शनिवार, 9 जुलाई 2011

टुकड़ों टुकड़ों में आ रहे बादल...


-अरुण मिश्र.






















3 टिप्‍पणियां:

  1. यें घटाएँ,
    क्या मिटाएँगी ---
    मेरे मन की जलन ?
    ...................
    ...................
    टुकड़ों - टुकड़ों में --
    आ रहे बादल ।।

    गजब् की रचना है, उसमे भी ये विरहोक्ति अद्भुत लगी।

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  2. प्रिय अल्पना जी एवं प्रिय अमित जी, आप की सहृदय टिप्पणियों के लिए मैं आप दोनों का आभारी हूँ|
    -अरुण मिश्र.

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