शनिवार, 29 अगस्त 2020

ब-गोशे दिल बे-ख़ाना-ए-गुल ग़ज़ल आहिस्ता -आहिस्ता.../अफ़ग़ानी गीत / अहमद ज़हीर (१९४६-१९७९)



Ahmad Zahir (1946 - 1979), was an Afghan singer, songwriter and 
composer. A celebrity of enduring popularity more than a quarter century 
after his controversial death, he is considered an icon of Afghan culture.

Ahmad Zahir’s fame has surpassed any previous singer in Afghanistan’s 

history, earning him the title of Afghanistan’s Nightingale. His status, as a 
pop singer, has been unrivaled even 27 years after his death (as of 2006). 
Posthumously granted the status of a luminary, his songs serve to this 
day as voice and music training lessons for aspiring singers. As a matter 
of fact, in performances of other popular Afghan singers, there is always 
a request for an Ahmad Zahir song. Often others’ voice command is 
evaluated based on Ahmad Zahir’s standards, a reference point to 
whom new singers are measured. He is still celebrated as the most 
popular Afghan music phenomenon and, for many, the purest 
embodiment of modern Afghan music.

With over 22 albums (not including improvised recordings) in less than 

15 years, he has more songs to his credit than any other Afghan singer. 
His albums are still outselling all other Afghan singers both inside and 
outside Afghanistan. He is widely popular in Afghanistan, Iran, Tajikestan,
Uzbekistan and Turkey.

http://en.wikipedia.org/wiki/Ahmad_Zahir


तुम हक़ीक़त में मेरे पास हो या कोई ख़्वाब है

क्यूँकि, मुझे कोई उम्मीद नहीं है कि, तुम मेरे पास हो
बाग़ में बैठ के दिल की गहराई से ये गीत (ग़ज़ल) गुनगुनाओ, आहिस्ता-आहिस्ता 
कि, तुम्हारा बेपनाह ग़म मेरे जिस्म को खाये जा रहा है, आहिस्ता-आहिस्ता 

ENGLISH TRANSLATION :

So it's really in front of me or I'm dreaming Because I don't expect any favors from you because of my inferiority complex This is not expected at all Sing this song slowly from the depths of the heart inside the garden That your boundless grief is slowly eating away at my body from within It is a sign of the end of his desire that now my hand has reached to the bottom My hands are now swinging and begging for help Please take me out of this sea of ​​sorrow slowly I sacrificed my position and even my life and heart on it Otherwise, if I didn't do that, I would also go crazy slowly Inside the garden, the song hummed slowly from the depths of the heart That your boundless grief is eating away at my body slowly

रविवार, 23 अगस्त 2020

झुलनी का रंग साँचा हमार पिया.../ लोकगायिका संजोली पाण्डेय

https://youtu.be/kpiKUx6lUvw
लोकगायिका संजोली पाण्डेय जन्म- अयोध्या ,उत्तर प्रदेश ,1995 अध्यक्ष ~ धरोहर -लोककलाओं का संगम (NGO) लोकगीतों और लोकविधाओं की संरक्षिका

अवधी के  निर्गुण लोकगीत भौतिक अवलंबों पर आधारित आध्यात्मिक रचनाएँ है.
ऐसा ही एक मनोहारी युगल  गीत व् उसका भावप्रवण संगीत  प्रस्तुत है। इस गीत में 

सोनार ईश्वर व झुलनी मानव शरीर तथा रतनइन्द्रयों  के रूपक के तौर पर  में प्रयुक्त हुए  है।


