मंगलवार, 26 सितंबर 2023

जरा हल्के गाड़ी हांको मेरे राम गाड़ी वाले.../ कबीर / गायन : प्रह्लाद टिपनिया

 https://youtu.be/5GrpLSbAc-8?si=xqES_ci0hafqy24u.

धीरे धीरे रे मना,
और धीरे सब कुछ होए
माली सींचे सौ घड़ा,
ऋतु आये फल होए

ज़रा हल्के गाड़ी हांको,
मेरे राम गाड़ी वाले
ज़रा धीरे धीरे गाड़ी हांको,
मेरे राम गाड़ी वाले
ज़रा हलके गाड़ी हांको

गाड़ी मेरी रंग रंगीली,
पईया है लाल गुलाल
हांकन वाली छैल छबीली,
बैठन वाला राम, ओ भईया
ज़रा हलके गाड़ी हांको

गाड़ी अटकी रेत में
और मजल पड़ी है दूर
इ धर्मी धर्मी पार उतर गया
ने पापी चकनाचूर, ओ भईया
ज़रा हलके गाड़ी हांको

देस देस का वैद बुलाया,
लाया जड़ी और बूटी
वा जड़ी बूटी तेरे काम न आई
जद राम के घर से छूटी, रे भईया
ज़रा हलके गाड़ी हांको
चार जना मिल मतो उठायो,
बांधी काठ की घोड़ी
लेजा के मरघट पे रखिया,
फूंक दीन्ही जैसे होली, रे भईया
ज़रा हलके गाड़ी हांको

बिलख बिलख कर तिरिया रोवे,
बिछड़ गयी रे मेरी जोड़ी
कहे कबीर सुनो भाई साधो,
जिन जोड़ी तिन तोड़ी, रे भईया
ज़रा हलके गाड़ी हांको 

सोमवार, 25 सितंबर 2023

तुम मेरी राखो लाज हरी.../ रचना : सूरदास / गायन : एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी

https://youtu.be/uWC2Z4iRAJ8    

तुम मेरी राखो लाज हरी ।
तुम जानत सब अंतरजामी , करनी कछु न करी ॥१ ॥
औगुन मोसे बिसरत नाही , पल छिन घरी घरी ।
सब प्रपंच की पोट बाँधि करि , अपने सीस धरी ॥२ ॥
दारा सुत धन मोह लियो है, सुधि बुधि सब बिसरी ।
सूर पतित को बेगि उबारो ,   अब मेरी नाव भरी ॥३ ॥

शब्दार्थ - 
राखो = रखो , रक्षा करो , बचाओ । 
लाज = लज्जा , प्रतिष्ठा । 
अन्तरजामी = अन्तर्यामी , सबके भीतर रहनेवाला , सबके हृदय की 
बात जाननेवाला , परमात्मा । 
करनी = काम , क्रिया । 
बिसरना = विस्मृत करना , भुलाना , दूर करना । 
घड़ी = दिन - रात का ६० वाँ भाग , २४ मिनट का समय । 
क्षण = पल का चौथाई भाग । 
पल = २४ सेकेण्ड का समय । 
प्रपंच = माया , संसार , उलझन , छल - कपट , झमेला , आडम्बर । 
पोट = पोटली , गठरी । 
दारा = पत्नी । 
मोह लियो है - मोहित कर लिया है, आकर्षित कर लिया है, आसक्त कर लिया है, 
अज्ञानी बना दिया है। 
सुधि = सुध , होश - हवास , चेतना , ज्ञान। 
बुधि = बुद्धि , विवेक , विचार। 
पतित - जो नीच गिरा हुआ हो, पापी, अधम।  
बेगि = वेग , शीघ्र। 
उबारो = बचाओ ।

