रविवार, 24 फ़रवरी 2013

सोये एहसास जगाओ तो कोई बात बने.....

 ग़ज़ल
Gabbiani al tramonto
सोये एहसास जगाओ तो कोई बात बने.....

-अरुण मिश्र.

सोये  एहसास  जगाओ,  तो  कोई बात बने। 
दर्द का  गीत  जो गाओ,  तो  कोई बात बने।।
  
सुब्ह  ख़ामोश  है,  पसरा  हुआ  सन्नाटा है। 
इक  कोई  टेर  लगाओ,  तो  कोई बात बने।।
  
दावा-ए-जादू-बयानी  पे  वो  हॅस कर, बोले। 
आग  पानी में  लगाओ,  तो  कोई बात बने।।
  
हम कहाँ चूके,जगी आग तो हमने भी कहा।  
आग से  आग बुझाओ,  तो  कोई बात  बने।।
  
इब्ने-आदम हैं ‘अरुन’ , राहे-गुनह के राही। 
आप भी  साथ जो आओ  तो कोई बात बने।। 
                                          *

 

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

है वसंत जीवन का उत्सव......





है वसंत जीवन का उत्सव......

-अरुण मिश्र .

कालचक्र   है   सतत   परिभ्रमित, 
बदल-बदल   ऋतुओं    के    चोले।
कभी   शुष्क   है,   कभी  आर्द्र   है;
आतप-शीत     रंग     बहु    घोले।।

        जीर्ण-पत्र     सब    झरे   द्रुमों   से,
        शिशिर-गलित, हेमन्त-विदारित।
        फिर    वसंत    ने    ली    अँगड़ाई,
        फिर   से   आम्र,    मंजरी-भारित।।

पत्रोत्कंठित       एक-एक      तरु,
विटप-विटप  नव-पल्लव-भूषित।
मन्मथ-दुन्दुभि  सुन   वसंत   की,
प्रकृति,  सृजन-आतुर मन-हर्षित।।

        नवल       हरित  पत्रों    की    चूड़ी,
        बाँह-बाँह     भर      पहने      डाली।
        मेंहदी    रची     हथेली,      पल्लव;
        है    वसंत    की     छटा    निराली।।

कोयल     की    मीठी     तानें     हैं;
विहगों   के    मनहर   हैं    कलरव।
हृदयों    में     उल्लास    भर    रहा,
है     वसंत,   जीवन   का    उत्सव।।
                                     *

(जन्म दिवस पर कविवर निराला की पुण्य स्मृति को समर्पित)

कविता, 15.02.2013, वसंत पंचमी, अरुण मिश्र.

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला......

वसन्त पंचमी की मंगलकामनाएं 

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला...... 
(माँ सरस्वती के बहुश्रुत स्तुति का भावानुवाद}

-अरुण मिश्र.

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बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

बादलों से बरस रहीं यादें....

ग़ज़ल 
A walk in the rain

बादलों से बरस रहीं यादें....

-अरुण मिश्र.

बादलों    से,    बरस     रहीं    यादें। 
मेरे   मन   में   हुलस    रहीं   यादें।। 

रुत  तो  बस,  आने का  बहाना  है। 
साल   भर    से,   तरस  रहीं   यादें।। 

अब समा के,  न दिल से निकलेंगी। 
बन्द,   सीने   के,  कस   रहीं   यादें।। 

संग   हवाओं   के,   पहले  लहरायें। 
फिर हैं  नागिन सी,  डस रहीं  यादें।।
  
मैं शजर गोया,  लिपट कर  मुझसे। 
बेल   सी,   देखो   लस   रहीं   यादें।। 

गुज़रे लम्हों के, गुलाबों में ‘अरुन’। 
हैं  महक  बन के,  बस   रहीं  यादें।।
                               *