गणतंत्र दिवस की कोटि-कोटि शुभकामनायें
आज छब्बीस जनवरी है...
-अरुण मिश्र.
इस फ़ज़ा में, गन्ध-रस की आज कैसी माधुरी है?
शीत रितु की यह सुहानी सुब्ह क्यों रंगत भरी है?
संग तिरंगे के हमारे प्राण-मन क्यों फरफराते?
आज है गणतंत्र का शुभ पर्व, छब्बीस जनवरी है।।
जनवरी छब्बीस, रावी-तट, विगत इतिहास
शूरमाये-जंगे-आज़ादी इकट्ठा थे।
सरफ़रोशी की तमन्नायें लिये दिल में-
बाज़ू-ए-क़ातिल की हिम्मत आज़माने को।
हिन्द के वे शेर गरजे-
दुश्मनों के हृदय लरज़े।
लाश होती क़ौम की मुर्दा नसों में,
फिर जगा था, - गर्म बहते ख़ून का अहसास।
देश के हित मरने वालों की अमर है जाँफ़िशानी ।
रात काली काट डाली, सुब्ह ले आये सुहानी।
वीर पुरखों की हमारे वो शहादत रंग लायी-
देश के जन को मिली गणतंत्र की पावन निशानी।।
पुण्य स्मृति की मधुर बेला-
दिवस गणतंत्र का यह।
याद में उनके-
सभी के मन भरे, आँखें भरी हैं।
आज छब्बीस जनवरी है।।
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