शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

फ़ित्नासामां हैं साँवली आँखें............












फ़ित्नासामां हैं 
साँवली आँखें............



ग़ज़ल  


-अरुण मिश्र.

देखिये    तो    लगें    भली   आँखें। 
फ़ित्नासामां    हैं    साँवली    आँखें॥

देखती  भी   हैं,   देखती  भी   नहीं। 
बावला   कर   दें,   बावली   आँखें॥

क्यूँ  मचायें न दिल में वो हलचल। 
कितनी  चंचल हैं,  मनचली आँखें॥

वो जगा तो 'अरुन'  की  नींद  उड़ी। 
ली  जो  अँगड़ाई,   हैं  मली  आँखें॥
                       *

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