मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

नये साल के स्वागत में.......

nav varsh ki hardik shubhkamnaye


नये साल के स्वागत में.......

-अरुण मिश्र. 


नये साल के स्वागत में है,
मेरी कविता नयी-नयी।।

सुनते हैं,  अब की दिल्ली में,
आम  आदमी   है  सरकार।
कमल अधखिला, हाथ तंग है,
तार-तार    सब   भ्रष्टाचार।।

आम आदमी जयी-जयी है,
ख़ास मेहरियां क्षयी-क्षयी।।
नये साल के स्वागत में है,
मेरी कविता नयी-नयी।।

गुरु गुड़ हुआ, चेला  शक्कर,
मर्माहत   सिद्धी  में   सिद्ध।
गुरु ने कही सो एक न मानी,
कीचड़ में  घुस गया  निषिद्ध।।

जब कीचड़ से कुर्सी उपजी,
काय कूं बन्दा करे नईं।।
नये साल के स्वागत में है,
मेरी कविता नयी-नयी।।

संत  विलोमी  औ’ अनुलोमी,
आँख दबा,  कहते  समुझाय।
कमल और अरविन्द  एक हैं,
दोऊ में  कछु  अन्तर  नाय।।

मुरझेगा अरविन्द अगर, तो
कमल खिलेंगे कई-कई।।
नये साल के स्वागत में है,
मेरी कविता नयी-नयी।।

गरज  रहे  हैं  संत  मंच से,
काला  धन  लाओ  तत्काल।
लुंगी  में  सलवार  छुपा कर,
खुल  कर बेचें   आँटा-दाल।।

कभी भागना पड़े मंच से,
काम आवे  सलवार मुई।।
नये साल के स्वागत में है,
मेरी कविता नयी-नयी।।

सन् चौदह में,  कौन  करेगा,
भारत - भू     का    बंटाढार।
फेंकू  नित  हुंकार  भर  रहे,
पप्पू    भाँज   रहे   तलवार।।

इस कीचड़-उछाल बेला में,
शर्म-हया  सब   गई-गई।।
नये साल के स्वागत में है,
मेरी कविता नयी-नयी।।

खुसुर-पुसुर है,  तीन माह में,
धुल   जायेंगे    सारे   पाप।
दफ़्तर बाहर  लगी  है लाइन,
पहले आप  कि,  पहले  आप।।

नई बहुरिया के सब नखरे
सब ने  हाथों-हाथ   लई।।
नये साल के स्वागत में है,
मेरी कविता नयी-नयी।।
                     *

टिप्पणी :  नये वर्ष की हँसी-ठिठोली को कोई दिल पे न लेना यार !
                नये साल में सब हँसो-खेलो, खिलखिलाओ, जश्न मनाओ।
                नये सपने, नई उम्मीदें सजाओ।
                नव-वर्ष सभी को शुभ हो ! कल्याणकारी हो !

                -अरुण मिश्र 

नव-वर्ष मंगलमय हो !


  

रविवार, 15 दिसंबर 2013

उसको छू कर गुज़र गये होते .......

उसको छू कर गुज़र गये होते .......

-अरुण मिश्र. 


हज़्रते-नूह    पर     गये    होते।
हर  ख़तर  से  उबर  गये  होते।।

उसको  छू कर  गुज़र  गये होते।
फूल  दामन  में  भर  गये  होते।।

आदतन   वो   सँवर  गये   होते।
कितने  ज़ल्वे  बिखर  गये  होते।।

शाख़े-गु़ल मुन्तजि़र थी मुद्दत से।
काश   हम  ही   उधर  गये  होते।।

जा  न मिलती  जो  तेरे  कूचे में।
जाने  किस जा,  किधर गये होते।।

बिन  तिरे  जीने  के  तसव्वुर से।
हम तो  जीते जी  मर  गये होते।।

होता ग़र  आग का न दर्या इश्क़।
सब  ‘अरुन’  पार  कर गये होते।।
                       *

गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

तुम्हारे स्वर्ण-मण्डित छद्म सारे खोल देगा ..…


तुम्हारे स्वर्ण-मण्डित छद्म सारे खोल देगा ..… 


-अरुण मिश्र. 


