https://youtu.be/9RZTmnF4uGY
मधुकर श्याम हमारे चोर (4)
मन हर लीनो माधुरी मूरत (2)
निरख नैन की कोर
श्याम हमारे चोर (2)
मधुकर श्याम हमारे चोर
सिर पे जाके मुकट सुहाये (2)
माथे तिलक नैन कजरारे (2)
मुख सुंदर ज्यूँ भोर
श्याम हमारे चोर
चोर
श्याम हमारे चोर
मधुकर श्याम हमारे चोर
सूरदास के चोर कन्हैया मनमोहन मुरली के बजैया (2)
मनमोहन मुरली के बजैया
नटखट नन्दकिशोर
चोर्!
श्याम हमारे चोर
मधुकर श्याम हमारे चोर
श्याम हमारे चोर (3)
मधुकर श्याम हमारे चोर्
भक्त सूरदास का मूल भजन :
मधुकर! स्याम हमारे चोर।
मन हरि लियो सांवरी सूरत¸ चितै नयन की कोर।।
पकरयो तेहि हिरदय उर–अंतर प्रेम–प्रीत के जोर।
गए छुड़ाय छोरि सब बंधन दे गए हंसनि अंकोर।।
सोबत तें हम उचकी परी हैं दूत मिल्यो मोहिं भोर।
सूर¸ स्याम मुसकाहि मेरो सर्वस सै गए नंद किसोर।।
भावार्थ :
यह राग सारंग पर आधारित पद है। गोपियां उद्धव से बोलीं, हमारे चित्त को
चुराने वाले हमारे श्यामसुंदर ही हैं। उन्होंने टेढी दृष्टि से हमारे चित्त को चुरा
लिया है। हमने अपने हृदय में उन्हें भलीभांति जकडकर रखा था। लेकिन
उन्होंने तनिक मुस्कान बिखेरकर सारे बंधन तोड डाले और स्वयं को मुक्त
करा लिया। इस प्रकार श्यामसुंदर हमारे हृदय से निकल गए, तब हम गोपियां
चौंककर जाग गई और रात्रि का सारा समय इन आंखों में ही काट डाला अर्थात
रातभर जागती रहीं। जब सवेरा हुआ तो आपके (उद्धव) रूप में एक संदेशवाहक
से हमारी भेंट हुई। सूरदास कहते हैं कि गोपियों ने उद्धव को स्पष्ट कर दिया कि
कृष्ण ने हमारा सर्वस्व छीन लिया।
भक्त सूरदास का मूल भजन :
मधुकर! स्याम हमारे चोर।
मन हरि लियो सांवरी सूरत¸ चितै नयन की कोर।।
पकरयो तेहि हिरदय उर–अंतर प्रेम–प्रीत के जोर।
गए छुड़ाय छोरि सब बंधन दे गए हंसनि अंकोर।।
सोबत तें हम उचकी परी हैं दूत मिल्यो मोहिं भोर।
सूर¸ स्याम मुसकाहि मेरो सर्वस सै गए नंद किसोर।।
भावार्थ :
यह राग सारंग पर आधारित पद है। गोपियां उद्धव से बोलीं, हमारे चित्त को
चुराने वाले हमारे श्यामसुंदर ही हैं। उन्होंने टेढी दृष्टि से हमारे चित्त को चुरा
लिया है। हमने अपने हृदय में उन्हें भलीभांति जकडकर रखा था। लेकिन
उन्होंने तनिक मुस्कान बिखेरकर सारे बंधन तोड डाले और स्वयं को मुक्त
करा लिया। इस प्रकार श्यामसुंदर हमारे हृदय से निकल गए, तब हम गोपियां
चौंककर जाग गई और रात्रि का सारा समय इन आंखों में ही काट डाला अर्थात
रातभर जागती रहीं। जब सवेरा हुआ तो आपके (उद्धव) रूप में एक संदेशवाहक
से हमारी भेंट हुई। सूरदास कहते हैं कि गोपियों ने उद्धव को स्पष्ट कर दिया कि
कृष्ण ने हमारा सर्वस्व छीन लिया।
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