गुरुवार, 16 मई 2024

जय मैथिली, धरनी-सुता, सिया, जनक-तनया, जानकी.../ गायन : रंजना झा

सीता-नवमी पर विशेष :

https://youtu.be/egLSFNPFUpk


जय मैथिली, धरनी-सुता, सिया, जनक-तनया, जानकी।
जय भूमिजा, जनकात्मजा, प्राणप्रिया श्री राम की ।।
माण्डवी-उर्मिला भगिनी, अग्रजा श्रुतिकीर्ति की। 
सुनयना-मिथिलेश कन्या, अंक रघुवर वाम की ।।

दशरथ-कौशल्या की पुत्रवधू, जन्मदा लव-कुश की। 
भारत-लक्ष्मण भातृ-पत्नी, वरप्रदा हनुमान की। 
शत्रुघन की प्यारी भाभी, अवध-मिथिला शान की। 
सुमन तिरहुत के चमन की, माला अयोध्या-धाम की।

लक्ष्मीनिधि की दुलरी बहना, कुशध्वज की  भातृजा। 
अनुज माधव ज्ञान वर्धिनि, नाशिनी अज्ञान की

माँ मैथिली !
माँ जानकी !!

शुक्रवार, 10 मई 2024

ढूँढते फिरोगे लाखों में..../ स्वर्गीय भारत भूषण जी का गीत

 https://youtu.be/9sRDF_aPmeY 

जिस दिन भी बिछड़ गया प्यारे

ढूँढते फिरोगे लाखों में
फिर कौन सामने बैठेगा
बंगाली भावुकता पहने
दूरों दूरों से लाएगा
केशों को गंधों के गहने
ये देह अजंता शैली सी
किसके गीतों में सँवरेगी
किसकी रातें महकाएँगी
जीने के मोड़ों की छुअनें
फिर चाँद उछालेगा पानी
किसकी समुंदरी आँखों में

दो दिन में ही बोझिल होगा
मन का लोहा तन का सोना
फैली बाहों सा दीखेगा
सूनेपन में कोना कोना

अपने रुचि-रंगों का चुनाव 
किसके कपड़ों में टाँकोगे
अखरेगा किसकी बातों में
पूरी दिनचर्या ठप होना

दरकेगी सरोवरी छाती
धूलिया जेठ वैशाखों में

ये गुँथे गुँथे बतियाते पल
कल तक गूँगे हो जाएँगे
होंठों से उड़ते भ्रमर गीत
सूरज ढलते सो जाएँगे
जितना उड़ती है आयु परी
इकलापन बढ़ता जाता है
सारा जीवन निर्धन करके
ये पारस पल खो जाएँगे

गोरा मुख लिये खड़े रहना
खिड़की की स्याह सलाखों में

नोट : मैंने इस गीत को १९७० के दशक में रेडियो पर भारत भूषण जी 
के स्वर में सुना था। अद्भुत अनुभव था। उसकी छाप मन पर अमिट है। 
आज भी कानों में वह भावपूर्ण स्वर गूँजता है।  
वह ऑडियो खोज रहा हूँ पर कहीं मिल नहीं रहा है। किसी को मिले तो 
अवश्य सुनें। 

बुधवार, 8 मई 2024

सौ-सौ जनम प्रतीक्षा कर लूँ .../ स्वर्गीय भारत भूषण

 https://youtu.be/0l_qFx1CzeE

सौ-सौ जनम प्रतीक्षा कर लूँ 

प्रिय मिलने का वचन भरो तो ! 

पलकों-पलकों शूल बुहारूँ 

अँसुअन सींचू सौरभ गलियाँ 

भँवरों पर पहरा बिठला दूँ 

कहीं न जूठी कर दें कलियाँ 

फूट पडे पतझर से लाली 

तुम अरुणारे चरन धरो तो !

रात न मेरी दूध नहाई 

प्रात न मेरा फूलों वाला 

तार-तार हो गया निमोही 

काया का रंगीन दुशाला 

जीवन सिंदूरी हो जाए 

तुम चितवन की किरन करो तो ! 

सूरज को अधरों पर धर लूँ 

काजल कर आँजूँ अँधियारी 

युग-युग के पल छिन गिन-गिनकर 

बाट निहारूँ प्राण तुम्हारी 

साँसों की ज़ंजीरें तोड़ूँ 

तुम प्राणों की अगन हरो तो !

