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शनिवार, 26 जनवरी 2013

आज छब्बीस जनवरी है....

गणतंत्र दिवस की कोटि-कोटि शुभकामनायें 


illustration of Indian tricolor flag on abstract background Stock Photo - 14412218


आज छब्बीस जनवरी है...

-अरुण मिश्र.

इस फ़ज़ा में, गन्ध-रस की आज कैसी माधुरी है?
शीत रितु की यह सुहानी सुब्ह  क्यों रंगत भरी है?
संग तिरंगे के  हमारे  प्राण-मन  क्यों  फरफराते?
आज है गणतंत्र का शुभ पर्व, छब्बीस जनवरी है।।

जनवरी छब्बीस, रावी-तट,  विगत इतिहास
शूरमाये-जंगे-आज़ादी इकट्ठा थे।
सरफ़रोशी  की तमन्नायें लिये दिल में-
बाज़ू-ए-क़ातिल की हिम्मत आज़माने को।
हिन्द के वे शेर गरजे-
दुश्मनों  के हृदय लरज़े।
लाश होती क़ौम की मुर्दा नसों में,
फिर जगा था, - गर्म बहते ख़ून का अहसास।

देश  के हित मरने वालों की अमर है जाँफ़िशानी ।
रात  काली  काट  डाली,  सुब्ह  ले  आये  सुहानी।
वीर  पुरखों  की   हमारे  वो  शहादत   रंग  लायी-
देश के जन को मिली गणतंत्र की पावन निशानी।।

पुण्य स्मृति की मधुर बेला-
दिवस गणतंत्र का यह।
याद में उनके-
सभी के मन भरे, आँखें भरी हैं।
आज छब्बीस जनवरी है।।
                       *



रविवार, 26 अगस्त 2012

वो शज़र याद हो अगर तुमको.....





नज़्म

वो शज़र याद हो अगर तुमको.....  

-अरुण मिश्र. 

हम थे भीगे 
किसी कदम के तले।
वो शज़र, 
याद हो अगर तुमको,
सिर्फ तुम इतना ही 
किया करना,
जब कभी 
उसकी राह से गुजरो,
उसको हौले से 
छू लिया करना।।

मैं भी 
हर बार, 
ऐसा करता हूँ।।
              *
Kadam


NAZM

VO SHAZAR YAAD HO AGAR TUMKO.....  

-Arun Mishra. 

Hum the bheege 
Kisee kadam ke tale.
Vo shazar, 
Yaad ho agar tumko,
Sirf tum itna hee 
Kiya karna,
Jab kabhee 
Uskee raah se gujro,
Usko haule se 
Chhoo liya karna.

MaiN bhee 
Har baar, 
Aisaa karta hooN.
              *

मंगलवार, 14 अगस्त 2012


Indian_flag : flag of India with flag pole waving in the wind over blue sky Stock Photo
हिन्दोस्तां की अज़्मत का चाँद मुबारक़ हो !


















नज़्म 

चाँद मुबारक़........

-अरुण मिश्र.



( स्वतंत्रता दिवस पर वर्ष 2010 एवं 2011 में क्रमशः  नज़्म तथा विडियो पूर्व प्रकाशित / प्रसारित ) 
 
       



सोमवार, 15 अगस्त 2011

१५,अगस्त पर विशेष.....


चाँद मुबारक....

-अरुण मिश्र 
(टिप्पणी : यह नज़्म १५ अगस्त,२०१० की पोस्ट में पूर्व प्रकाशित है|)  


स्वतंत्रता दिवस १५ अगस्त पर विशेष .......




ऐ तिरंगे ! तू जहॉ में हिन्द की पहचान है....

