परम्परा, श्रद्धा एवं मान्यता
पितृपक्ष श्राद्ध तर्पण विधि मंत्र, जानें कितनी बार आत्मा को दें जल।
शास्त्रों में बताया गया है कि इस पक्ष में पितरों का तर्पण और श्राद्ध किया जाना चाहिए।
नवरात्र को जैसे देवी पक्ष कहा जाता है उसी प्रकार आश्विन कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक
को पितृपक्ष कहा जाता है। लोक मान्यता के अनुसार, और पुराणों में भी बताया गया है कि
पितृ पक्ष के दौरान परलोक गए पूर्वजों को पृथ्वी पर अपने परिवार के लोगों से मिलने का
अवसर मिलता और वह पिंडदान, अन्न एवं जल ग्रहण करने की इच्छा से अपनी संतानों के
पास रहते हैं। इन दिनों मिले अन्न, जल से पितरों को बल मिलता है और इसी से वह परलोक
के अपने सफर को तय कर पाते हैं। इन्हीं अन्न जल की शक्ति से वह अपने परिवार के सदस्यों
का कल्याण कर पाते हैं।
पितृ पक्ष श्राद्ध तर्पण नियम
गरुड़ पुराण के अनुसार, पितृ पक्ष में जिनकी माता या पिता अथवा दोनों इस धरती से विदा हो
चुके हैं उन्हें आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से आश्विन अमावस्या तक जल, तिल, फूल से पितरों का
तर्पण करना चाहिए। जिस तिथि को माता-पिता की मृत्यु हुई हो उस दिन उनके नाम से अपनी
श्रद्धा और क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। पितृपक्ष में भोजन के लिए
आए ब्राह्णों को दक्षिणा नहीं दिया जाता है। जो तर्पण या पूजन करवाते हैं केवल उन्हें ही इस
कर्म के लिए दक्षिणा दें।
पितृपक्ष तर्पण विधि
पितरों को जल देने की विधि को तर्पण कहते हैं। तर्पण कैसे करना चाहिए, तर्पण के समय कौन
से मंत्र पढ़ने चाहिए और कितनी बार पितरों से नाम से जल देना चाहिए आइए अब इसे जानें।
हाथों में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करना चाहिए और उन्हें आमंत्रित करेंः-
‘ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’
इस मंत्र का अर्थ है, हे पितरों, पधारिये और जलांजलि ग्रहण कीजिए।
तर्पण : पिता को जल देने का मंत्र
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें -
.....गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत्
तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः
इस मंत्र को बोलकर गंगा जल या अन्य जल में दूध, तिल और जौ मिलकर 3 बार पिता को
जलांजलि दें। जल देते समय ध्यान करें कि वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों।
इसके बाद पितामह को जल दें।
तर्पण : पितामह को जल देने का मंत्र
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें -
.....गोत्रे अस्मत्पितामह (पितामह का नाम) शर्मा वसुरूपत्
तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः।
इस मंत्र से पितामह को भी 3 बार जल दें।
तर्पण : माता को जल देने का मंत्र
जिनकी माता इस संसार के विदा हो चुकी हैं उन्हें माता को भी जल देना चाहिए। माता को जल देने
का मंत्र पिता और पितामह से अलग होता है। इन्हें जल देने का नियम भी अलग है। चूंकि माता का
ऋण सबसे बड़ा माना गया है इसलिए इन्हें पिता से अधिक बार जल दिया जाता है।
माता को जल देने का मंत्र -
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें -
.....गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त्
तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः।
इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें।
दादी के नाम पर तर्पण
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें -
.....गोत्रे पितामां (दादी का नाम) देवी वसुरूपास्त्
तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः।
इस मंत्र से जितनी बार माता को जल दिया है दादी को भी जल दें। श्राद्ध में श्रद्धा का महत्व सबसे
अधिक है इसलिए जल देते समय मन में माता-पिता और पितरों के प्रति श्रद्धा भाव जरूर रखें।
श्रद्धा पूर्वक दिया गया अन्न जल ही पितर ग्रहण करते हैं। अगर श्राद्ध भाव ना हो तो पितर उसे
ग्रहण नहीं करते हैं।
(सामग्री नवभारत टाइम्स से साभार)
