बुधवार, 30 जनवरी 2019

राम गोविन्द हरी.../ संत कबीर भजन


https://youtu.be/ixMvbjEUP-g

Ram Govind Hari - Sant Kabir Bhajan Sung by 8 year old Rahul Vellal.

Lyrics and Meaning of the Bhajan Ram Govind Hari Bhajo Re Bhaiyyaa
O devotee, Sing the names of the Lord Sing Ram, Govind, Hari Jap Tap Saadhan Kachhu Nahin Laagat Kharchat Nahin Gatthree Ram Govind Hari Bhajo Re Bhaiyyaa
Singing the name Needs no chanting, no penance, no practice Really, it takes no expense from your pocket O devotee, Sing the names of the Lord Santat Sampat Sukh ke Kaaran Jaa Se Bhool Pari
The wealth and treasures of this world The progeny, the next generation Are all apparent sources of happiness But in fact they are distractions That makes one lose his path in this world Kehat Kabeeraa Jaa Mukh Ram Nahin Wo Mukh Dhool Bharee Ram Govind Hari Bhajo Re Bhaiyyaa
Listen o devotees, Kabeer says thus The tongue on which The name of Ram does not reside Is as good as full of dust O devotee, Sing the names of the Lord

मंगलवार, 29 जनवरी 2019

जागिये रघुनाथ कुँवर : तुलसी दास

https://youtu.be/o2uV-gmqS-c
जागिये रघुनाथ कुँवर : तुलसी दास : राजन एवं साजन मिश्र 


आदि देव नमस्तुभ्यम प्रसीद मम भास्करं दिवाकर नमस्तुभ्यम प्रभाकर नमोस्तुते जागिये रघुनाथ कुंवर पंछी बन बोले -३ चंद किरन सीतल भई चकवी पिय मिलन गई -2 त्रिबिध मंद चलत पवन पल्लव द्रुम डोले जागिये रघुनाथ कुंवर पंछी बन बोले - 2 प्रात भानु प्रगट भयो -2 रजनी को तिमिर गयो -2 भृङ्ग करत गुंज गान कमलन दल खोले जागिये रघुनाथ कुंवर पंछी बन बोले - 2 ब्रह्मादिक धरत ध्यान -2 सुर नर मुनि करत गान - २ जागनकी बेर भई नयन पलक खोले जागिये रघुनाथ कुंवर पंछी बन बोले - 2 तुलसीदास अति अनंद निरखि के मुखारविंद दीननको देत दान भूषण बहु मोले जागिये रघुनाथ कुंवर पंछी बन बोले
*

रविवार, 27 जनवरी 2019

श्रीनिका एवं सोनालिका / ओडिसी नृत्य

https://youtu.be/Dx1hvp8Sr7w

Shrinika and Sonalika

It Needs No Introduction.

The art itself speaks volumes about artists.

Get enthralled with the outstanding performance
of the mother daughter duo.

Yet curious?
Well, the little charm Shrinika is a child prodigy
known as "Wonder Kid of Odissi."
She is on stage since the 2 years of age. In this video
she's probably 6.

The praiseworthy mother is Sonalika Purohit
(Padhi before marriage) from Sambalpur, Odissa.
Left job of Junior Scientist, after marriage to a
software engineer husband and settled in Bangalore,
where she wholeheartedly pursues her love for dance.

Sonalika studied Biotechnology at Sambalpur University
and worked as Assistant / Intern at NBRI, Lucknow.
Completed Sangeet Prabhakar from Allahabad University.
Presently continuing Nrityacharya under Chandigarh University.
Teaches dance in Bangalore.

But above all is the performance which is beyond words
and worth watching.

शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

श्री रुद्राष्टकं ( तुलसीदास ) :पण्डित छन्नूलाल मिश्र

https://youtu.be/8Mu1SUz9TgQ
पण्डित छन्नूलाल मिश्र : श्री रुद्राष्टकं ( तुलसीदास )
॥ रुद्राष्टकं ( तुलसीदास ) ॥

