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शनिवार, 25 नवंबर 2017

धीरे-धीरे वो मेरे एहसास पे छाने लगे....





धीरे-धीरे वो मेरे एहसास पे छाने लगे....

-अरुण मिश्र 

धीरे - धीरे    वो    मेरे   एहसास   पे    छाने  लगे।
ख़्वाबों में बसने लगे,  ख़्यालों को  महकाने  लगे।।

उनकी सब बेबाकियाँ जब हमको रास आने लगीं।
तब  अचानक  एक दिन,  वो  हमसे शरमाने लगे।।

जिनकी  आमद  के  लिए  थे  मुद्दतों से मुन्तज़िर।
उनका  आना तो  हुआ  पर,  आते ही  जाने लगे।।

देखने  लायक  वो मन्ज़र  था,  जुदाई  की  घड़ी।
अश्क अपने  पोंछ कर, हमको ही समझाने लगे।।

बहकी-बहकी गुफ्तगू थी जब तलक पहलू में थे।
हमसे भी ज्यादा 'अरुन', वो ख़ुद ही दीवाने लगे।।
                                         *

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

लगता था जिसे हीरे की तरह........


             

लगता था जिसे हीरे की तरह........

-अरुण मिश्र


लगता था  जिसे  हीरे  की  तरह,  कोई एक फ़क़ीर  मेरे  जैसा। 
उसको भी  ख़ुशी की  ख़ातिर अब,  लगने है ज़रूरी  लगा पैसा।।

माना  कि,   अगर  पैसे  हों  तो,   ढेरों  सपने   सच  हो  सकते। 
पर  सोचो कि,  देख भी पाओगे,  क्या  सपना  वो  पहले जैसा।।

सपने ही तो सच्ची पूँजी हैं,  दौलत का क्या,  कल हो या न हो।
अपने  सपने   मत   खो  देना,   पाओगे   न   सरमाया   ऐसा।।

उसको भी हमारी बातों में, कुछ रस तो  मिलता होगा  'अरुन '। 
वर्ना  क्यूँ  सुना कर  शेर' मेरे,   वो  पूँछे  सभी से,  लगा कैसा ?? 

                                             *
 
 

मंगलवार, 5 मई 2015

ज्येष्ठ के प्रथम बड़ा मंगल पर विशेष.....

ज्येष्ठ के प्रथम बड़ा मंगल पर विशेष 

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है आसरा हनुमान जी---
-अरुण मिश्र

जैसे दुख  श्री जानकी जी का  हरा  हनुमान जी।
दुख   हमारे  भी  हरो,  है  आसरा  हनुमान जी।।

देह   कुंदन,  भाल   चंदन,  केसरी  नंदन  प्रभो।
ध्यान इस छवि का सदा हमने धरा हनुमान जी।।

लॉघ  सागर,  ले  उड़े,  संजीवनी  परबत सहज।
क्रोध,  कौतुक में  दिया लंका जरा  हनुमान जी।।

मुद्रिका दी,  वन  उजारा  और  अक्षय को हना।
शक्ति का  आभास पा,  रावन डरा  हनुमान जी।।

राम के तुम काम आये, काम क्या तुमको कठिन। 
कौन   संकट,  ना   तेरे   टारे  टरा  हनुमान जी।।

चरणकमलों में तिरे निसिदिन 'अरुण' का मन रमे।
हो  हृदय  में  भक्ति का  सागर भरा   हनुमान जी।।

                                *
(पूर्वप्रकाशित)

                        

रविवार, 26 अप्रैल 2015

उदास शाम को जब ख़ुद से बात करता हूँ


उदास शाम को  जब  ख़ुद  से  बात करता हूँ 
-अरुण मिश्र



उदास शाम को  जब  ख़ुद  से  बात करता हूँ 
मैं   ज़हरे-ज़ीस्त   को  आबे-हयात करता हूँ

चिराग़े-फ़िक्र     सरे-शाम    जला    लेता  हूँ 
जिस  से  रोशन  तमाम  क़ायनात करता हूँ 

तुम्हारी  याद  का  इक  चाँद  खिला लेता हूँ 
अमाँ  की  रात को  भी   चाँद-रात  करता हूँ 

कोई तो नख़्ल  उगे  काश  मन के  सहरा में 
मैं  अपनी आँख को   दज़्ला-फ़रात करता हूँ 

'अरुन' ज़ुबाँ से सहल हूँ समझ में मुश्किल हूँ 
सुख़नवरी में  तो  ग़ालिब को  मात करता हूँ 
                                 *

शनिवार, 20 जुलाई 2013

रहने दो म्यां हियां पर दीनो-धरम की बातें.....