झुलनी में गोरी लागा हमार जिया, झुलनी का रंग साँचा हमार पिया 
कवन सोनरवा बनायो रे झुलनिया, रंग पड़े नहीं कांचा हमार जिया
सुघड़ सोनरवा रचि रचि के बनवै, दै अगनी का आँचा हमार पिया। 
छिति जल पावक गगन समीरा, तत्व मिलाइ दियो पाँचा हमार पिया। 
रतन से बनी रे झुलनिया, जोइ पहिरा सोइ नाचा हमार पिया। 
जतन से रखियो गोरी झुलनिया, गूँजे चहूँ दिसि साँचा हमार पिया। 
टूटी  झुलनिया बहुरि नहिं बनिहैं, फिर न मिलै अइसा साँचा हमार पिया। 
सुर मुनि रिसी देखि रीझैं झुलनिया, केहु न जग में रे बाँचा हमार जिया। 
एहि झुलनी का सकल जग मोहे, इतना सांई मोहे राचा हमार पिया। 


गुरुवार, 20 अगस्त 2020

उठ जाग मुसाफिर भोर भई.../ स्वर : चन्दन तिवारी

https://youtu.be/AZQKzLHbDYs
उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है |
जो सोवत है सो खोवत है, जो जगत है सोई पावत है ||

टुक नींद से अखियाँ खोल जरा, और अपने प्रभु में ध्यान लगा |
यह प्रीत कारन की रीत नहीं, रब जागत है तू सोवत है ||

जो कल करना सो आज करले , जो आज करे सो अभी करले |
जब चिड़िया ने चुग खेत लिया, फिर पश्त्यते क्या होवत है ||

नादान भुगत अपनी करनी, ऐ पापी पाप मै चैन कहाँ |
जब पाप की गठड़ी सीस धरी, अब सीस पकड़ क्यूँ रोवत है ||

गुरुवार, 13 अगस्त 2020

केहु गोदवाई का गोदनवा... / महेंद्र मिश्र (१८८६-१९४६) / विपुल नायक और टीम / चन्दन तिवारी

https://youtu.be/2U7dKjEAlgs

गीत : केहु गोदवाई का गोदनवा (भोजपुरी)
रचनाकार : महेंद्र मिश्र (१८८६ -१९४६)
भाव नृत्य : विपुल नायक एवं टीम 
गायिका : चन्दन तिवारी 

बुधवार, 12 अगस्त 2020

मधुराष्टक / श्रीमद्वल्लभाचार्य कृत / पण्डित जसराज / भावानुवाद

मधुराष्टक ( भावानुवाद ) 

-अरुण मिश्र. 

अधर  मधुर   है,   हास्य  मधुर  है,  वदन   मधुर  है,  नयन   मधुर है।
हृदय  मधुर  है,  गमन  मधुर  है,  मधुराधिपति  का  अखिल मधुर है॥

चरित   मधुर  है,  वचन   मधुर  है,  वलय  मधुर  है,  वसन  मधुर  है।
चाल मधुर है,   भ्रमण  मधुर है,  मधुराधिपति   का  अखिल  मधुर है॥

वेणु  मधुर,   पद-रेणु  मधुर,   शुभ-पाणि  मधुर,  मृदु-चरण  मधुर है।
नृत्य   मधुर  है,  सख्य  मधुर  है, मधुराधिपति  का  अखिल मधुर है॥

भोज्य  मधुर  है,   पान  मधुर   है,   गीत   मधुर  है,   शयन  मधुर  है।
तिलक  मधुर है,  रूप  मधुर  है,  मधुराधिपति   का  अखिल  मधुर है॥

कार्य  मधुर   है,   तरण  मधुर  है,   हरण   मधुर,   स्मरण   मधुर   है।
कथन  मधुर है,  शमन  मधुर  है,  मधुराधिपति  का  अखिल मधुर है॥

शिखा  मधुर   है,    हार  मधुर   है,    यमुना  मधुर,    तरंग   मधुर  है।
सलिल मधुर है,  कमल मधुर है,  मधुराधिपति  का  अखिल  मधुर है॥

लीला   मधुर,    गोपियां   मधुरा,    योग  मधुर   है,    भोग  मधुर   है।
मधुर  प्रेक्षण,   मधुर  आचरण,   मधुराधिपति   का  अखिल  मधुर है॥