                   ॥ श्रीरुद्राष्टकम् ॥

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥

न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥

      ॥  इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

व्याख्या :
व्याख्या - हे मोक्षस्वरूप, विभु, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर व सबके  स्वामी श्री शिव जी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ. निजस्वरूप में स्थित अर्थात माया आदि से रहित, गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर आपको भजता हूँ ॥1॥
व्याख्या - निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय अर्थात तीनों गुणों से अतीत, वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ॥2॥
व्याख्या - जो हिमाचल समान गौरवर्ण व गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सर पर सुंदर नदी गंगा जी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीय का चंद्रमा और  गले में सर्प सुशोभित है ॥3॥
व्याख्या - जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, सुंदर भृकुटि व विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ व दयालु हैं, सिंहचर्म धारण किये व मुंडमाल पहने हैं, उनके सबके प्यारे, उन सब के नाथ श्री शंकर को मैं भजता हूँ ॥4॥
व्याख्या - प्रचण्ड रुद्र रूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों अर्थात दु:खों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, प्रेम के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकर को मैं भजता हूँ ॥5॥
व्याख्या - कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले, त्रिपुर के शत्रु सच्चिनानंदमन, मोह को हरने वाले, प्रसन्न हों, प्रसन्न हों ॥6॥
व्याख्या - हे पार्वती के पति, जब तक मनुष्य आपके चरण कमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इस लोक में न परलोक में सुख शान्ति मिलती है और न ही तापों का नाश होता है. अत: हे समस्त जीवों के अंदर निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइये ॥7॥
व्याख्या - मैं न तो जप जानता हूँ, न तप और न ही पूजा. हे प्रभो, मैं तो सदा सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ. हे प्रभो, बुढ़ापा व जन्म, मृत्यु, दु:खों से जलाये हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा करें. हे ईश्वर, मैं आपको नमस्कार करता हूँ ॥8॥
व्याख्या - भगवान रुद्र का यह अष्टक उन शंकर जी की स्तुति के लिये है जो मनुष्य इसे प्रेमस्वरूप पढ़ते हैं, श्रीशंकर उन से प्रसन्न होते हैं


गुरुवार, 24 जनवरी 2019

श्री गंगा स्तोत्र... : आदि जगद्गुरु शंकराचार्य

https://youtu.be/1ty1JVsMe64


Ganga Stava by Sri Shankaracharya

The renowned hymn to Ganga by Adi Guru Sankarachaaryaa in musical rendition by Swagatalakshmi Dasgupta .


श्री गंगा स्तोत्र - जगद्गुरु आदि शंकराचार्य 

दॆविसुरॆश्वरिभगवतिगङ्गॆ त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गॆ 
शङ्करमौलिविहारिणि विमलॆ मम मतिरास्तां तव पदकमलॆ  

हे देवी सुरेश्वरी भगवती गंगे आप तीनो लोको को तारने वाली हो... 
आप शुद्धतरंगो से युक्त हो... 
महादेव शंकर के मस्तक पर विहार करने वाली हो... 
हे माँ मेरा मन सदैवआपके चरण कमलो पर आश्रित है...

भागीरथिसुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमॆ ख्यातः 
नाहं जानॆ तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम्  

हे माँ भागीरथी आप सुख प्रदान करने वाली हो... 
आपके दिव्य जल की महिमावेदों ने भी गई है... मैं आपकी
महिमा से अनभिज्ञ हू... हे कृपामयी माता आप कृपया मेरी रक्षा करें...

हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गॆ हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गॆ 
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम्  

हे देवी आपका जल श्री हरी के चरणामृत के समान है... 
आपकी तरंगे बर्फ,चन्द्रमा और मोतिओं के समान 
धवल हैं... कृपया मेरे सभी पापो को नष्ट कीजिये और इस 
संसार सागर के पार होने में मेरी सहायता कीजिये...

तव जलममलं यॆन निपीतं परमपदं खलु तॆन गृहीतम् 
मातर्गङ्गॆ त्वयि यॊ भक्तः किल तं द्रष्टुं  यमः शक्तः  

हे माता आपका दिव्य जल जो भी ग्रहण करता है
वह परम पद पता है... हे माँगंगे यमराज भी आपके 
भक्तो का कुछ नहीं बिगाड़ सकते...

पतितॊद्धारिणि जाह्नवि गङ्गॆ खण्डित गिरिवरमण्डित भङ्गॆ 
भीष्मजननि हॆ मुनिवरकन्यॆ पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्यॆ  

हे जाह्नवी गंगे गिरिवर हिमालय को खंडित कर निकलता 
हुआ आपका जलआपके सौंदर्य को और भी बढ़ा देता है... 
आप भीष्म की माता और ऋषि जह्नु की पुत्री हो... 
आप पतितो काउद्धार करने वाली हो... तीनो लोको में आप धन्य हो...