तुम्हारे    स्वर्ण-मण्डित    छद्म   सारे    खोल   देगा।
निकष  पर  जाओगे    तो   बात  सच्ची   बोल  देगा॥

तमन्ना  है  अगर  लोहे  से  सोना  बनने  की  जी में।
तो   पारस की  शरण लो,  जो  बढ़ा  कुछ  मोल देगा॥

समो दो   दर्द अपने,   दुन्या  के   दुःख के समंदर में।
ये   सागर,   धैर्य   के  मोती,   तुम्हें   अनमोल  देगा॥
       
हँसा कर के किसी रोते को,  जिस क्षण  मुस्कराओगे।
वो   लम्हा,   देखना   जीवन में   ख़ुशियाँ   रोल  देगा॥

'अरुन' तन की तो सीमा है, तू अपना मन बड़ा कर ले।
खुला   मन,    ज़िन्दगी   में   रँग  नूतन   घोल   देगा॥
                                                   *      

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

वो दर्या है मगर प्यासा बहुत है…


वो दर्या है मगर प्यासा बहुत है… 

-अरुण मिश्र. 

वो  दर्या  है,  मगर  प्यासा  बहुत  है। 
समन्दर   से,   उसे  आशा  बहुत  है॥

वो झुक कर, सब के तलवे चाटता है।
उसे शोहरत की,  अभिलाषा बहुत है॥

मेरी  आँखों  से  टपकें,  उसके  आँसू। 
मोहब्बत  की,  ये  परिभाषा  बहुत है॥

प्रतीक्षा,  आख़िरी दम तक है जायज़। 
अनागत  की,  तो  प्रत्याशा  बहुत  है॥ 

न  हिन्दी से,  न कुछ उर्दू से मतलब। 
'अरुन'  को,  प्यार की  भाषा  बहुत है॥  
                                *
    

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

'अमृता-अंकुर का गठबन्धन'


अमृता-अंकुर  का  गठबन्धन

अंकुर-अमृता का  प्रणय-बन्ध,
शिव हो, शुभ  मंगलदायक  हो।
सम्मिलन     चौधरी-अग्रवाल-
कुल का,  मंगल फलदायक हो॥

देते   आशीष    स्वर्ग    से    हैं,
भागवत दास  -  सावित्री    जी।
उनके  हैं  पुण्य  फले,  जिससे,
अमृता, दुल्हन बन आज सजी॥

ब्रजमोहन - दीपा  की   गुड़िया,
चौधरी - वंश   की    बहू   बनी।
श्री अनिल और संध्या जी खुश;
उनको,   हीरे  की   मिली  कनी॥

राजेश,      कृष्णमोहन    ताऊ-
का,  आज बहुत  हर्षित है मन।
करते   बरातियों  का  स्वागत,
दीपक, देवेन, निखिल, चन्दन॥

अंकिता,  स्मिता  हैं  पुलकित,
सन्दीप, प्रदीप, मनीष स्वजन।
सब   देते   हैं   आशीष,    फले-
अमृता-अंकुर  का  गठबन्धन॥
                         * 

बचपन के मित्र श्री ब्रज मोहन अग्रवाल जी की बिटिया 'अमृता' के शुभ-विवाह 
पर शुभाशीर्वाद एवं मंगलकामनायें। इसमें सभी नाम उनके परिवार के हैं। 

-अरुण मिश्र                                                  
                  
    

शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

छठ पर्व पर विशेष





अस्तंगत सूर्य को एक अर्घ्य मेरा भी...