मंगलवार, 7 मई 2024

आई गयो फाग संभालो री चुनरिया.../ गायन : हेमा काण्डपाल

https://youtu.be/UmrPLbFY6Aw   

आयी गयो फाग,
कुँजन मा जे मोहन ठाढ़े,
मार रहे देखो भर पिचकरिया।।

राधा मोहन रास रचत हैं,
गोपियन की देखो उड़त चुनरिया।।

कुंकुम बदरी मा रंग फुहारें 
इंद्रधनुष छवि छाई सत रंगियाँ।। 

रविवार, 5 मई 2024

हँसि हँसि पनवा खियवले बेइमनवा...| भोजपुरी क्लासिक्स / गायन : दीपाली सहाय

https://youtu.be/JePkq2axC04 


ओ ऽ ऽ ऽ ऽ
हँसि हँसि पनवा खियवले बेइमनवा
हँसि हँसि पनवा खियवले बेइमनवा
कि अपना बसे रे परदेस
कोरी रे चुनरिया में दगिया लगाइ गइले
मारी रे करेजवा में ठेस 
हे ऽ ऽ ऽ ऽ
कजरी नजरिया से खेलइ रे बदरिया
कजरी नजरिया से खेलइ रे बदरिया
कि बरसइ रकतवा के नीर
दरदी के मारे छाइ जरदी चनरमा पे
गरदी मिली रे तकदीर
तकदीर दोहाई हऽ दोहाई हऽ
चढ़ते फगुनवा सगुनवा मनावइ गोरी
चइता करे रे उपवास
गरमी बेसरमी ना बेनिया डोलाये माने
डारे सँइया गरवा में फाँस
हो हँसि हँसि पनवा खियवले बेइमनवा
कि अपना बसे रे परदेस
कोरी रे चुनरिया में दगिया लगाइ गइले
मारी रे करेजवा में तीर

