बुधवार, 31 अगस्त 2011

चाँद ईद का देखे.......















-अरुण मिश्र 













चाँद   चौदहवीं  का   भी,  चाँद   ईद  का   देखे । 
‘अरुन’ की नज़रों ने भी, क्या-क्या नज़ारे देखे।।

जैसे  दरिया की क़शिश, ऑखों में  समन्दर के।
क़हकशां   जैसे,   कोई    नन्हा   सितारा   देखे।।

जो  थी  हसरत, वो  मसर्रत हो, सुकूँ  में बदली।
मैंने   उन  नयनों में,  पल-पल   नये जादू  देखे।।

गोरी को  पिउ की  झलक, इन्तज़ार के  लम्हे।
याद आवें बहुत,  छत पर खड़ी,  एक-टक देखे।।

दुआयें  अपनी, आसमानों को  हो जायें  क़ुबूल।
बहन  ने  भाई,  मॉं  ने   बच्चों  के  मुखड़े  देखे।।

कर्ज़  ने  स्वाद  सिवइयों  का  कसैला है किया।
चॉंद  को   देखे,   या   ठंढा   पड़ा   चूल्हा   देखे।।

सिर्फ़   देखो  नहीं,   इस  दर्द को  महसूस करो।
तंगी   हर  हाल  में,   उम्मीद   का  पहलू  देखे।।
                                   *
(टिप्पणी : गत वर्ष ईद पर, ११ सितम्बर, २०१० की पोस्ट में, 'रश्मिरेख' में पूर्वप्रकाशित)   


शनिवार, 27 अगस्त 2011

भाद्रपद के कृष्ण-घन फिर आ गये हैं.....

Dark clouds



- अरुण मिश्र

प्रिय ! 
तुम्हारी याद लेकर,
भाद्रपद के कृष्ण-घन 
फिर आ गये हैं।
छा गये आकाश पर मन के 
सुहासिनि !
मधुस्मृतियों के कलश 
ढरका गये हैं।
हो उठा रससिक्त
फिर से, प्राण,
गत-आस्वाद लेकर।
प्रिय ! 
तुम्हारी याद लेकर।।


               कर रहीं स्मृति फुहारें, 
               हृत्-पुलिन आहत।
               भीगती, ठंढी हवायें,   
               और मर्माहत। 
               माँग सौदामिनि बनी, 
               झकझोरती अस्तित्व;
               दूर, मेरी  प्रेयसी,  
               बैठी  लिये  चाहत।।


कल्पनाएँ, 
और भी चढ़ती गईं, 
उन्माद लेकर।
प्रिय ! 
तुम्हारी याद लेकर।।


               बीसवाँ पावस, पड़ा
               मुझको बहुत भारी।
               आग बरसाती घटा
               हर  बूँद  चिनगारी।
               इंद्र-धनु से 
               विष-बुझे शर छूटते हैं,
               तोड़ देने को मुझे,
               हर ओर तैय्यारी।।


मैं प्रतिक्षण
और कसता जा रहा
अवसाद लेकर।
प्रिय ! 
तुम्हारी याद लेकर।।
                           *  
(टिप्पणी : लगभग ३९ साल पहले, वर्ष १९७२ में लिखी यह कविता, 
 काव्य-संग्रह "अंजलि भर भाव के प्रसून" में  संकलित है |) 
Dark and Scary Clouds              

रविवार, 21 अगस्त 2011

जन्माष्टमी पर विशेष .....



क्या ख़ूब साँवले! हो


- अरुण मिश्र


जब  चाँदनी   खिली  हो,  और  चाँद  सामने  हो।

देखूँ   तुम्हें,  न   उसको,  क्या  ख़ूब  साँवले!  हो।।


भादों   की   बदलियाँ   थीं,  थी   रैन   भी  अँधेरी।
आँगन में  आ अचानक,  तुम  चाँद सा  खिले हो।।


चितचोर हो, छलिया हो, फिर भी यकीं तुम्हीं पे।
ब्रज  की   दही  से    मीठे,  तुम  दूध  के  धुले  हो।।


तुम राम हो,कान्हा हो,इस मिट्टी की ख़ुशबू हो।
हर  साँस   में   रवां   हो,  अहसास   में   घुले   हो।।


तुझ   साँवरे  सा   उजला, देखा न ‘अरुन’ हमने।
गो - रस में छलकते हो, मक्खन में तुम सने हो।।
                                    *
(टिप्पणी : १ सितम्बर २०१० ,जन्माष्टमी पर गत वर्ष, 'रश्मिरेख' में पूर्वप्रकाशित |)

Lord Krishna

सोमवार, 15 अगस्त 2011

१५,अगस्त पर विशेष.....


चाँद मुबारक....

-अरुण मिश्र 
(टिप्पणी : यह नज़्म १५ अगस्त,२०१० की पोस्ट में पूर्व प्रकाशित है|)  


स्वतंत्रता दिवस १५ अगस्त पर विशेष .......




ऐ तिरंगे ! तू जहॉ में हिन्द की पहचान है....

-अरुण मिश्र


ऐ  तिरंगे !  तू  जहॉ   में,  हिन्द  की   पहचान है।
हिन्द  की  है शान  तू  औ’ हिन्दियों की  आन है।
तू   हमारे  वीर पुरखों  की,  शहादत  का  निशाँ ।   
तेरे ज़ल्वों  पर, वतन का  हर  बसर, क़ुरबान है।।
  
      तू  लहरता,  तो  उमंगें,  मन  की  हैं  होती ज़वां।
      तू   फहरता,  तो   रगों  में,  खून   होता  है  रवां। 
      तुझको  छू कर के  गुज़रती है, मुक़द्दस जो हवा।
      झूमता  है , सॉस  उसमें  ले   के , ये  हिन्दोस्तां।।
  
तू  रहे  रोशन  हमेशा, नभ में, सूरज-चॉद  बन।
तेरी  ही  छाया में , लहरायें  सदा , गंगो-जमन। 
आस्मां  में  तू  सदा , लिखता  रहे , हिन्दोस्तां।
बॉटता यूँ  ही  रहे,  दुनिया  को , पैगामे-अमन।।
  
      तू हिलाता हाथ दुश्मन  की तरफ भी मीत सा।
      तू   फिज़ां में  गूँजता  है , हिन्द के  संगीत सा।।  
      तेरे   रंगों  में   बहारें ,  हिन्द  की,  होती  अयां। 
      तू  धरा पर,  भारतीयों  के सुयश के, गीत सा।।
                          * 
जय हिंद 

रविवार, 7 अगस्त 2011

बहन मेरी कलाई पर जो तुमने तार बाँधा है....













रक्षा-सूत्र 
-अरुण मिश्र  

"बहन,  मेरी  कलाई  पर,
 जो तुमने  तार  बॉधा  है।
 तो,इसके साथ स्मृतियों-
 का, इक  संसार  बॉधा है।।"

(टिप्पणी : यह कविता इस ब्लाग की २२, अगस्त, २०१० की पोस्ट में पूर्व प्रकाशित है |)