- अरुण मिश्र 


अस्तंगत   सूर्य  को   एक  अर्घ्य   मेरा  भी ||

                              दे   रहीं  असंख्य  अर्घ्य, 
                              गंगा      की      ऊर्मियाँ |
                              धरती   पर   जीवन  के -
                              छंद  ,    रचें    रश्मियाँ ||

चम्पई   उजाला   भी ,  रेशमी   अंधेरा   भी |
अस्तंगत   सूर्य  को   एक  अर्घ्य   मेरा  भी ||


                              ऊर्जित  कर  कण-कण ; 
                              शांत, शमित तेज प्रखर |
                               विहंगों   के  कलरव  में ,
                               स्तुति के  गीत   मुखर ||

ढलता   तो   रात   और  उगे  तो  सवेरा  भी |
अस्तंगत   सूर्य  को   एक  अर्घ्य   मेरा  भी ||


                                 उदय-अस्त की माला 
                                 को   अविरल   फेरता |
                                 सृष्टि - चक्र  - मर्यादा -
                                 मंत्र ,   नित्य   टेरता ||


जीवन उत्थान-पतन,सुख-दुख का फेरा भी | 
अस्तंगत   सूर्य  को   एक  अर्घ्य   मेरा  भी ||
                                   *
- See more at: http://arunmishra-rashmirekh.blogspot.in/2010/11/blog-post_12.html#sthash.lkcoOi59.dpuf

(गत वर्षों में इसी ब्लॉग में पूर्व प्रकाशित । )

बुधवार, 28 अगस्त 2013

बाल-मुकुन्द का, मन से है स्मरण..….

Krishna Vatapathra-Shayee
वट-पत्र-पुट में, सुख से शयन-रत... 

भावानुवाद :

अरविन्द कर से, अरविन्द पद को,
          अरविन्द मुख में   विनिवेश करते;
वट-पत्र-पुट में, सुख से  शयन-रत,
          बाल-मुकुन्द का, मन से है स्मरण।।

                                               -अरुण मिश्र. 
मूल संस्कृत श्लोक :

करारविन्देन पदारविन्दं 
मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम।
वटस्य पत्रस्य पुटे  शयानं 
बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि।।  

 Ref :

Leela Sukha(Bilvamangala Thakur) in one of his Krishna Karnamritha slokas 2.57 describes the baby (Bala-Mukunda) that floats on the pralaya waters on top of a banyan leaf after swallowing the universe and its contents for their protection: 

kararavindhena padharavindam / mukharavindhe vinivesayantham
vatasya patrasya pute shayanam / balam-mukundam manasa smarami

(Translation) With His soft lotus hands, our baby Mukunda has grabbed His lotus like toe and placed it in His lotus mouth, decorated with red lips, and sucks on it in amusement as He rests on the tender shoot of a banyan leaf contemplating on the next cycle of creation.
                                                     
                                                 -Image and reference courtesy Hare Krishna Temple Portal.

मंगलवार, 20 अगस्त 2013

'शिव' बिन सूना गीत शिवालय....


स्वर्गीय श्रद्धेय भदौरिया जी (डॉ. शिव बहादुर सिंह) 
को विनम्र श्रद्धांजलि 

टिप्पणी : दिनांक १९.०८.२०१३, सोमवार को श्रद्धेय भदौरिया जी के श्राद्ध में सम्मिलित
होने के लिए लालगंज, रायबरेली जाते समय मन में जो श्रद्धा-प्रवाह उमड़ा, उसे छन्दों 
में बाँधने का प्रयास किया है।
*''हिरन कि गाय कि बाघ कि बकरी??'' - भदौरिया जी की प्रसिद्ध कविता, 'नदी का 
बहना मुझ में हो' की एक  पंक्ति है। भदौरिया जी के स्वर में इस कविता की वीडियो 
क्लिपिंग प्रस्तुत है।       



'शिव' बिन सूना गीत-शिवालय.… 

ब्रह्मनाद    में   लीन   हुआ   स्वर,
महाज्योति  में  ज्योति हुई  लय।

           जाने   को   सब  जाते  इक  दिन,
           यह     असार    संसार     छोड़ते।
           तुम    परम्परा   के   वाहक    थे,
           कैसे     शाश्वत   नियम    तोड़ते??

