ग़ज़ल
बादलों से बरस रहीं यादें....
-अरुण मिश्र.
बादलों से बरस रहीं यादें....
-अरुण मिश्र.
बादलों से, बरस रहीं यादें।
मेरे मन में हुलस रहीं यादें।।
रुत तो बस, आने का बहाना है।
साल भर से, तरस रहीं यादें।।
अब समा के, न दिल से निकलेंगी।
बन्द, सीने के, कस रहीं यादें।।
संग हवाओं के, पहले लहरायें।
फिर हैं नागिन सी, डस रहीं यादें।।
मैं शजर गोया, लिपट कर मुझसे।
बेल सी, देखो लस रहीं यादें।।
गुज़रे लम्हों के, गुलाबों में ‘अरुन’।
हैं महक बन के, बस रहीं यादें।।
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