भावार्थ - 
हे हरि ( हे श्रीकृष्ण , हे भगवन् ) ! आप मेरी प्रतिष्ठा की रक्षा कीजिए। 
हे अन्तर्यामी ! आप सबके हृदयों की सब बातें जाननेवाले हैं, मेरे हृदय की 
भी बातें जानते हैं कि मैंने कभी कुछ भी सत्कर्म नहीं किया ॥१ ॥ 
पल, क्षण या एक घड़ी के लिए भी मैं अपने अवगुणों ( दोषों ) को छोड़ नहीं 
पाता हूँ । मैंने अपने सारे पापों की पोटली बाँधकर उसे अपने सिर पर धारण 
कर लिया है अर्थात् अपने द्वारा किये गये अत्यधिक पापों के फलस्वरूप 
कष्ट भोग रहा ।।2।।  
पत्नी, पुत्र , धन-संपत्ति आदि ने मेरे मन को अपनी ओर खींच लिया है, 
इसी के चलते मैंने अपनी सब सुध-बुध ( होश-हवास, ज्ञान ) को गंवा दिया है। 
संत सूरदासजी कहते हैं कि हे भगवन् ! आप मेरा शीघ्र उद्धार कर दीजिए। 
अब मेरी जीवन- नैया पापरूपी जल से भर गयी है और वह डूबना ही चाहती है।।३।। 

गुरुवार, 21 सितंबर 2023

ठुमक चलत राम चन्द्र.../ रचना : गोस्वामी तुलसीदास / गायन : कौशिकी चक्रवर्ती

https://youtu.be/rhEe14mnbKo?si=Hhc_CQ3TWfWd3M2u

ठुमक चलत रामचंद्रठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियांठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियांठुमक चलत रामचंद्र
किलकि-किलकि उठत धायकिलकि-किलकि उठत धाय, गिरत भूमि लटपटायधाय मात गोद लेत, दशरथ की रनियांठुमक चलत... बाजत पैंजनियांठुमक चलत रामचंद्र
अंचल रज अंग झारिअंचल रज अंग झारि, विविध भांति सो दुलारिविविध भांति सो दुलारितन मन धन वारि-वारि, तन मन धन वारितन मन धन वारि-वारि, कहत मृदु बचनियांठुमक चलत... बाजत पैंजनियांठुमक चलत रामचंद्र
विद्रुम से अरुण अधरविद्रुम से अरुण अधर, बोलत मुख मधुर-मधुरबोलत मुख मधुर-मधुरसुभग नासिका में चारु, लटकत लटकनियांठुमक चलत... बाजत पैंजनियांठुमक चलत रामचंद्र
तुलसीदास अति आनंदतुलसीदास अति आनंद, देख के मुखारविंददेख के मुखारविंदरघुवर छबि के समानरघुवर छबि के समान, रघुवर छबि बनियांठुमक चलतठुमक चलत रामचंद्रठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियांठुमक चलत रामचंद्र

मंगलवार, 19 सितंबर 2023

गिरिराज सुता तनय, सदय.../ सन्त त्यागराज कृति / स्वर : उत्तरा उन्नीकृष्णन

 https://youtu.be/oAQmGsg7VKo?si=9BkEJiOZNjqeqzvY  

पल्लवि
गिरिराजसुता तनय सदय

अनुपल्लवि
सुरनाथ मुखार्चित पादयुग
परिपालय मामिभराजमुख

चरणं
गणनाथ परात्पर शंकरा-
गम वारिनिधि रजनीकर
फणिराज कंकण विघ्ननिवारण
शांभव श्री त्यागराजनुत

ENGLISH TRANSLATION :

Pallavi
Giri raja   suthaa thanaya-sadaya

Pallavi
Oh son of the daughter of  the mountain who is merciful

Anupallavi
Sura raja mukharchitha pada yuga,
Paripalayamaam , ibharaja mukha

Anupallavi
Oh God  who se feet is worshipped by the king of devas,
Who has the face of the king of elephants, please protect me.

