KURU YADUNANDAN
AN ASHTPADI FROM GEET GOVINDAM OF THE LEGENDARY SANSKRIT POET SHRI JAI DEV
https://youtu.be/qCMJnsFPaQI
कुरु यदुनन्दन ! चन्दनशिशिरतरेण करेण पयोधरे।
मृगमद-पत्रकमत्र मनोभव मङ्गलकलश सहोदरे।।1।।
निजगाद सा यदुनन्दने क्रीड़ति हृदयानन्दने।।ध्रुवपदम ।।
अलिकुल-गञ्जन-सञ्जनकं रतिनायक-शायक-मोचने।
त्वदधर-चुम्बन-लम्बित-कज्जलमुज्ज्वलय प्रियलोचने ॥ निज.... ॥2॥
नयन-कुरङ्ग-तर-विकास-निरासकरे श्रुतिमण्डले।
मनसिज-पाश विलासधरे शुभवेश निवेशय कुण्डले।।
भ्रमरचयं रचयन्तमुपरि रुचिरं सुचिरं मम सम्मुखे।
जित-कमले विमले परिकर्मय नर्मजनकमलकं मुखे॥निज.... ॥4॥
मृगमद-रस-वलितं ललितं कुरु तिलक मलिक-रजनीकरे।
विहित-कलंक-कलं कमलानन! विश्रमित-श्रमशीकरे निज.... ॥5॥
मम रुचिरे चिकुरे कुरु मानद! मनसिज-ध्वज-चामरे।
रति-गलिते ललिते कुसुमानि शिखण्डि-शिखण्डक-डामरे॥ निज.... ॥6॥
सरस-घने जघने मम शम्बर-दारण-वारण-कन्दरे।
मणि-रसना-वसनाभरणानि शुभाशय! वासय सुन्दरे॥ निज.... ॥7॥
श्रीजयदेव-वचसि रुचिरे सदयं हृदयं कुरु मण्डने।
हरिचरण-स्मरणामृत-निर्मित-कलि-कलुष-ज्वर-खण्डने ॥ निज.... ॥8॥
*
अनुवाद :
अनुवाद : साभार krishnakosh.org
AN ASHTPADI FROM GEET GOVINDAM OF THE LEGENDARY SANSKRIT POET SHRI JAI DEV
https://youtu.be/qCMJnsFPaQI
Jayadeva in his celebrated Gita Govinda creates this beautiful ashtapadi,verse,where Radha tells Krishna, "Kuru yadu nandana chandana shishira tarena karena payodhare" —‘With your hands and with sandal paste make patterns of leaves on my bosom which rival theauspicious vessel of the god of love.With kohl blacker than bees,brighten both my love darting eyes;adorn my lotus like face with flowers;place a mark of musk on my forehead;put flowers on my tresses.’ Once again this is not mere adornment,but Radha,self-assured of her love, wishes to become Krishnamaya, full of Krishna, through his sensual touch.
Here is an affirmation of sensuality at its best.
GURU KELUCHARAN MOHAPATRA
The doyen of Odissi, Guru Kelucharan Mohapatra was born on January 8, 1926 in Raghurajpur, Orissa. Kelucharan was a precocious child, he learnt to paint, sculpt and play the Khol drum at a very early age. He joined Gotipua troupes and folk theater groups when he was just nine.
He was totally immersed in Odissi. He resurrected odissi when it was at the verge of extinction. In 1994 he set up an organisation, 'Srjan' to impart training to students in Odissi dance. Many famous classical dancers such as Sanjukta Panigrahi, Kukum Mohanty, Sonal Mansingh, Priyambada Mohanty, Minati Mishra and Bhartanatyam dancer Yamini Krishamurthy are disciples of guru Kelucharan Mohapatra.
For his enormous contribution to Odissi, Kelucharan Mohapatra received many awards including Sangeet Natak Akademi award, 1966; Padma Shri, 1972; Padma Bhushan,1989; Padma Vibhushan, 2000; and Kalidas Samman from Madhya Pradesh government. To honor him the Guru Kelucharan Mohapatra award was instituted in 1995. This annual award is given for the contribution in the field of art.
This Odissi exponent passed away on April 7, 2004 in Bhubaneshwar, Orissa, leaving behind a league of Odissi dancers to continue the work started by him.
