गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

तुम्हारे स्वर्ण-मण्डित छद्म सारे खोल देगा ..…


तुम्हारे स्वर्ण-मण्डित छद्म सारे खोल देगा ..… 


-अरुण मिश्र. 


तुम्हारे    स्वर्ण-मण्डित    छद्म   सारे    खोल   देगा।
निकष  पर  जाओगे    तो   बात  सच्ची   बोल  देगा॥

तमन्ना  है  अगर  लोहे  से  सोना  बनने  की  जी में।
तो   पारस की  शरण लो,  जो  बढ़ा  कुछ  मोल देगा॥

समो दो   दर्द अपने,   दुन्या  के   दुःख के समंदर में।
ये   सागर,   धैर्य   के  मोती,   तुम्हें   अनमोल  देगा॥
       
हँसा कर के किसी रोते को,  जिस क्षण  मुस्कराओगे।
वो   लम्हा,   देखना   जीवन में   ख़ुशियाँ   रोल  देगा॥

'अरुन' तन की तो सीमा है, तू अपना मन बड़ा कर ले।
खुला   मन,    ज़िन्दगी   में   रँग  नूतन   घोल   देगा॥
                                                   *      

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