गौयें   मधुर,   गोप   सब  मधुरा,   मधुर   लकुटिया,   सृष्टि   मधुर  है।
दलन मधुर, प्रतिफलन मधुर अति, मधुराधिपति का अखिल मधुर है॥
                                                              *
                                ( इति श्रीमद वल्लभाचार्य कृत मधुराष्टक संपूर्ण।)
मूल संस्कृत पाठ :

वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात् .../ भावानुवाद


वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात् .....
भावानुवाद :
नवनीरद   आभायुत 
वंशीविभूषित    कर।
पीताम्बरधर;  अरुण 
विम्बफल सम अधर।

पूर्णेन्दुसुन्दर    मुख,
अरविन्द सदृश  नेत्र;
कृष्ण से इतर,  जानूँ 
मैं न परमतत्व अपर।। 
       
                              -अरुण मिश्र
मूल : 
वन्शीविभूषित्करान्नवनीरदाभात
         पीताम्बराद  अरुणविम्बफलाधरोष्ठात 
पूर्णेन्दुसुन्दर्मुखारर्विन्दनेत्रात
         कृष्णात्परं किमपि तत्वमहम् न जाने ।।

(पूर्वप्रकाशित)

मंगलवार, 11 अगस्त 2020

क्या ख़ूब साँवले ! हो...


क्या ख़ूब साँवले ! हो...
अरुण मिश्र
जब  चाँदनी   खिली  हो,  और  चाँद  सामने  हो।
देखूँ   तुम्हें,  न   उसको,  क्या  ख़ूब  साँवले!  हो।।

भादों   की   बदलियाँ   थीं,  थी   रैन   भी  अँधेरी।
आँगन में  आ अचानक,  तुम  चाँद सा  खिले हो।।

चितचोर हो, छलिया हो, फिर भी यकीं तुम्हीं पे।
ब्रज  की   दही  से    मीठे,  तुम  दूध  के  धुले  हो।।

तुम राम हो,कान्हा हो,इस मिट्टी की ख़ुशबू हो।
हर  साँस   में   रवां   हो,  अहसास   में   घुले   हो।।

तुझ   साँवरे  सा   उजला, देखा न ‘अरुन’ हमने।
गो - रस में छलकते हो, मक्खन में तुम सने हो।।
                                    *
(टिप्पणी : १ सितम्बर २०१० ,जन्माष्टमी पर, 'रश्मिरेख' में पूर्वप्रकाशित।)

नजीर के किशन कन्हैया.../ चंदन तिवारी

 https://youtu.be/Q4yQbOixrMA

नजीर के किशन कन्हैया रचनाकार: नजीर अकबराबादी स्वर: चंदन तिवारी धुन: निराला बिदेसिया सहगायन: शैलेंद्र शर्मा व्यास संगीत संयोजन : उपेंद्र पाठक रिकार्डिंग: मैक्स आडियो, रांची निर्माण व प्रस्तुति: लोकराग

है सबका ख़ुदा सब तुझ पे फ़िदा
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
हे कृष्ण कन्हैया, नन्द लला
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी 
 
इसरारे हक़ीक़त यों खोले 
तौहीद के वह मोती रोले 
सब कहने लगे ऐ सल्ले अला 
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी 

सरसब्ज़ हुए वीरानए दिल 
इस में हुआ जब तू दाखिल 
गुलज़ार खिला सहरा-सहरा 
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी 

फिर तुझसे तजल्ली ज़ार हुई 
दुनिया कहती तीरो तार हुई 
ऐ जल्वा फ़रोज़े बज़्मे-हुदा 
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी

मुट्ठी भर चावल के बदले 
दुख दर्द सुदामा के दूर किए 
पल भर में बना क़तरा दरिया 
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी 

