रविवार, 13 सितंबर 2020

मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना / चंदन तिवारी / स्वर्गीय कैलाश गौतम

https://youtu.be/RMpDv8nGPHs 
रचना: कैलाश गौतम स्वर: चंदन तिवारी बांसुरी: ओंकेश्वर जी ढोलक: उपेंद्र पाठक

भले डांट घर में तू बीबी की खाना
भले जैसे-तैसे गिरस्ती चलाना
भले जा के जंगल में धूनी रमाना
मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना
कचहरी न जाना
कचहरी न जाना

कचहरी हमारी तुम्हारी नहीं है
कहीं से कोई रिश्तेदारी नहीं है
अहलमद से भी कोरी यारी नहीं है
तिवारी था पहले तिवारी नहीं है

कचहरी की महिमा निराली है बेटे
कचहरी वकीलों की थाली है बेटे
पुलिस के लिए छोटी साली है बेटे
यहाँ पैरवी अब दलाली है बेटे

कचहरी ही गुंडों की खेती है बेटे
यही ज़िन्दगी उनको देती है बेटे
खुले आम कातिल यहाँ घूमते हैं
सिपाही दरोगा चरण चूमते है

कचहरी में सच की बड़ी दुर्दशा है
भला आदमी किस तरह से फँसा है
यहाँ झूठ की ही कमाई है बेटे
यहाँ झूठ का रेट हाई है बेटे

कचहरी का मारा कचहरी में भागे
कचहरी में सोये कचहरी में जागे
मर जी रहा है गवाही में ऐसे
है तांबे का हंडा सुराही में जैसे

लगाते-बुझाते सिखाते मिलेंगे
हथेली पर सरसों उगाते मिलेंगे
कचहरी तो बेवा का तन देखती है
कहाँ से खुलेगा बटन देखती है

कचहरी शरीफों की खातिर नहीं है
उसी की कसम लो जो हाज़िर नहीं है
है बासी मुँह घर से बुलाती कचहरी
बुलाकर के दिन भर रुलाती कचहरी

मुकदमे की फाइल दबाती कचहरी
हमेशा नया गुल खिलाती कचहरी
कचहरी का पानी जहर से भरा है
कचहरी के नल पर मुवक्किल मरा है

मुकदमा बहुत पैसा खाता है बेटे
मेरे जैसा कैसे निभाता है बेटे
दलालों नें घेरा सुझाया-बुझाया
वकीलों नें हाकिम से सटकर दिखाया

धनुष हो गया हूँ मैं टूटा नहीं हूँ
मैं मुट्ठी हूँ केवल अंगूंठा नहीं हूँ
नहीं कर सका मैं मुकदमें का सौदा
जहाँ था करौदा वहीं है करौदा

कचहरी का पानी कचहरी का दाना
तुम्हे लग न जाये तू बचना बचाना
भले और कोई मुसीबत बुलाना
कचहरी की नौबत कभी घर न लाना

कभी भूल कर भी न आँखें उठाना
न आँखें उठाना न गर्दन फँसाना
जहाँ पांडवों को नरक है कचहरी
वहीं कौरवों को सरग है कचहरी। ।

शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

जन्मदिन गानम् (संस्कृत) / स्वामी तेजोमयानंद जी (चिन्मय मिशन) / हरिणी राव

https://youtu.be/FQvzCXIMmVk 
Note by Harini Rao :
The first time i heard this, I had tears. Such purity and such beauty in simplicity.
This was over 10 years back in Chinmaya Naad Bindu. Here's Anirudh Sharma and I sharing our joy for this cute birthday song penned
by Swami Tejomayananda (Chinmaya Mission). We've followed it up with a quick tutorial so that next time it's a dear one's birthday,
you'll be able to sing this joyous birthday song for them!

जन्मदिन गानम्
जन्मदिनमिदम् अयि प्रिय सखे
शंतनो तु ते सर्वदा मुदम् ।

प्रार्थयामहे भव शतायुषी 
ईश्वरः सदा त्वाम् च रक्षतु ।

पुण्य कर्मणा कीर्तिमर्जय
जीवनम् तव भवतु सार्थकम्


Translation :

O Dear friend, may this birthday bring you auspiciousness and joy forever. 
Indeed we all pray for your long life; may the Lord always protect you. 
By noble deeds may you attain fame and may your life be fulfilled.