कल्पलतामिव फलदां लॊकॆ प्रणमति यस्त्वां  पतति शॊकॆ 
पारावारविहारिणिगङ्गॆ विमुखयुवति कृततरलापाङ्गॆ  

हे माँ आप अपने भक्तो की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली हो... 
आपकोप्रणाम करने वालो को शोक नहीं करना पड़ता... 
हे गंगे आप सागर से मिलने के लिए उसी प्रकार उतावली हो
जिस प्रकार एक युवती अपने प्रियतम से मिलने के लिए होती है...

तव चॆन्मातः स्रॊतः स्नातः पुनरपि जठरॆ सॊपि  जातः 
नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गॆ कलुषविनाशिनि महिमॊत्तुङ्गॆ  

हे माँ आपके जल में स्नान करने वाले का पुनर्जन्म नहीं होता... 
हे जाह्नवी !आपकी महिमा अपार है... 
आप अपने भक्तो के समस्त कलुशो को विनष्ट कर देती हो 
और उनकी नरक से रक्षा करती हो...

पुनरसदङ्गॆ पुण्यतरङ्गॆ जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गॆ 
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणॆ सुखदॆ शुभदॆ भृत्यशरण्यॆ  

हे जाह्नवी आप करुणा से परिपूर्ण हो... 
आप अपने दिव्य जल से अपने भक्तोको विशुद्ध कर देती हो... 
आपके चरण देवराज इन्द्र के मुकुट के मणियो से सुशोभित हैं... 
शरण में आनेवाले को आप सुख और शुभता (प्रसन्नताप्रदान करती हो...

रॊगं शॊकं तापं पापं हर मॆ भगवति कुमतिकलापम् 
त्रिभुवनसारॆ वसुधाहारॆ त्वमसि गतिर्मम खलु संसारॆ  

हे भगवती मेरे समस्त रोगशोकतापपाप और 
कुमति को हर लो... 
आपत्रिभुवन का सार हो और वसुधा (पृथ्वीका हार हो... 
हे देवी इस समस्त संसार में मुझे केवल आपका ही आश्रयहै...

अलकानन्दॆ परमानन्दॆ कुरु करुणामयि कातरवन्द्यॆ 
तव तटनिकटॆ यस्य निवासः खलु वैकुण्ठॆ तस्य निवासः  10 

हे गंगे प्रसन्नता चाहने वाले आपकी वंदना करते हैं... 
हे अलकापुरी के लिएआनंद-स्रोत... हे परमानन्द स्वरूपिणी... आपके तट पर निवास 
करने वाले वैकुण्ठ में निवास करने वालो की तरह ही सम्मानित हैं...

वरमिह नीरॆ कमठॊ मीनः किं वा तीरॆ शरटः क्षीणः 
अथवाश्वपचॊ मलिनॊ दीनस्तव  हि दूरॆ नृपतिकुलीनः  11 

हे देवी आपसे दूर होकर एक सम्राट बनकर जीने से अच्छा है 
आपके जल मेंमछली या कछुआ बनकर रहना... 
अथवा तो आपके तीर पर निर्धन चंडाल बनकर रहना...

भॊ भुवनॆश्वरि पुण्यॆ धन्यॆ दॆवि द्रवमयि मुनिवरकन्यॆ 
गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरॊ यः  जयति सत्यम्  12 

हे ब्रह्माण्ड की स्वामिनी आप हमें विशुद्ध करें... 
जो भी यह गंगा स्तोत्र प्रति दिन गाता है... 
वह निश्चित ही सफल होता है...

यॆषां हृदयॆ गङ्गा भक्तिस्तॆषां भवति सदा सुखमुक्तिः 
मधुराकन्ता पञ्झटिकाभिः परमानन्दकलितललिताभिः  13 

जिनके हृदय में गंगा जी की भक्ति है... उन्हें सुख और मुक्ति 
निश्चित ही प्राप्तहोते हैं... 
यह मधुर लययुक्त गंगा स्तुति आनंद का स्रोत है...

गङ्गास्तॊत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम् 
शङ्करसॆवक शङ्कर रचितं पठति सुखी स्त इति  समाप्तः  14 

भगवत चरण आदि जगद्गुरु द्वारा रचित यह स्तोत्र हमें 
विशुद्ध कर हमें वांछितफल प्रदान करे...
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