Charanam
Gana Nadha parathpara Sankara,
Agama vari nidhi , rajanee karaa,
Phani raja Kankana, vighna niva-,
Rana, sambhava  Sri Thyagaraja nutha.

Charanam
Oh chief of Ganas, Oh divine of divines, Oh God who 
gives us peace. Oh ocean who Vedic treasure, Oh God 
who is like the lord of night, Oh God who wears snake 
as bangle who removes obstacles,Oh Son of Shambhu,
who is praised by Thyagaraja.

सोमवार, 18 सितंबर 2023

मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं.../ श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र ! / आदि शंकराचार्य

 https://youtu.be/kJVdjMaObtA?si=T_zDClhQsz4jLuB8

गायन : मनोज्ञा, प्रदान्या, हंसिनी, एवं संकीर्तना 

श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र !
मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं
कलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् ।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं
नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥

अनुवाद – मैं श्री गणेश भगवान को बहुत ही विनम्रता के साथ 
अपने हाथों से मोदक प्रदान (समर्पित) करता हूं, जो मुक्ति के 
दाता- प्रदाता हैं। जिनके सिर पर चंद्रमा एक मुकुट के समान 
विराजमान है, जो राजाधिराज हैं और जिन्होंने गजासुर नामक 
दानव हाथी का वध किया था, जो सभी के पापों का आसानी से 
विनाश कर देते हैं, ऐसे गणेश भगवान जी की मैं पूजा करता हूं।

नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं
नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥

अनुवाद – मैं उस गणेश भगवान पर सदा अपना मन और ध्यान 
अर्पित करता हूं जो हमेशा उषा काल की तरह चमकते रहते हैं, 
जिनका सभी राक्षस और देवता सम्मान करते हैं, जो भगवानों 
में सबसे सर्वोत्तम हैं।

समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं
दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥

अनुवाद – मैं अपने मन को उस चमकते हुए गणपति भगवान के 
समक्ष झुकाता हूं, जो पूरे संसार की खुशियों के दाता हैं, जिन्होंने 
दानव गजासुर का वध किया था, जिनका बड़ा सा पेट और हाथी 
की तरह सुन्दर चेहरा है, जो अविनाशी हैं, जो खुशियां और प्रसिद्धि 
प्रदान करते हैं और बुद्धि के दाता – प्रदाता हैं।


अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणम्
कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥

अनुवाद – मैं उस भगवान की पूजा-अर्चना करता हूं जो गरीबों के सभी 
दुख दूर करते हैं, जो ॐ का निवास हैं, जो शिव भगवान के पहले पुत्र (बेटे) 
हैं, जो परमपिता परमेश्वर के शत्रुओं का विनाश करने वाले हैं, जो विनाश 
के समान भयंकर हैं, जो एक गज के समान दुष्ट और धनंजय हैं और सर्प 
को अपने आभूषण के रूप में धारण करते हैं।

नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं
अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥

अनुवाद – मै सदा उस भगवान को प्रतिबिंबित करता हूं जिनके चमकदार 
दन्त (दांत) हैं, जिनके दन्त बहुत सुन्दर हैं, स्वरूप अमर और अविनाशी हैं, 
जो सभी बाधाओं को दूर करते हैं और हमेशा योगियों के दिलों में वास करते हैं।


महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां
समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥

अनुवाद – जो भी भक्त प्रातःकाल में गणेश पंचरत्न स्तोत्र का पाठ करता है, 
जो भगवान गणेश के पांच रत्न अपने शुद्ध हृदय में याद करता है तुरंत ही 
उसका शरीर दाग-धब्बों और दुखों से मुक्त होकर स्वस्थ हो जायगा, वह 
शिक्षा के शिखर को प्राप्त करेगा, जीवन शांति, सुख के साथ आध्यात्मिक 
और भौतिक समृद्धि के साथ सम्पन्न हो जायेगा।
॥ इति श्री गणेशपञ्चरत्नम्स्तोत्रं संपूर्णम् ॥  

रविवार, 17 सितंबर 2023

क्या ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा ? / गीत एवं स्वर : विनोद दुबे

https://youtu.be/1wK-88IVKEM? si=zG9u2BMqKhKPAxxJ

क्या ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा ?