जब तुझसे मिला ख़ुद को भूला 
हैरान हूँ मैं इंसा कि ख़ुदा 
मैं यह भी हुआ, मैं वह भी हुआ 
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी 

ख़ुर्शीद में जल्वा चाँद में भी 
हर गुल में तेरे रुख़सार की बू 
घूँघट जो खुला सखियों ने कहा 
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी 

दिलदार ग्वालों, बालों का 
और सारे दुनियादारों का 
सूरत में नबी सीरत में ख़ुदा 
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी 

इस हुस्ने अमल के सालिक ने 
इस दस्तो जबलए के मालिक ने 
कोहसार लिया उँगली पे उठा 
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी 

मन मोहिनी सूरत वाला था 
न गोरा था न काला था 
जिस रंग में चाहा देख लिया 
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी 

तालिब है तेरी रहमत का 
बन्दए नाचीज़ नज़ीर तेरा 
तू बहरे करम है नंद लला 
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी 

रविवार, 9 अगस्त 2020

श्री राम चंद्र कृपालु भज मन.../ अद्भुत भावपूर्ण स्वर / गोस्वामी तुलसीदास / राहुल वेल्लाल

 https://youtu.be/T8P7uHIo4iY 


Rahul Ravishankar Vellal, 13 years old, is the son of Sri Ravishankar Vellal 
and Smt Hema.S. Born on 23rd June, 2007, he started learning Carnatic Classical 
Music at the age of 4 years. He is currently learning Carnatic Classical Music 
from Vid. Kalavathy Avadhoot. He is also being mentored by Sri Kuldeep M Pai 
from Chennai. Rahul is learning Mrudanga from Vid. Kulur U Jayachandra Rao 
and Western Piano (Trinity School of Music, London) from Sri. Abhishek.N.

श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन
हरण भवभय दारुणं ।
नव कंज लोचन कंज मुख
कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥

कन्दर्प अगणित अमित छवि
नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि
नौमि जनक सुतावरं ॥२॥

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव
दैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल
चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥

शिर मुकुट कुंडल तिलक
चारु उदार अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर
संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥

इति वदति तुलसीदास शंकर
शेष मुनि मन रंजनं ।
मम् हृदय कंज निवास कुरु
कामादि खलदल गंजनं ॥५॥

नबी दे दर दी मैं बन के मालन.../ पंजाबी नात / फरिहा परवेज़

https://youtu.be/6dMbrlKX_1o

Nabi De Dar Di, main ban ke maalan Artist: Fariha Pervez Lyrics Contribution: Ayesha Aslam

Fariha Pervez, born 2 February, 1974 (age 46) LahorePakistan 

is a pop television Pakistani female singer.

She is specially known for the rendition of various popular and 

famous Ghazals. She started her career anchoring and acting 

from a very young age on PTV (Pakistan Television Corporation). 

After the release of her debut album "Nice & Naughty", her song 

"Patang Baaz Sajna" (a.k.a. Bo Kata song) became an instant hit 

and from there, her musical career took off and she decided to 

focus solely on singing.

शनिवार, 8 अगस्त 2020

राम मंत्रव जपिसो हे मनुज... (कन्नड़) / संत पुरन्दर दास / रंजनी एवं गायत्री

https://youtu.be/WXld4E1-Syo

 

Ranjani and Gayatri are sisters who are Carnatic vocalists and violinists. Their work 
includes studio recordings, television, radio, concerts, festivals and lecture demonstrations. 
They have appeared as soloists, violin duos, accompanists, vocal duos, composers, and 
educators of Indian Classical Music. They have appeared as soloists, violin duos, 
accompanists, vocal duos, composers, and educators of Indian Classical Music. 

BornRanjani: May 12, 1973 Gayatri: May 10, 1976.

LYRICS AND MEANING:  

Pallavi : rAma mantrava japiso hE manujA

P: Recite the rAma-mantra, O men!

