मौत के मुँह में गये फिर आ गये वापस हैं हम....
-अरुण मिश्र.
मौत के मुँह में गये, फिर आ गये वापस हैं हम।
इश्क़ करके भी हैं ज़िंदा, साहिबे-किस्मत हैं हम।।
कैसे-कैसे है निभाया, किससे-किससे, क्या कहें?
जो डसे, उससे ही, पानी माँगने लायक हैं हम।।
सोहबते-दानिशवरां से, रफ़्ता-रफ़्ता ही सही।
सबके-सब हम्माम में नंगे; हुये क़ायल हैं हम।।
तू ‘अरुन’ मत रो कि, तेरे साथ ही बह जायेंगे।
यूँ तो हैं कालिख़ सही, पै आँख के काजल हैं हम।।
*
-अरुण मिश्र.
मौत के मुँह में गये, फिर आ गये वापस हैं हम।
इश्क़ करके भी हैं ज़िंदा, साहिबे-किस्मत हैं हम।।
कैसे-कैसे है निभाया, किससे-किससे, क्या कहें?
जो डसे, उससे ही, पानी माँगने लायक हैं हम।।
सोहबते-दानिशवरां से, रफ़्ता-रफ़्ता ही सही।
सबके-सब हम्माम में नंगे; हुये क़ायल हैं हम।।
तू ‘अरुन’ मत रो कि, तेरे साथ ही बह जायेंगे।
यूँ तो हैं कालिख़ सही, पै आँख के काजल हैं हम।।
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