अन्वय एवं अर्थ 

अयि प्रिय सखे जन्मदिनमिदम् शंतनोतु ते 

ayi priya sakhe, janmadinam idam sham tanotu hi

hey dear friend, let this birthday bring peace to you

प्रार्थयामहे शतायुषी भव

prarthyamahe satayuh bhava 


we pray, let you live 100 years

ईश्वर: त्वाम् च  सदा  रक्षतु

eshwarah twam cha sarvada rakshtu.

always, may God protect you also.

पुण्य कर्मणा कीर्तिमार्जय

punya karmana keerthim arjaya

gain glory through meritorious acts.
जीवनम् तव भवतु सार्थकम्

jeevanam tava bhavatu saarthakam

let your life be fruitful.
इति सर्वदा मुदम्  प्रार्थयामहे

iti sarvada mudam prarthayamhe 

thus we all pray happily always.

Link for Harini Rao's profile :

https://www.thehindu.com/life-and-style/harini-rao-crunched-numbers-at-an-mnc-designed-terracotta-jewellery-before-finding-her-identity-as-a-hindustani-classical-singer/article23810549.ece

सोमवार, 7 सितंबर 2020

मधुकर श्याम हमारे चोर / कुंदन लाल सहगल / भक्त सूरदास के मूल भजन पर आधारित

https://youtu.be/9RZTmnF4uGY
मधुकर श्याम हमारे चोर (4) मन हर लीनो माधुरी मूरत (2) निरख नैन की कोर श्याम हमारे चोर (2) मधुकर श्याम हमारे चोर सिर पे जाके मुकट सुहाये (2) माथे तिलक नैन कजरारे (2) मुख सुंदर ज्यूँ भोर श्याम हमारे चोर चोर श्याम हमारे चोर मधुकर श्याम हमारे चोर सूरदास के चोर कन्हैया मनमोहन मुरली के बजैया (2) मनमोहन मुरली के बजैया नटखट नन्दकिशोर चोर्! श्याम हमारे चोर मधुकर श्याम हमारे चोर श्याम हमारे चोर (3) मधुकर श्याम हमारे चोर्

भक्त सूरदास का मूल भजन :
मधुकर! स्याम हमारे चोर।
मन हरि लियो सांवरी सूरत¸ चितै नयन की कोर।।
पकरयो तेहि हिरदय उर–अंतर प्रेम–प्रीत के जोर।
गए छुड़ाय छोरि सब बंधन दे गए हंसनि अंकोर।।
सोबत तें हम उचकी परी हैं दूत मिल्यो मोहिं भोर।
सूर¸ स्याम मुसकाहि मेरो सर्वस सै गए नंद किसोर।।


भावार्थ :
यह राग सारंग पर आधारित पद है। गोपियां उद्धव से बोलीं, हमारे चित्त को 
चुराने वाले हमारे श्यामसुंदर ही हैं। उन्होंने टेढी दृष्टि से हमारे चित्त को चुरा 
लिया है। हमने अपने हृदय में उन्हें भलीभांति जकडकर रखा था। लेकिन 
उन्होंने तनिक मुस्कान बिखेरकर सारे बंधन तोड डाले और स्वयं को मुक्त 
करा लिया। इस प्रकार श्यामसुंदर हमारे हृदय से निकल गए, तब हम गोपियां 
चौंककर जाग गई और रात्रि का सारा समय इन आंखों में ही काट डाला अर्थात 
रातभर जागती रहीं। जब सवेरा हुआ तो आपके (उद्धव) रूप में एक संदेशवाहक 
से हमारी भेंट हुई। सूरदास कहते हैं कि गोपियों ने उद्धव को स्पष्ट कर दिया कि 
कृष्ण ने हमारा सर्वस्व छीन लिया।