शनिवार, 4 मई 2024

अमवा महूअवा के झूमे डरिया.../ महेंदर मिसिर / गायन : दीपाली सहाय

https://youtu.be/tCzXEsv2YLw


अमवा महूअवा के झूमे डरिया
तनी ताकऽ ना बलमुआ हमार ओरिया

अमवा मोजरि गईलें महूआ कोताई गईलें
रसवा से भर गईल कुल डरिया

महूआ बिनन हम गईनी महूआ बगिया
रहिया जे छेंकले देवर पापिया

कोईली के बोली सुन मन बऊराई गईले
नही अईलें हमरो बलम रसिया

गुरुवार, 2 मई 2024

राम की जल-समाधि / महान गीतकार स्व. भारत भूषण के स्वर में

https://youtu.be/3VGNls6nzmc   

'राम की जल समाधि' - महान गीतकार भारत भूषण के स्वर में -- कविता की पृष्ठभूमि -- १. भगवान श्री राम के अवतार लेने का  प्रयोजन पूर्ण होने पर, ब्रह्मा जी ने कहा
आप जैसे चाहें वैसे विष्णु-लोक में आएँ। केवल योगमाया सीतादेवी आपको यथार्थ
रूप को पहचानती हैं। ब्रह्मा जी की बात सुनकर वे सरयू नदी में प्रवेश कर,
अपने वैष्णव तेज रूप में  समा गए थे। उस समय अप्सराओं ने नृत्य किया,
गंधर्वों ने गान किया, देवताओं ने पुष्पवर्षा की। श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण के
उत्तर काण्ड के ११० वें सर्ग में इसका वर्णन है।  २. भारत भूषण जी ने एक कवि सम्मलेन में कहा था कि वे सरयू-तट पर बैठे थे,
उन्हें रामायण का उपरोक्त प्रसंग याद आया। वे वहाँ दिव्य  भावों में खो गये। 
कैसे राम को सीता का स्मरण ने विचलित किया होगा। विशाल राज्य,सारा सुख
तुच्छ लगा होगा। सीता का बिछोह असहनीय हो गया होगा। कैसे जल में प्रवेश
किया होगा। पानी पहले घुटनों तक, फिर नाभि से होता हुआ छाती तक आया होगा।
राम कैसे सरयू में आगे बढे होंगे। माँ सीता और उनकी सखियों ने कैसे उनका स्वागत
किया होगा। इस तरह उनकी यह कविता बन गयी।  ३. आप यह कालजयी रचना पढ़ें, सुनें और महसूस करें। शब्द और स्वर, एक दिव्य
अनुभूति दे जाते हैं।  'राम की जल समाधि'   पश्चिम में ढलका सूर्य  उठा वंशज सरयू की रेती से  हारा-हारा रीता-रीता  निःशब्द धरा, निःशब्द व्योम  निःशब्द अधर, पर रोम-रोम  था टेर रहा सीता-सीता  किसलिए रहे अब ये शरीर  ये अनाथ मन किसलिए रहे  धरती को मैं किसलिए सहूँ  धरती मुझको किसलिए सहे   तू कहाँ खो गई वैदेही  वैदेही तू खो गई कहाँ  मुरझे राजीव नयन बोले  काँपी सरयू, सरयू काँपी  देवत्व हुआ लो पूर्णकाम  नीली माटी निष्काम हुई  इस स्नेहहीन देह के लिए  अब साँस-साँस संग्राम हुई  ये राजमुकुट ये सिंहासन  ये दिग्विजयी वैभव अपार  ये प्रिया-हीन जीवन मेरा  सामने नदी की अगम धार   माँग रे भिखारी-लोक माँग  कुछ और माँग अंतिम बेला  आदर्शों के जल-महल बना  फिर राम मिले न मिले तुझको  फिर ऐसी शाम ढले न ढले  ओ खंडित प्रणयबंध मेरे  किस ठौर कहाँ तुझको जोड़ूँ  कब तक पहनूँ ये मौन धैर्य  बोलूँ भी तो किससे बोलूँ  सिमटे अब ये लीला सिमटे  भीतर-भीतर गूँजा भर था  छप से पानी में पॉंव पड़ा  चरणों से लिपट गई सरयू  फिर लहरों पर वाटिका खिली  रतिमुख सखियाँ नतमुख सीता  सम्मोहित मेघबरन बरसे  पानी घुटनों-घुटनों आया  आया घुटनों-घुटनों पानी  फिर धुआँ-धुआँ फिर अँधियारा  लहरों-लहरों धारा-धारा  व्याकुलता फिर पारा-पारा  फिर एक हिरन -सी किरण देह  दौड़ती चली आगे-आगे  नयनों में जैसे बाण सधा  दो पाँव उड़े जल में आगे  पानी लो नाभि-नाभि आया  आया लो नाभि-नाभि पानी  जल में तम, तम में जल बहता   ठहरो बस, और नहीं, कहता  जल में कोई जीवित दहता  फिर एक तपस्विनी शांत-सौम्य  धक्-धक् लपटों -सी निर्विकार  सशरीर सत्य-सी सन्मुख थी  उन्माद नीर चीरने लगा  पानी छाती-छाती आया  आया छाती-छाती पानी  भीतर लहरें, बाहर लहरें  आगे जल था, पीछे जल था  केवल जल था, वक्ष स्थल था  वक्ष-स्थल तक केवल जल था  जल पर तिरता था नीलकमल  बिखरा -बिखरा-सा नीलकमल  कुछ और-और-सा नीलकमल  फिर फूटा जैसे ज्योति प्रहार  धरती से नभ तक जगर-मगर  दो टुकड़े धनुष पड़ा नीचे  जैसे सूरज के हस्ताक्षर  बाँहों के चन्दन घेरे से  दीपित जयमाल उठी ऊपर  सर्वस्व सौंपता शीश झुका  लो शून्य राम, लो राम लहर  फिर लहर-लहर लहरें-लहरें  सरयू-सरयू सरयू-सरयू  लहरें -लहरें लहरें-लहरें  केवल तम ही तम तम ही तम  जल ही जल  जल ही जल केवल  हे राम-राम  हे राम-राम  हे राम-राम  हे राम-राम

बुधवार, 1 मई 2024

आख़िरी वक़्त है आख़िरी साँस है.../ शायर : शकील बदायूँनी / गायन : स्व. रोशन चचा, दरगाह बहराइच

 https://youtu.be/kdKOjXuX_qE


आख़िरी वक़्त है आख़िरी साँस है 
ज़िंदगी की है शाम आख़िरी आख़िरी 
संग-दिल आ भी जा अब ख़ुदा के लिए 
लब पे है तेरा नाम आख़िरी आख़िरी 

कुछ तो आसान होगा अदम का सफ़र 
उन से कहना तुम्हें ढूँढती है नज़र 
नामा-बर तू ख़ुदारा न अब देर कर 
दे दे उन को पयाम आख़िरी आख़िरी 

तौबा करता हूँ कल से पियूँगा नहीं 
मय-कशी के सहारे जियूँगा नहीं 
मेरी तौबा से पहले मगर साक़िया 
सिर्फ़ दे एक जाम आख़िरी आख़िरी 

मुझ को यारों ने नहला के कफ़ना दिया 
दो घड़ी भी न बीती कि दफ़ना दिया 
कौन करता है ग़म टूटते ही ये दम 
कर दिया इंतिज़ाम आख़िरी आख़िरी 

जीते-जी क़द्र मेरी किसी ने न की 
ज़िंदगी भी मिरी बेवफ़ा हो गई 
दुनिया वालो मुबारक ये दुनिया तुम्हें 
कर चले हम सलाम आख़िरी आख़िरी