रविवार, 31 जुलाई 2011

शीतल हवा का एक झोंका.......


-अरुण मिश्र.

(टिप्पणी : इस कविता का नीचे उद्धृत अंग्रेजी अनुवाद, वर्ष २००४ में, अंग्रेजी के समर्थ एवं बुज़ुर्ग कवि श्री ए.के. दास, जो लगभग एक दशक पूर्व आई.ए.एस.से सेवानिवृत्त हो चुके हैं,द्वारा किया गया है| इस अनुग्रह के लिए मैं उनका आभारी हूँ | -अरुण मिश्र.)






 I'm a whiff of breeze.
Wherever I travel,
 what do I myself gather?
Dust, straw,
scent, bad smell, any thing;
cold, warmth, dampness every thing;
detached, I pick them up.

 I leave behind
 only happy feeling.
 And I move on
ahead, boundless
 towards the countless
 men, women, young and old
 waiting always
 for a whiff of wind.

Who will not desire
 a whiff of cool air
 that soothes the body,
 fills the mind with fragrance,
 comforts the agony of heart,
 and heals its scar.

The air blows for all;
 it will reach every one.
 You only keep
 your windows ajar.
             *
                                          Translated from Hindi
                                  -By Ajit Kumar Das,  I.A.S.(Rtd.)

                                       











शनिवार, 23 जुलाई 2011

काले-काले जो मेघ छाये हैं.....













-अरुण  मिश्र 

काले - काले     जो    मेघ    छाये   हैं |
जाने    किसका    संदेशा    लाये    हैं ||


हैं    ये    बादल    नहीं,   लिफाफे   हैं |
मेरे   साजन   का   ख़त   छिपाए   हैं ||


ये    जो    आये,   वो   आ   रहे   होंगे |
अक्स, रिम-झिम में झिलमिलाये हैं ||


बदलियाँ    हैं   कि,   छोरियां   चंचल |
जो,   शफक   की    हिना   रचाए   हैं ||


मन   बिंधा   है,  मदन   के  बानों  से |
इन्द्र,   नभ    में,    धनुष   उठाए   हैं ||   
                         *

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

अच्छी ग़ज़लें कहते हैं ...


अच्छी ग़ज़लें कहते हैं ...   

-अरुण मिश्र.

यारों  मेरे मुहल्ले में, इक  शख्स  ‘अरुन जी’  रहते हैं। 
हमें इल्म क्या , लोग कहें पर , अच्छी ग़ज़लें कहते हैं।।
  
बहकी - बहकी  बातें   करते , चहके - चहके  लहज़े  में। 
रात  को  शायद  रोते   होंगे , दिन  भर  हॅसते  रहते हैं।।
  
बातों  का  तो   सूत   कातते , सपनों  के   धागे   बुनते। 
खिले-खिले  से  दिखते , लेकिन  खोये - खोये  रहते हैं।।
  
सारा आलम अपना समझें,ख़ुद की सुध-बुध से गाफ़िल। 
ग़ैरों  के  ग़म  में  अक्सर ही ,  ऑख   भिगोये   रहते हैं।।
  
बोली-बानी   सब  कबीर   सी , मस्ती  पीर-फ़कीरों सी। 
मीर   से  दीवाने  लगते  हैं , हॅस कर  हर दुख  सहते हैं।।
                                        *