रहने दो म्यां हियां पर दीनो-धरम की बातें...

-अरुण मिश्र.

रहने दो म्यां  हियां पर,  दीनो-धरम की  बातें।    
दैरो-हरम  में  जँचतीं,   दैरो-हरम   की   बातें॥

उसके  ख़याल को   हैं,  दिल को हमारे  यकसां।  

ज़ोरो-सितम  की  बातें,  मेह्रो-करम  की  बातें॥

जो कुछ है सब उसी का, यां कुछ नहीं किसी का।  

इसके  अलावा जो भी,  सब  हैं  भरम  की  बातें॥

टुक  मेरे  पास  बैठो, तुम भी  'अरुन' से  सीखो।  

हसरत की, दर्दो-ग़म की,दिल के मरम की बातें॥
                                           *

रविवार, 16 जून 2013

दुआ दो ‘मीर’ को........

दुआ दो  ‘मीर’  को........

-अरुण मिश्र
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दुआ दो  ‘मीर’  को,  टुक चैन से  ज़न्नत में  वो सोवे। 
‘अरुन’ तुम यां रखो क़ायम वही अन्दाज़े-दर्द-आगीं।।
  
छलकतीं  रात-दिन  जो दर्द से,  अल्ला के आलम में। 
सुला के  ख़्वाहिशें  कितनी,  ये आँखें  रात भर जागीं।।
  
बहुत  ग़म हैं  ज़माने में,  तो  थोड़ी  सी  खुशी  भी  है। 
मिलन  के  एक  पल   में,   सैकड़ों  तन्हाइयां   भागीं।।

हैं  मीठी,  तल्खि़यों,  दुशवारियों  में,   राहते-ज़ां  सी। 
न   जाने   कैसी   शीरीनी  में,   ये   बातें  तिरी,  पागीं।।
  
न  जाओ  श्याम ! रो-रो   गोपियां,  पइयां परन लागीं। 
तो झरने सी झरन लागी हैं,उनकी चश्मे-अश्क-आगीं।।
                                                *


सोमवार, 3 जून 2013

मगर उससा मिला कोई नहीं.....




मगर उससा मिला कोई नहीं.....

-अरुण मिश्र.

बारहा   ढूँढा,   मगर   उससा  मिला  कोई   नहीं। 
है  ‘अरुन’  सा  एक  ही,  याँ   दूसरा  कोई  नहीं।। 

तू  क़रम की  ओट में,  मुझ पर  क़हर ढाता रहा। 
यूँ   कि   तू  मेरा   ख़ुदा ;  तेरा  ख़ुदा   कोई  नहीं??
  
ज़र्रे - ज़र्रे   में   नुमाया   नूर    से,  गाफि़ल  रहा। 
ज़ुस्तज़ू   उसकी रही,  जिसका  पता  कोई  नहीं।।
  
हमसे   पहले  भी    हुये,  फ़रहादो-कै़सो-रोमियो। 
फिर भी लगता हमको, हमसा आशना कोई नहीं।।
                                              * 
  

रविवार, 19 मई 2013

प्यार के ग़फ़लत में जिसके...

प्यार के ग़फ़लत में जिसके....

-अरुण मिश्र 

प्यार के ग़फ़लत में  जिसके,  है गुज़ारी  ज़िन्दगी        
रंज  उसकोमैंने  ही,  उसकी  बिगाड़ी  ज़िन्दगी।।
  
चहचहों से जिसकेमुझको घर सदा गुलशन लगा। 
उसको ये ग़मपिंजरे मेंउसने गुज़ारी  ज़िन्दगी।।
  
प्यार में क्या खोया-पायाइसका भी होगा हिसाब। 
यूँ  कभी  सोचा  था ,   प्यारी-प्यारी  ज़िन्दगी।।
  
हँसने-रोने  के   हुनर  ने,   है  इसे,  आसां  किया। 
रोये जो अक्सरतो हॅस कर भी गुज़ारी  ज़िन्दगी।।
  
तल्खि़यां ,  मज्बूरियां ,  नाकामियां ,  लाचारियां। 
जाने कितने वज़्न हैं , जिनसे  है  भारी  ज़िन्दगी।।
  
