ग़ज़ल
हम न बोलेंगे मगर .........
-अरुण मिश्र.
हम न बोलेंगे मगर, फिर भी बुलाओ तो सही।
यूँ कि, हम रूठे हुये, हमको मनाओ तो सही।।
नाज़ो - अंदाज़ के, सुनते हैं, बड़े रसिया हो।
मैं भी तो जानूँ , मेरे नाज़ उठाओ तो सही।।
बात छोटी सी भी, तुम दिल पे लगा लेते हो।
कुछ बड़ी बात न मैं, दिल से लगाओ तो सही।।
हाँ हमें हीरों के कंगन की, तमन्ना तो है।
तुम हरे काँच की कुछ चूड़ियाँ लाओ तो सही।।
हम ‘अरुन’ फूलों को, समझेंगे फ़लक के तारे।
तुम मेरे जूड़े में, इक गजरा लगाओ तो सही।।
*
हम न बोलेंगे मगर .........
-अरुण मिश्र.
हम न बोलेंगे मगर, फिर भी बुलाओ तो सही।
यूँ कि, हम रूठे हुये, हमको मनाओ तो सही।।
नाज़ो - अंदाज़ के, सुनते हैं, बड़े रसिया हो।
मैं भी तो जानूँ , मेरे नाज़ उठाओ तो सही।।
बात छोटी सी भी, तुम दिल पे लगा लेते हो।
कुछ बड़ी बात न मैं, दिल से लगाओ तो सही।।
हाँ हमें हीरों के कंगन की, तमन्ना तो है।
तुम हरे काँच की कुछ चूड़ियाँ लाओ तो सही।।
हम ‘अरुन’ फूलों को, समझेंगे फ़लक के तारे।
तुम मेरे जूड़े में, इक गजरा लगाओ तो सही।।
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