Anupallavi : A mantra I mantra necci nI keDabEDa sOmashEkhara tanna bhAmini korediha

AP: Do not settle for this and that (lesser) mantra; (Recite the) mantra that the moon-crowned (Shiva) taught his spouse.

1: kula hInanAdarau kUgi japisuva mantra
sale bIdiyoLu uccaripa mantra
halavu pApangaLa hadageDisuva mantra
sulabhadindali svarga sUre kombuva mantra

this mantra;
that can be recited aloud even by one who has lost caste/ who is low born, that should be proclaimed in the main streets,
that destroys sins of several kinds,
that leads us up the easy path to heaven. (Recite that rAma-mantra)


2: marutAtmaja nitya smaraNe mADuva mantra
sarva rSigaLalli sErida mantra
durita kAnanakidu dAvAnala mantra
poredu vibhISaNage paTTa kaTTida mantra

This mantra;
That is in the constant remembrance of the windborn (hanumAn),
That is the refuge of all the sages,
That is the forest-fire to the jungle of sins,
That saved vibhISaNa, and crowned him. (Recite that rAma-mantra)


3: jnAnanidhi namma Ananda tIrttaru
sAnurAgadi nitya sEvipa mantra
bhAnu kulAmbudhi sOmanenipa namma
dInarakSaka purandara viTTalana mantra


this mantra,
which our AnandatIrtha (Madhavacharya) storehouse of wisdom, constantly reveres, with affection,
which is the mantra of the scion of the solar dynasty, the succour of the poor, Our Purandara ViTTala. (Recite that rAma-mantra)

आहिस्ता-आहिस्ता / मुस्तफा ज़ैदी (१९३०-१९७०) / मुसर्रत नज़ीर

 https://youtu.be/DlYAwrh4jg8

Mustafa Zaidi (1930-1970) was a modern Urdu poet
who wrote Urdu ghazals as well as Urdu poems.
This beautiful and moving Urdu ghazal has a modern
sensibility. Mustafa Zaidi has a wonderfully sensitive
and personal feeling in this ghazal.

This ghazal was sung by Musarrat Nazir sometime in the
1980's or 1990's when she visited Lahore, Pakistan from
Toronto, Canada. This ghazal was set to a bueautiful musical
composition and broadcast from the official government of
Pakistan TV channel (PTV).

चले तो कट ही जाएगा सफ़र आहिस्ता आहिस्ता 
हम उसके पास जाते हैं मगर आहिस्ता आहिस्ता 

अभी तारों से खेलो चांद की किरनों से इठलाओ 
मिलेगी उसके चेहरे की सहर आहिस्ता आहिस्ता 

दरीचों को तो देखो चिलमनों के राज़ तो समझो 
उठेंगे पर्दा-हा-ए-बाम-ओ-दर आहिस्ता आहिस्ता 

ज़माने भर की कैफ़ियत सिमट आएगी साग़र में 
पियो उन अँखड़ियों के नाम पर आहिस्ता आहिस्ता 

यूं ही इक रोज़ अपने दिल का क़िस्सा भी सुना देना 
ख़िताब आहिस्ता आहिस्ता नज़र आहिस्ता आहिस्ता

गुरुवार, 6 अगस्त 2020

आरती कीजै श्री रघुवर जी की.../ पारम्परिक आरती / स्वर : संजीवनी भेलान्डे

Language: Hindi Singer: Sanjeevani Bhelande Composer: Traditional Lyrics: Traditional

आरती कीजै श्री रघुवर जी की,
सतचित आनंद शिव सुंदर की,


दशरथ तनय कौशल्या नंदन,
सुर, मुनि,रक्षक, दैत्य निकंदन,
अनुगत भक्त-भक्त उर चंदन,
मर्यादा पुरुषोत्तम वर की,
आरती कीजे श्री... ....