जान भी प्यारी है ’,  जीना भी है मुश्किल मियाँ         
ख़ूब,   ये   मीठी   कटारी   है    दुधारी,   ज़िन्दगी।।
  
जो  बचे  इस साल,  सूखा - जलजला - सैलाब  से। 
वहशतो- दहशत  ने  ग़ारत  की,  हमारी  ज़िन्दगी।।
  
आस्ताने - कैफ़ो - मस्ती,  यूँ  तो आलम में  हज़ार। 
पर फिराती दर-बदर, क़िस्मत  की मारी  ज़िन्दगी।।
  
बीतते सावन के  बादल भी,    कुछ  लाये  ख़बर। 
आस  कोई तो   मिरे मन में,   जगा  री ! ज़िन्दगी।।
  
आओ साथी  बाँट लें,  आपस में  हर ग़म--ख़ुशी। 
थोड़ा हँस  लें साथ कि,  ख़ुश  हो  बिचारी ज़िन्दगी।।
  
जानो-तन जब तक फँसे हैं,  दामे-दुनिया में ‘अरुन 
क्या गिलाकिस जाल में फँस कर गुज़ारी ज़िन्दगी।। 
                                    * 

                   

शनिवार, 11 मई 2013

गुलाबों का तो बस पैकर रहा है....


You are always on my mind...
उसी की ख़ुश्बुयें औ’ रंग उसके...











गुलाबों का तो बस पैकर रहा है....

-अरुण मिश्र.

जो हम पे, जान  से सौ  मर  रहा है। 
अदा   देखो,  हमीं   से   डर  रहा  है।।
  
उसी  ने  तो    है   ये  परदा  उठाया। 
खुले  में  अब जो नाटक कर रहा है।।
  
मैं इसको लाख अपना घर कहूँ  पर। 
हक़ीकत  में,  उसी  का  घर  रहा है।।
  
हमेशा  से   वो   अपनी    हर  बहारें। 
चमन  के   ही   हवाले  कर  रहा  है।।
  
उसी  की   ख़ुश्बुयें   औ’  रंग उसके। 
गुलाबों  का  तो  बस  पैकर  रहा  है।।
  
‘अरुन’ अल्फाज़ में  अब भी हमारे। 
वो   अहसासात  अपने  भर  रहा है।। 
                                   * 
उसी की ख़ुश्बुयें औ’ रंग उसके...

रविवार, 28 अप्रैल 2013

कोई फूटी किरन माह से.....









कोई फूटी किरन माह से....

-अरुण मिश्र.

इक जरा,   इक जरा,   इक  जरा। 
मुस्करा,     मुस्करा,     मुस्करा।।
  
इक तबस्सुम ने, मुझको  किया। 
उम्र   भर  के    लिये,  सिरफिरा।।
  
चाँदनी      खिलखिलाती     रही। 
रात   भर,   पर   कहाँ   जी  भरा।।
  
मेरे     अरमाँ,     मचलते     हुये। 
तेरा     अन्दाज़,     शोख़ी    भरा।।
  
सारी   कोशिश,   धरी   रह  गयी। 
रह    गया    इल्म    सारा,   धरा।।
  
जितना   ही    हम   छुपाते   गये। 
उतना    खुलता   गया,   माज़रा।।
  
पुतलियाँ    हौले   से   हँस   उठीं। 
लब  थिरक  कर,  खिंचे  हैं  जरा।।
  
कोई     फूटी   किरन,   माह   से। 
कोई    झरना,    कहीं   पे    झरा।।
  
काश !  टूटे   कभी  न,   ‘अरुन’। 
इन    तिलिस्मात   का,   दायरा।। 
                                *

रविवार, 21 अप्रैल 2013

हम न बोलेंगे मगर.......

ग़ज़ल 

हम न बोलेंगे मगर .........

-अरुण मिश्र.



हम न बोलेंगे मगर,  फिर भी बुलाओ तो सही। 
यूँ  कि,  हम रूठे हुये,  हमको मनाओ तो सही।।
   
नाज़ो - अंदाज़  के,  सुनते  हैं,  बड़े  रसिया हो। 
मैं  भी तो  जानूँ ,  मेरे  नाज़  उठाओ तो  सही।।
  
बात  छोटी सी  भी,  तुम  दिल पे लगा लेते हो। 
कुछ बड़ी बात न मैं,  दिल से लगाओ तो सही।।
  
हाँ   हमें   हीरों के  कंगन  की,  तमन्ना  तो है। 
तुम हरे काँच  की कुछ चूड़ियाँ  लाओ तो सही।।
  
हम ‘अरुन’ फूलों को, समझेंगे फ़लक के तारे। 
तुम मेरे जूड़े में,  इक गजरा  लगाओ तो सही।। 
                                         * 

रविवार, 10 मार्च 2013

गंग की धारा जटा में औ’ ज़बीं पे है हिलाल.......