क्या  ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा?
क्या ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा, ओ बंधु !
क्या ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा?
क्या ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा, ओ बंधु !

क्षण भंगुर काया, तू कहाँ से लाया?
गुरुवन समझाया, पर समझ ना पाया
ये साँस निगोड़ी, चलती रुक थोड़ी
चल-चल रुक जावे, क्या खोया, पाया?
क्या ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा?
क्या ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा, ओ बंधु !
क्या ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा?
क्या ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा, ओ बंधु !

ओ मन सुन जोगी बात, यहाँ माया करती घात
आतम भीतर समझात, मूरख ना समझे बात
है ईश्वर तेरे साथ, काहे मन मा घबरात
हो राम सुमिर दिन-रात, कष्ट समय कट जात
हो सब यही छोड़ जाएगा, छोड़ जाएगा
क्या ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा?
क्या ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा, ओ बंधु
क्या ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा?
क्या ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा, ओ बंधु !

क्या ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा?
क्या ले के आयो जग में, क्या ले के जायेगा, ओ बंधु !

बुधवार, 13 सितंबर 2023

माई री तेरो चिरजीवो गोविन्द.../ रचना : भारतेन्दु हरिश्चन्द / गायन : इन्द्रानी मुखर्जी

https://youtu.be/5Z6aKKuq_RE

माई तेरो चिरजीवो गोविंद ।।

दिन दिन बढ़ो तेज-बल, धन-जन,
ज्यों दूजा को चंद ।।

पालो गोकुल, गोपी, गोसुत
गाएँ गोप सानन्द ।।

हरो सकल भय निज भक्तन को,
नासो सब दुःख-दन्द ।।

हर्षित देखि गोद में अनुदिन
रोहिनि, जसुदा, नन्द ।।

लगो बलाय प्रान प्यारे की,
मम बैननि, हरिचंद ।।

माई तेरो चिरजीवो गोविंद ।।

मंगलवार, 12 सितंबर 2023

ताकिहे तमकि ताकी ओर को.../ स्वर : जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी महाराज

https://youtu.be/varmbwCzG0g?si=mv0vNddIjLE8aMgk

विनयपत्रिका पद - "ताकिहै तमकि ताकी ओर को"
स्वर- जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी महाराज ताकिहै तमकि ताकी ओर को। जाको है सब भाँति भरोसो कपि केसरीकिसोर को।। जन रंजन अरि गन गंजन मुख भंजन खल बरजोर को। बेद पुरान प्रगट पुरुषारथ सकल सुभट सिरमोर को॥ उथपे थपन थपे उथपन पन बिबुधबृंद बँदिछोर को। जलधि लाँघि दहि लंक प्रबल बल दलन निसाचर घोर को॥ जाको बालबिनोद समुझि जिय डरत दिवाकर भोर को। जाकी चिबुक चोट चूरन किय रद मद कुलिस कठोर को॥ लोकपाल अनुकूल बिलोकिवो चहत बिलोचन कोर को। सदा अभय जय मुद मंगलमय जो सेवक रनरोर को॥ भगत कामतरु नाम राम परिपूरन चंद चकोर को। तुलसी फल चारो करतल जस गावत गईबहोर को ॥

रविवार, 10 सितंबर 2023

तान-तान फण ब्याल कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ.../ रामधारी सिंह दिनकर

 https://youtu.be/njAYNKcOfBk?si=MTRAYh2V4


झूमें ज़हर चरण के नीचे मैं उमंग में गाऊँ.
तान, तान, फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ।