रविवार, 6 सितंबर 2020

पितृपक्ष : परम्परा, श्रद्धा एवं मान्यता

परम्परा, श्रद्धा एवं मान्यता 

पितृपक्ष श्राद्ध तर्पण विधि मंत्र, जानें कितनी बार आत्मा को दें जल।

शास्त्रों में बताया गया है कि इस पक्ष में पितरों का तर्पण और श्राद्ध किया जाना चाहिए। 
नवरात्र को जैसे देवी पक्ष कहा जाता है उसी प्रकार आश्विन कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक 
को पितृपक्ष कहा जाता है। लोक मान्यता के अनुसार, और पुराणों में भी बताया गया है कि 
पितृ पक्ष के दौरान परलोक गए पूर्वजों को पृथ्वी पर अपने परिवार के लोगों से मिलने का 
अवसर मिलता और वह पिंडदान, अन्न एवं जल ग्रहण करने की इच्छा से अपनी संतानों के 
पास रहते हैं। इन दिनों मिले अन्न, जल से पितरों को बल मिलता है और इसी से वह परलोक 
के अपने सफर को तय कर पाते हैं। इन्हीं अन्न जल की शक्ति से वह अपने परिवार के सदस्यों 
का कल्याण कर पाते हैं।

पितृ पक्ष श्राद्ध तर्पण नियम
गरुड़ पुराण के अनुसार, पितृ पक्ष में जिनकी माता या पिता अथवा दोनों इस धरती से विदा हो 
चुके हैं उन्हें आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से आश्विन अमावस्या तक जल, तिल, फूल से पितरों का 
तर्पण करना चाहिए। जिस तिथि को माता-पिता की मृत्यु हुई हो उस दिन उनके नाम से अपनी 
श्रद्धा और क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। पितृपक्ष में भोजन के लिए 
आए ब्राह्णों को दक्षिणा नहीं दिया जाता है। जो तर्पण या पूजन करवाते हैं केवल उन्हें ही इस 
कर्म के लिए दक्षिणा दें।

पितृपक्ष तर्पण विधि
पितरों को जल देने की विधि को तर्पण कहते हैं। तर्पण कैसे करना चाहिए, तर्पण के समय कौन 
से मंत्र पढ़ने चाहिए और कितनी बार पितरों से नाम से जल देना चाहिए आइए अब इसे जानें। 
हाथों में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करना चाहिए और उन्हें आमंत्रित करेंः- 
‘ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’ 
इस मंत्र का अर्थ है, हे पितरों, पधारिये और जलांजलि ग्रहण कीजिए।

तर्पण : पिता को जल देने का मंत्र
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें - 
.....गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत् 
तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, 
तस्मै स्वधा नमः, 
तस्मै स्वधा नमः
इस मंत्र को बोलकर गंगा जल या अन्य जल में दूध, तिल और जौ मिलकर 3 बार पिता को 
जलांजलि दें। जल देते समय ध्यान करें कि वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों। 
इसके बाद पितामह को जल दें।

तर्पण : पितामह को जल देने का मंत्र
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें -
.....गोत्रे अस्मत्पितामह (पितामह का नाम) शर्मा वसुरूपत् 
तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, 
तस्मै स्वधा नमः, 
तस्मै स्वधा नमः। 
इस मंत्र से पितामह को भी 3 बार जल दें।

तर्पण : माता को जल देने का मंत्र
जिनकी माता इस संसार के विदा हो चुकी हैं उन्हें माता को भी जल देना चाहिए। माता को जल देने 
का मंत्र पिता और पितामह से अलग होता है। इन्हें जल देने का नियम भी अलग है। चूंकि माता का 
ऋण सबसे बड़ा माना गया है इसलिए इन्हें पिता से अधिक बार जल दिया जाता है। 
माता को जल देने का मंत्र -
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें -
.....गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् 
तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, 
तस्मै स्वधा नमः, 
तस्मै स्वधा नमः। 
इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें।

दादी के नाम पर तर्पण
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें -
.....गोत्रे पितामां (दादी का नाम) देवी वसुरूपास्त् 
तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, 
तस्मै स्वधा नमः, 
तस्मै स्वधा नमः। 
इस मंत्र से जितनी बार माता को जल दिया है दादी को भी जल दें। श्राद्ध में श्रद्धा का महत्व सबसे 
अधिक है इसलिए जल देते समय मन में माता-पिता और पितरों के प्रति श्रद्धा भाव जरूर रखें। 
श्रद्धा पूर्वक दिया गया अन्न जल ही पितर ग्रहण करते हैं। अगर श्राद्ध भाव ना हो तो पितर उसे 
ग्रहण नहीं करते हैं।

(सामग्री नवभारत टाइम्स से साभार)