किन्तु,   तुम्हारे  जाने  से  'शिव'
सूना - सूना       गीत - शिवालय।।

           हर    प्यासे   के    लिए   नदी  थे;
           हर   कोई      भर   लाता    गगरी।
           तृषा      बुझाएंगे      अब      कैसे,
           हिरन कि गाय कि बाघ कि बकरी??*
  
जब  तक  जीवित  रहे,   धरा  पर
थे  शिवत्व  के   जीवित  परिचय।।

           तुम   चन्दन  वन   की   छाया  थे-
           सघन,   जहाँ   शीतल  होता  मन।
           'शिव' तेरा सान्निध्य  क्षणिक भी,
           पारस   सम,   करता  था   कंचन।।

क्षीण   भले,     क्षयमान   कलेवर,
पर,   कृतित्व  की   आभा  अक्षय।।

                                                     -अरुण मिश्र .    
         

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

विनम्र श्रद्धांजलि

विनम्र श्रद्धांजलि 
मूर्धन्य गीतकार, श्रेष्ठ शब्द-शिल्पी, 
अप्रतिम साहित्यकार, ऋषितुल्य, 
परम श्रद्धेय 
डा० शिव बहादुर सिंह भदौरिया जी को,
जो मंगलवार, ०६, अगस्त,२०१३ को 
स्मृति शेष हो गये।   

  

डा० शिव बहादुर सिंह भदौरिया जी द्वारा काव्य पाठ 
करते हुए  यह क्लिपिंग, दिनांक ०२ जून, २००७ को मेरे लखनऊ स्थित आवास पर आयोजित गोष्ठी के अवसर की है।
                                                                                                 -अरुण मिश्र . 

    


सोमवार, 29 जुलाई 2013

आभार



आभार

'रश्मि-रेख' में पहली पोस्ट  'रश्मि-रेख-आमंत्रण', २३ जुलाई, २०१०, की है 
इस लिहाज से जुलाई, २०१३ में इसके तीन वर्ष पूरे हो गए 

मेरे लिए यह संतोष की बात है कि, ब्लॉगर के स्टैट्स के अनुसार इस अवधि 
में आज की तिथि तक १०३०८  पेज व्यूज  हुए हैं जो, औसतन १० प्रतिदिन है 
इस अवधि में १७ समर्थक भी मिले हैं, और ४३७ लोगों ने प्रोफाइल में रूचि 
ली है 

अपने सहृदय शुभचिंतकों के इस सतत स्नेह से मैं अभिभूत हूँ मुझे इस 
बात की संतुष्टि है कि, आप सब तक पहुँच कर मेरी रचनाएँ सार्थक हुईं 
इनकी स्वीकार्यता के प्रति भी किञ्चित आश्वस्त  हो सका हूँ 

अपनी ब्लॉग-यात्रा के इस पड़ाव पर, लगातार साथ दे कर, मेरा 
उत्साह वर्धन करते रहने के लिए, मैं आप सब का हृदय से कृतज्ञ हूँ 

मैं विशेष कर अपने उन शुभेच्छुओं  का आभारी हूँ जिन्होंने पहले वर्ष में, 
समर्थन, मार्गदर्शन एवं टिप्पणियां दे कर कर मुझे उपकृत करने की कृपा की

आप सभी, जो मेरे ब्लॉग तक पहुंचे, मेरे दिल के बहुत करीब हैं अनुभूतियों के 
इस लेन-देन में धन्यवाद बहुत छोटा शब्द है। अस्तु , मैं पुनः-पुनः सभी को 
अपनी विनम्र कृतज्ञता अर्पित करता हूँ 

बहुत-बहुत आभार 

-अरुण मिश्र.

 'शाकुन्तलम',
  ४ /११३, विजयन्त खण्ड, गोमती नगर,
  लखनऊ -२२६०१०. 

  arunk.1411@gmail.com

  मोबाइल : ०९९३५२३२७२८    
                         

शनिवार, 20 जुलाई 2013

रहने दो म्यां हियां पर दीनो-धरम की बातें.....


रहने दो म्यां हियां पर दीनो-धरम की बातें...

-अरुण मिश्र.