यह बाँसुरी बजी माया के मुकुलित आकुंचन में,
यह बाँसुरी बजी अविनाशी के संदेह गहन में
अस्तित्वों के अनस्तित्व में,महाशांति के तल में,
यह बाँसुरी बजी शून्यासन की समाधि निश्चल में।
कम्पहीन तेरे समुद्र में जीवन-लहर उठाऊँ
तान,तान,फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ।

अक्षयवट पर बजी बाँसुरी,गगन मगन लहराया
दल पर विधि को लिए जलधि में नाभि-कमल उग आया
जन्मी नव चेतना, सिहरने लगे तत्व चल-दल से,
स्वर का ले अवलम्ब भूमि निकली प्लावन के जल से।
अपने आर्द्र वसन की वसुधा को फिर याद दिलाऊँ.
तान, तान, फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ।

फूली सृष्टि नाद-बंधन पर, अब तक फूल रही है,
वंशी के स्वर के धागे में धरती झूल रही है।
आदि-छोर पर जो स्वर फूँका,दौड़ा अंत तलक है,
तार-तार में गूँज गीत की,कण-कण-बीच झलक है।
आलापों पर उठा जगत को भर-भर पेंग झूलाऊँ.
तान, तान, फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ।

जगमग ओस-बिंदु गुंथ जाते सांसो के तारों में,
गीत बदल जाते अनजाने मोती के हारों में।
जब-जब उठता नाद मेघ,मंडलाकार घिरते हैं,
आस-पास वंशी के गीले इंद्रधनुष तिरते है।
बाँधू मेघ कहाँ सुरधनु पर? सुरधनु कहाँ सजाऊँ?
तान, तान, फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ।

उड़े नाद के जो कण ऊपर वे बन गए सितारे,
नीचे जो रह गए, कहीं है फूल, कहीं अंगारे।
भीगे अधर कभी वंशी के शीतल गंगा जल से,
कभी प्राण तक झुलस उठे हैं इसके हालाहल से।
शीतलता पीकर प्रदाह से कैसे ह्रदय चुराऊँ?
तान, तान, फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ।

इस वंशी के मधुर तन पर माया डोल चुकी है
पटावरण कर दूर भेद अंतर का खोल चुकी है।
झूम चुकी है प्रकृति चांदनी में मादक गानों पर,
नचा चुका है महानर्तकी को इसकी तानों पर।
विषवर्षी पर अमृतवर्षिणी का जादू आजमाऊँ,
तान,तान,फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ।

यह बाँसुरी बजी, मधु के सोते फूटे मधुबन में,
यह बाँसुरी बजी, हरियाली दौड गई कानन में।
यह बाँसुरी बजी, प्रत्यागत हुए विहंग गगन से,
यह बाँसुरी बजी, सरका विधु चरने लगा गगन से।
अमृत सरोवर में धो-धो तेरा भी जहर बहाऊँ।
तान, तान, फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ।

यह बाँसुरी बजी, पनघट पर कालिंदी के तट में,
यह बाँसुरी बजी, मुरदों के आसन पर मरघट में।
बजी निशा के बीच आलुलायित केशों के तम में,
बजी सूर्य के साथ यही बाँसुरी रक्त-कर्दम में।
कालिय दह में मिले हुए विष को पीयूष बनाऊँ.
तान,तान,फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ।

फूँक-फूँक विष लपट, उगल जितना हों जहर ह्रदय में,
वंशी यह निर्गरल बजेगी सदा शांति की लय में।
पहचाने किस तरह भला तू निज विष का मतवाला?
मैं हूँ साँपों की पीठों पर कुसुम लादने वाला।
विष दह से चल निकल फूल से तेरा अंग सजाऊँ
तान,तान,फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ।

ओ शंका के व्याल! देख मत मेरे श्याम वदन को,
चक्षुःश्रवा! श्रवण कर वंशी के भीतर के स्वर को।
जिसने दिया तुझको विष उसने मुझको गान दिया है,
ईर्ष्या तुझे, उसी ने मुझको भी अभिमान दिया है।
इस आशीष के लिए भाग्य पर क्यों न अधिक इतराऊँ?
तान,तान,फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ।

