-अरुण मिश्र
चाँद चौदहवीं का भी, चाँद ईद का देखे ।
‘अरुन’ की नज़रों ने भी, क्या-क्या नज़ारे देखे।।
जैसे दरिया की क़शिश, ऑखों में समन्दर के।
क़हकशां जैसे, कोई नन्हा सितारा देखे।।
क़हकशां जैसे, कोई नन्हा सितारा देखे।।
जो थी हसरत, वो मसर्रत हो, सुकूँ में बदली।
मैंने उन नयनों में, पल-पल नये जादू देखे।।
गोरी को पिउ की झलक, इन्तज़ार के लम्हे।
याद आवें बहुत, छत पर खड़ी, एक-टक देखे।।
दुआयें अपनी, आसमानों को हो जायें क़ुबूल।
बहन ने भाई, मॉं ने बच्चों के मुखड़े देखे।।
कर्ज़ ने स्वाद सिवइयों का कसैला है किया।
चॉंद को देखे, या ठंढा पड़ा चूल्हा देखे।।
सिर्फ़ देखो नहीं, इस दर्द को महसूस करो।
तंगी हर हाल में, उम्मीद का पहलू देखे।।
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(टिप्पणी : गत वर्ष ईद पर, ११ सितम्बर, २०१० की पोस्ट में, 'रश्मिरेख' में पूर्वप्रकाशित)
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंईद मुबारक आप एवं आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ..सुगना फाऊंडेशन मेघलासिया
ईद पर विशेष अनमोल वचन
धन्यवाद, प्रिय सवाई सिंह जी|
जवाब देंहटाएं-अरुण मिश्र