निर्गुण,सगुण, अनूप रूप निधि,
सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि,
हरण शोक भयदायक नवनिधि,
माया रहित दिव्य नर वर की,
आरती कीजै श्री.......

जानकी पति सुर अधिपति जगपति,
अखिल लोक पालक त्रिलोक गति,
विश्व बंध अवंनह अमित गति,
एक मात्र गति सचराचर की,
आरती कीजै श्री.........

शरणागति वत्सल व्रतधारी,
भक्त कल्प तरुवर असुरारी,
नाम लेत जग पावन कारी,
वानर सखा दीन दुःख हर की,
आरती कीजै श्री......

बुधवार, 5 अगस्त 2020

बहन मेरी कलाई पर.../ अरुण मिश्र / वीडियो आभार श्री उपेन्द्र मिश्र


मेरे प्रिय मित्र श्री उपेन्द्र मिश्र जी ने मेरी एक कविता के 
वीडियो को अत्यन्त सुन्दर ढंग से रूपान्तरित करा कर 
भेजा है। उनके इस आत्मीय अनुग्रह का ह्रदय से आभारी 
हूँ। 

श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन.../ गोस्वामी तुलसीदास

https://youtu.be/A70j9K7D3sc
संगीत : श्री केवल कुमार 
गायन : श्री केवल कुमार एवं सुश्री पद्मा गिडवानी 
श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन,
हरण भवभय दारुणं ।
नव कंज लोचन कंज मुख-
कर कंज, पद कंजारुणं ॥१॥

कन्दर्प अगणित अमित छवि,
नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तड़ित रुचि शुचि,
नौमि जनक सुतावरं ॥२॥

भज दीनबन्धु दिनेश दानव-
दैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल-
चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥

शिर मुकुट कुंडल तिलक-
चारु, उदार अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर,
संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥

इति वदति तुलसीदास शंकर,
शेष मुनि मन रंजनं ।
मम् हृदय कंज निवास कुरु,
कामादि खलदल गंजनं ॥५॥

मंगलवार, 4 अगस्त 2020

यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा.../ संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसी दास / भावानुवाद

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यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादपल्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्‌॥6॥
॥ श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड मंगलाचरण श्लोक 6॥
भावानुवाद :
अखिल विश्व है वशीभूत जिनकी माया के, 
वश में हैं ब्रह्मादि देवगण सभी सुरासुर  
सच सा भासित मृषा जगत जिनकी सत्ता से, 
जैसे भ्रमवश सर्प दिखाई दे रस्सी में।  
केवल जिनके चरण कमल भव-अम्बुधि तारें,
राम नाम से ख्यात सभी कारण के कारण, 
उन्हीं श्री हरि का वन्दन, जो ईश हमारे।। 
-अरुण मिश्र 

रविवार, 2 अगस्त 2020

रक्षा बन्धन की शुभकामनाएं

रक्षाबंधन पर विशेष



रक्षा-सूत्र

-अरुण मिश्र
बहन, मेरी कलाई पर,
जो तुमने तार बॉधा है।
तो, इसके साथ स्मृतियों-
का, इक संसार बॉधा है।।

ये धागे सूत के कच्चे।
ये कोमल, रेशमी लच्छे।
दिलाते याद उस घर की,
रहे जिस घर के हम बच्चे।।

इसे बॉधा, तो तुमने,
फिर वही परिवार, बॉधा है।।

बड़ी हो तो, असीसें औ’
दुआयें, बॉधी हैं इसमें।
जो छोटी हो तो, मंगल-
कामनायें बॉधी हैं इसमें ।।

सहज विश्वाश बॉधा है।
परस्पर प्यार बॉधा है।।

सुरक्षित हों सदा भाई।
सदा रक्षित रहे बहना।
ये रक्षा-सूत्र है, इस देश
के, संस्कार का गहना।।

महत् इस पर्व पर, तुमने
अतुल उपहार, बॉधा है।।

(पूर्वप्रकाशित)