विषधारी! मत डोल, कि मेरा आसन बहुत कड़ा है,
कृष्ण आज लघुता में भी साँपों से बहुत बड़ा है।
आया हूँ बाँसुरी-बीच उद्धार लिए जन-गण का,
फन पर तेरे खड़ा हुआ हूँ भार लिए त्रिभुवन का।
बढ़ा, बढ़ा नासिका रंध्र में मुक्ति-सूत्र पहनाऊँ
तान, तान, फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ।

गुरुवार, 7 सितंबर 2023

बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि.../ बालमुकुन्दाष्टकम् / प्रस्तुति : मनीषा डॉक्टर

https://youtu.be/QpooOaHGGp8?si=IC220o20KNj8z3bH  
बालमुकुन्दाष्टकम् को शांत मन के साथ, अपने आप को 
श्री कृष्ण के चरणों में समर्पित करते हुए पढ़ने से निश्चित 
ही धन धान्य की प्राप्ति, कीर्ति में बढ़ोतरी होती है तथा 
सारे कष्ट दूर हो जाते हैं |  इसे पढ़ने से भय, तनाव और 
असुरक्षा की भावना निकल जाती है। इसलिए सभी को 
बालमुकुन्दाष्टकम् का पाठ करना चाहिए 

करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् ।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ १॥

संहृत्य लोकान्वटपत्रमध्ये शयानमाद्यन्तविहीनरूपम् ।
सर्वेश्वरं सर्वहितावतारं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ २॥

इन्दीवरश्यामलकोमलांगं इन्द्रादिदेवार्चितपादपद्मम् ।
सन्तानकल्पद्रुममाश्रितानां बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ३॥

लम्बालकं लम्बितहारयष्टिं शृंगारलीलांकितदन्तपङ्क्तिम् ।
बिंबाधरं चारुविशालनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ४॥

शिक्ये निधायाद्यपयोदधीनि बहिर्गतायां व्रजनायिकायाम् ।
भुक्त्वा यथेष्टं कपटेन सुप्तं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ५॥

कलिन्दजान्तस्थितकालियस्य फणाग्ररंगे नटनप्रियन्तम् ।
तत्पुच्छहस्तं शरदिन्दुवक्त्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ६॥

उलूखले बद्धमुदारशौर्यं उत्तुंगयुग्मार्जुन भंगलीलम् ।
उत्फुल्लपद्मायत चारुनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ७॥

आलोक्य मातुर्मुखमादरेण स्तन्यं पिबन्तं सरसीरुहाक्षम् ।
सच्चिन्मयं देवमनन्तरूपं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ८॥

॥ इति बालमुकुन्दाष्टकम् संपूर्णम् ॥

मेरा मन बाल कृष्ण का सुमिरण करता है। वट वृक्ष (बड़ का पेड़) की 
पत्तियों पर करते हुए, कमल के सादृश्य कोमल पांवों को, कमल के 
समान हाथ से पकड़ा हुआ है और पांवों के अंगूठे को कमल सादृश्य 
मुख में रखा हुआ है। ऐसी अवस्था में बाल कृष्ण पत्तियों पर सो रहे 
हैं, विश्राम कर रहे हैं।  मैं (साधक) उस बाल स्वरुप ईश्वर को अपने 
मन में धारण करता हूँ 
॥१॥

श्री बाल कृष्ण समस्त लोक/जगत को बड़ (वट) के पत्तों में बाँधने वाले 
हैं, इसके मध्य में बाल कृष्ण सोकर विश्राम करते हैं। उनका यह रूप 
आदि और अंत से परे है। श्री कृष्ण सभी के स्वामी हैं, ईश्वर हैं। 
उनका यह अवतार सभी लोगों के संताप को दूर करने और हितकर 
के लिए है। बाल मुकुंद के इस रूप का मैं (साधक) सुमिरण करता है, 
याद करता है 
॥२॥