KURU YADUNANDAN SANSKRIT TEXT
॥ गीतम 24 ॥
मृगमद-पत्रकमत्र मनोभव मङ्गलकलश सहोदरे।।1।।
निजगाद सा यदुनन्दने क्रीड़ति हृदयानन्दने।।ध्रुवपदम ।।
अलिकुल-गञ्जन-सञ्जनकं रतिनायक-शायक-मोचने।
त्वदधर-चुम्बन-लम्बित-कज्जलमुज्ज्वलय प्रियलोचने ॥ निज.... ॥2॥
नयन-कुरङ्ग-तर-विकास-निरासकरे श्रुतिमण्डले।
मनसिज-पाश विलासधरे शुभवेश निवेशय कुण्डले।।
भ्रमरचयं रचयन्तमुपरि रुचिरं सुचिरं मम सम्मुखे।
जित-कमले विमले परिकर्मय नर्मजनकमलकं मुखे॥निज.... ॥4॥
मृगमद-रस-वलितं ललितं कुरु तिलक मलिक-रजनीकरे।
विहित-कलंक-कलं कमलानन! विश्रमित-श्रमशीकरे निज.... ॥5॥
मम रुचिरे चिकुरे कुरु मानद! मनसिज-ध्वज-चामरे।
रति-गलिते ललिते कुसुमानि शिखण्डि-शिखण्डक-डामरे॥ निज.... ॥6॥
सरस-घने जघने मम शम्बर-दारण-वारण-कन्दरे।
मणि-रसना-वसनाभरणानि शुभाशय! वासय सुन्दरे॥ निज.... ॥7॥
श्रीजयदेव-वचसि रुचिरे सदयं हृदयं कुरु मण्डने।
हरिचरण-स्मरणामृत-निर्मित-कलि-कलुष-ज्वर-खण्डने ॥ निज.... ॥8॥
*
अनुवाद :
अनुवाद- हृदय को आनन्द प्रदान करने वाले यदुनन्दन के साथ
क्रीड़ा करती हुई श्रीराधा ने कहा हे यदुनन्दन! चन्दन से भी
अति शीतल अपने हाथों से मनोभव के मंगल-कलश के समान
मेरे पयोधरों पर मृगमद से पत्रक-रचना कीजिए।।1।।
क्रीड़ा करती हुई श्रीराधा ने कहा हे यदुनन्दन! चन्दन से भी
अति शीतल अपने हाथों से मनोभव के मंगल-कलश के समान
मेरे पयोधरों पर मृगमद से पत्रक-रचना कीजिए।।1।।
अनुवाद- हे प्रिये! रतिनायक कामदेव के सायकों को छोड़ने
वाली मेरी आँखों का काजल तुम्हारे अधरों के चुम्बन से
गलित हो गया है, अलि-कुल को भी तिरस्कृत करने वाले
कज्जल को मेरी आँखों में उज्ज्वल कीजिए ।।2।।
वाली मेरी आँखों का काजल तुम्हारे अधरों के चुम्बन से
गलित हो गया है, अलि-कुल को भी तिरस्कृत करने वाले
कज्जल को मेरी आँखों में उज्ज्वल कीजिए ।।2।।
अनुवाद- हे शुभवेश! नयनरूपी कुरंग-तरंग के विकास को
निरस्त करने वाले तथा युवकों के मन को बाँधने वाले
कामदेव के पाश के समान मेरे श्रुतिमण्डल पर कुण्डल
धारण कराइये।।3।।
निरस्त करने वाले तथा युवकों के मन को बाँधने वाले
कामदेव के पाश के समान मेरे श्रुतिमण्डल पर कुण्डल
धारण कराइये।।3।।
अनुवाद- मनोहर और अमल कमलों को भी जीतने वाले
विमल एवं रुचिर मेरे मुख पर नर्म परिहास जनक भ्रमरों
की शोभा प्रकाशित करने वाले मेरे मुख पर आप सुन्दर
अलकावली को गूँथिए।।4।।
विमल एवं रुचिर मेरे मुख पर नर्म परिहास जनक भ्रमरों
की शोभा प्रकाशित करने वाले मेरे मुख पर आप सुन्दर
अलकावली को गूँथिए।।4।।
अनुवाद- हे कमललोचन! रति के श्रम से उत्पन्न स्वेदबिन्दुओं
से युक्त, मृग-लाञ्छन की शोभा धारण करने वाले अर्द्ध-चन्द्र
के समान मेरे भाल पर मनोहर कस्तूरी से सुन्दर तिलक
रचना कीजिए ।।5।।
से युक्त, मृग-लाञ्छन की शोभा धारण करने वाले अर्द्ध-चन्द्र
के समान मेरे भाल पर मनोहर कस्तूरी से सुन्दर तिलक
रचना कीजिए ।।5।।
अनुवाद- हे मानद! रतिकाल में शिथिल हुए कामदेव की
ध्वजा के चामर के समान तथा मयूर-पुच्छ से भी मनोहर
मेरे मनोहर केशों में कुसुम सजा दीजिए ।।6।।
ध्वजा के चामर के समान तथा मयूर-पुच्छ से भी मनोहर
मेरे मनोहर केशों में कुसुम सजा दीजिए ।।6।।
अनुवाद- हे शोभन-हृदय! मेरी कामदेवरूपी मदोन्मत्त
हाथी की कन्दरारूपी सरस, सुन्दर, सुभग, स्निग्ध,
स्थूल जघनस्थली को मणि, करधनी, वस्त्र तथा
आभूषणों से अलंकृत कीजिए।।7।।
हाथी की कन्दरारूपी सरस, सुन्दर, सुभग, स्निग्ध,
स्थूल जघनस्थली को मणि, करधनी, वस्त्र तथा
आभूषणों से अलंकृत कीजिए।।7।।
अनुवाद- श्रीहरि के चरणों के स्मरणरूपी अमृत से
कलि-कलुष-ज्वर को विनष्ट करने वाली, कल्याणदायिनी,
मनोहारिणी कवि जयदेव की वाणी को समलंकृत करने में
अपने हृदय को सदय बनायें।।8।।
अनुवाद : साभार krishnakosh.org
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