रविवार, 29 अप्रैल 2012

एहसासे-बुलंदी से तो नाहक़ घिरे हैं लोग........

ग़ज़ल

-अरुण मिश्र.

एहसासे-बुलंदी  से  तो  नाहक़  घिरे हैं  लोग। 
इन्सानियत की हद से भी नीचे गिरे हैं लोग॥


लड़ते   जो   अक़ीदों  पे,  कोई  और  बात थी। 
लड़ते हैं ज़ुबानों  पे, अज़ब  सिरफिरे  हैं लोग॥
  
उलझे हों कि सुलझे हों, पै उम्मीद  इन्हीं  से। 
अल्लाह की पहेली के , खुलते सिरे   हैं  लोग॥
  
दैरो - हरम   में   ढूढ़ते,  शम्में   जला - जला। 
वो  नूर , बख़ुद  जिसमें  सरो-पा घिरे हैं लोग॥
  
सब  वक़्त की  है बात, ये शाहो-गदा के  खेल। 
जो आज तेरे साथ  'अरुन'  सब  मिरे हैं लोग॥
                                  *

रविवार, 22 अप्रैल 2012

यारब! ज़रूर कीजियो वाइज़ का बेड़ा ग़र्क.........

ग़ज़ल 

-अरुण मिश्र. 


ऐशे-बहिश्त   के   लिये , लुत्फ़े- ज़माना   तर्क। 
या रब!  ज़रूर कीजियो , वाइज़  का  बेड़ा  ग़र्क॥ 


उनकी  तो  उम्र ढल गई,  अब  रब से  लौ लगी। 
हम तो  अभी जवान हैं , हमको   पड़े  है   फ़र्क॥ 


रस  हो,  न रंग हो,  न  राग,  मौज ,  न  मस्ती। 
हंगामा हुस्नो-इश्क़  का, न  हो  तो  ज़मीं  नर्क॥ 


ऋषियों की  हैं  सन्तान , न  साक़ी  निगाह फेर। 
जीते थे  सौ बरस कि ,  जो  पीते थे  सोम-अर्क़॥ 


पर्दा  बहुत  'अरुन'  था, पै' जो  अपनी  पे  आये। 
आख़िर   को  कोहे-तूर पे,चमकी ही आ के बर्क॥
                                  *

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

फ़ित्नासामां हैं साँवली आँखें............












फ़ित्नासामां हैं 
साँवली आँखें............



ग़ज़ल  


-अरुण मिश्र.

देखिये    तो    लगें    भली   आँखें। 
फ़ित्नासामां    हैं    साँवली    आँखें॥

देखती  भी   हैं,   देखती  भी   नहीं। 
बावला   कर   दें,   बावली   आँखें॥

क्यूँ  मचायें न दिल में वो हलचल। 
कितनी  चंचल हैं,  मनचली आँखें॥

वो जगा तो 'अरुन'  की  नींद  उड़ी। 
ली  जो  अँगड़ाई,   हैं  मली  आँखें॥
                       *

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

राम के चरणों में फरियाद किया..............



&अरुण  मिश्र

राम के  चरणों में  फरियाद किया।
तुलसी बाबा को  सदा  याद किया।।

गर  ग़मे & ज़िन्दगी   से  घबराये।
दिल को शेरो&सुखन से शाद किया।।

मेरी    बरबादियों  पे  मत  जाओ।   
मैंने  मन का  नगर आबाद किया।।

शायरी]  ज़िन्दगी लगे है   ^अरुन*।
हज़रते& मीर  को   उस्ताद  किया।।