बाल कृष्ण नीले कोमल कमल के समान है। इनके अंग कोमल हैं। 
इनके चरण कमल की पूजा इंद्र और अन्य देवताओं के द्वारा की 
जाती है। इनके चरण कमल में आश्रय पाने वाला अपनी इच्छाओं 
को कल्पतरु की भांति पाता है, भाव है की जैसे कल्पतरु से समस्त 
इच्छाएं पूर्ण होती हैं, श्री कृष्ण के चरण कमल में आश्रय पा लेने से 
समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं 
॥३॥

बाल कृष्ण के लम्बे और घुंघराले बाल हैं। श्री कृष्ण एक लम्बा हार 
गले में धारण किये हुए जो लटक रहा है, गले में शोभित है। 
बाल कृष्ण के होंठ बिम्ब फल की भाँती हैं। उनके दांत एक पंक्ति में 
शोभित हैं जो प्रेम उतपन्न करते हैं। श्री बाल कृष्ण के नयन सुन्दर 
और विशाल हैं। श्री बाल मुकुंद (श्री कृष्ण का नाम) को मैं स्मरण 
करता हूँ 
॥४॥

बाल कृष्ण मधानी में से दूध और दही को चुराते हैं, जब बृज की 
गोपिकाएं घर से बाहर चली जाती हैं। दही माखन खाने के बाद वे 
निंद्रा में होना प्रदर्शित करते हैं। श्री बाल मुकुंद (श्री कृष्ण का नाम) 
को मैं स्मरण करता हूँ
॥५॥

कलिंद पहाड़ जहाँ से यमुना नदी निकलती हैं, जहाँ पर कालिया नाग 
है, उस कालिया नाग के फन के ऊपर बाल कृष्ण ने नृत्य किया। 
कालिया की पूँछ को बाल कृष्ण में पकड़ कर घुमा मारा और उनका 
मुख शरद के चाँद जैसा शोभित हो रहा है। श्री बाल मुकुंद 
(श्री कृष्ण का नाम) को मैं स्मरण करता हूँ
॥६॥

जिनको उनकी माता के द्वारा लकड़ी की ओंखली के साथ बाँध दिया 
गया था लेकिन उनका मस्तक वीर के जैसे चमक रहा है। जिन्होंने 
अर्जुन के वृक्ष को अपने शरीर से उखाड़ दिया है, यह उनकी लीला है। 
उनकी विशाल आँखें कमल के के पत्तों के सादृश्य सुन्दर हैं। 
श्री बाल मुकुंद (श्री कृष्ण का नाम) को मैं स्मरण करता हूँ 
॥७॥

श्री कृष्ण दूध के पान के समय अपनी माता को देखते हैं, स्तनपान 
करने के वक़्त उनका मुखमण्डल कमल के समान सुन्दर लग रहा है, 
जैसे कोई कमल झील के किनारे पर स्थित हो। उनका पूर्ण और सत्य 
रूप असीम लग रहा है। श्री बाल मुकुंद (श्री कृष्ण का नाम) को मैं 
स्मरण करता हूँ 
॥८॥

रविवार, 3 सितंबर 2023

कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्.../ कृष्णाष्टकम् / स्वर : मनोज्ञा, प्रदान्या, हंसिनी एवं संकीर्तना

 https://youtu.be/2ZWZ2DIZ4u4   

The lovely Krishnashtakam
with its wonderful words of
praise for Lord Krishna is
presented by the fresh young
voices of Om Voices Junior to
music by Sai Madhukar.

