शनिवार, 28 जनवरी 2012

वसंत पंचमी पर विशेष......


हे ! इल्मो-फ़न की देवी.....

-अरुण मिश्र 

हे ! इल्मो-फ़न की देवी ।
शेरो - सुख़न  की   देवी ।।

ऐ  फ़िक्रो-तसव्वुर  की ।
औ' ज्ञान-धन की  देवी ।।

तहज़ीबो-तमद्दुन    की ।
चालो-चलन   की  देवी ।।

कर  पाक़  मन  हमारा ।
शफ्फाफ़ मन की  देवी ।।

है     हंस   की   सवारी ।
उजले वसन  की  देवी ।।

कमलों का तेरा आसन ।
गुल से  दहन की  देवी ।।

वीणा  से  गूँजे  हर  शै ।
धरती-गगन की,  देवी ।।

अर्बाबे-फ़न की ख़ातिर।
अव्वल वतन की देवी ।।

मन के  अँधेरे  हर  ले ।
रोशन ज़ेहन की  देवी ।।
               *

बुधवार, 25 जनवरी 2012

गणतंत्र दिवस २६ जनवरी पर विशेष

The daredevil stunts of motorcycle riders, during the full dress rehearsal for the Republic Day Parade-2011, in New Delhi on January 23, 2011
गणतंत्र  दिवस की शुभकामनायें 

















गर्वित है छब्बीस जनवरी...


-अरुण मिश्र 


ताने  लोकतंत्र की छतरी।
गर्वित है छब्बीस जनवरी।।


        नेता,  अभिनेता,  अपराधी।
       अफसर, मंत्री, उजली खादी।।
       बन्द  गाड़ियां  औ’  बन्दूकें।
       जनहित में कब अवसर चूकें??
       गॉधी के  अनगढ़ थे सपने।
       उन्हें  सुडौल  बनाया हमने।।
       काट-कूट  के, ठोंक-पीट  के।
       राम-राज  लाये  घसीट  के।।
       नायक  हों  चाहे  खलनायक।
      जन-गण-मन के हैं अधिनायक।।
      तुम जनता! इनकी जय बोलो।
      काम  ज़रूरी, फ़ारिग हो लो।।
      अज़ब लोक है, गज़ब तंत्र है।
      भैंस मुक्त, लाठी  स्वतंत्र है।।
      तंत्र, चीज यह मस्त-मस्त है।
      लोक भले ही लस्त-पस्त है।।


ताने  लोकतंत्र की छतरी।
हर्षित है छब्बीस जनवरी।।


       मुग्ध  लुटाये, शाशन-सत्ता।
       राशन, भाषण, साड़ी, भत्ता।।
       हर-हर-हर विकास की गंगा।
       नहा  रहा, हर  भूखा-नंगा।।
       खूब  करो   पैदा  औलादें।
       लोकतंत्र  की  लादी  लादें।।
       आजू-बाजू  हो जाओ  सब।
       दौड़ेगा विकास का रथ अब।।
       चाहे कितनी  हो  कठिनाई।
       जाति न मगर भूलना भाई!!
       बारी - बारी  से   बहुरेंगे।
       आज़ादी की  फसल  चरेंगे।।
       मूरख हैं, जो  समझें सारे।
       चारे   वाले,  हैं   बेचारे।।
       हौदी  पर  चारा  खायेंगे।
       बाहर  हुये  तो पगुरायेंगे।।


मेवा  चरे  राम की बकरी।
विहॅस रही छब्बीस जनवरी।।
                   *

सोमवार, 2 जनवरी 2012

हुई भोर !

(साहित्य अमृत, जनवरी' १२, के मुख पृष्ठ से साभार)



















-अरुण मिश्र.

हुई भोर। 
खग - रव  गूँजा; 
संजीवनि बही  पोर-पोर॥ 
        
          चिड़ियों     ने     जंगल  -  जंगल;         
          बाँटा ,           सूर्योदय   -   संदेश ।         
          मिटा    क्लेश ,  चंहुदिशि  मंगल;         
          अब न रहा, निशि-तम कुछ शेष ॥ 

दुख का 
लवलेश न रहा।    
सुख-सागर ले नई हिलोर॥
       
         दिनकर   ने     कर  बढ़ा     छुआ ,         
         तालों   का     एक - एक   कमल।         
         पहले,     अरुणाभ     कुछ   हुआ,         
         फिर,   हिरण्य-वर्ण    नील-जल॥ 

मन का 
दारिद्र्‌य, सब मिटा। 
स्वर्ण-वृष्टि , दृष्टि- ओर-छोर॥
        
          खग, मृग, जल-जंतु    सब  जगे,         
          जागा      मनुजों    का     संसार।         
          धरती  के   भाग्य  फिर  उजास,         
          नष्ट  सकल  कलुष ,  अन्धकार॥ 

मस्जिदों में 
फिर हुई अजान। 
मंदिरों  में  घंटियों- का शोर ॥
                            *

रविवार, 1 जनवरी 2012

इस नए साल में ये पहली दुआ है मेरी............

New Year 2012 Wallpapers  -अरुण मिश्र 
‘‘दिल की धरती 
 कभी बंजर नहीं होने पाये। 
  आँच मन की कभी 
 मद्धिम नहीं होवे, या रब! 
 चमके उम्मीद का सूरज 
 औ’, बरसें प्यार के मेह।। 

 मन में गहरे हैं पड़े 
बीज, कितनी सुधियों के- 
गुज़िश्ता बरसों के; 
उनमें नये अँखुए फूटें।। 
फिर से लहरायें 
नई फसलें, 
नई खुशिओं की।।

इस नये साल में। 
ये पहली दुआ 
है, मेरी।।’’ 
        *
(गत नव वर्ष पर पूर्व प्रकाशित)