भगवान शिव समस्त लोक का कल्याण करें 
 महाशिवरात्रि पर विशेष 


गंग की धारा जटा में औ’ ज़बीं पे है हिलाल.......

- अरुण मिश्र.


गंग   की   धारा  जटा   में,   औ’  ज़बीं  पे   है  हिलाल। 
कंठ   नीला   है  ज़हर   से,   है   गले   सर्पों  की  माल।।

तन   भभूती    हैं    रमाये,   हाथ   में   डमरू,   त्रिशूल। 
देख   ये   भोले  की   छवि,   हैं   पार्वती माता  निहाल।।

है     बदन    काफूर   सा,    दरक़ार   है    कब   पैरहन।
खाल  ओढ़े   फ़ील  का,   औ’  शेर  की  बाँधे   हैं  छाल।।

रात-दिन खि़दमत में हैं,सब भूतो-जि़न्न,प्रेतो-पिशाच।
भक्त  को   तेरे   छुयें,   इनमें   भला   किसकी  मज़ाल।।

जो     तिरे   नज़दीक,    उससे   दूर   भागे   हर   बला।
पास  फटकेगी   तो   नन्दी,    सींग   से   देगा   उछाल।।

गंग   के   औ’  चन्द्र   के,   ठंढक  का   ही   है   आसरा। 
आँख   से  ग़र  तीसरे,   निकले  कहीं  विकराल ज्वाल।।

बान   फूलों   के   चला   के,   काम  ने   तोड़ी   समाधि।
जल  गया  ज़ुर्रत पे  अपनी,  जग में ज़ाहिर सारा हाल।।

भस्म    हो  जाये   न   दुनिया,   ताप   से,   संताप   से।
बर्फ के मस्क़न   हिमालय,   तू सदा   शिव को सॅभाल।।
                                                  *





मंगलवार, 5 मार्च 2013

आज की शाम तेरे नाम कर रहा हूँ मैं.....

ग़ज़ल 

आज की शाम तेरे नाम कर रहा हूँ मैं.....

-अरुण मिश्र.


तुम्हारे  नाम  का,  इक  ज़ाम  भर  रहा  हूँ  मैं। 
आज  की  शाम,    तेरे   नाम   कर  रहा  हूँ  मैं।।
   
फूल   की   पंखुरी  को   चूम   कर,   तेरे   आगे। 
अपने   बूते   से   बड़ा   काम,  कर  रहा  हूँ   मैं।।
   
तुम्हारे  ज़ुल्फों   से   खेलेगी,  रिझाएगी  तुम्हें। 
हवा   के   हाथों   में,   पैग़ाम   धर  रहा   हूँ   मैं।।
   
तुम्हारे  ख़्याल   के  पंछी  जो  बहुत  चंचल  हैं। 
तो  अपने फि़क्र को भी,   दाम  कर  रहा  हूँ  मैं।।
   
शम्आ-परवाने का यूँ  जिक़्र  बार-बार  ‘अरुन’। 
कुछ  तो   है  राज़,  जिसे  आम  कर रहा हूँ  मैं।। 
                                          *

बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

बादलों से बरस रहीं यादें....

ग़ज़ल 
A walk in the rain

बादलों से बरस रहीं यादें....

-अरुण मिश्र.

बादलों    से,    बरस     रहीं    यादें। 
मेरे   मन   में   हुलस    रहीं   यादें।। 

रुत  तो  बस,  आने का  बहाना  है। 
साल   भर    से,   तरस  रहीं   यादें।। 

अब समा के,  न दिल से निकलेंगी। 
बन्द,   सीने   के,  कस   रहीं   यादें।। 

संग   हवाओं   के,   पहले  लहरायें। 
फिर हैं  नागिन सी,  डस रहीं  यादें।।
  
मैं शजर गोया,  लिपट कर  मुझसे। 
बेल   सी,   देखो   लस   रहीं   यादें।। 

गुज़रे लम्हों के, गुलाबों में ‘अरुन’। 
हैं  महक  बन के,  बस   रहीं  यादें।।
                               *