Surrender to Lord Krishna with
this wonderful rendition.
Singers – Om Voices Junior Singers-
Manojna, Pradanya, Hamsini
and Sankeerthana from
Little Musicians Academy (LMA),
Hyderabad Music Composed and Arranged by
Sai Madhukar Lyrics – Traditional

वसुदेवसुतंदेवं कंसचाणूरमर्दनम्, 
देवकीपरमानन्दंकृष्णं वंदे जगद्गुरुम्||  ||

Meaning : I worship Lord Kṛṣṇa, Who is the 
spiritual master of the universe, Who is the 
son of Vasudeva, Who is the Lord, Who killed 
Kamsa and Cāṇūra, and Who is the bliss of 
Devakī.

आतसीपुष्पसंकाशम्हारनूपुरशोभितम् 
रत्नकण्कणकेयूरंकृष्णं वंदे जगद्गुरुम्||  ||

Meaning : I worship Lord Kṛṣṇa, Who is the 
spiritual master of the universe, Who is 
surrounded by flowers, Who is adorned 
with a garland and anklets, and Who has 
gem-studded necklace and arm-bracelet.

कुटिलालकसंयुक्तंपूर्णचंद्रनिभाननम्, 
विलसत्कुण्डलधरंकृष्णं वंदे जगद्गुरुम्||  ||

Meaning : I worship Lord Kṛṣṇa, Who is 
the spiritual master of the universe, Who 
is adorned with curly locks of hair, Who 
has a face resplendent like full-moon, and 
Who has shining earrings.

मंदारगन्धसंयुक्तंचारुहासं चतुर्भुजम्, 
बर्हिपिञ्छावचूडाङ्गंकृष्णं वंदे जगद्गुरुम्||  ||

Meaning : I worship Lord Kṛṣṇa, Who is 
the spiritual master of the universe, Who 
is with the perfume of Mandāra (a coral 
tree flower), Who has beautiful smile, 
Who has four hands (as Viṣṇu), and Who 
has peacock feather at the forehead.

उत्फुल्लपद्मपत्राक्षंनीलजीमूतसन्निभम् 
यादवानां शिरोरत्नं कृष्णंवंदे जगद्गुरुम् || ||

Meaning : I worship Lord Kṛṣṇa, Who is 
the spiritual master of the universe, Who 
has eyes like blooming lotus flower, 
Who resembles a new blue cloud, and 
Who is the best in the dynasty of Yadu.

रुक्मिणीकेळिसंयुक्तंपीतांबरसुशोभितम् 
अवाप्ततुलसीगन्धंकृष्णं वंदे जगद्गुरुम्||  ||

Meaning : I worship Lord Kṛṣṇa, Who is 
the spiritual master of the universe, Who 
plays with Rukmiṇī (Lakṣmī), Who is 
adorned with yellow-robes, and Who has 
obtained Tulasī perfume.

गोपिकानां कुचद्वन्द्व कुंकुमाङ्कितवक्षसम् 
श्रीनिकेतं महेष्वासं कृष्णं वंदेजगद्गुरुम् ||  ||

Meaning : I worship Lord Kṛṣṇa, Who is 
the spiritual master of the universe, Who 
has the marks of saffron from the dual-
breasts of the cowherdesses, Who is the 
abode of Lakṣmī (Śrī), and Who has 
mighty arrows.

श्रीवत्साङ्कंमहोरस्कं वनमालाविराजितम्
शङ्खचक्रधरं देवं कृष्णंवंदे जगद्गुरुम् || ||

Meaning : worship Lord Kṛṣṇa, Who is 
the spiritual master of the universe, Who 
has the sign of ‘‘Śrīvatsa’’ at His broad-
chest, Who has a flower-garland, and 
Who holds a conch and a discus.

कृष्णाष्टकमिदंपुण्यं प्रातरुत्थाय यः पठेत्|, 
कोटिजन्मकृतं पापं स्मरणेनविनष्यति ||

Meaning : Having awakened in the morning, 
those who study these blissful prayers 
glorifying Sri Kṛṣṇa, destroy their sins of 
millions from birth.
|| इति कृष्णाष्टकम्||