रहने दो म्यां  हियां पर,  दीनो-धरम की  बातें।    
दैरो-हरम  में  जँचतीं,   दैरो-हरम   की   बातें॥

उसके  ख़याल को   हैं,  दिल को हमारे  यकसां।  

ज़ोरो-सितम  की  बातें,  मेह्रो-करम  की  बातें॥

जो कुछ है सब उसी का, यां कुछ नहीं किसी का।  

इसके  अलावा जो भी,  सब  हैं  भरम  की  बातें॥

टुक  मेरे  पास  बैठो, तुम भी  'अरुन' से  सीखो।  

हसरत की, दर्दो-ग़म की,दिल के मरम की बातें॥
                                           *

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

मेरा मन केदारनाथ में .....


The hellish rains have turned Kedarnath into a ghost town. Though the outer structure of the temple seems intact, there are bodies piled up outside its gate.  Kedarnath shrine, one of the holiest of Hindu temples dedicated to Lord Shiva, and other buildings are seen damaged. (PTI)
                     मलबों  में  सिसकी  लेती  हैं जाने  कितनी  करुण-कथायें ...










मेरा मन केदारनाथ में .....                

-अरुण मिश्र.

यूँ   तो  मैं  घर  में   बैठा हूँ,
मेरा   मन   केदारनाथ   में।।

जहाँ प्रकृति ताण्डव-लीला-रत;
पागल   जहाँ   हुये   हैं   बादल।
घूम  रहा  है   उस   प्रान्तर  में,
पर्वत - पर्वत,  जंगल - जंगल।।

मेरा  मन   उनसे  जुड़ता  है,
बचा न जिनके कोई साथ में।।

किसका  साथ  कहाँ  पर छूटा?
अन्तहीन   बह  रहीं   व्यथायें।
मलबों  में   सिसकी  लेती   हैं,
जाने  कितनी   करुण-कथायें।।

संग  तुम्हारे, सब सनाथ थे;
कैसे, कुछ  बदले अनाथ में??

जो   विनशे   विनाश-लीला  में,
उनके प्रति यह हृदय, द्रवित है।
किन्तु, प्रलय से जो बच निकले,
उन्हें  देख,   मन   रोमांचित  है।।

कौन  जियेगा,  कौन  मरेगा?
है यह विधि के चपल हाथ में।।

थोड़े    आँसू     की     श्रद्धाँजलि, 
   उन्हें,   नहीं   हैं  शेष  आज  जो।
   जो   विपदा   में   बचे   सुरक्षित,
   पथ  उनका   भी,   मंगलमय हो।।

महाप्रलय के बाद, सृष्टि फिर
नूतन  उभरे,  नव-प्रभात  में।।
*

मंगलवार, 18 जून 2013

मिथिलानन्दनि-नयननंदन का वंदन आज......


श्री हनुमते नमः 



भावानुवाद :

पूँछ से बुहार  उदधि-अम्बर के  मध्य  मार्ग 
            चलते   उछल,   बने   कारण  इन्द्र-मोद  के। 
फैली  भुजाओं   से    फूट  रहे    पर्वत-खण्ड
            मिथिलानन्दनि-नयननंदन का वंदन आज ।।    
                                                *
                                                                -अरुण मिश्र 


मूल संस्कृत :

लाङ्गूलमृष्टवियदम्बुधिमध्य्मार्ग-
          मुत्प्ल्युत्य यान्त्ममरेन्द्रमुदो निदानम् । 
आस्फालितस्वकभुजस्फुटिताद्रिकाण्डं 
          द्राङ्मैथिलीनयननन्दनमद्य           वन्दे ।।
                                                *   

टिप्पणी : कविपति श्री उमापति द्विवेदी विरचित वीरविंशतिका नामक २० श्लोकों की 
श्री हनुमतस्तुति के प्रथम श्लोक का भावानुवाद, ज्येष्ठ मास के अंतिम मंगलवार को 
श्रद्धा सहित प्रस्तुत है।        
                                                                                                  -अरुण मिश्र 


                                          


रविवार, 16 जून 2013

दुआ दो ‘मीर’ को........

दुआ दो  ‘मीर’  को........