पितृपक्ष श्राद्ध तर्पण विधि मंत्र, जानें कितनी बार आत्मा को दें जल।
शास्त्रों में बताया गया है कि इस पक्ष में पितरों का तर्पण और श्राद्ध किया जाना चाहिए।
नवरात्र को जैसे देवी पक्ष कहा जाता है उसी प्रकार आश्विन कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक
को पितृपक्ष कहा जाता है। लोक मान्यता के अनुसार, और पुराणों में भी बताया गया है कि
पितृ पक्ष के दौरान परलोक गए पूर्वजों को पृथ्वी पर अपने परिवार के लोगों से मिलने का
अवसर मिलता और वह पिंडदान, अन्न एवं जल ग्रहण करने की इच्छा से अपनी संतानों के
पास रहते हैं। इन दिनों मिले अन्न, जल से पितरों को बल मिलता है और इसी से वह परलोक
के अपने सफर को तय कर पाते हैं। इन्हीं अन्न जल की शक्ति से वह अपने परिवार के सदस्यों
का कल्याण कर पाते हैं।
पितृ पक्ष श्राद्ध तर्पण नियम
गरुड़ पुराण के अनुसार, पितृ पक्ष में जिनकी माता या पिता अथवा दोनों इस धरती से विदा हो
चुके हैं उन्हें आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से आश्विन अमावस्या तक जल, तिल, फूल से पितरों का
तर्पण करना चाहिए। जिस तिथि को माता-पिता की मृत्यु हुई हो उस दिन उनके नाम से अपनी
श्रद्धा और क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। पितृपक्ष में भोजन के लिए
आए ब्राह्णों को दक्षिणा नहीं दिया जाता है। जो तर्पण या पूजन करवाते हैं केवल उन्हें ही इस
कर्म के लिए दक्षिणा दें।
पितृपक्ष तर्पण विधि
पितरों को जल देने की विधि को तर्पण कहते हैं। तर्पण कैसे करना चाहिए, तर्पण के समय कौन
से मंत्र पढ़ने चाहिए और कितनी बार पितरों से नाम से जल देना चाहिए आइए अब इसे जानें।
हाथों में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करना चाहिए और उन्हें आमंत्रित करेंः-
‘ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’
इस मंत्र का अर्थ है, हे पितरों, पधारिये और जलांजलि ग्रहण कीजिए।
तर्पण : पिता को जल देने का मंत्र
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें -
.....गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत्
तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः
इस मंत्र को बोलकर गंगा जल या अन्य जल में दूध, तिल और जौ मिलकर 3 बार पिता को
जलांजलि दें। जल देते समय ध्यान करें कि वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों।
इसके बाद पितामह को जल दें।
तर्पण : पितामह को जल देने का मंत्र
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें -
.....गोत्रे अस्मत्पितामह (पितामह का नाम) शर्मा वसुरूपत्
तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः।
इस मंत्र से पितामह को भी 3 बार जल दें।
तर्पण : माता को जल देने का मंत्र
जिनकी माता इस संसार के विदा हो चुकी हैं उन्हें माता को भी जल देना चाहिए। माता को जल देने
का मंत्र पिता और पितामह से अलग होता है। इन्हें जल देने का नियम भी अलग है। चूंकि माता का
ऋण सबसे बड़ा माना गया है इसलिए इन्हें पिता से अधिक बार जल दिया जाता है।
माता को जल देने का मंत्र -
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें -
.....गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त्
तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः।
इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें।
दादी के नाम पर तर्पण
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें -
.....गोत्रे पितामां (दादी का नाम) देवी वसुरूपास्त्
तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः।
इस मंत्र से जितनी बार माता को जल दिया है दादी को भी जल दें। श्राद्ध में श्रद्धा का महत्व सबसे
अधिक है इसलिए जल देते समय मन में माता-पिता और पितरों के प्रति श्रद्धा भाव जरूर रखें।
श्रद्धा पूर्वक दिया गया अन्न जल ही पितर ग्रहण करते हैं। अगर श्राद्ध भाव ना हो तो पितर उसे
ग्रहण नहीं करते हैं।
(सामग्री नवभारत टाइम्स से साभार)
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