपुत्र हो, 
दृढ प्रतिज्ञ सोच लो, 
प्रशस्त पुण्य पंथ है,
बढे चलो,बढे चलो।।

असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ,
विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
सपूत मातृभूमि के,
रुको न शूर साहसी।

अराति सैन्य सिंधु में,
सुवाड़वाग्नि-से जलो।
प्रवीर हो जयी बनो,
बढे चलो, बढे चलो।।

रविवार, 24 जनवरी 2021

वो जो हममे तुममे क़रार था तुम्हें याद हो के ना याद हो.../ हक़ीम मोमिन ख़ान 'मोमिन' (१८००-१८५२) / मंजरी

 https://youtu.be/i0sYZhPe2jY

मोमिन ख़ाँ मोमिन, (१८००-१८५२), 
ग़ालिब और ज़ौक़ के समकालीन। मोमिन उर्दू के उन चंद बाकमाल 
शायरों में से एक हैं जिनकी बदौलत उर्दू ग़ज़ल की प्रसिद्धि और 
लोकप्रियता को चार चांद लगे।  वह हकीम, ज्योतिषी और शतरंज के 
खिलाड़ी भी थे। कहा जाता है मिर्ज़ा ग़ालीब ने उनके शेर ' तुम मेरे पास 
होते हो गोया /जब कोई दूसरा नही होता '  पर अपना पूरा दीवान देने की 
बात कही थी।

Manjari (born 17 April 1986)is an Indian playback singer and 
Hindustani vocalist. Her first stage performance was with Shiva
the Kolkata - based rock band, when she was in class eight.

वो जो हममे तुममे क़रार था तुम्हें याद हो के ना याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो के ना याद हो

कोई बात ऐसी अगर हुई के तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो

सुनो ज़िक्र है कई साल का कोई वादा मुझ से था आप का
वो निभाने का तो ज़िक्र क्या तुम्हें याद हो के न याद हो

वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े-मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो

कभी हम में तुम में भी चाह थी कभी हम से तुम से भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आश्ना तुम्हें याद हो के न याद हो

हुए इत्तेफ़ाक़ से गर बहम वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिला-ए-मलामत-ए-अर्क़बा तुम्हें याद हो के न याद हो

वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेश्तर वो करम के था मेरे हाल पर
मुझे सब है याद ज़रा-ज़रा तुम्हें याद हो के न याद हो

कभी बैठे सब में जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तगू
वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो के न याद हो

की बात मैंने वो कोठे की मेरे दिल से साफ़ उतर गई
तो कहा के जाने मेरी बला तुम्हें याद हो के न याद हो

वो बिगड़ना वस्ल की रात का वो न मानना किसी बात का
वो नहीं-नहीं की हर आं अदा तुम्हें याद हो के न याद हो

जिसे आप गिनते थे आश्ना जिसे आप कहते थे बावफ़ा
मैं वही हूँ “मोमिन”-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो

शनिवार, 23 जनवरी 2021

एक तत्व नाम दृढ धरी मना...(मराठी अभंग) / संत ज्ञानेश्वर (१२७५-१२९६) / कुमारी शिवश्री स्कन्दप्रसाद

 https://youtu.be/pS1r_lsfna4


गायन : कुमारी शिवश्री स्कन्दप्रसाद हारमोनियम : श्री एस. मणिकंदन मृदंगम : श्री कार्तिक विश्वनाथन ढोलकी : श्री गोपाल कृष्णन

संत ज्ञानेश्वर (१२७५-१२९६), महाराष्ट्र तेरहवीं सदी के एक 
महान सन्त थे| इन्होंने ज्ञानेश्वरी की रचना की। संत ज्ञानेश्वर 
की गणना भारत के महान संतों एवं मराठी कवियों में होती है। 
ये संत नामदेव के समकालीन थे और उनके साथ इन्होंने पूरे 
महाराष्ट्र का भ्रमण कर लोगों को ज्ञान-भक्ति से परिचित 
कराया और समता, समभाव का उपदेश दिया। 
वे महाराष्ट्र-संस्कृति के 'आद्य-प्रवर्तकों' में भी माने जाते हैं।

एक तत्व नाम दृढ धरी मना | 
हरिसी करुणा येईल तुझी ||१||

ते नाम सोपे रे राम कृष्ण गोविंद |
वाचेसीं सदगद जपें आधीं ||२||

नामपरतें तत्व नाही रे अन्यथा ,
वायां आणिका पंथा जाशी झणे ||३||

ज्ञानदेवा मौन जप-माळ अंतरी,
धरोनी श्रीहरी जपे सदा ||४||

TRANSLATION :

O my mind, hold firmly to the essential Truth, the Divine Name.
Hari, the Lord, will shower His mercy on you.

Repeat it always with all your being.
It's so easy to repeat the name ; Rama, Krishna, Govinda.

There is no other truth like God's name.
To walk another path without the name is just a waste of time.

It's so easy to repeat the name ; Rama, Krishna, Govinda.

Gyandev says, silently behold the Jap Mala that is inside of you.
And repeat the name of God unceasingly.

Repeat it always with all your being.
It's so easy to repeat the name ; Rama, Krishna, Govinda.

A performing Bharathanatyam Artiste(Classical Dance form 
of India) and Carnatic musician. A passionate painter, taking 
up paid projects. Doing part-time modeling. Bio-Engineering 
Graduate, worked on drug induced developmental or fetal defects.

बुधवार, 20 जनवरी 2021

पञ्च पाषाण पद्यालु (संस्कृत / तेलगु ) / महाकवि कालिदास / पल्कुरिकी सोमनाथ / प्रस्तुति : वेदान्त मान्धाता

https://youtu.be/6pJ0Qrsg5mg


by Vedanth Mandhata 

Pancha Pashana Padyalu or Aksharanka Padyalu, are the
five toughest Telugu poems. Pancha Pashana Padyalu are
tongue twister poems.

Pashana means stone and the slokas are hard like a
stone which would be more apt in this case.

Poem 1 below is in Sanskrit by Kali Das :

Shadjamadja kharadja veedja vasudhaadja laanchithaadja khare Gnyadjatkitkit dharaadgha redghana khadjyotha veedyadbhramaa Veedyaaludbhrama tatpruta yatraya Thadhaa dadgradgra dadgradgraha Paadoutetpruta tatpruta rasathprakhyatha sakhyodayaha .

Rest four Poems 2 to 5 are in Telgu by Palkuriki Somanatha.

Practice these slokas to overcome your pronunciation
problem. These five poems are called as pancha pashana.
Means 5 toughest poems.In ancient days sanskrit / veda
learning students used to practice these poems to come
out from their pronouniation problems.

Palkuriki Somanatha was one of the most noted Telugu language 
writers of the 12th or 13th century. He was also an accomplished writer 
in the Kannada and Sanskrit languages and penned several classics in 
those languages. He was a Shaiva by faith and a follower of the 12th 
century social reformer Basava and his writings were primarily 
intended to propagate this faith. He was a well acclaimed Shaiva poet.