-अरुण मिश्र
.
दुआ दो  ‘मीर’  को,  टुक चैन से  ज़न्नत में  वो सोवे। 
‘अरुन’ तुम यां रखो क़ायम वही अन्दाज़े-दर्द-आगीं।।
  
छलकतीं  रात-दिन  जो दर्द से,  अल्ला के आलम में। 
सुला के  ख़्वाहिशें  कितनी,  ये आँखें  रात भर जागीं।।
  
बहुत  ग़म हैं  ज़माने में,  तो  थोड़ी  सी  खुशी  भी  है। 
मिलन  के  एक  पल   में,   सैकड़ों  तन्हाइयां   भागीं।।

हैं  मीठी,  तल्खि़यों,  दुशवारियों  में,   राहते-ज़ां  सी। 
न   जाने   कैसी   शीरीनी  में,   ये   बातें  तिरी,  पागीं।।
  
न  जाओ  श्याम ! रो-रो   गोपियां,  पइयां परन लागीं। 
तो झरने सी झरन लागी हैं,उनकी चश्मे-अश्क-आगीं।।
                                                *


सोमवार, 3 जून 2013

मगर उससा मिला कोई नहीं.....




मगर उससा मिला कोई नहीं.....

-अरुण मिश्र.

बारहा   ढूँढा,   मगर   उससा  मिला  कोई   नहीं। 
है  ‘अरुन’  सा  एक  ही,  याँ   दूसरा  कोई  नहीं।। 

तू  क़रम की  ओट में,  मुझ पर  क़हर ढाता रहा। 
यूँ   कि   तू  मेरा   ख़ुदा ;  तेरा  ख़ुदा   कोई  नहीं??
  
ज़र्रे - ज़र्रे   में   नुमाया   नूर    से,  गाफि़ल  रहा। 
ज़ुस्तज़ू   उसकी रही,  जिसका  पता  कोई  नहीं।।
  
हमसे   पहले  भी    हुये,  फ़रहादो-कै़सो-रोमियो। 
फिर भी लगता हमको, हमसा आशना कोई नहीं।।
                                              * 
  

रविवार, 19 मई 2013

प्यार के ग़फ़लत में जिसके...

प्यार के ग़फ़लत में जिसके....

-अरुण मिश्र 

प्यार के ग़फ़लत में  जिसके,  है गुज़ारी  ज़िन्दगी        
रंज  उसकोमैंने  ही,  उसकी  बिगाड़ी  ज़िन्दगी।।
  
चहचहों से जिसकेमुझको घर सदा गुलशन लगा। 
उसको ये ग़मपिंजरे मेंउसने गुज़ारी  ज़िन्दगी।।
  
प्यार में क्या खोया-पायाइसका भी होगा हिसाब। 
यूँ  कभी  सोचा  था ,   प्यारी-प्यारी  ज़िन्दगी।।
  
हँसने-रोने  के   हुनर  ने,   है  इसे,  आसां  किया। 
रोये जो अक्सरतो हॅस कर भी गुज़ारी  ज़िन्दगी।।
  
तल्खि़यां ,  मज्बूरियां ,  नाकामियां ,  लाचारियां। 
जाने कितने वज़्न हैं , जिनसे  है  भारी  ज़िन्दगी।।
  
जान भी प्यारी है ’,  जीना भी है मुश्किल मियाँ         
ख़ूब,   ये   मीठी   कटारी   है    दुधारी,   ज़िन्दगी।।
  
जो  बचे  इस साल,  सूखा - जलजला - सैलाब  से। 
वहशतो- दहशत  ने  ग़ारत  की,  हमारी  ज़िन्दगी।।
  
आस्ताने - कैफ़ो - मस्ती,  यूँ  तो आलम में  हज़ार। 
पर फिराती दर-बदर, क़िस्मत  की मारी  ज़िन्दगी।।
  
बीतते सावन के  बादल भी,    कुछ  लाये  ख़बर। 
आस  कोई तो   मिरे मन में,   जगा  री ! ज़िन्दगी।।
  
आओ साथी  बाँट लें,  आपस में  हर ग़म--ख़ुशी। 
थोड़ा हँस  लें साथ कि,  ख़ुश  हो  बिचारी ज़िन्दगी।।
  
जानो-तन जब तक फँसे हैं,  दामे-दुनिया में ‘अरुन 
क्या गिलाकिस जाल में फँस कर गुज़ारी ज़िन्दगी।। 
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