-अरुण मिश्र


ऐ  तिरंगे !  तू  जहॉ   में,  हिन्द  की   पहचान है।
हिन्द  की  है शान  तू  औ’ हिन्दियों की  आन है।
तू   हमारे  वीर पुरखों  की,  शहादत  का  निशाँ ।   
तेरे ज़ल्वों  पर, वतन का  हर  बसर, क़ुरबान है।।
  
      तू  लहरता,  तो  उमंगें,  मन  की  हैं  होती ज़वां।
      तू   फहरता,  तो   रगों  में,  खून   होता  है  रवां। 
      तुझको  छू कर के  गुज़रती है, मुक़द्दस जो हवा।
      झूमता  है , सॉस  उसमें  ले   के , ये  हिन्दोस्तां।।
  
तू  रहे  रोशन  हमेशा, नभ में, सूरज-चॉद  बन।
तेरी  ही  छाया में , लहरायें  सदा , गंगो-जमन। 
आस्मां  में  तू  सदा , लिखता  रहे , हिन्दोस्तां।
बॉटता यूँ  ही  रहे,  दुनिया  को , पैगामे-अमन।।
  
      तू हिलाता हाथ दुश्मन  की तरफ भी मीत सा।
      तू   फिज़ां में  गूँजता  है , हिन्द के  संगीत सा।।  
      तेरे   रंगों  में   बहारें ,  हिन्द  की,  होती  अयां। 
      तू  धरा पर,  भारतीयों  के सुयश के, गीत सा।।
                          * 
जय हिंद 

मंगलवार, 28 जून 2011

सहयात्रा के चालीसवें वसंत पर विशेष.....


जीवन-यात्रा में साथ-साथ मात्र चालीस वर्ष.....






तुम मिलीं तो...

-अरुण मिश्र

तुम मिलीं तो मुझे हर ख़ुशी  मिल गई।
ख़ुशबुयें,  ताज़ग़ी,  ज़िन्दगी  मिल गई।
जब भी  मन को  अँधेरों ने   घेरा कभी,
तुम हँसी, औ’  मुझे  रोशनी  मिल गई ।।


तुम मिलीं तो  ज़मीं से फ़लक की तरह।
आँख की  पुतलियों से  पलक की तरह।
मन-गगन पे  घिरे  नेह-घन  में   चपल,
कौंधती बिजलियों की  झलक की तरह।।

बन के  जूही-कली,  मन के  डाली  लसीं।
रूह  में  तुम  मिरे,  बन  के  ख़ुशबू  बसीं।
मुझको जिस जाल में तुमने उलझा लिया,
सोन-मछरी,  उसी  जाल  में  तुम  फँसीं।।

तुम   सुनहरी  सुबह,   चाँदनी  रात  हो।
मेरे   एहसास   हो,   मेरे    जज़्बात  हो।
ख़ूबसूरत    तसव्वुर,  हँसीं  ख़्वाब   तुम,
ज़िन्दगी  को   बहारों  की   सौग़ात  हो।।

तुम   मिलीं   तो   अनोखे   नज़ारे  हुये।
चाँद - सूरज - सितारे ,    हमारे     हुये।
तुम  सिमट कर  मेरी  बस मेरी  हो गई,
हम   बिखर  कर  तुम्हारे - तुम्हारे हुये।।
                         *                                      

रविवार, 24 अप्रैल 2011

पृथ्वी दिवस पर विशेष...















आओ  धरती को  बचाएं...

-अरुण मिश्र 


        ऐसी  तहज़ीबो - तरक्की  से   भला  क्या  हासिल  ?
      कि,  जो  इंसान  ही  बन  जाये  ज़मीं का  क़ातिल | 
       तायरो - ज़ानवर   बच  पायेंगे,  न  शज़रो - बसर |
       अगले  सौ  साल  में   होगा  ज़मीं   पे    ये   मंज़र -

दिमाग़   जीते    भले,    रोयेगा,     हारेगा     दिल |
ऐसी  तहज़ीबो - तरक्की  से  भला  क्या  हासिल  ??

       फूल    बाग़ों   में     खिलें,    पेड़ों    पे   पखेरू   हों |
       सांस  तो  ले   सकें,  ताजा  हवा   हो,   खुशबू   हो | 
       नीर नदियों का हो निर्मल कि जिसको पी तो सकें |
       आओ  धरती को  बचाएं कि,  इस पे  जी तो  सकें ||

साफ़   झीलों   में   सुबह,   आफताब   मुँह    धोये |
ज़ुल्म   ऐसा    न  करो   धरती   पे,   धरती   रोये ||
                                          *